स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य एंडोमेट्रियोसिस की समस्या के बारे में जानना ज़रूरी क्यों है? | नारीवादी चश्मा

एंडोमेट्रियोसिस की समस्या के बारे में जानना ज़रूरी क्यों है? | नारीवादी चश्मा

 एडोमेट्रियोसिस एक गंभीर बीमारी है, जो शुरुआती दौर में नज़रंदाज़ करने की वजह से कई बार जटिल समस्या बन जाती है।

महिलाओं की स्थिति किसी भी समाज की दशा बताने के लिए काफ़ी होती है। उनकी स्थिति से उस देश की विचारधारा, नीति और इनके क्रियान्वयन का पता चलता है। और जब हम महिला स्थिति की बात करते है तो इसमें एक अहम पहलू है – महिला स्वास्थ्य। जिसे आमतौर पर पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में ज़्यादा स्पेस नहीं दिया जाता है। समाज के बताए आदर्श के अनुसार महिला स्वास्थ्य का मतलब कहीं न कहीं सिर्फ़ स्वस्थ बच्चे को जन्म देने और उनके लालन-पालन तक सीमित कर दिया जाता है। यही वजह है कि आज भी महिलाएँ अपने शरीर और ख़ासकर प्रजनन स्वास्थ्य व अंगों से जुड़ी समस्याओं पर बात नहीं करती है, जिससे कई बार उन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं बीमारियों में से एक है – एंडोमेट्रियोसिस।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, दुनियाभर में एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं की संख्या 176 मिलियन है, जिसमें 26 मिलियन महिलाएँ भारत से हैं। इसे आसान भाषा में समझें तो, एक करोड़ से अधिक भारतीय महिलाएँ एंडोमेट्रियोसिस की समस्या से जूझ रही है, यानी कि हर दस में से एक महिला एंडोमेट्रियोसिस की समस्या का सामना कर रही है।

एंडोमेट्रियोसिस यूट्रेस यानी कि गर्भाशय से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में क़रीब दस फ़ीसद महिलाओं में यह समस्या रिप्रोडक्टिवे एज (यानी 18 से 35 साल) में होती है। आए दिन भारत में एंडोमेट्रियोसिस की समस्या बढ़ती जा रही है। हर साल मार्च के महीने में ‘एंडोमेट्रियोसिस अवेयरनेस मंथ’ मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत साल 1993 में एंडोमेट्रियोसिस  असोसीएशन ने इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए की थी। अब आप सोच रहे होंगें कि आख़िर ये एंडोमेट्रियोसिस है क्या? ये किन वजहों से होता है? इसके शुरुआती सिमटम क्या है और इससे कैसे बचा सकता है? तो आइए जानते है एंडोमेट्रियोसिस के बारे में –

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क्या है ये एंडोमेट्रियोसिस?

एंडोमेट्रियोसिस गर्भाशय यानी यूटरस में होने वाली समस्‍या है, इसकी शुरुआत एंडोमेट्रियल से होती है। एंडोमेट्रियल गर्भाशय की लाइनिंग या यों कहें कि बाहरी परत होती है, जिसमें एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होने पर टिशूओं की मात्रा एबनोर्मल तरीक़े से बढ़ने लगती है और फिर ये धीरे-धीरे पूरे यूटरस में फैल जाती है। कभी-कभी तो एंडोमेट्रियम की परत यूटरस के बाहरी हिस्से में भी फैल जाती है, जिसमें ओवरी, आँत और अन्य रिप्रोडक्टिवे ऑर्गन भी शामिल है। 

एंडोमेट्रियोसिस फैलोपियन ट्यूब, ओवरी, लिम्फ नोड्स और पेरिटोनियम को भी इफ़ेक्ट कर सकता है। आमतौर पर, यूटरस में मौजूद एंडोमेट्रियल टिशू पीरियड्स के दौरान बाहर निकल जाते हैं, लेकिन जब ये किसी और अंग में होते हैं तो बाहर नहीं निकल पाते हैं और अगर ऐसे में जैसे-जैसे इन टिशू का साइज़ बढ़ती है ये बाक़ी के ऑर्गन सिस्टम को प्रभावित करने लगते है।

पितृसत्तात्मक व्यवस्था में आज भी महिला को अपने शरीर पर बात करने के लिए स्पेस का स्पेस भी सीमित है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अपने स्वस्थ जीवन के लिए अपने स्पेस का क्लेम हमलोगों को ही करना होगा।  

किन वजहों से होता है एंडोमेट्रियोसिस?

एंडोमेट्रियोसिस होने की सटीक वजह अभी तक पता नहीं चल पायी है, लेकिन कई रिसर्च में इसकी कुछ वजहें सामने आयी है, जैसे –

प्रतिगामी या रेटरोग्रेड पीरियड – विशेषज्ञों का मानना है कि मेन्स्ट्रूअल ब्लड में एंडोमेट्रियल टिशू होते है और कई बार ये पीरियड के दौरान शरीर से बाहर निकलने की बजाय फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से पेल्विक केवीटी में वापस आ जाती है और दूसरे ऑर्गन से चिपक जाती है, जिसे रेटरोग्रेड पीरियड कहते हैं और ये धीरे-धीरे एंडोमेट्रियोसिस का कारण बनती है।

वंशानुगत या जेनेटिक समस्या एंडोमेट्रियोसिस होने की एक प्रमुख वजह इसका जेनेटिक होना भी हो सकता है। अगर परिवार में किसी भी महिला को इसकी समस्या होती है या इससे जुड़े लक्षण होते है तो विशेषज्ञों ने यह पाया है कि अगली पीढ़ी में यह समस्या एक गंभीर रूप ले लेती है।

इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्याएँ कई केस में यह भी पाया गया कि जिन महिलाओं को इम्यून सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर है उनमें एंडोमेट्रियोसिस होने की संभावना बढ़ जाती है।

ये कुछ ऐसी वजहें हैं जो कई बार एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होने की कारक बनती है। लेकिन इसके अलावा भी इस बीमारी के होने की वजहें हो सकती है।

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एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण

आइए अब जानते है एंडोमेट्रियोसिस के कुछ शुरुआती लक्षणों के बारे में –

  • पीरियड के दौरान ज़्यादा ब्लीडिंग और मसल्स में खिंचाव की समस्या
  • पीरियड के दौरान असहनीय दर्द होना
  • अधिक थकान, चक्कर या क़ब्ज़ की समस्या
  • गर्भधारण करने में परेशानी
  • इंटरकोर्स के दौरान या उसके बाद दर्द की समस्या
  • यूरिन के दौरान दर्द की समस्या

ये कुछ ऐसे शुरुआती लक्षण हैं जिनपर अगर हम ध्यान दें तो हम इस गंभीर बीमारी से बच सकते हैं।

एंडोमेट्रियोसिस का इलाज

एंडोमेट्रियोसिस एक अवस्था यानी कंडीशन का रूप ले लेती है, जिसके चलते इसका सटीक और परमानेंट इलाज होना मुश्किल है। इसलिए डॉक्टर इसकी स्टेज के अनुसार पेशेंट में इस बीमारी के असर को कम करने के लिए कई बार सर्जरी तो कई बार दवाइयों व हार्मोनल थेरेपी का इस्तेमाल करते है। इसके साथ ही, सही व स्वस्थ खानपान और जीवनशैली भी बीमारी के असर को धीरे-धीरे कम करने में काफ़ी मदद करती है।

एंडोमेट्रियोसिस से जुड़े मिथ्य

किसी भी बीमारी को जटिल रूप देने में अहम भूमिका होती है इससे जुड़े मिथ्य की, जो कई बार किसी भी गंभीर बीमारी के इलाज को जटिल बनाने का कारक बनते है, इसलिए लिए ज़रूरी है कि उन मिथ्यों को दूरकर सही जानकारी ली जाए। तो आइए अब हम बात करते है एंडोमेट्रियोसिस से जुड़े कुछ मिथ्यों के बारे में –

एंडोमेट्रियोसिस का पता जल्दी लग जाता है।

ये एक मिथ्य मात्र है। वास्तव में कई बार यह पाया गया है कि एंडोमेट्रियोसिस की समस्या शुरुआती दौर में सामने नहीं आती है और इसे सामने आने में कई सालों का वक्त लग जाता है, जो इस बीमारी को और भी गंभीर रूप दे देती है।  

पीरियड के दौरान असहनीय दर्द होना आम बात है।

कई बार हमें लगता है कि पीरियड के दौरान असहनीय दर्द होना आम बात है, जो पूरी तरह गलत है। बल्कि अगर किसी को भी यह समस्या होती है तो उसे एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होने के चांस बढ़ जाते है। इसलिए अगर आपको भी ऐसी समस्या है तो बिना देर किए अपने डॉक्टर से मिले।

एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होने पर आप बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है।

ऐसा नहीं है। कई सर्वे में यह सामने आया है कि एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित क़रीब तीस परसेंट महिलाओं को ही गर्भधारण करने में दिक़्क़त आती है। और कई बार सर्जरी के माध्यम से एंडोमेट्रियोसिस की समस्या कम हो जाती है, जिससे महिलाएँ गर्भधारण कर सकती है।

एंडोमेट्रियोसिस एक लाइलाज बीमारी है।

नहीं। एंडोमेट्रियोसिस का इलाज दवाओं, सर्जरी और हार्मोनल थेरपी के माध्यम से संभव है।

 एंडोमेट्रियोसिस एक गंभीर बीमारी है, जो शुरुआती दौर में नज़रंदाज़ करने की वजह से कई बार जटिल समस्या बन जाती है। इसके लिए ज़रूरी है कि अपने स्वास्थ्य और ख़ासकर शरीर में होने वाले किसी भी बदलाव को गंभीरता से लिया जाए। बेशक पितृसत्तात्मक व्यवस्था में आज भी महिला को अपने शरीर पर बात करने के लिए स्पेस का स्पेस भी सीमित है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अपने स्वस्थ जीवन के लिए अपने स्पेस का क्लेम हम लोगों को ही करना होगा।  

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तस्वीर साभार : emedihealth.com

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