समाजकानून और नीति मुफ्त कानूनी सहायता से लेकर होटल में मुफ्त पानी और टॉयलेट तक, क्या आप अपने इन अधिकारों के बारे में जानते हैं?

मुफ्त कानूनी सहायता से लेकर होटल में मुफ्त पानी और टॉयलेट तक, क्या आप अपने इन अधिकारों के बारे में जानते हैं?

देश में बुनियादी कानूनों और अधिकारों के अलावा कुछ ज़रूरी कानून और अधिकार भी हैं जिन्हें हर नागरिक को जानना चाहिए ताकि वे सही समय पर उनका इस्तेमाल कर सके। 

भारतीय कानून व्यवस्था ने देश में रहनेवाले लोगों को कई कानून अधिकार दिए हैं। दुर्भाग्य से, हर व्यक्ति इन अधिकारों से परिचित नहीं है। भारत का नागरिक होने के नाते एक नागरिक को देश में मौजूद कानूनों और अधिकारों के बारे में पता होना बहुत ज़रूरी है। देश में बुनियादी कानूनों और अधिकारों के अलावा कुछ ज़रूरी कानून और अधिकार भी हैं जिन्हें हर नागरिक को जानना चाहिए ताकि वे सही समय पर उनका इस्तेमाल कर सके। 

केवल महिला अधिकारी ही महिला आरोपी को गिरफ्तार कर सकती हैं

केवल महिला अधिकारी ही महिला आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। गिरफ्तारी के बाद पुलिस स्टेशन में महिला आरोपी के साथ कम से कम एक महिला पुलिस कर्मचारी को पुलिस स्टेशन में उसके साथ मौजूद रहना चाहिए। अगर महिला आरोपी की गिरफ्तारी के लिए केवल पुरुष अधिकारी आए हैं तो महिला आरोपी को थाने न जाने का पूरा अधिकार है। एक गंभीर अपराध के मामले में, पुरुष पुलिस अधिकारियों के पास महिला को ले जाने के लिए मजिस्ट्रेट से लिखित परमिट होना चाहिए। पुरुष अधिकारियों को महिला आरोपी को शारीरिक रूप से छूने की इजाज़त नहीं है।

महिलाएं ईमेल के जरिए शिकायत दर्ज करवा सकती हैं

अगर महिलाएं थाने में शिकायत दर्ज कराने नहीं जा पाती हैं तो वे ईमेल या डाक के जरिए शिकायत दर्ज़ करा सकती हैं। भारतीय कानून इस बात की इजाज़त देता है कि गंम्भीर अपराध की स्थिति में महिला बिना पुलिस स्टेशन जाए केवल एक ईमेल के द्वारा भी शिकायत दर्ज़ करवा सकती है। 

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होटल में मुफ्त पानी और वॉशरूम की सुविधा 

सराय अधिनियम, 1867 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी भी होटल में मुफ्त में पानी पीने की और टॉयलेट की सुविधा पाने की अनुमति है। किसी फाइव स्टार होटल के ग्राहक न होने पर भी आप किसी भी होटल के पानी और टॉयलेट की सुविधा मुफ्त में प्राप्त कर सकते हैं। अगर आपको यात्रा करते समय सार्वजनिक शौचालय नहीं मिलता है या बोतलबंद पानी खरीदने के लिए दुकानें नहीं मिलती हैं, तो आप कभी भी किसी भी होटल में जा सकते हैं और मुफ्त पानी मांग सकते हैं और उनकी शौचालय सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं। अगर कोई आपको रोकता है, तो आप उन्हें बता सकते हैं कि कानूनी तौर पर यह आपका अधिकार है।

समान वेतन का अधिकार

समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत, किसी भी कामकाजी इंसान के लिए बेहद ज़़रूरी है। समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 के अनुसार, कोई भी संगठन समान कार्य करने वाले या समान पदनाम वाले पुरुषों और महिलाओं के बीच भर्ती या वेतन के बीच भेदभाव नहीं कर सकता है।

कार्यस्थल पर सुरक्षा

भारतीय कानून महिलाओं के लिए बेहतर कार्यस्थल प्रदान करता है, ताकि वे निडर होकर काम कर सकें। कार्यस्थल पर महिलाओं से संबंधित अपराधों ख़ासकर यौन हिंसा के खिलाफ कुछ कानून हैं जो कि उन्हें पीड़ित बनने से रोकते हैं। 10 से अधिक कर्मचारियों वाला कोई भी कार्यस्थल यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाने के लिए बाध्य है। सुप्रीम कोर्ट के विशाखा दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसी समिति की उपस्थिति अनिवार्य है और इसकी अध्यक्षता एक महिला द्वारा की जानी चाहिए।

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संपत्ति का अधिकार

हिन्दू उत्तराधिकार कानून के अनुसार एक हिन्दू परिवार की बेटियों को बेटों की तरह विरासत का दावा करने का वैध अधिकार है। साल 2005 में, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन द्वारा हिन्दू परिवार में बेटों और बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किया। वहीं, मुस्लिम विधि में भी बेटियों को अपने पिता और माता की संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार है।

लिव-इन रिलेशनशिप वैध है

दो वयस्कों के बीच लिव-इन संबंध भारतीय कानून के तहत कानूनी है अगर उन दोनों के बीच विवाह की आवश्यक शर्तें जैसे कि शादी करने की कानूनी उम्र, सहमति और दिमाग की सुदृढ़ता पूरी होती है। कोई भी कानून ऐसे रिश्तों को गैर-कानूनी नहीं मानता है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है। उच्चतम न्यायालय ने सबसे पहले बद्री प्रसाद बनाम डिप्टी डायरेक्टर के वाद में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना था।

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रात में कोई गिरफ्तारी नहीं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। यह कानून महिलाओं द्वारा पुलिस उत्पीड़न की शिकायतों की बढ़ती संख्या का परिणाम था। इस कानून का उद्देश्य महिला आरोपी को ‘पीड़ित’ बनने से बचाना था। हालांकि, अगर विचाराधीन महिला गंभीर अपराध कर चुकी है, तो पुलिस मजिस्ट्रेट की विशेष अनुमति से उसकी गिरफ्तारी सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच की जा सकती है।

सिलेंडर विस्फोट

एलपीजी गैस सिलेंडर के फटने की स्थिति में जिस व्यक्ति को संपत्ति या जीवन का नुकसान हुआ है, वह कंपनी से मुआवज़ा पाने का हकदार है। हर साल एलपीजी सिलेंडर से जुड़े सैकड़ों हादसे हमारे देश में होते हैं। तेल विपणन कंपनियां और वितरक बीमा प्रीमियम के रूप में करोड़ों रुपये का भुगतान करते हैं। लेकिन लोगों के बीच एलपीजी बीमा पॉलिसी के बारे में जागरूकता की कमी के कारण कई बीमा के दावे नहीं हो पाते हैं। दरअसल, गैस एजेंसियों को अपने नोटिस बोर्ड पर एलपीजी बीमा पॉलिसी के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी होती है। उन्हें ग्राहकों को बीमा कवर के बारे में सूचित करना चाहिए लेकिन ऐसा कोई उपाय उनकी ओर से नहीं किया जाता है।

मुफ्त कानूनी सहायता

भारत के संविधान के अनुच्छेद 39-ए के तहत, सरकार ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 नामक एक अधिनियम बनाया है, जो उन सभी लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता सेवा प्रदान करता है जो धन के आभाव में अपने केस के लिए वकील की सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं।

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पुलिस संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है  

अगर कोई शिकायतकर्ता संज्ञेय अपराध घटित होने पर FIR करवाने के लिए पुलिस के पास जाता है तो पुलिस के लिए प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है। संज्ञेय अपराध की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने पर पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। संज्ञेय अपराध वे हैं जिनमें दोष सिद्ध होने पर तीन साल या उससे अधिक की सजा दी जाती है और जहां एक जांच अधिकारी बिना वारंट के किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है।

ज़ीरो FIR

अक्सर, पुलिस अधिकारी इस आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करते हैं कि घटना का क्षेत्र उनके अधिकार क्षेत्र (क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर) के अंतर्गत नहीं है। हालांकि, ‘जीरो एफआईआर’ की शुरुआत के बाद, संज्ञेय मामलों में प्राथमिकी कहीं भी दर्ज की जा सकती है, फिर चाहे घटना के स्थान वाले क्षेत्र में या क्षेत्राधिकार की परवाह किए बिना कहीं ओर और बाद में यह प्रारंभिक जांच करने पर अधिकार क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दी जाती है।

मातृत्व अवकाश

मातृत्व अवकाश एक महिला के लिए बहुत आवश्यक होता है। पहले यह अवकाश एक कामकाजी महिला को केवल 12 हफ्ते तक का ही दिया जाता था। लेकिन एक लम्बी लड़ाई के बाद भारतीय विधायिका ने नए कानून द्वारा इसमें कुछ बदलाव किए। नए कानून के तहत मैटरनिटी लीव को मौजूदा 12 हफ्ते से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया है। प्रसव से पहले का अवकाश भी छह से आठ सप्ताह तक बढ़ाया जाता है। हालांकि, पहले से ही दो या दो से अधिक बच्चों वाली महिला 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की हकदार है। इस मामले में प्रसव पूर्व अवकाश छह सप्ताह का रहता है।

नए अधिनियम में तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने वाली महिला के लिए 12 सप्ताह की गोद लेने की छुट्टी का भी प्रावधान है। एक कमीशनिंग मां भी बच्चे को सौंपे जाने की तारीख से 12 सप्ताह की छुट्टी की हकदार होती है। एक कमीशनिंग मां को “जैविक मां के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी अन्य महिला में प्रत्यारोपित भ्रूण बनाने के लिए अपने अंडे का उपयोग करती है” (जो महिला बच्चे को जन्म देती है उसे मेजबान या सरोगेट मां कहा जाता है)। कोई भी कंपनी गर्भवती महिला को उसके गर्भधारण के कारण कंपनी से बाहर नहीं कर सकती है। अगर वह ऐसा करती हैं तो उसे अधिकतम 3 साल की कैद की सजा हो सकती है।

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तस्वीर साभार: iPleaders

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