भारतीय समाज एक ब्राह्मणवादी पितृसत्ता सोच वाला समाज है। यह समाज महिलाओं को सिर्फ़ मां, बहन और पत्नी की भूमिका में देखना चाहता है। इससे इतर महिलाएं किसी भी कार्यक्षेत्र में अपनी पहचान बनाने निकलती हैं तो उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है। महिलाओं के प्रति भारतीय पुरुष नेताओं की राय भी इससे अलग नहीं हैं। इस बात को दावे के साथ इसलिए कहा जा सकता है कि समय-समय पर पुरुष नेताओं द्वारा राजनीति में मौजूद महिला नेताओं या फिर इसमें कदम रखनेवाली महिलाओं को नकारते दिखते हैं। देश के बड़े-बड़े महत्वपूर्ण पदों पर विराजित पुरुष नेताओं ने महिला नेताओं पर अभद्र टिप्पणी की है। आम चुनाव से लेकर संसद के सत्र तक में पुरुष नेता महिला नेताओं पर अभद्र टिप्पणी कर अपनी सोच को दर्शाते रहे हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिला नेताओं को अपनी भागीदारी के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की राजनीति में बतौर नेता की भूमिका में प्रतिनिधित्व करने के लिए सबसे पहली बाधा तो उनके सहयोगी ही है। राजनीतिक व्यवस्था में पुरुष नेता महिला नेताओं को उनके कपड़े, हंसी और पूर्व पेशे को टारगेट करते हुए पाए जाते हैं। उनकी राय को कम समझते हुए, उनकी बातों को कमतर मानते हुए दिखते हैं।
पितृसत्तात्मक मानसिकता, लैंगिक रूढ़िवादिता और सांस्कृतिक बाधाएं राजनीति में महिलाओं के नेतृत्व को प्रभावित करती हैं। राजनीति को पुरुषों का क्षेत्र माननेवाली मानसिकता के अनुसार महिलाओं का इसमें कोई काम नहीं है। यही कारण है कि राजनीति में कदम रखनेवाली महिलाओं को असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। महिला उम्मीदवारों का राजनीतिक दल द्वारा बहिष्कार करना, समाज की प्रतिक्रिया, महिलाओं को उनकी पसंद के कपड़े पहनने पर परेशान करना, उनकी जाति, वर्ग, शारीरिक बनावट पर टिप्पणी करना, फिल्म इंडस्ट्री से राजनीति में आनेवाली महिलाओं को खासतौर पर टारगेट करना राजनीति में बहुत ही सामान्य है। नेताओं के भाषण के बाद पब्लिक भी इस खेल में शामिल हो जाती है और महिला नेताओं के ऊपर बयानबाजी और अभद्र भाषा इस्तेमाल करने की पूरी एक रेस शुरू हो जाती है।
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कपड़ों पर सबसे पहले निशाना
भारतीय राजनीति में महिला नेताओं के लिए हर स्तर पर चुनौतियां मौजूद हैं। महिला राजनेताओं को निशाना बनाने के लिए सबसे पहले उनके पहनावे को केंद्र बनाया जाता है। राजनीति में महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे हमेशा साड़ी, सलवार-कमीज और एक निर्धारित ड्रेसकोड में ही नज़र आनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है। ख़ासकर, अभिनय से राजनीति में कदम रखनेवाली महिलाओं को खासतौर पर इस समस्या का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है। अभिनेत्रियों से महिलाओं को उनके पुराने काम, पहनावे को लेकर वर्तमान समय में तो सोशल मीडिया पर अधिक ट्रोल किया जाता है।
महिला उम्मीदवारों का राजनीतिक दल द्वारा बहिष्कार करना, समाज की प्रतिक्रिया, महिलाओं को उनकी पसंद के कपड़े पहनने पर परेशान करना, उनकी जाति, वर्ग, शारीरिक बनावट पर टिप्पणी करना, फिल्म इंडस्ट्री से राजनीति में आनेवाली महिलाओं को खासतौर पर टारगेट करना राजनीति में बहुत ही सामान्य है।
लगभग हर केस में यह भी देखा गया है कि इस तरह की किसी भी टिप्पणी की शुरुआत किसी पुरुष नेता द्वारा ही की जाती है बाद में आम लोग भी इसमें शामिल हो जाते हैं। यह पितृसत्तात्मक समाज में मौजूद लैंगिक भेदभाव ही है कि महिला राजनेताओं को राजनीति के सार्वजनिक जीवन में आने के लिए उन्हीं कपड़ो को चुनना पड़ता है जिसे पुरुषों ने महिलाओं के लिए तय किया है। भले ही वह सामान्य रूप से अपने निजी जीवन में ऐसे कपड़े नहीं पहनती हो। सार्वजनिक समर्थन और स्वीकार्यता पाने के लिए महिला नेताओं के लिए पितृसत्ता के द्वारा निर्धारित पहनावे को चुनना मजबूरी हो जाती है।
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सड़क से लेकर संसद में बयानबाजी
नेता अक्सर दूसरे दल के नेताओं पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते देखे जाते हैं। लेकिन जब बात महिला नेताओं पर टिप्पणी की जाए तो अक्सर उनकी बयानबाज़ी लैंगिक भेदभाव से ओत-प्रोत होती है। कई बार उनके लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में बहुत ही अपमानजनक माना जाता है। मायावती, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी आदि कुछ वरिष्ठ नेताओं के नाम हैं जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में मीडिया, समाज और पुरुष नेताओं से अभद्र बातें सुनने को मिली है।
उदाहरण के तौर पर स्मृति ईरानी को उनके टेलीविजन में किए गए काम के लिए लगातार बोला जाता रहा है। उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री मायावती के ऊपर अनेक तरह की लैंगिक भेदभाव और जातीय टिप्पणी की जाती हैं। उनके पहनावे को लेकर कई अभद्र बातें सार्वजनिक मंचों से कही गई है। प्रियंका गांधी के राजनीति में उतरते ही उनके जींस पहनने को लेकर भी उनपर टिप्पणियां की गई। हाल में टीएमसी की सांसद नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती को संसद में वेस्टर्न कपड़े पहनने के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था।
भारतीय राजनीति में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी वह नाम हैं जिन पर आए दिन राजनीति में सबसे अधिक ओछी टिप्पणियां की जाती हैं। राहुल गांधी पर भी टिप्पणी करनी हो तो सोनिया गांधी को केंद्र में रखकर बहुत ही अपमानजनक बातें कही जाती हैं। राजनीति में सोनिया गांधी के आने के बाद से विरोधियों द्वारा उन पर लगातार अपमानजनक बातें कही जाती रही हैं। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने से लेकर, उनकी बोलचाल की शैली से लेकर उनपर अनेक निजी हमले होते रहे हैं। इंटरनेट पर सोनिया गांधी की बहुत सारी फ़र्ज़ी तस्वीरें मौजूद है जिन्हें एक ख़ास विचारधारा के द्वारा लगातार सर्कुलेट किया जाता रहता है।
हाल में उत्तराखंड में एक जनसभा को संबोधित करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने राहुल गांधी को टारगेट करते हुए सोनिया गांधी के खिलाफ बहुत अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। एबीपी लाइव की ख़बर के अनुसार मुख्यमंत्री बिस्वा ने राहुल गांधी के सर्जिकल स्ट्राइक के सर्टिफिकेट मांगने के जवाब में कहा, “हमने कभी क्या आपके पिता का प्रूफ मांगा है।” गौर करने वाली बात यह है कि मंच से दिए गए एक मुख्यमंत्री के बयान पर जनता जमकर ताली बजाती है और बहन-बेटी के सम्मान वाली उनकी पार्टी चुप्पी साधे हुए है।
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उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 में कांग्रेस की ओर से जैसे ही हस्तिनापुर सीट से प्रत्याशी के तौर पर अर्चना गौतम को टिकट दिया गया उसके बाद से ही अर्चना गौतम को उनके काम और पहनावे को लेकर बहुत ज्यादा बातचीत होने लगी। अर्चना गौतम के कपड़े को लेकर नेताओं की बयानबाज़ी और सोशल मीडिया पर उनके पुराने फोटो को ट्रोल किया गया। अर्चना गौतम पूर्व में मिस यूपी जैसे खिताब अपने नाम कर चुकी हैं।
फेमिनिज़म इन इंडिया से बात करते हुए अर्चना गौतम ने कहा, “सबसे पहले तो हमारी राजनीति में एक लड़की के साथ ऐसा व्यवहार देखकर मुझे बहुत दुख हुआ है। महिला सशक्तिकरण का सिर्फ नारा लगया जाता है वास्तव में जब कुछ करना होता है तो सिर्फ गंदी राजनीति होती है। हर लड़की को कुछ भी पहनने का हक है। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा करने वाली मैं ऐसी पहली लड़की तो नहीं हूं। राजनीति में मुझसे पहले और भी हीरोइन और हीरो हैं। लेकिन हम महिलाएं तो किसी हीरो से नेता बनने पर ऐसा कुछ नहीं कहती हैं कि आपने शर्ट क्यों नहीं पहनी थी। केवल लड़कियों के कपड़े को उनके चरित्र से जोड़कर उन पर कीचड़ उछाला जाता है। हमेशा लड़कियों पर ही सवाल उठाए जाते हैं।”
अपनी ट्रोलिंग पर अर्चना गौतम ने आगे कहा, “मैंने सिर्फ अपना काम किया है। मैंने किसी का मर्डर नहीं किया। मैं एक साधारण सी लड़की हूं जिसने अपने जीवन में हर चीज संघर्ष करके हासिल की है। मैं फिल्मी दुनिया में संघर्ष किया राजनीति में भी संघर्ष करती रहूंगी। मैं वास्तव में लड़कियों को आगे बढ़ाना चाहती हूं, अपने समाज को आगे बढ़ाना चाहती हूं। लोगों की सोच को बदलना चाहती हूं। जैसा व्यवहार मेरे साथ हुआ ऐसा मैं किसी ओर के साथ नहीं होने देना चाहती हूं।”
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भारतीय महिला नेताओं को मिलती है सबसे ज्यादा गालियां
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने अपने एक शोध में पाया कि 2019 के आम चुनाव के दौरान 95 महिला राजनेताओं को निशाना बनाते हुए सोशल मीडिया पर गालियां दी गईं। अभद्र भाषा के साथ-साथ इनमें हत्या और बलात्कार जैसी धमकियां भी शामिल थीं। इस शोध में मे देखा गया कि मार्च से मई के बीच सोशल मीडिया साइट ट्वीटर पर नफरत भरे लगभग दस लाख से अधिक मैसेज मिले। इस अध्ययन में यह भी पता चला कि मुस्लिम महिला नेताओं को ज्यादा अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ज्यादा लोकप्रिय नेताओं को ट्रोलिंग का ज्यादा सामना करना पड़ता है। इस रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती ऑनलाइन हिंसा को लेकर चिंता जाहिर की गई। डिजिटल स्पेस में महिलाओं को भय दिखाकर सार्वजनिक पदों पर आने से रोकना है।
महिलाओं को लेकर इस तरह की टिप्पणियां यह दिखाती है कि राजनीति में स्त्री द्वेष कितना अधिक बसा हुआ है। वैसे भारतीय समाज में ऐसी कोई जगह या पेशा नहीं है कि जहां महिलाओं के लिए बहुत ही आदर्श वाली स्थिति हो। लेकिन सरोकार का सबसे बेहतर तरीका समझी जाने वाली राजनीति में नेताओं की ऐसी टिप्पणियां राजनीति में मौजूद महिला विरोधी मानसिकता दिखाती है। देश की संसद में भी महिला नेताओं को लेकर इस तरह की बातें होना बताती है कि हमारी संस्कृति में ऐसी सेक्सिज़म प्रवृत्तियां बहुत गहरे तौर पर बसी हुई हैं। राजनीति में आने पर शुरुआत में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए बड़े-बड़े वादें तो किए जाते हैं लेकिन बाद में नेता ही इसकी सबसे पहले अवमानना करते दिखते हैं। ऐसी लंबी लिस्ट है जिसमें देश के नेताओं ने अपनी साथी महिला नेताओं के बारे में अशोभनीय बातें की हैं।
हमारे देश में प्रधानमंत्री से लेकर एक सामान्य नेता तक ने महिला के लिए ऐसी बातें कही है जो एक सभ्य समाज में तो बिल्कुल मान्य नहीं है। वर्तमान के प्रधानमंत्री का संसद में कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी की हंसी पर टिप्पणी करना हो या फिर ममता बनर्जी का उनको ‘दीदी ओ दीदी’ पुकारना दिखाता है कि नेता महिला नेताओं को लेकर क्या सोच रखते हैं। यह भारतीय राजनीति का एक दोहरा चेहरा है, जो अमेरिका में भारतीय मूल की महिला के उपराष्ट्रपति बनने पर तो खुश होता है लेकिन देश में महिला नेताओं पर अभद्र टिप्पणी करता है। मात्र कपड़े को लेकर भारत में महिला राजनेताओं पर उनके साथी पुरुष नेता ही उनका मनोबल गिराने का काम करते हैं। महिला नेताओं को उनके पहनावे को लेकर उनपर बयानबाजी दिखाती है कि महिला के संदर्भ में राजनीतिक विचारधारा में कितने अधिक बदलाव की आवश्यकता है।
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