इंटरसेक्शनलजेंडर नारीवादी महिला नेतृत्व की मिसाल है तिलोनिया गाँव की ये महिलाएं| नारीवादी चश्मा  

नारीवादी महिला नेतृत्व की मिसाल है तिलोनिया गाँव की ये महिलाएं| नारीवादी चश्मा  

तिलोनिया गाँव की ये सभी महिलाएँ नारीवादी महिला नेतृत्व और सामाजिक बदलाव की जीवंत उदाहरण है, जिनके बारे में हमें जानना चाहिए और इनसे सीख लेनी चाहिए।

45 डिग्री की धूप में हाथ में मटका लिए हुए पानी ले जाती महिला, गर्मी से बेहाल है। चेहरे को लंबे घूंघट से ढके हुए, पैरों में भारी पायल और हाथ में रंग-बिरंगी चूड़ियों के साथ उसकी आंखों में नल के पास जल्दी पहुंच जाने की लालसा साफ़ दिखाई पड़ रही है क्योंकि उसके सिर पर सिर्फ़ पल्लू नहीं बल्कि घर, परिवार और परंपराओं की सारी ज़िम्मेदारी भी है। ये महिला राजस्थान की है।

‘राजस्थान’ का नाम सुनते ही हम लोगों के मन में एक अलग ही तस्वीर बनती है। उस तस्वीर में रेतीले मैदान, गर्म हवाएं और पारंपरिक कपड़े और गहनों के साथ घूंघट लिए हुए मटकों में पानी ले जाती महिलाएं होती हैं। हाल ही में, मैंने राजस्थान की यात्रा की, जिसमें प्रदेश की महिलाओं को लेकर उनके प्रयासों को समझने की कोशिश भी की। आमतौर पर हम जब भी राजस्थानी महिलाओं की कल्पना करते है तो वहां हमें हमेशा पारंपरिक रीति-रिवाजों को ढोती संघर्षरत महिलाओं की छवि दिखाई पड़ती है, जो तमाम जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव को झेलते हुए अपनी पूरी ज़िंदगी चूल्हे-चौके में गुज़ार देती हैं और उफ़्फ़ तक नहीं करती।

पानी भरने जाती एक राजस्थानी महिला

लेकिन अपनी इस यात्रा में मैं कुछ ऐसी महिलाओं से मिली जो सदियों से चले आ रहे इस पितृसत्तात्मक खेल को पलटकर लैंगिक समानता की पटकथा लिख रही हैं और नारीवादी नेतृत्व को बढ़ावा दे रही हैं। राजस्थान की इन महिलाओं से मेरी मुलाक़ात जयपुर से क़रीब सौ किलोमीटर दूर किशनगढ़ के तिलोनिया गाँव में हुई। क़रीब दो हज़ार आबादी वाला ये तिलोनिया गाँव, यूं तो आम गाँव की ही तरह दिखाई पड़ता है, लेकिन इस आम गाँव को ख़ास बनाती हैं यहां की महिलाएं। वे महिलाएं जो पूरी दुनिया में सोलर लाइट से रोशनी फैला रही हैं, वे महिलाएं जो सामुदायिक रेडियो से अपने समुदाय की बात कर रही हैं और वे महिलाएं जो रूढ़िवादी सोच को तोड़ रही हैं। तिलोनिया गाँव में बीते क़रीब चालीस सालों से बेयरफुट कॉलेज नाम की सामाजिक संस्था काम कर रही है, जो गाँव की अनपढ़ महिलाओं के नेतृत्व विकास की दिशा में प्रभावी पहल कर रही है और घूंघट-चूल्हे-चौके से इतर महिलाओं का उन क्षेत्रों में स्पेस क्लेम करने में मदद कर रही है, जहां हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है। ये इस संस्था से जुड़ी महिलाओं का काम ही है, जिसने इस छोटे से गाँव की एक अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है।

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दुनिया को रोशन करती महिला नेतृत्व में सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट     

साल 2009 में तिलोनिया गाँव की बेयरफुट कॉलेज में सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट की शुरुआत गई, जिसका उद्देश्य महिलाओं का तकनीकी दुनिया में स्पेस क्लेम करना और बिजली की समस्या को दूर करना था। इस प्रोजेक्ट ने गाँव की औरतों की ज़िंदगी बदल दी। सोलर प्रोजेक्ट में काम कर रही एक महिला बताती हैं, “शुरुआत में ये हम लोगों के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण था। हमलोगों को ये काम करने में काफ़ी डर भी लगता था और ये महिलाओं का काम नहीं माना जाता है इसलिए हर समय एक दबाव भी महसूस होता था कि अगर ये काम अच्छे से नहीं सीख पाई तो बदनामी होगी। लेकिन अब हमलोग सोलर लाइट बना लेते हैं और विदेश से आने वाली महिलाओं को भी ट्रेनिंग देते हैं।”

सोलर लाइट बनाती महिला

गाँव की कई महिलाएं मिलकर ये पूरा प्रोजेक्ट चला रही हैं, जो न केवल सोलर प्लेट और लाइट बनाती है बल्कि अलग-अलग देशों से आने वाली महिलाओं को ट्रेनिंग भी देती हैं। ट्रेनिंग लेनेवाली महिलाओं में ज़्यादातर उन देशों की महिलाएं होती हैं, जिनके देश में बिजली की समस्या बरकरार है और शाम ढलते ही उनके घर अंधेरे में डूब जाते हैं। अब तक क़रीब 44000 से ज़्यादा घर इन महिलाओं के बनाए सोलर लाइट से रौशन हो चुके हैं और क़रीब 73 अलग-अलग देशों से आई पांच सौ से अधिक महिलाएं यहां ट्रेनिंग ले चुकी हैं। इस प्रोजेक्ट की सबसे ख़ास बात ये है कि ये प्रोजेक्ट महिलाएं संचालित करती हैं और इसका नेतृत्व करती हैं। ये गाँव की वे महिलाएं हैं जो कभी स्कूल नहीं गई और जिन्हें आज भी अच्छी तरह पढ़ना-लिखना नहीं आता है।

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समुदाय की आवाज़ बनती गाँव की महिलाएं

“नमस्ते श्रोताओं। आप सुन रहे है ‘तिलोनिया कम्यूनिटी रेडियो’ मैं हूं आपकी दोस्त आरती।”

आत्मविश्वास से भरी ये आवाज़ कानों में पड़ते ही ऐसी महसूस होती है, जैसे किसी बड़े रेडियो स्टेशन में बैठी आरजे बात कर रही हो। लेकिन ये आवाज़ है तिलोनिया गाँव की रहनेवाली आरती की, जो तिलोनिया गाँव में कम्यूनिटी रेडियो का नेतृत्व कर रही हैं। आमतौर पर हाथ में पानी के मटके या चूल्हे-चौके दिखाई पड़ने वाले ये हाथ कम्यूनिटी रेडियो के बटन पर देखना बेहद सुखद है। बीते कई सालों से इस रेडियो के माध्यम से आरती पूरे गाँव से संवाद करती हैं और ज़मीनी मुद्दों पर बात कर, लोगों को जागरूक करती हैं।

कम्यूनिटी रेडियो चलाती महिला

आरती बताती हैं, “तिलोनिया में मेरा ससुराल है। मैंने सिर्फ़ पाँचवी तक ही पढ़ाई की है। इस संस्था से जुड़ने के बाद मैंने रेडियो का ये काम सीख़ा। इससे पहले मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं कभी ऐसे काम से भी जुड़ पाऊँगी।” आरती रेडियो के सभी तकनीकी काम में पारंगत है। बड़े से बड़े लोगों का इंटरव्यू करने से लेकर उनकी बाइट को ऑन एयर के लिए तैयार करने तक हर काम में आरती माहिर हैं।

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‘नेराज़’ की महिला स्वास्थ्य से जुड़ी रूढ़िवादी सोच को चुनौती

महिलाओं द्वारा तैयार किया गया सेनेटरी पैड

नेराज़, तिलोनिया और आसपास के गाँव में जाकर महिलाओं और किशोरियों को माहवारी प्रबंधन और महिला स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे पर जागरूक करने का काम करती हैं। बीते कई सालों से नेराज़ उन मुद्दों पर बात कर रही हैं, जिसपर आज भी बात करना शर्म का विषय माना जाता है। बेयरफुट संस्था के साथ जुड़ने के बाद जब उन्हें पता चला कि उन्हें माहवारी जैसे विषयों पर समुदाय में जाकर बात करनी है तो ये उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। नेराज़ महिलाओं तक सेनेटरी पैड पहुंचाने का भी काम करती हैं।

नेराज़ का नाम मुझे एकदम नया-सा लगा। उनके नाम के बारे में जब मैंने उनसे बात कि तो उन्होंने बताया, “मेरे घर में मेरी माँ को लगातार चार बेटियाँ पैदा हुईं, जिससे घरवाले नाराज़ थे क्योंकि वो बेटा चाहते थे और फिर पाँचवें नंबर पर मैं पैदा हुई जिससे घरवाले और भी नाराज़ हो गए और इसलिए मेरा नाम ही नेराज़ रख दिया गया, क्योंकि मैं अनचाही थी।” जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव से संघर्ष करती हुई नेराज़ की अब न केवल गाँव में बल्कि कई गाँव में पहचान बन चुकी है।

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महिला नेतृत्व किसी भी देश के विकास के लिए एक ज़रूरी पहलू है। लेकिन सदियों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक ढांचे ने हमेशा से महिलाओं को नेतृत्व से दूर रखा और वे इसके बारे में कभी कल्पना भी न कर पाए इसके लिए उन्हें शिक्षा और विकास के अवसरों से दूर रखा जाता है। तिलोनिया गाँव की इन महिलाओं ने भी अपने जीवन में इन सभी चुनौतियों का सामना किया, जब उन्हें शिक्षा से दूर कर उनका बाल-विवाह करवाया गया। लेकिन किसी ने भी ये कल्पना नहीं की होगी कि ये महिलाएं एक दिन इस पूरे गाँव को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक नयी पहचान देंगी।

तिलोनिया गाँव की ये सभी महिलाएं नारीवादी महिला नेतृत्व और सामाजिक बदलाव की जीवंत उदाहरण हैं, जिनके बारे में हमें जानना चाहिए और इनसे सीख लेनी चाहिए। तकनीक, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के जुड़े अहम पहलुओं का नेतृत्व करती ये महिलाएं अब एक पीढ़ीगत बदलाव का आधार बन चुकी है, वो आधार वो अब इस गाँव की पहचान बन चुका है और सभी वर्ग, जाति और उम्र की महिलाओं के विकास और नेतृत्व का द्वार खोल रहा है।


 (ये सभी तस्वीर स्वाती ने उपलब्ध करवाई हैं)

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