शादी अपने समाज में सबसे ज़रूरी बताई जाती है। सालों-सदियों से ऐसा ही बताया जाता रहा है। इसलिए तो शादी के बंधन को सबसे ‘पवित्र’ बंधन माना जाता है। इसे जन्मों-जन्मों का साथ कहा जाता है पर यह तो समाज की कही बातें हैं। अब वे इंसान जो इस शादी के रिश्ते में होते हैं वे क्या सोचते हैं, ये उनकी सोच पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस शादी में हम महिलाओं की भूमिका और उनकी स्थिति को तलाशने की कोशिश करते हैं तो कई महिलाएं इस बंधन में बंधुआ जैसी ही भूमिकाओं में होती हैं। वे आर्थिक, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह अपने ‘पति’ पर आश्रित होती हैं। कितनी भी दिक़्क़त आए, कितनी भी दुत्कार मिले, कितनी भी परेशानियां हो पर शादी को ना कहकर निकलना महिलाओं के लिए नामुमकिन जैसा ही होता है।
लेकिन अब समय बदल रहा है और धीरे-धीरे ही सही हालात भी बदल रहे हैं। लेकिन जहां नहीं बदल रहे वहां बदलने की पूरी जद्दोजहद ज़रूर कर रहे हैं। हाँ इसकी सफलता, असफलता और स्थिरता की बात अलग है। इसी बदलाव का एक बड़ा आधार बन रहा है– मीडिया। सकारात्मक या नकारात्मक ये अपनी समझ और नज़रिए पर निर्भर करता है, क्योंकि मीडिया वह भी है जो बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी और हिंसा की खबरों की बजाय धर्म का प्रपोगेंडा बना रहा है। वहीं मीडिया वह भी है जो फ़िल्मों के माध्यम से रिश्तों के रंगों में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है। ओटीटी के दौर में अक्सर कई बेहतर फ़िल्में आ रही है, जो समाज को आइना दिखाने और कई बार समाज का आइना बन जाने की भूमिका बखूबी अदा कर रही हैं।
इन्हीं ओटीटी फ़िल्मों में से एक है, हाल ही में प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई नई वेब सीरिज़ ‘मॉर्डन लव: मुंबई सीजन-1’। प्यार और रिश्ते के नए-नए रंग लिए हुए अलग-अलग प्रेम और बदलाव की कहानियों को एक वेब सीरिज़ में बड़े क़रीने से पिरोया गया है। अमेरिकी वेब सीरीज ‘मॉर्डन लव’ की तर्ज पर ही तैयार की गयी यह वेब सीरीज में न्यूयॉर्क की तरह ही मुंबई शहर का देसी अवतार है। एक भीड़भाड़ वाले शहर में अलग-अलग संस्कृति, वर्ग और मिज़ाज के रंगों ये भरी ये वेब सीरीज़ उस भीड़ की भी सुंदरता को दिखाती है, वह हर सुबह से शाम का सफ़र लोकल ट्रेन में करती है।
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काल्पनिक कहानियों वाली ये ‘मॉडर्न लव मुंबई’ असल ज़िंदगी के क़िस्सों को अपने आप में बसाए हुए है। छह डायरेक्टर्स की छह कहानियों को इस वेब सीरीज़ के हर एपिसोड को करीब 35-45 मिनट में एक नए अंदाज़ में दिखाया गया है। आज बात इस वेब सीरीज़ की पहली कहानी की– रात रानी की।
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शोनाली बोस के डायरेक्शन में इस वेब सीरीज़ की पहली कहानी की शुरुआत होती है, जिसका नाम है– रात रानी, जो नाम से रात रानी के फूल की याद दिलाता है पर वास्तव में ये कहानी है एक ज़िंदादिल रात रानी की, जो अपनी ख़ुशबू खुद के लिए बिखेरती है। यह कहानी है एक शादीशुदा कश्मीरी लड़की ‘लाली’ की जिसमें लाली का किरदार फ़ातिमा सना शेख़ ने बखूबी निभाया है। लाली अपने पति लुत्फ़ी के साथ शादी के बाद मुंबई में आकर बसती है। उसे मुंबई से नहीं बल्कि अपने पति लुत्फ़ी से बेहद प्यार है और वह इस प्यार में हर वह काम करती है, जिससे उसके पति को ख़ुशी मिले। वह अपने कमाई के पैसे जोड़कर लुत्फी के लिए स्कूटर ख़रीदती है, उसके लिए टिफ़िन बनाती है और उसकी हर बात मानती है, बिना किसी शर्त या फ़रमाइश के। लेकिन जब लुत्फ़ी, अपनी पत्नी लाली को छोड़ने की बात करता है तो लाली को बाज़ार में आइसक्रीम खाने के दौरान कहता है, “मुझे मज़ा नहीं आ रहा।” जिसे सुनकर लाली उसके लिए डांस भी करती है और अगली सुबह उसका पति स्कूटर लेकर उसे छोड़कर चला जाता है। यह बात वह एक चिट्ठी में बताता है जो एक पुरानी जंग लगी साइकिल में लगी होती है।
कम पढ़ी-लिखी और गरीब तबके से आने वाली अल्हड़ सी दिखती लाली की ‘रातरानी’ के ज़रिए अपने मालकिन (जिनके घर में लाली काम करती है) को अपने टूटे शादी के रिश्ते से उबरने और खुद को जीने का संदेश देती है।
ऐसा ही तो है न हमलोगों के साथ या अपने आस पास। जब महिलाएं कितने जतन से अपने रिश्ते में खुद को क़ुर्बान कर देती है। अपने साथी की हर पसंद-नापसंद का ध्यान रखती हैं और उसकी हर बात को अपनी बात बना लेती हैं, इसलिए नहीं कि उन्हें प्यार होता है, बल्कि इसलिए क्योंकि पहले उनके बीच शादी का रिश्ता होता है, जिसमें प्यार होता है। लेकिन जैसे ही उसके साथी को ‘मज़ा’ नहीं आता तो वह आसानी से मुंह फेरकर अपनी नयी दुनिया के तरफ़ बढ़ जाता है और पीछे रह जाती है उनकी पत्नियां, जिसे उसने दस साल की शादी में खुद पर इतना निर्भर बना दिया है कि वह अकेले अपने काम पर भी नहीं जा पाती। जैसा लाली के साथ हुआ।
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लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और अगली सुबह अपनी उस पुरानी साइकिल को लेकर अपने काम पर मुंबई की व्यस्त सड़कों पर निकल पड़ी। पहले दिन रास्ते में रुक-रुक कर बार-बार वो अपने पति को कॉल करती है, जैसा अक्सर हम महिलाएं अपने रिश्ते को मौक़ा देने की आस में सालों तो कई बार आधी ज़िंदगी गुज़ार देती हैं। लेकिन लाली रुकती नहीं और अपने काम पर जाती है और रास्ते में पड़ने वाली फ़्लाईओवर को रुकते-रुकते ही पार करती है। वापसी के समय वह निराश हो जाती है और पहले अपनी साइकिल को समंदर में फेंकने की कोशिश करती है और फिर उसे कैंसिल करके खुद कूदने की कोशिश करती है, उसी वक्त लाली का कुर्ता उसकी साइकिल से फंस जाता है जो लाली की जीने और आगे बढ़ने की वजह बनता है।
इसके बाद लाली आगे बढ़ती है और अपने कमरे की टूटी छत की मरम्मत करवाने के लिए बीस हज़ार रुपए का इंतज़ाम करने के लिए सुबह काम के बाद रात के वक्त मुंबई की व्यस्त सड़कों पर अपनी साइकिल में कहवा (कश्मीरी काफ़ी) की दुकान लगाती है और उसका नाम देती है रात-रानी। कम पढ़ी-लिखी और गरीब तबके से आनेवाली अल्हड़ सी दिखती लाली की ‘रातरानी’ के ज़रिए अपने मालकिन (जिनके घर में लाली काम करती है) को अपने टूटे शादी के रिश्ते से उबरने और खुद को जीने का संदेश देती है।
आज जब हम आए दिन घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले को देख कर रहे हैं, ऐसे में लाली की रात रानी की कहानी एक नए बदलाव का आधार हो सकती है। वह बदलाव जो महिलाओं को खुद से प्यार करने और खुद के लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, बजाय किसी रिश्ते में खुद को क़ुर्बान करने या गंवा देने के और उस रिश्ते के ख़त्म होने पर डूब जाने का।
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तस्वीर साभार : zoom tv entertainment