नारीवाद किश्वर नाहिद: एक बेबाक, ‘गुनहगार’ और निडर आवाज़

किश्वर नाहिद: एक बेबाक, ‘गुनहगार’ और निडर आवाज़

1978 में प्रकाशित उनकी किताब ‘गलियां, धूप, दरवाज़े’ में एक कविता ‘किश्वर नाहिद’ के शीर्षक से लिखी। वह खुद को दुनिया की सभी औरतों के बराबर रख लिखती हैं, “तुन्हें खामोश देखने की चाहत, कब्रों से भी उमड़ी आ रही है, मगर तुम बोलो, किश्वर नाहिद!”

ये हम गुनहगार औरतें हैं
कि सच का परचम उठा के निकलें
तो झूट से शाहराहें अटी मिले हैं
हर एक दहलीज़ पे सज़ाओं की दास्तानें रखी मिले हैं
जो बोल सकती थीं वो ज़बानें कटी मिले हैं

किश्वर नाहिद की लिखी ये पक्तियां पाकिस्तान में नारीवादी एंथम के तौर पर गाई जाती हैं। किश्वर न केवल पाकिस्तान की बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रसिद्ध नारीवादी, लेखिका, शायरा, नाटककार और आलोचक हैं। अपने लेखन के ज़रिये उन्होंने औरतों के वजूद को उनकी हर हकीकत को बयां किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं से पितृसत्ता पर हमेशा वार किया है। उन्होंने अधिकारों और समानता की बात को बड़ी बेबाकी से उठाया है। 

किश्वर नाहिद का जन्म 1940 में वर्तमान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश बुलंदशहर, भारत में हुआ था। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद 1949 में वह अपने परिवार के साथ लाहौर, पाकिस्तान चली गई थी। वे चार बहनें और तीन भाई हैं। किश्वर की माँ ने बचपन में उनके भीतर पढ़ने की रूचि डाली थी लेकिन कुछ समय बाद उनके ज्यादा पढ़ने का उनके परिवार ने विरोध भी किया था। युवा किश्वर नाहिद आगे पढ़ने के लिए उस समय की कई लड़कियों से प्रेरित थीं जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ती थीं। वह उनकी ड्रेस देखकर बहुत खुश हुआ करती थीं।  

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मार्शल लॉ के दौरान बतौर लेखक उन्हें कई तरह की परेशानियों और विरोध का सामना करना पड़ा था। उनकी दो किताबों को बैन कर दिया गया था। उन पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

किश्वर को अपनी पढ़ाई को लेकर परिवार के साथ संघर्ष का भी सामना करना पड़ा था। उस समय लड़कियों को स्कूल जाने की मनाही थी। वह हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई करना चाहती थीं। इंटर के बाद आगे की पढ़ाई की ज़िद के सामने आखिर में उनके घरवालों को झुकना ही पड़ा और उन्होंने खुद स्नातक में दाखिला लिया। किश्वर नाहिद के कॉलेज में एडमिशन के बाद उनकी बड़ी बहन ने भी अपनी रुकी हुई पढ़ाई दोबारा शुरू की थी। किश्वर ने अपनी पढ़ाई कॉन्वेंट स्कूल से की थी लेकिन उन्होंने हिंदी और उर्दू भी साथ-साथ सीखी थी। 

साल 1959 में उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की। उसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर से उन्होंंने अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया। किश्वर नाहिद ने उस समय में हर उन बंदिशों को चुनौती दी जो समाज द्वारा औरतों पर लगाई हुई थी। किश्वर नाहिद ने अपने मित्र और कवि यूसुफ कामरान से शादी की। उन दोंनो के दो बेटे हैं। पति की मृत्यु के बाद किश्वर नाहिद ने घर और बच्चों को संभाला।  

औरतों के लिए आवाज़ उठाई

पाकिस्तान में औरतों की आज़ादी और अधिकारों की लड़ाई लड़नेवालों में किश्वर नाहिद का नाम हमेशा आगे रहा है। पाकिस्तान में फैमिली लॉ की मांग में पहली बार पैदल मार्च को देखने के बाद किश्वर पर गहरा असर पड़ा। उन्होंने औरतों के हक के बारे में गहराई से सोचना शुरू किया। उन्होंने नौकरी के दौरान मर्द और औरत के बीच अंतर को देखा जहां एक मर्द, महिला अधिकारी के साथ काम करना तौहीन मानता था। उन्होंने औरत के सम्मान और बराबर की जिंदगी के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी थी और महिलाओं को कानूनी अधिकारों की लंबी लड़ाई लड़ी है। 

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राजनीति और नारीवाद में भूमिका

किश्वर नाहिद हमेशा जनसरोकार के कार्यक्रमों से जुड़ी रही हैं। उन्होंने औरतों के हक के लिए हमेशा अपनी आवाज़ उठाई है। किश्वर ने सिविल सेवक के तौर पर 38 साल काम किया है। मार्शल लॉ के दौरान उन्हें पांच साल की छुट्टी पर भेज दिया गया था। किश्वर ने इसका विरोध किया था। वह निलंबन के विरोध में अदालत तक गई थीं और फिर उन्हें दोबारा काम पर बुला लिया गया था। साल 1983 में लॉ ऑफ एविडेंस में महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार के विरोध में अन्य महिला कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें जेल में भी जाना पड़ा था। किश्वर ने महिलाओं को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमेशा प्रेरित किया। वह अपनी काम से छुट्टी के समय ग्रामीण पाकिस्तान की महिलाओं को घरेलू उद्योग के तहत काम करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं। उन्होंने पाकिस्तान के शिल्प उद्योग को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किये हैं। 

मार्शल लॉ के दौरान बतौर लेखक उन्हें कई तरह की परेशानियों और विरोध का सामना करना पड़ा था। उनकी दो किताबों को बैन कर दिया गया था। उन पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। किश्वर नाहिद को 1998 में मार्शल लॉ की वजह अपने दो बेटों को 16 और 18 साल की उम्र में पाकिस्तान से बाहर भेज दिया था। किश्वर नाहिद ने हमेशा सत्ता की दमनकारी नीतियों का विरोध किया है और वह लोकतंत्र की मज़बूत पैरोकार रही हैं। किश्वर नाहिद ‘एक्शन एड’ और ‘एशियन डेवलपमेंट बैंक’ के साथ भी काम कर चुकी हैं।

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वह अपनी मशहूर कविता ‘हम गुनहगार औरतों’ में पितृसत्ता पर सीधा प्रहार करती है। वह कहती हैं कि जो औरतें अपनी राय, ख्याल रखती हैं उन्हें पुरुष प्रधान समाज में बदनाम किया जाता है। ‘हम गुनगाहर औरतें’ साल 1991 में लंदन की ‘द वीमन प्रेस’ से प्रकाशित हो चुकी हैं।

कलम को बनाया अपनी ताकत

किश्वर नाहिद ने स्कूल के समय से लिखना शुरू कर दिया था। अपने लेखन और भाषणों के लिए वह पुरस्कार भी जीता करती थीं। उनके घरवालों को इस बात का पता न चल जाए वह अपनी ट्रोफियां छिपा दिया करती थीं। किश्वर नाहिद की कविताएं सरहद की सीमा को पार करते हुए पाकिस्तान और भारत दोंनो जगह प्रकाशित हुई। यहीं नहीं. उनकी उर्दू की कविताएं पूरी दुनिया में अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद हो चुकी हैं। 

किश्वर नाहिद का लेखन नारीवादी साहित्य की महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता हैं। उनके लेखन को क्रांति माना जाता है। 1978 में प्रकाशित उनकी किताब ‘गलियां, धूप, दरवाज़े’ में एक कविता ‘किश्वर नाहिद’ के शीर्षक से लिखी। वह खुद को दुनिया की सभी औरतों के बराबर रख लिखती हैं, “तुन्हें खामोश देखने की चाहत, कब्रों से भी उमड़ी आ रही है, मगर तुम बोलो, किश्वर नाहिद!” वह इन लाइनों में पीढ़ियों से चली आ रही उस रवायत पर वार करती है जिसमें औरतों को बोलने ही नहीं दिया जाता था। वह उसी समाज में बोलना चाहती हैं जहां उन्हें उनकी बातें जाहिर करने से रोका जाता है।

वह अपनी मशहूर कविता ‘हम गुनहगार औरतों’ में पितृसत्ता पर सीधा प्रहार करती है। वह कहती हैं कि जो औरतें अपनी राय, ख्याल रखती हैं उन्हें पुरुष प्रधान समाज में बदनाम किया जाता है। ‘हम गुनहगार औरतें’ साल 1991 में लंदन की ‘द वीमन प्रेस’ से प्रकाशित हो चुकी हैं। नाहिद ने बहुत मुखर होकर पाकिस्तानी समाज में सत्ता के बनाए कंटरपंथ के ख़िलाफ़ भी लिखा है। उन्होने हमेशा हर तरह के शोषण का विरोध किया है। 

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साहित्यिक कार्य और सम्मान

एक कवयित्री और नारीवादी के तौर पर उन्होंने पाकिस्तान के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका पहला कविता संकलन 1968 में ‘लब-ए-गोया’ प्रकाशित हुआ था, जिसने ‘आदमजी साहित्य पुरस्कार’ जीता था। इसके अलावा उनकी लिखी महत्वपूर्ण रचनाएं गलियां, धूप, दरवाजे (1978), औरत मर्द का रिश्ता (2010), शेर और बकरी ( 2012), और चांद की बेटी (2012) हैं।

2016 में ‘बुरी औरत की कथा’ के नाम से आत्मकथा प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा उनकी लिखी ‘पहला सफेद बाल’, ‘कारे कोश’, ‘मैं कौन हूं’, ‘दुख की गुत्थी खोलेंगें’, ‘किबला-रुउ गुफ्तागु’ मशहूर कविताएं हैं। किश्वर नाहिद बच्चों के लिए भी लिखा है। बच्चों के लिए लिखे गए उनके काम को साल 1968 में ‘यूनेस्को प्राइज फॉर चिल्ड्रेन लिटरेचर’ मिल चुका हैं। किश्वर नाहिद एक अख़बार में साप्ताहिक कॉलम भी लिखा है।

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किश्वर नाहिद ने खुद भी कई किताबें उर्दू में अनुवादित की हैं। उन्होंने सिमोन द बोउवार की ‘द सेकेंड सेक्स’ उर्दू में अनुवाद किया है। वह कोलंबिया यूनिवर्सिटी की ओर से सर्वश्रेष्ठ अनुवादक का सम्मान हासिल कर चुकी हैं। 1997 में उन्हें ‘मंडेला सम्मान’ से सम्मानित किया गया। साल 2000 में पाकिस्तान में साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें ‘सितारा-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया। 2015 में पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लैट्सर्स ने ‘कमाल-ए-फन’ पुरस्कार नवाज़ा। साल 2016 में साहित्य अकादमी, भारत की तरफ़ से ‘प्रेमचंद फेलोशिप’ भी अपने नाम कर चुकी हैं।

किश्वर नाहिद एक निडर और स्वतंत्र शख्सियत हैं। उन्होंने जीवन के हर पड़ाव पर रूढ़िवाद को चुनौती दी हैं। बचपन में पढ़ाई को लेकर जिद की, साहित्य में रूचि लेकर प्रसिद्धि हासिल की। यहीं नहीं, अपनी पसंद से शादी की जो उस समय में एक बहुत बड़ा कदम था। किश्वर नाहिद ने पितृसत्ता की बेड़ियों को तोड़कर पीढ़ियों के लिए स्वतंत्रता और समानता की राह का मार्गदर्शन किया है। कला और साहित्य में उनके अतुल्य योगदान ने पाकिस्तानी समाज को समृद्ध किया है।

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तस्वीर साभारः Scroll.in

स्रोतः

1- Wikipeacewomen.org

2- Firstpost

3- Sansad TV

4-Wikipedia

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