अच्छी ख़बर बिहार : रोहतास ज़िले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र की ‘राजमिस्त्री महिलाओं’ ने लिखी बदलाव की नयी कहानी

बिहार : रोहतास ज़िले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र की ‘राजमिस्त्री महिलाओं’ ने लिखी बदलाव की नयी कहानी

आज जिन महिलाओं की कहानी आपके सामने हैं उनके हौसले ने पितृसत्ता की बंदिशें तोड़ी हैं। ये महिलाएं अपनी क्षमता से बदलाव की राह दिखाने वाली नायिकाएं हैं। इन्होंने राजमिस्त्री के पुरुषों वाले पांरपरिक पेशे को अपनाकर न केवल खुद के लिए रोज़गार के नये विकल्प चुने बल्कि अपने परिवार और बच्चों के जीवन को भी बेहतर किया है।

घर के बाहर समाज की लगी बंदिशों को तोड़कर महिलाएं अपनी मेहनत के बल पर अपनी अलग पहचान बना रही हैं। मौजूदा दौर में हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही हैं। एक समय था जब पुरुषों ने यह तय किया था कि महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा जाना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को घर-परिवार के कामों तक ही सीमित रखा। चूल्हा-चौका, बच्चों की जिम्मेदारी से उनके पांव जकड़ दिए। एक आदर्श नारी का उदाहरण पेश करने के लिए समाज कई युगों से महिलाओं की इच्छाओं, सपनों का गला घोंटता आया है। पितृसत्तात्मक समाज में एक आदर्श बेटी, पत्नी वह है, जिसकी अपनी कोई इच्छाएं न हो और परिवार के पुरुष ही उसकी पहचान हो।

पितृसत्ता के नियमों के अनुसार महिला पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं बल्कि उसके पीछे साये की तरह चले। इससे अलग जब भी महिलाएं अपनी पहचान और आवश्यकता के लिए पितृसत्ता के घेरे से बाहर कदम रखती हैं, तो उन्हें अनेक तरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद अब महिलाएं घर से बाहर काम कर रही हैं। अपनी मेहनत से आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं। पांरपरिक पेशों में भी काम करके पितृसत्ता के बनाए नियमों को बदल रही हैं। खासतौर पर वर्तमान में महिलाएं कुछ पेशों में पीढ़ियों से चले आ रहे पुरुष वर्चस्व को खत्म कर वहां न केवल काम कर रही है बल्कि स्वयं की पहचान भी बना रही हैं।

आपने अपना घर बनता देखा होगा या दूसरों के मकान को भी बनते देखा होगा जिसे कई पुरुष दिन-रात मेहनत कर एक-एक ईट जोड़ कर बनाते हैं। इन्हें आम बोल-चाल की भाषा में राजमिस्त्री कहा जाता है। लेकिन क्या कभी आपने किसी महिला को ईट जोड़ते, मकान बनाते देखा है? जवाब यदि ‘नहीं’ है तो इस लेख के बाद आपका जवाब हां में बदलने वाला है। आज जिन महिलाओं की कहानी आपके सामने हैं उनके हौसले ने पितृसत्ता की बंदिशें तोड़ी हैं। ये महिलाएं अपनी क्षमता से बदलाव की राह दिखाने वाली नायिकाएं हैं। इन्होंने राजमिस्त्री के पुरुषों वाले पांरपरिक पेशे को अपनाकर न केवल खुद के लिए रोज़गार के नये विकल्प चुने बल्कि अपने परिवार और बच्चों के जीवन को भी बेहतर किया है।

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गांव हो या शहर औरतों को जीवन में अनचाहे दुखों का सामना तो करना ही पड़ता है। शहर की महिलाएं फिर भी अपने हक के लिए अब आवाज उठाने लगी हैं, लेकिन गांव में रहनेवाली औरतें आज भी इन अधिकारों से वंचित हैं। बिहार में रोहतास ज़िले का तिलौथू प्रखंड नक्सल प्रभावित इलाका है, जहां कुछ करने से पहले कई बार सोचना पड़ता है। इस इलाके में चार हज़ार से अधिक महिलाएं बदलाव की एक नयी कहानी लिख रही हैं। पितृसत्तात्मक समाज किसी महिला को मजदूरी की इजाज़त तो देता है लेकिन ईट जोड़ने की इजाज़त नहीं देता है। लेकिन भूख और ज़रूरत ने इन महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय किए गए नियमों को तोड़ने का साहस दिया।

आज जिन महिलाओं की कहानी आपके सामने हैं उनके हौसले ने पितृसत्ता की बंदिशें तोड़ी हैं। ये महिलाएं अपनी क्षमता से बदलाव की राह दिखाने वाली नायिकाएं हैं। इन्होंने राजमिस्त्री के पुरुषों वाले पांरपरिक पेशे को अपनाकर न केवल खुद के लिए रोज़गार के नये विकल्प चुने बल्कि अपने परिवार और बच्चों के जीवन को भी बेहतर किया है।

समाज की बातों की परवाह किए बगैर इन्होंने अपने कदम घर से बाहर निकाले और पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे को अपनाने के लिए आगे बढ़ गई। इस क्षेत्र में महिलाओं का राजमिस्त्री के तौर पर काम करना एक बहुत बड़ा कदम है। इस क्षेत्र में अब महिलाएं बड़ी संख्या में राजमिस्त्री के पेशे को अपनाकर काम करने के लिए घर से बाहर निकल रही हैं। आज के समय में एक अकेली महिला ने 4,000 से अधिक महिलाओं को ईंट जोड़ने के लिए प्रेरित किया और अपना एक अलग समूह बनाकर, रोज़गार का एक नया आयाम ढूंढा। ये महिलाएं आज बिजली की वायरिंग से लेकर दीवार, छत, पाईप आदि सभी चीजों को बनाती हैं।

दैनिक जागरण में छपे लेख के मुताबिक तिलौथू जैसे नक्सल प्रभावित इलाके 4,675 महिलाएं राजमिस्त्री का काम रही हैं। यहां 670 महिलाएं बढ़ई के पेशे से जुड़ी हैं। यहां 220 महिलाएं इलैक्ट्रिशियन और 290 महिलाएं प्लंबर हैं। अपनी कलाकारी का बेहतरीन प्रदर्शन करके सिर्फ अपने इलाके का ही नहीं बल्कि बिहार के अन्य क्षेत्र की महिलाओं के लिए एक मिशाल बन कर उभरी है। इन महिलाओं को प्रशिक्षण देने का काम करता है तिलौथु का महिला मंडल। इस महिला मंडल की सचिव रंजना सिन्हा हैं।

घर बनाने के काम में शामिल कई महिलाओं का कहना था कि उनके घरवाले, रिश्तेदार, आस-पड़ोस के लोगों ने उन्हें इस तरह का काम करने की अनुमति नहीं दी। उनका कहना था कि राजमिस्त्री का काम पुरुषों का है। इस तरह पुरुषों के जैसा काम कर पैसे लाने की कोई जरूरत नहीं है। कई लोगों ने यह भी कहा कि वे तंगी में गुज़ारा कर लेंगे लेकिन इन महिलाओं की कमाई नहीं लेंगे। लेकिन महिलाओं ने उनकी एक नहीं सुनी। उन्होंने सामाज की दकियानुसी सोच का डर छोड़कर अहमियत दी तो अपने हौसले को अपने आत्मसम्मान को। यहां तक पहुंचने के लिए महिलाओं ने कई ताने सुनें और सबको अनसुना किया। अब यही काम इनकी अलग पहचान बन गई है। आज समाज भी इनके काम को सम्मान के साथ देखता है। महिला मंडली इन महिलाओं के काम में यथासंभव अपना योगदान दे रही है।

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तस्वीर साभार : दैनिक जागरण

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