नेताओं के परिवार में जन्मी मालती देवी चौधरी ने व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई में शामिल होने के लिए अपने जीवन के आराम और अपनी राजनीतिक स्थिति को छोड़ दिया। उन्होंने उड़ीसा के अलग-अलग हिस्सों में हाशिये पर गए वर्गों के लोगों की मदद की। श्रमिकों के प्रति उनके समर्पण ने उड़ीसा को समाजवाद की ओर धकेला। एक मार्क्सवादी के रूप में उन्होंने लोगों के साथ और उनके लिए काम किया। उन्होंने राज्य के दमन के खिलाफ किसानों की मदद करने, छुआछूत और जातिवाद से लड़ने, बच्चों को शिक्षित करने और महिलाओं की स्थिति को ऊंचा करने के लिए आवाज़ उठाई।
मालती देवी चौधरी का जन्म 26 जुलाई 1904 में हुआ था। मूल रूप से इनके परिवारवाले विक्रमपुर ढाका कामराखंड में रहते थे। लेकिन बाद में ये लोग सिमुलतला में बस गए। इनकी मां का नाम स्नेहलता जो पेशे से एक लेखिका थीं। मालती देवी के पिता का नाम बैरिस्टर मुकुद नाथ सेन था। जब यह सिर्फ ढाई साल की थीं तो इनके पिता की मृत्यु हो गई थी, तब से इनकी माँ ने ही मालती देवी की देखभाल की। यह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी और अपने भाई बहनों की प्रिय थीं।
मालती देवी जब 16 साल की थीं तब ही इन्हें शांति निकेतन भेजा गया। इन्हें शांति निकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर से सीधे ज्ञान प्राप्त करने का मौका मिला। शांति निकेतन में मालती देवी ने न सिर्फ डिग्री प्राप्त की बल्कि अलग-अलग तरह की कला में भी खुद को पारंगत किया। इनका जीवन टैगोर के सिद्धांत, शिक्षा, विकास और देशभक्ति से बहुत ज्यादा प्रभावित था। उसी दौरान नवकृष्ण चौधरी एक छात्र के रूप में शांति निकेतन में आया था। यहीं मालती देवी चौधरी की मुलाकात नवकृष्ण चौधरी से हुई। आगे चलकर साल 1927 में नवकृष्ण और मालती की शादी हो गई। उसी साल इन्होंने शांति निकेतन छोड़ दिया जो इनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। शादी के बाद ये लोग उड़ीसा में बस गए और वहां के ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए अलग-अलग कामों में जुट गए।
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नेताओं के परिवार में जन्मी मालती देवी चौधरी ने व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई में शामिल होने के लिए अपने जीवन के आराम और अपनी राजनीतिक स्थिति को छोड़ दिया। उन्होंने उड़ीसा के अलग-अलग हिस्सों में हाशिये पर गए वर्गों के लोगों की मदद की। श्रमिकों के प्रति उनके समर्पण ने उड़ीसा को समाजवाद की ओर धकेला। एक मार्क्सवादी के रूप में उन्होंने लोगों के साथ और लोगों के लिए काम किया।
सामाजिक कार्य और राजनीतिक सफ़र
मालती देवी चौधरी और नवकृष्ण चौधरी शादी के बाद उड़ीसा के जगतसिंहपुर ज़िले के अनाखिया गांव में बसे थे। इसी गांव में इनके पति ने गन्ने की खेती में सुधार करना शुरू किया। वहीं मालती देवी ने कई पड़ोसी गांवों में प्रौढ़ शिक्षा का काम भी शुरू किया। वह उत्पीड़ित और वंचितों के अधिकार के लिए हमेशा लड़ने से पीछे नहीं हटती थीं। उनका रुख़ हमेशा स्पष्टवादी और मुखर होता था। उन्होंने 1930 के दौरा में मज़दूरों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई, साथ ही उत्कल किसान सभा की भी नींव रखी। इसका उद्घाटन कटक में किया गया था। इस उद्घाटन में ज़मींदारी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लिया गया। कई किसान समितियों ने इसमें हिस्सा लिया था।
गरीब किसानों को सूदखोरों और ज़मीदारों के शोषण से बचाने के लिए मालती देवी ने कृषक आंदोलन की अगुआई की। ऐसा माना जाता है कि ढेंकनाल, भुबन और नीलकंठपुर में गोलीबारी की घटनाओं के दौरान सरकार के खिलाफ़ लोगों को लामबंद करने में उनके भाषण और उपस्थिति महत्वपूर्ण साबित हुए। यह गोलीबारी स्थानीय समूहों द्वारा जबरन मजदूरी को समाप्त करने और न्यायसंगत वन कानूनों और नागरिक स्वतंत्रता की मांग के खिलाफ़ की गई थी।
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साल 1933 में इन्होंने अपने पति के साथ उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्मचारी संघ का गठन किया। बाद में इस संगठन को अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की उड़ीसा शाखा के रूप में जाना जाने लगा। साल 1948 में इन दोंनो ने उड़ीसा में उत्कल नवजीवन मंडल का भी गठन किया। इसने ग्रामीण विकास और आदिवासी कल्याण के लिए काम किया। साथ में इन्होंने उड़ीसा सिविल लिबर्टीज़ कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। वह उन पहली कुछ आवाज़ों में से थीं जिन्होंने नक्सलियों की हत्या की खुलकर आलोचना की।
गरीब किसानों को सूदखोरों और ज़मीदारों के शोषण से बचाने के लिए मालती देवी ने कृषक आंदोलन की अगुआई की। ऐसा माना जाता है कि ढेंकनाल, भुबन और नीलकंठपुर में हुई गोलीबारी की घटनाओं के दौरान सरकार के खिलाफ़ लोगों को लामबंद करने में उनके भाषण और उपस्थिति महत्वपूर्ण साबित हुए।
साल 1934 में, उड़ीसा में मालती देवी महात्मा गांधी की पदयात्रा में उनके साथ थी। उन्होंने इस पदयात्रा में अहम भूमिका निभाते हुए बड़ी संख्या में लोगों को इससे जोड़ा। पूंजीवाद का विरोध करते हुए उन्होंने चरखा आंदोलन और असहयोग आंदोलन से लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित किया। इन्हें कई बार साल 1921, साल 1936 और साल 1942 में अन्य महिला स्वंतत्रता सेनानियों जैसे सरला देवी, रमादेवी और अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में भी इन्होंने कैदियों को पढ़ाने का काम किया।
9 दिसंबर 1946 में मालती देवी चौधरी संविधान सभा के लिए चुनी गई थी। साथ ही वह उड़ीसा प्रदेश कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष भी चुनी गईं। वह उन महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने भारती संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने में एक अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि, जल्द ही उन्होंने सभा से इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह किसानों, दलितों, आदिवासियों और बच्चों के साथ अपने काम पर ध्यान देना चाहती थीं। 1975 में जब इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लागू किया तब भी इन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और जेल भी गईं। साल 1998 में 93 साल की उम्र में इन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अपने शानदार काम के लिए मालती देवी को न जाने कितने सम्मान और पुरस्कारों से नवाज़ा गया। इसमें बाल कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (1987), जमनालाल बजाज पुरस्कार (1988) उत्कल सेवा सम्मान (1994), टैगोर साक्षरता पुरस्कार (1995) आदि शामिल हैं।
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