न्यायिक तंत्र को पितृसत्तात्मक प्रभुत्व की प्रचलित सामाजिक कमी से बचाने और लैंगिक समानता की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए, भारत के कई वास्तविक और प्रक्रियात्मक कानूनों ने विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से महिलाओं को कुछ विशेषाधिकार और छूट दी है। केंद्रीय और राज्य विधानसभाओं की कई विधियों और भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों ने महिलाओं की बेहतरी को उचित महत्व दिया है और लैंगिक भेदभाव के प्रचलित रूपों से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की है।
भारत के अपराधिक कानून भी, चाहे वह प्रक्रियात्मक हो या मूल, महिलाओं की सुरक्षा, रखरखाव और कल्याण को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। इस तरह के कानूनों ने विशेष प्रावधान निर्धारित किए हैं जो महिलाओं को कानून के माध्यम से सुरक्षा की गारंटी देते हैं और साथ ही आपराधिक प्रकृति के कई अत्याचारों से बचाव करते हैं।
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हालांकि, यह एक सर्वमान्य धारणा है कि अपराधी केवल एक विशेष वर्ग का नहीं होता है। अपराधी किसी भी जाति, वर्ग, लिंग या अन्य मूल का हो सकता है। इस प्रकार, कोई व्यक्ति जो अपराध करता है या जिस पर अपराध करने का आरोप लगाया जाता है, वह एक महिला भी हो सकती है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए, भारत के आपराधिक कानूनों में कुछ प्रावधान शामिल हैं जो किसी अपराध की आरोपी महिला की गिरफ्तारी, मुकदमे और अंतर्निहित कानूनी अधिकारों का प्रावधान करते हैं।
एक महिला जिस पर अपराध का आरोप है वह किसी भी परिस्थिति में ऐसे ही मुक्त नहीं हो सकती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 ए में ‘समान न्याय’ की अवधारणा शामिल है अर्थात न्याय सबके लिए बराबर है। अब प्रश्न यह है कि कोई भी आरोपी महिला किस प्रक्रिया के तहत गिरफ्तार की जा सकती है? उसकी गिरफ्तारी के दौरान किन नियमों का पालन करना होगा?
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एक महिला की गिरफ्तारी की प्रक्रिया
हम सभी ने नियम सुना होगा, “सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद महिलाओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।” इस नियम का सार ‘अंधेरा’ है यानि अंधरे में महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। अब सवाल यह है कि अगर महिला आरोपी है तो उसे अंधेरे से दूर क्यों रखा जाए? इसका जवाब है ‘आरोपी’ महिला को ‘पीड़ित’ बनने से बचाने के लिए। महिलाओं के साथ अधिकतर अपराध रात के अंधेरे में ही किए जाते हैं। इसीलिए आरोपी महिला को भी पीड़ित बनने से बचाने के लिए ये नियम बनाया गया है। इस नियम के अनुसार, जहां आरोपी एक महिला है उसकी गिरफ्तारी के समय भी, उस आरोपी की निष्पक्ष सुनवाई के लिए उसकी सुरक्षा एक प्राथमिकता है। यह कानून साल 2005 में दंड प्रक्रिया संहिता (IPC) 1973 की धारा 46 में संशोधन करके बनाया गया।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 46(4) कहती है कि सामान्य परिस्थितियों में से किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, और जहां ऐसी असाधारण परिस्थितियां मौजूद हो, वहां महिला पुलिस अधिकारी लिखित रिपोर्ट बनाकर प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति प्राप्त करेगी, जिसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र में अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 160 (1) के प्रावधान के अनुसार महिलाओं को पूछताछ के लिए थाने या अपने निवास स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर नहीं बुलाया जाना चाहिए।
शीला बरसे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1983) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने महिला आरोपी और क़ैदियों को लेकर कुछ निर्देश जारी किए – गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि गिरफ्तार महिलाओं को पुरुषों से अलग किया जाए और अलग महिला लॉकअप में रखा जाए और महिला कांस्टेबल को उनके बाहर तैनात करके उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। अलग-अलग लॉकअप के अभाव में महिलाओं को अलग कमरे में रखा जाना चाहिए। महिला आरोपी से पूछताछ केवल महिला पुलिस अधिकारियों/कांस्टेबलों की उपस्थिति में होनी चाहिए।
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गिरफ्तार महिला के अधिकार
मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार– संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार प्रदान किया गया है। यह अधिकार उन लोगों के साथ है जो दीवानी या फौजदारी कार्यवाही का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। यह राज्य की जिम्मेदारी होगी कि वह उस व्यक्ति को कानून की अदालत में उचित प्रतिनिधित्व के लिए राज्य के खर्च पर पर्याप्त कानूनी सहायता प्रदान करे। पेड़ जैसा यह प्रावधान महिलाओं सहित समाज के सभी वर्गों में अपनी शाखाओं का विस्तार करता है।
गिरफ्तारी और ज़मानत के आधार के बारे में सूचित करने का अधिकार – गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में तुरंत सूचित किया जाना चाहिए। गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत यह बताना चाहिए कि वह जमानत के लिए आवेदन करने का हकदार है।
हाथापाई और हथकड़ी लगाने के खिलाफ अधिकार– यदि पुलिस अधिकारी ने महिला आरोपी को उसकी गिरफ्तारी के बारे में उसे मौखिक रूप से बता दिया है तो यह माना जाता है कि आरोपी अपने आप को पुलिस की हिरासत में प्रस्तुत कर देगी। यदि किसी आरोपी महिला को उसकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए छूना आवश्यक है, तो इसे केवल एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही किया जाना चाहिए, जो कि अत्यधिक आवश्यकता की स्थितियों में ही होगा।
रिश्तेदारों या दोस्तों को सूचित करने का अधिकार – किसी महिला या पुरुष को गिरफ्तार करते समय, गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति के किसी भी रिश्तेदार या दोस्तों को ऐसी गिरफ्तारी और गिरफ्तार व्यक्ति के स्थान के बारे में तुरंत जानकारी प्रदान करे। पुलिस को यह जानकारी उस व्यक्ति को भी देनी होगी जिसका नाम गिरफ्तार महिला ने बताया हो। नजरबंदी के दौरान अधिकार- एक पुलिस अधिकारी सामान्य परिस्थितियों में किसी गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक (जिसमें यात्रा का समय शामिल नहीं है) अपनी हिरासत में रखने के लिए अधिकृत नहीं है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 51(2) के अनुसार गिरफ्तार महिला को कारागार में सम्मान के साथ रहने का अधिकार है।
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