समाजकानून और नीति जानें क्या होती है जनहित याचिका

जानें क्या होती है जनहित याचिका

जनहित याचिका आज के न्यायिक प्रतिनिधित्व विहीन समाज या संस्था के लिए बेहद ज़रूरी है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह याचिका जनता के हित में होती है। जनहित याचिका के अंतहत अगर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह गरीबी, अज्ञानता अथवा अपनी प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक दशाओं के कारण खुद न्यायालय नहीं जा सकता तो ऐसे में कोई भी जनभावना वाला व्यक्ति या सामाजिक संगठन उस पीड़ित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय जा सकता है।

संवैधानिक न्याय पाने का सामान्य नियम यह है कि जिस व्यक्ति के अधिकारों का हनन हुआ है वह खुद न्यायालय जाए और न्याय पाने के लिए केस दायर करे लेकिन हर बार वह अमुक व्यक्ति इस स्थिति में नहीं होता है कि खुद ही न्यायालय जा सके। इसीलिए ऐसे व्यक्तियों के न्याय को सुनिश्चित करने के लिए जनहित याचिका की धारणा को न्यायप्रणाली में लाया गया।

भारत में 1980 के दशक में शुरू हुई जनहित याचिकाओं का एम सी मेहता के मामलों से संयोग से एक तालमेल भी है। जनहित याचिकाओं की शुरुआत को न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण बिंदु माना जाता है। इसकी शुरुआत सुधारवादी और सक्रिय न्यायाधीशों पीएन भगवती और वीआर कृष्णा अय्यर ने की, जिन्होंने कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की ओर से एक याचिका दायर करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से पीड़ित व्यक्ति या किसी संगठन को भी अनुमति देने के लिए कानून की रचनात्मक व्याख्या शुरू की। उसके बाद तो जैसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों में जनहित याचिकाओं की बाढ़ सी आ गई। समाजसेवी लोग जो कि हाशिये पर रहने वाले तबके के लोग या कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की और से न्यायालय में उनके हित और रक्षा के लिए केस दायर करने लगे। राजस्थान का भंवरी देवी का गैंग रेप केस, एम सी मेहता के पर्यावरण को बचाने से संबंधित, जैसे केस जनहित याचिकाओं द्वारा ही कोर्ट में लाए गए थे।

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जनहित याचिका क्या है?

जनहित याचिका आज के न्यायिक प्रतिनिधित्व विहीन समाज या संस्था के लिए बेहद ज़रूरी है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह याचिका जनता के हित में होती है। जनहित याचिका के अंतहत अगर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह गरीबी, अज्ञानता अथवा अपनी प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक दशाओं के कारण खुद न्यायालय नहीं जा सकता तो ऐसे में कोई भी जनभावना वाला व्यक्ति या सामाजिक संगठन उस पीड़ित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय जा सकता है। पीआईएल कानून के शासन के लिए बहुत ही ज़रूरी है, क्योंकि इससे न्याय के मुद्दे को आगे बढ़ाया जा सकता है और संवैधानिक उद्देश्यों की प्राप्ति की गति को तीव्र किया जा सकता है। पीआईएल को सामाजिक क्रिया याचिका, सामाजिक हित याचिका, और वर्गीय क्रिया याचिका के नाम से भी जाना जाता है। दूसरे शब्दों में जनहित याचिका (PIL) एक कानूनी कार्रवाई है जो किसी समुदाय या व्यक्ति के कानूनी अधिकार के लिए उच्चतम या उच्च अदालत में की जाती है।

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कब हुई इसकी शुरुआत

न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता की तरह जनहित याचिका की अवधारणा की उत्पत्ति और विकास भी अमेरिका में 1960 के दशक में हुआ। इसके पीछे की सोच यह थी कि गरीब जो पैसे की कमी के कारण अपने खिलाफ होनेवाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पाते, पर्यावरणवादी, उपभोक्ता, अल्पसंख्यक और अन्य ऐसे लोग जिनके पास प्रतिनिधित्व नहीं है या जिसके हितों की रक्षा नहीं हो पाती है या फिर वे न्यायिक व्यवस्था के लाभ से वंचित रह जाते हैं, उन्हें जनहित याचिका द्वारा वैधिक या कानूनी प्रतिनिधित्व दिया जा सकें। वे न्याय से वंचित न रह पाएं।

एक जनहित याचिका विशेष रूप से उन लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक उपकरण है जो स्वयं अदालतों का दरवाजा खटखटाने में असमर्थ हैं। यह मुकदमेबाजी के सबसे अधिक इस्तेमाल किए जानेवाले रूपों में से एक है।

जनहित याचिका के उद्देश्य 

  • जनहित याचिकाओं का मुख्य उद्देश्य सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करना और लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना है।
  • यह आम तौर पर समूह के हितों की रक्षा के लिए उपयोग किया जाता है, न कि व्यक्तिगत हितों की, जिसके लिए मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
  • यह उन लोगों के लिए मानवाधिकार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिन्हें मानवाधिकार से वंचित किया गया है।
  • यह न्याय तक सभी की पहुंच में सुधार करता है। ऐसा करने में सक्षम कोई भी व्यक्ति या संगठन उन लोगों की ओर से याचिका दायर कर सकता है जो ऐसा करने में असमर्थ हैं या उनके पास संसाधनों की कमी है।
  • यह जेल, शरण, और सुरक्षात्मक घरों जैसी राज्य सुविधाओं की न्यायिक निगरानी में सहायता करता है।
  • न्यायिक समीक्षा के लिए यह एक महत्वपूर्ण तरीका है।
  • जनहित याचिका सामाजिक सुधार, कानून के शासन को बनाए रखने और कानून और न्याय के संतुलन को तेज करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
  • जनहित याचिकाओं की शुरूआत प्रशासनिक कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा में जनहित में वृद्धि सुनिश्चित करती है।

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भारत में जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया

कोई भी भारतीय नागरिक या संगठन एक याचिका दायर करके जनहित/कारण के लिए अदालत का रुख कर सकता है:

  • सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत
  • उच्च न्यायालयों में अनुच्छेद 226 के तहत

अदालत किसी पत्र को रिट याचिका के रूप में मान सकती है और उस पर कार्रवाई कर सकती है। अदालत निम्न बातों पर संतुष्ट हो जाए कि रिट याचिका निम्नलिखित बातों का अनुपालन करती है: पत्र सर्वाइवर व्यक्ति या सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा या सामाजिक संगठन द्वारा किसी भी व्यक्ति को कानूनी या संवैधानिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए संबोधित किया जाता है, जो गरीबी या विकलांगता, निवारण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने में सक्षम नहीं हैं। अदालत कुछ मामले में संतुष्ट होने पर अखबार की रिपोर्ट के आधार पर भी कार्रवाई कर सकती है।

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संवैधानिक न्याय पाने का सामान्य नियम यह है कि जिस व्यक्ति के अधिकारों का हनन हुआ है वह खुद न्यायालय जाए और न्याय पाने के लिए केस दायर करे लेकिन हर बार वह अमुक व्यक्ति इस स्थिति में नहीं होता है कि खुद ही न्यायालय जा सके। इसीलिए ऐसे व्यक्तियों के न्याय को सुनिश्चित करने के लिए जनहित याचिका की धारणा को न्यायप्रणाली में लाया गया।

भारत में जनहित याचिका के इतिहास में कुछ ऐतिहासिक निर्णय

मुंबई कामगार सभा बनाम अब्दुलभाई, न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने 1976 में भारत में पहली बार जनहित याचिका की नींव रखी। 

हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979), यह जनहित याचिका का पहला दर्ज मामला था, यह याचिका जेलों और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय स्थितियों पर केंद्रित था, और इसके परिणामस्वरूप 40,000 से अधिक विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया था।

एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, गंगा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए गंगा जल प्रदूषण के खिलाफ एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता (एम सी मेहता), गंगा के तट के मालिक नहीं हैं, इसके बावजूद वह वैधानिक प्रावधानों के अनुपालन के लिए अदालत में याचिका दायर करने का हकदार है क्योंकि वह गंगा जल का उपयोग करने वालों के जीवन के बारे में चिंतित है।

विशाखा बनाम राजस्थान राज्य का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर प्रसिद्द मामला भी जनहित याचिका के द्वारा ही न्यायालय में आया था। यौन उत्पीड़न को विशाखा बनाम राजस्थान राज्य में अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 21 के मूल संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में स्वीकार किया गया था। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 दिशा-निर्देशों में भी संबोधित किया गया था।

स्वराज अभियान बनाम भारत संघ में, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार, गुजरात और हरियाणा में संभावित सूखे जैसी स्थितियों के बारे में एक याचिका पर सुनवाई की, जिसे राज्य पहचानने के लिए अनिच्छुक थे और ना ही वे उसपर चर्चा कर रहे थे। सूखे की घोषणा, अदालत के अनुसार, अत्यधिक मानवीय संकट का मामला था। अदालत ने इस तथ्य के बारे में भी चिंता व्यक्त की कि जनहित याचिकाएं समय के साथ बिना रोक-टोक-प्रतिकूल मुकदमेबाजी में बदल गई हैं।

1981 में एक जनहित याचियका द्वारा अनिल यादव बनाम बिहार राज्य के मामले ने पुलिस की बर्बरता को उजागर किया। न्यूज पेपर की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बिहार में पुलिस ने करीब 33 संदिग्ध अपराधियों की आंखों में तेजाब डाल कर उन्हें अंधा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश के जरिए राज्य सरकार को नेत्रहीनों को इलाज के लिए दिल्ली लाने का निर्देश दिया। साथ ही दोषी पुलिसकर्मियों पर त्वरित कार्रवाई का भी आदेश दिया। अदालत ने हर आरोपी के मौलिक अधिकार के रूप में मुफ्त कानूनी सहायता के अधिकार को भी माना। अनिल यादव ने इस वाद  में सामाजिक सक्रियता और खोजी मुकदमेबाजी के विकास का संकेत दिया।

सिटिजन फॉर डेमोक्रेसी बनाम असम राज्य में, सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि जेल में बंद रहने के दौरान या एक जेल से दूसरे जेल में या अदालत या वापस जाने के दौरान या परिवहन या पारगमन में कैदी को हथकड़ी और अन्य बेड़ियों में बाँध कर मजबूर नहीं किया जाएगा।

एक जनहित याचिका विशेष रूप से उन लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक उपकरण है जो स्वयं अदालतों का दरवाजा खटखटाने में असमर्थ हैं। यह मुकदमेबाजी के सबसे अधिक इस्तेमाल किए जानेवाले रूपों में से एक है। अदालतों ने जनहित याचिकाओं के संबंध में नियमों को सरल बनाने की कोशिश की है ताकि जनहित में और गरीबों, विकलांगों या वंचित वर्गों के लोगों की ओर से जनहित याचिका दायर करने को हतोत्साहित न किया जा सके। हालांकि, ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें लोगों ने जनहित याचिकाओं की आड़ में अपने निजी हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। इस प्रकार, अदालतों को यह सुनिश्चित करने के लिए बेहद सतर्क रहना चाहिए कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग न हो।

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तस्वीर साभार: IP Leaders

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