इंटरसेक्शनलजेंडर खबर लहरिया: मेनस्ट्रीम मीडिया को चुनौती देती ये रिपोर्टर्स कर रही हैं शोषित-वंचितों की पत्रकारिता

खबर लहरिया: मेनस्ट्रीम मीडिया को चुनौती देती ये रिपोर्टर्स कर रही हैं शोषित-वंचितों की पत्रकारिता

कविता देवी, मीरा देवी, सुनीता प्रजापति आदि महिलाएं अधिकांशतः दलित वर्ग से आती हैं। ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज में इन महिलाओं ने न सिर्फ़ अपने घर की दहलीज से निकलकर उस काम को करने की ठानी जिस पर आज तक सवर्ण पुरुष वर्चस्व हावी है बल्कि अपने परिवारों में भी विद्रोह कर अपने घरों से पहली पत्रकार बनी हैं।

क्लास सेवेंथ की सोशल साइंस एनसीईआरटी में ‘अंडरस्टैंडिंग मीडिया’ नाम का एक चैप्टर है जिसमें पांच वाक्यों में ‘ख़बर लहरिया’ के बारे में बताया गया है। ख़बर लहरिया, एक लोकल साप्ताहिक न्यूज़पेपर है जिसके पाठक दुकानदार, किसान, शिक्षक, हाल ही में शिक्षित महिलाएं आदि हैं। यह अखबार उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में से निलकता है। 30 मई 2002 को कविता देवी और मीरा देवी ने इसकी शुरुआत की। दलित महिलाओं द्वारा शुरू की गई इस न्यूज़पेपर एजेंसी को आज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाएं संचालित कर रही हैं। अख़बार का पहला एडिशन मई 2002 में चित्रकूट जिले के कर्वी कस्बे में बुंदेली भाषा में आया था। साल 2012 में उत्तर प्रदेश के जिले महोबा, लखनऊ, वाराणसी में बुन्देली, अवधी और भोजपुरी क्षेत्रीय भाषा में, बिहार के सीतामढ़ी में बज्जिका भाषा में अख़बार ने विस्तार किया।

ख़बर लहरिया ने वक्त के साथ खुद को अपडेट करते हुए साल 2016 में डिजिटल की ओर शिफ्ट किया और यू ट्यूब चैनल, फेसबुक पेज से डिजिटल मीडिया की दुनिया में कदम रखा। एक ऐसा दौर जब बिना डिग्री किसी हुनर को मान्यता नहीं दी जाती, मीरा देवी, कविता देवी ने न सिर्फ़ मुख्यधारा की मीडिया बल्कि डिग्री जो एक तरह से मेरिट जैसी नोशन को जन्म देती है को खुलकर चुनौती दी है। ख़बर लहरिया आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि साल 2021 में ख़बर लहरिया पर रिंटू थॉमस, सुषमित घोष द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री ‘राइटिंग विद फायर’ भारत से पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म है जो ऑस्कर्स में एकेडमी अवार्ड्स के लिए नॉमिनेट हुई है और तमाम अंतराष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड्स भी जीते हैं।

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आज के समय में जब मीडिया शहरी उच्च जाति और वर्ग के व्यक्तियों से, उनके मुद्दों से भरा पड़ा है, सत्ता के दरबार में हाथ जोड़े खड़ा हुआ है, तब ख़बर लहरिया असल मुद्दों को समावेशी नारीवादी नज़रिये से दिखा रहा है।

हम इस पर नहीं जाएंगे कि डॉक्यूमेंट्री फिल्म किसने बनाई है, उसने कितने अवॉर्ड्स जीते हैं। हम बात करेंगे कैसे कविता देवी, मीरा देवी, आदि पत्रकार महिलाओं ने किस तरह अपनी जगह स्थापित की है और पत्रकारिता को नई दिशा दी है। कविता देवी, मीरा देवी, सुनीता प्रजापति आदि महिलाएं अधिकांशतः दलित वर्ग से आती हैं। ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज में इन महिलाओं ने न सिर्फ़ अपने घर की दहलीज से निकलकर उस काम को करने की ठानी जिस पर आज तक सवर्ण पुरुष वर्चस्व हावी है बल्कि अपने परिवारों में भी विद्रोह कर अपने घरों से पहली पत्रकार बनी हैं। ज़ाहिर ही रिपोर्ट करते समय, अख़बार निकालते समय ना सिर्फ उनकी महिला की जेंडर आइडेंटिटी बल्कि कास्ट आइडेंटिटी, उनके संघर्ष को दोगुना करती रही है। तथाकथित उच्च जाति के पुरुषों द्वारा धमकियां, हमले की साजिशें, अभद्रता इन महिलाओं के आड़े अब तक आती हैं।

‘राइटिंग विद फायर’ के ट्रेलर में एक रिपोर्टर कहती हैं कि रिपोर्ट करते समय उनसे जब पूछा जाता है कि वह किस जाति से हैं तो वह पलटकर पूछती हैं कि अमुक व्यक्ति किस जाति से है। जब व्यक्ति खुद को ब्राह्मण कहता है तो महिला रिपोर्टर भी खुद को ब्राह्मण कह देती हैं। जाति से लड़ते हुए वह अमुक व्यक्ति को ‘जनता’ से कम नहीं आंकती हैं और बराबर रूप से उसका पक्ष सामने रखती हैं।

ख़बर लहरिया की वेबसाइट चेक करते हुए टीम में शामिल पत्रकारों को देखें तो उसमें गौर करनेवाली, एक तरह से विद्रोही बात यह है कि किसी भी पत्रकार का नाम उसके सरनेम के साथ नहीं लिखा हुआ है। जाति से लड़ने का एक तरीका ये भी है। हालांकि, समाज आपको फिर भी पहचान लेता है। लेकिन ख़बर लहरिया की यह पहल मुख्यधारा के मीडिया घरानों को चुनौती दे रही है कि शोषितों के साथ खड़े होते हुए भी पत्रकारिता के कर्तव्य का निर्वहन सभी को जनता समझते हुए कैसे करना है।

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कविता देवी, मीरा देवी, सुनीता प्रजापति आदि महिलाएं अधिकांशतः दलित वर्ग से आती हैं। ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज में इन महिलाओं ने न सिर्फ़ अपने घर की दहलीज से निकलकर उस काम को करने की ठानी जिस पर आज तक सवर्ण पुरुष वर्चस्व हावी है बल्कि अपने परिवारों में भी विद्रोह कर अपने घरों से पहली पत्रकार बनी हैं।

आज के समय में जब मीडिया शहरी उच्च जाति और वर्ग के व्यक्तियों से, उनके मुद्दों से भरा पड़ा है, सत्ता के दरबार में हाथ जोड़े खड़ा हुआ है, तब ख़बर लहरिया असल मुद्दों को समावेशी नारीवादी नज़रिये से दिखा रहा है। ख़बर लहरिया का यूट्यूब चैनल छानकर देखा तो महसूस हुआ कि दिल्ली के बड़े मीडिया घरानों को ख़बर लहरिया की महिला रिपोर्टर्स से क्लास लेनी चाहिए। अधिकांशतः महिलाओं ने विदेश जाकर, या अपने ही देश के बड़े मीडिया संस्थानों से ‘डिग्री वाली शिक्षा’ नहीं ली है लेकिन वे दोनों पक्षों को, ऑप्रेसर पक्ष को, जीवन को निजी तौर पर प्रभावित करते मुद्दों को दिखाना जानती हैं।

यूट्यूब पर चैनल में सर्च करते वक्त वीडियो क्लिप दिखी जिसकी हेडलाइन थी, ‘सेक्सवर्करों की समस्याएं क्यों नहीं बनते चुनावी मुद्दे?’ किसी भी बड़े न्यूज मीडिया के यूट्यूब चैनल, टीवी चैनल पर इतनी साफ़ स्पष्ट मुद्दे को चिन्हित करती हेडलाइन नहीं दिखेगी। टीआरपी की होड़, मुद्दे को मसाला, खबर को सांप्रदायिकता, जातिवाद, पूंजीवाद, ब्राह्मणवाद से लबरेज मेनस्ट्रीम मीडिया निसंदेह सेक्सवर्कर्स की बात को चुनावी मुद्दा घोषित करने का काम नहीं करेगा क्योंकि ये खबर उन्हें मार्केट में स्थापित नहीं करेगी। मार्केट जो तमाम तरह के सामाजिक ढांचों के मिश्रण से बना है, उसे चुनौती देने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है।

तस्वीर साभार: Bollywood Friday Brands

आरएसएस के तमाम छोटे छोटे संगठन देश में सक्रिय हैं और उनका काम क्या है उससे हम सभी परिचित हैं। दिल्ली का मीडिया इन संगठनों में शामिल व्यक्तियों को जानता है लेकिन वे कैसे और क्यों ऐसा सोचते हैं को जानने की कोशिश नहीं करता। फ़िल्म के ट्रेलर में हम जानते हैं कि खबर लहरिया की संपादक कविता ने ऐसे ही एक संगठन से जुड़े युवक से बातचीत की है। वह घटिया राजनीतिक सोच से पोषित व्यक्ति तक का सौम्य तरीके से इंटरव्यू लेती हैं और बिना किसी कड़वे अनुभव के वापस भी लौटती हैं।

जर्नलिज्म में मास्टर ऑफ आर्ट्स कविता आस-पास के क्षेत्रों की बच्चियों को, नये पत्रकारों को पत्रकारिता की क्लास देती हैं और समय के साथ डिजिटल स्पेस को क्लेम करते हुए फोन का इस्तेमाल करना भी सिखाती हैं। एक दूसरे के साथ से सीखकर, हर वर्ग की औरतों का प्रतिनिधित्व खबर लहरिया कर रहा है। ख़बर लहरिया के माइक का रंग नीला है, जिस तरह नीला रंग आसमान और बाबा साहब से जुड़ा हुआ है इसमें यह समझना उचित होगा कि ये सभी महिलाएं अपने लिए अपना आसमान और पत्रकारिता के दायरे को आगे बढ़ा रही हैं। ‘राइटिंग विद फायर’ फिल्म को देखते हुए मेकर्स ने कैसे डॉक्यूमेंट किया है वह तो देखा जाना ज़रूरी है ही लेकिन समाज के निचले तबके से महिलाओं का इस तरह उठकर, पत्रकारिता को अपना करियर बनाते हुए जेंडर, कास्ट, क्लास, मेरिट, मार्केट, ब्राह्मणवाद, जातिवाद, अर्बन मुख्यधारा मीडिया को किस तरह असल ज़मीन पर चुनौती दी गई है जिसके लिए हर तरह से बहुत हिम्मती होना पहली शर्त है को देखना, समझना, महसूस करना बहुत ज़रूरी है।

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तस्वीर साभार: Indian Express

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