पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की भूमिका और उनके काम के कुछ मानदंड बनाए हुए हैं, जिनका पालन करना उनकी ज़िम्मेदारी बना दी गई है। कोई भी महिला अगर पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय मानकों के अनुसार बर्ताव नहीं करती है तो उसकी आलोचना समाज में सबसे पहले होती है। पूरी दुनिया में घर-परिवार को संभालने की पहली ज़िम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती हैं। इस धरती का कोई भी कोना हो, कोई भी वर्ग हो या कितनी ही संपन्नता हो, घर को संवारने का दायित्व महिलाओं पर लादा गया है। घर की साफ-सफाई और उसकी व्यवस्था बनाना उनमें से एक है।
घर की साफ-सफाई और व्यवस्था के आधार पर महिलाओं के व्यक्तित्व को तय किया जाता है। यदि कोई महिला साफ-सफाई नहीं रखती है तो उसकी मोरल पुलिसिंग की जाती है। दूसरा हेट्रोसेक्शुअल कपल के तौर पर रहने वाली महिलाओं को विशेष तौर पर घर के काम करने के लिए माना जाता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को घर के गंदा होने और घर का काम सही तरीके से नहीं होने के लिए नकारात्मक रूप से आंका जाता है। इस तरह का बर्ताव हर जगह मौजूद है।
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पूरी दुनिया में घर-परिवार को संभालने की पहली जिम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती हैं। इस धरती का कोई भी कोना हो, कोई भी वर्ग हो या कितनी ही संपन्नता हो, घर को संवारने का दायित्व महिलाओं पर लादा गया है। घर की साफ-सफाई और उसकी व्यवस्था बनाना उनमें से एक है।
दुनियाभर में मौजूद पितृसत्ता ही एक महत्वपूर्ण कारण है कि महिलाओं की पहली ज़िम्मेदारी घर मानी जाती है। भारत हो या दुनिया का कोई भी देश हर जगह से जुड़े सर्वे और आंकड़े एक जैसी तस्वीर पेश करते हैं जिनमें घर के काम मे ज्यादा समय महिलाएं व्यतीत करती हैं। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित लेख के अनुसार भारत में शहरी क्षेत्र की एक महिला पांच से छह घंटे घर के काम में लगाती है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिला औसतन दिन के पांच से साढ़े पांच घंटा घर के काम को देती है।
यह केवल भारत तक सीमित विषय नहीं है बल्कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका की महिलाएं भी घर के काम में पुरुषों से ज्यादा समय देती हैं। अमेरिका में महिलाएं बड़ी संख्या बाहर जाकर काम करती हैं, बावजूद इसके घर के काम की पहली जिम्मेदारी उन्हीं पर रहती है। वे पुरुषों के मुकाबले ज्यादा समय घर की व्यवस्था बनाने में खर्च करती हैं। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों के अनुसार काम करनेवाली 55 प्रतिशत अमेरिकी माँएं घर के काम करती हैं, जबकि केवल 18 प्रतिशत पिता ही घर के काम करते हैं।
दुनियाभर में एक सोच बनी हुई है कि घर के काम महिलाओं के हैं। यदि आप विज्ञापनों की दुनिया में नज़र डालेंगे तो वहां भी इस सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है। जितने भी घर की साफ-सफाई और व्यवस्था बनाने वाले प्रोडक्ट है उनके विज्ञापनों में महिलाएं होती है। पुरुष इनमें केवल साफ-सफाई के उत्पाद को इस्तेमाल करने की सलाह देते नजर आते हैं।
अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार इस बात की पड़ताल की गई है कि क्यों महिलाएं घर का काम करती है और उसे सही तरीके से न करने पर कैसे उन्हें जज किया जाता है। सोशोलॉजिकल मेथेड्स एंड रिसर्च के अध्ययन से यह बातें सामने आई कि अधिक समय महिलाओं से ही उम्मीद की जाती है कि वह साफ-सुथरा घर रखेंगी। महिलाओं को लेकर ऐसी सोच बनाई हुई है कि वे साफ-सफाई ही पसंद करती हैं। इस अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि महिलाओं में गंदगी के प्रति कम सहनशीलता है। महिला और पुरुष दोंनो के लिए समाज में गंदगी के लिए समान स्टैंडर्ड नहीं बनाए गए हैं। दूसरी ओर महिलाओं को घर की सफाई के लिए जवाबदेही का मानक बनाया हुआ है। यदि घर में गंदगी रहती है तो उसके लिए महिलाओं को पहले कहा जाता है।
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विज्ञापनों के ज़रिये महिलाओं की इन भूमिकाओं का प्रचार
दुनियाभर में एक सोच बनी हुई है कि घर के काम महिलाओं के हैं। अगर आप विज्ञापनों की दुनिया में नज़र डालेंगे तो वहां भी इस सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है। जितने भी घर की साफ-सफाई और व्यवस्था बनाने वाले प्रोडक्ट है उनके विज्ञापनों में महिलाएं होती है। पुरुष इनमें केवल साफ-सफाई के उत्पाद को इस्तेमाल करने की सलाह देते नजर आते हैं। न्यू रिपब्लिक.कॉम के अनुसार क्लीनिंग प्रोडक्ट्स के विज्ञापन पूरी तरह महिलाओं को ध्यान में रखकर डिजाइन किये जाते हैं और मुख्य अपील भी महिलाओं से होती है।
वहीं केवल 2 प्रतिशत ही विज्ञापन ऐसे होते हैं जिनमें पुरुष घर का काम करते दिखते हैं। इसी रिपोर्ट में आगे पी एंड जी नार्थ अमेरिका के ब्रांड मैनेजर ने कहा है कि ग्रोसरी के सामानों की बड़ी उपभोक्ता महिलाएं हैं। अगर इसमें पुरुषों को टारगेट किया जाए तो वह इस पूरी मार्केट का एक बहुत छोटा हिस्सा है। इसलिए यह समझ में आता है कि प्राथमिकता किसे देनी है। डिटर्जेंट खरीदारों की बड़ी संख्या महिलाओं की हैं इसलिए विज्ञापनों में महिलाओं को ज्यादा दिखाया जाता है।
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होश्चाइल्ड के अनुसार सफाई केवल शारीरिक काम नहीं है यह एक भावनात्मक काम भी है। एक साफ-स्वच्छ घर में सुरक्षा का भाव ज्यादा पैदा होता है। लेकिन यह मानते हुए कि दोनों पक्ष इसके सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होने चाहिए लेकिन क्यों महिलाओं पर इसका भार पड़ता है?
महिलाओं की ट्रेनिंग ने बनाया उन्हें इसके लिए ज़िम्मेदार
आउटसोर्स सेल्फ की लेखक अर्ली होश्चाइल्ड तर्क देते हुए कहती है कि एक स्वच्छ घर की महिलाओं की इच्छा और मार्केटिंग से कहीं ज्यादा है। होश्चाइल्ड के अनुसार सफाई केवल शारीरिक काम नहीं है यह एक भावनात्मक काम भी है। एक साफ-स्वच्छ घर में सुरक्षा का भाव ज्यादा पैदा होता है। लेकिन यह मानते हुए कि दोनों पक्ष इसके सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होने चाहिए लेकिन क्यों महिलाओं पर इसका भार पड़ता है? मुझे संदेह है कि महिलाओं को घर साफ-सुथरा रखने के लिए ज़ोर दिया जाता है क्योंकि वे जानती हैं घर गंदा रखने के लिए उन्हें उनके पुरुष साथी के द्वारा आंका जाएगा।
वह कहती हैं जब मैं अपनी महिला दोस्तों के साथ रहती थी तो हम में से कभी किसी ने एक-दूसरे को अपार्टमेंट की सफाई के लिए कुछ नहीं कहा था। लेकिन जब मेरी शादी हुई तो फर्श पर जमी धूल मुझे अपना निजी अपमान लगने लगी। मैंने खुद पर ही घर की सफाई का जोर ड़ाला। मुझे इस बात की चिंता थी कि मुझे घर की गंदगी के लिए आंका जाएगा। मुझे एहसास हुआ कि यह मेरी जिम्मेदारी है।
महिलाओं के लिए साफ-सफाई एक मोरल पुलिसिंग होने वाला मुद्दा बनाया हुआ है। उनके भीतर एक तय कंडिशनिंग के तहत डर और ऐसे भाव बैठा दिए गए हैं कि यदि वह उन्हें नज़रअंदाज भी करती है तो खुद के द्वारा ही सवालों के घेरे में खड़ी हो जाती है। मशहूर लेखिका के खुद के निजी अनुभव इसी बात को जाहिर करते हैं। समाज में स्त्री और पुरुष के बीच लगातार भेद बनाए रखने वाली ये वे छोटी-छोटी बातें हैं जिनपर खुलकर बात नहीं होती है बल्कि जब समाज ऐसा व्यवहार अपनाता है और किसी महिला को उसके घर की गंदगी और अव्यवस्था के लिए जज करता है तो हम चुप रहकर आलोचना करने वाले लोगों में शामिल हो जाते हैं।
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तस्वीर साभारः Medium