इतिहास रेड रोज़ा: क्रांति के केंद्र में रहनेवाली एक मार्क्सवादी नारीवादी

रेड रोज़ा: क्रांति के केंद्र में रहनेवाली एक मार्क्सवादी नारीवादी

रोज़ा 1889 में ज्यूरिक, स्विजरलैंड चली गई थी। वहां उन्होंने कानून और राजनीति की पढ़ाई पढ़ी। 1898 में उन्होंने मानक उपाधि हासिल की। ज्यूरिक में वह अंतरराष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन में हिस्सा लेने लगी।

सामाजिक लोकतंत्रवादी, समाजवादी, कम्युनिस्ट, नेता, पत्रकार और क्रांतिकारी रोज़ा लक्जमबर्ग वह नाम है जो अपने विचारों के कारण पूरी दुनिया में जानी जाती हैं। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना उनका पसंदीदा काम था। राजनीतिक हठधर्मिता, सामाजिक असमानता, लैंगिक भेदभाव और विकलांगता के भेदभाव के खिलाफ उनका जुझारू काम आज की पीढ़ी के लिए भी विरासत है, जो अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए लोगों को प्रेरणा देता है। रोज़ा लक्ज़मबर्ग को उनकी राजनीतिक विचारधारा के कारण उन्हें ‘रेड रोज़ा’ उपनाम दिया गया। वहीं. उनकी तीखी आलोचना की वजह से उन्हें ‘खूनी रोज़ा’ भी कहा गया। यही नहीं उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समाजवाद को स्थापित करने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए।

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रोज़ा का शुरुआती जीवन

रोज़ा लक्ज़मबर्ग का जन्म 5 मार्च 1871 में पोलैंड के एक छोटे से गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। पोलैंड का यह हिस्सा तब रूसी साम्राज्य के अंतर्गत आता था। उनके पिता एक व्यापारी थे जो यहूदी परिवार से संबंध रखते थे। वह अपने स्कूल के समय से ही राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गई थी। जब वह हाई स्कूल में थीं वह अंडरग्राउंड एक्टिविटी में शामिल हो चुकी थीं।

उन्होंने जीवन में कई बाधाओं का सामना किया। उनके दोनों पैर की लंबाई समान न होने के कारण उनकी शारीरिक क्षमता को हमेशा कम आंका जाता था। यही नहीं रूस के कब्जे़ वाले पौलेंड में यहूदी के रूप में उन्हें एक सेकेंड क्लास सिटीजन के तौर पर देखा जाता था। बावजूद इन सब बाधाओं के रोज़ा उस समय की उन महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की। 

सामाजिक लोकतंत्रवादी, समाजवादी, कम्युनिस्ट, नेता, पत्रकार और क्रांतिकारी रोज़ा लक्जमबर्ग वह नाम है जो अपने विचारों के कारण पूरी दुनिया में जानी जाती हैं। सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करना उनका पसंदीदा काम था। राजनीतिक हठधर्मिता, सामाजिक असमानता, लैंगिक भेदभाव और विकलांगता के भेदभाव के खिलाफ उनका जुझारू काम आज की पीढ़ी के लिए भी विरासत है, जो अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए लोगों को प्रेरणा देता है।

राजनीति में एंट्री

रोज़ा 1889 में ज्यूरिक, स्विट्ज़रलैंड चली गई थी। वहां उन्होंने कानून और राजनीति की पढ़ाई की। साल 1898 में उन्होंने मानक उपाधि हासिल की। ज्यूरिक में वह अंतरराष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन में हिस्सा लेने लगीं। वहां उनकी मुलाकात जॉर्जी वैलेन्टिनोविच प्लेखानोव, पावेल एक्सेलरोड और रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक आंदोलन के अन्य प्रमुख प्रतिनिधियों से हुई। हालांकि जल्द ही वह उनके विचारों से असहमत भी होने लगीं। 

तस्वीर साभार: Monthly Review

उन्होंने रूसी और पोलिस सोशलिस्ट पार्टी दोनों को चुनौती दी। यही वजह है कि उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ‘पोलिस सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी’ की स्थापना की जो आगे जाकर ‘पोलिस कम्यूनिस्ट पार्टी‘ बनी। राष्ट्रीय मुद्दे लक्ज़मबर्ग के मुख्य विषय बन गए थे। उनके लिए राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय स्वतंत्रता पूंजीपति वर्ग के लिए रियारत थीं। वह लगातार राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को कम करने और समाजवादी अंतर्राष्ट्रीयवाद पर जोर दिया करती थीं।। यह एक बड़ा कारण था जिस वजह से वह व्लादमिर लेनिन से असहमति रखती थी। वह लेनिन का विरोध खुलकर करती थीं लेकिन उनके सम्मान में भी कोई कमी नहीं दिखाती थीं।

वह मार्क्सवादी विचारों से प्रेरित थीं लेकिन वह अपने सहयोगियो की आलोचना करने से भी नहीं हिचकती थीं। रोज़ा, लेनिन के समाजवाद की विचारधारा का खुलकर विरोध करती थी। वह लेनिन के ‘केंद्रीय नेतृत्व’ के विचार का विरोध करती थीं। रोज़ा का मानना था कि यह विचार कम्युनिस्ट तानाशाही को जन्म देगा। रोज़ा लोकतांत्रिक समाजवाद की पैरोकार थीं।

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तस्वीर साभारः Europeana

जर्मनी में वापसी 

रोज़ा जर्मनी वापस लौटना चाहती थी लेकिन नागरिकता के नियमों के चलते वह इसमें बाधा का सामना कर रही थीं। 1898 में उन्होंने जर्मन नागरिक गुस्ताव लुबेक के साथ शादी की और जर्मन नागरिकता हासिल की। वह बर्लिन में बस गई। वह पत्रकार के रूप में काम कर रही थीं। वहां उन्होंने जर्मनी की ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी’ के साथ काम किया। जल्द ही पार्टी में विवाद हुआ और पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। 

साल 1898 में जर्मन संशोधनवादी एडुआर्ड बर्नस्टीन ने तर्क दिया कि मार्क्सवादी थ्योरी पुरानी हो गई है। रोज़ा उनके विचारों से असहमत थी। वह मार्क्सवादी और क्रांति की आवश्यकता के पक्ष में बहस करते हुए विपक्ष के तर्क को संसद का एक पूंजीवादी दिखावा बताती थीं। वह एक कुशल वक्ता के तौर पर भी सभाओं को संबोधित किया करती थीं।1905 की रूसी क्रांति लक्जमबर्ग के जीवन का मुख्य केंद्र बनीं। क्रांति का विस्तार रूस में हो गया था। वह वारसा गई और संघर्ष में शामिल हो गईं जहां उन्हें कैद कर लिया गया। इन अनुभवों से उनकी ‘रेवूल्शनरी मास एक्शन थ्योरी’ उभरी जिसे उन्होंने 1906 में ‘द मास स्ट्राइक, द पॉलटिकल पार्टी एंड द ट्रेड यूनियन’ में जगह दी। 

तस्वीर साभारः CounterFire

रोज़ा लक्ज़मबर्ग हड़ताल की पैरोकार थी। वह इसे मजदूर वर्ग का सबसे बड़ा हथियार बताती थीं। वह सामूहिक हड़ताल को क्रांति आगे बढ़ाने का मार्ग बताया करती थीं। वह लेनिन के विपरीत सख्त केंद्रीय पार्टी संरचना में विश्वास नहीं रखती थीं। वह मानती थी कि संगठन वास्तव में संघर्ष से स्वाभाविक रूप से उभरता है। इस वजह से रूढ़िवादी कम्युनिस्ट पार्टियां उन्हें बार-बार सजा देती रहती थीं। 

वारसा जेल से रिहा होने के बाद 1907 से 1914 तक सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी स्कूल, बर्लिन में पढ़ाया। वहां उन्होंने 1913 में ‘द एक्युमूलेशन ऑफ कैपिटल’ लिखा। इसी समय उन्होंने आंदोलन करना भी शुरू कर दिया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने जर्मन सरकार का साथ दिया। वह तुरंत ही इसके विरोध में चली गई थी। वह युद्ध के पूरी तरह खिलाफ थी।

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उन्होंने कार्ल लीब्नेख्त और अन्य समान विचारधारा वाले लोगों के साथ स्पार्टाकस लीग का गठन किया जो क्रांति के माध्यम से युद्ध को खत्म करने और सर्वहारा सरकार स्थापित करने के समर्थन में था। इस संगठन का आधार सैद्धांतिक रूप से रोजा के द्वारा लिखे 1916 का ‘द क्राइसिस इन जर्मन सोशल डेमोक्रेसी’ पत्र पर था। राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें बार-बार जेल में डाला जा रहा था। 1918 में जर्मन क्रांति के दौरान लक्जमबर्ग और लीब्नेख्त ने लेफ्ट के द्वारा लगाए नए आदेशों के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया। उनके प्रयासों ने जनता पर काफी प्रभाव डाला और बर्लिन में कई सशस्त्र विरोध शुरू हो गए। इसके परिणाम यह निकला कि लक्जमबर्ग को ‘खूनी रोज़ा’ कहकर अपमानित किया गया। लक्जमबर्ग और लीब्रेख्त ने मजदूरों और सैनिकों के लिए राजनीतिक सत्ता की मांग की।  

रोज़ा लक्ज़मबर्ग हड़ताल की पैरोकार थी। वह इसे मजदूर वर्ग का सबसे बड़ा हथियार बताती थीं। वह सामूहिक हड़ताल को क्रांति आगे बढ़ाने का मार्ग बताया करती थीं।

दिसंबर 1918 में उन्होंने जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। लक्जमबर्ग इस नये संगठन में बोल्शेविक का प्रभाव कम रखना चाहती थीं। लेनिन के लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद के विपरीत लक्जमबर्ग हमेशा लोकतंत्र में विश्वास रखती थीं। स्पार्टाकस विद्रोह के नाम से जाने वाले कम्युनिस्ट विद्रोह के भड़कने में उनकी भूमिका के कारण उन्हें और लीब्नेख्त को 15 जनवरी 1919 में गिरफ्तार कर लिया। इस कैद के दौरान ही उनकी हत्या भी कर दी गई।

रोज़ा लक्जमबर्ग अंतरराष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा थीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन क्रांति और न्याय में लगा दिया। सामाजिक न्याय की लड़ाई में रोज़ा लक्ज़मबर्ग के कदम को कभी भी नकारा नहीं जा सकता है। अपने राजनीतिक विचारों के कारण रोज़ा लक्जमबर्ग ने हमेशा विरोध का सामना किया लेकिन वह लोकतंत्र और समानता के लिए अंतिम समय तक संघर्ष करती रहीं।

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तस्वीर साभारः The Guardian

स्रोतः

Britannica.com

BBC

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