दुनियाभर के अधिकतर हिस्सों में खाना बनाने की ज़िम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती है। परंपराओं और रिश्तों के नाम पर उनसे अवैतनिक काम करवाया जाता है। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में तो महिलाएं पहले पूरे परिवार को खाना खिलाकर आखिर में खाना खाती हैं। अगर खाना कम पड़ जाता है तो वे बचे हुए खाने को खाकर और पानी पीकर रह जाती हैं। महिलाओं के साथ असमानता, भेदभाव की ये वे जड़े हैं जो उन्हे पोषण से दूर रखती हैं। हाल ही में खाद्य सुरक्षा और लैंगिक असमानता के संदर्भ में एक वैश्विक रिपोर्ट जारी हुई है जिसके अनुसार दुनियाभर में बड़ी संख्या में महिलाएं भूखी रह जाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय संस्था CARE द्वारा “फूड सिक्योरिटी एंड जेंडर इक्वॉलिटीः ए सिनर्जिस्टिक अंडरस्टडीज सिम्फनी” के नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई है। यह संस्था एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठन है जो जेंडर के संदर्भ में गरीबी और असमानता से लड़ने की दिशा में काम करता है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में पुरुषों की तुलना में 150 मिलियन से अधिक महिलाएं खाद्य असुरक्षा का सामना करती हैं। रिपोर्ट में लैंगिक असमानता और भोजन की असुरक्षा के बीच एक वैश्विक कड़ी पर प्रकाश डाला गया है। इसमें पाया गया है कि 109 देशों में लैंगिक असमानता बढ़ने से खाद्य सुरक्षा कम हो गई है।
रिपोर्ट के अुनसार ग्लोबल स्तर पर लैंगिक समानता और खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध समझने की कोशिश की गई है। 2010-11 में संयुक्त राष्ट के खाद्य और कृषि संगठन की जारी रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता, महिलाओं और भोजन के बीच संबंध से जुड़ा डेटा जारी किया गया था। 2022 में ही कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की जारी “द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन वर्ल्ड” के नाम से जारी संयुक्त रिपोर्ट में भी पाया गया था दुनिया के हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुष के मुकाबले कम भोजन मिलता है।
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स्टडी में कहा गया है लैंगिक समानता को बढ़ाकर गरीबी और खाद्य असुरक्षा दोंनो को कम किया जा सकता है। यदि महिलाएं नौकरी करती हैं और पैसा कमाती हैं तो उन्हें खाद्य असुरक्षा का सामना करने की संभावना कम होती है। लैंगिक समानता बढ़ने से खाद्य सुरक्षा बढ़ती है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- दुनियाभर में पुरुषों और महिलाओं की खाद्य सुरक्षा के बीच खाई बढ़ती जा रही है।
- दुनियाभर में 90 फीसदी महिलाएं खाना बनाने और उससे संबंधित सामान खरीदने का काम करती हैं लेकिन वे सबसे आखिर में और सबसे कम खाती हैं।
- साल 2021 में 828 मिलियन लोग भूख से प्रभावित थे। उनमें से पुरुषों की तुलना में 150 मिलियन से अधिक महिलाएं खाद्य असुरक्षा का सामना किया।
- यह आंकड़ा यूक्रेन जैसे देश की आबादी का तीन गुना है। भूख का सामना करने वाली महिलाओं की संख्या में 8.4 गुना बढ़ी है।
दुनिया में महिला और पुरुष दोनों ही खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं लेकिन महिलाओं पर इसका ज्यादा भार है। पुरुष ऐसी स्थिति में भोजन कम करते हैं, जबकि महिलाएं भोजन छोड़ती पाई जाती हैं। सोमालिया के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष जहां कम भोजन खाते हैं वहां महिलाओं का भोजन छोड़ना दर्ज किया गया। कोविड-19 में स्थिति और भी गंभीर हुई है। लेबनान जैसे देश में महामारी शुरू होने के बाद 85 फीसदी लोगों की खाने की मात्रा कम हो गई थी। लेकिन उसी समय 57 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 85 फीसदी महिलाओं के भोजन की मात्रा में कमी देखी गई। वहीं, 43 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 66 फीसदी महिलाओं ने कम गुणवत्ता का भोजन खाना शुरू कर दिया था।
स्टडी में कहा गया है कि लैंगिक समानता को बढ़ाकर गरीबी और खाद्य असुरक्षा दोंनो को कम किया जा सकता है। यदि महिलाएं नौकरी करती हैं और पैसा कमाती हैं तो उन्हें खाद्य असुरक्षा का सामना करने की संभावना कम होती है। लैंगिक समानता बढ़ने से खाद्य सुरक्षा बढ़ती है। यमन, लियोन, सिएरा जैसे देशों में अधिक लैंगिक असमानता है जिनमें महिलाओं में सबसे कम खाद्य सुरक्षा और पोषण की कमी है।
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रिपोर्ट में एक दस्तावेज का हवाला करते हुए कहा गया है कि महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर उन पर खाद्य सुरक्षा का भार बढ़ता है क्योंकि उन्हें वैश्विक खाद्य प्रणाली और जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं के संदर्भ में अज्ञानता की स्थिति में रखा जाता है। उदाहरण के लिए रिपोर्ट में कहा गया है भारत में आर्थिक विकास के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियां बहुत सी असमानताओं की वजह से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही हैं। बड़ी संख्या में महिलाओं पर पाबंदी लगाकर, शिक्षा से वंचित कर, मालिकाना हक, अवैतनिक काम करवाकर, निर्णय लेने की अक्षमता, एचआईवी और लैंगिक हिंसा जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। ये समस्याएं भारत से बाहर भी फैली हुई हैं। महिलाएं हर जगह एक जैसी ही समस्याओं से प्रभावित हैं। उन पर लगाए गए प्रतिबंध दुनिया को प्रभावित करते हैं।
महिलाओं के कम खाने की प्रमुख वजहों में फूड टैबू, आर्थिक स्थिति, रूढ़िवाद और पाबंदी है। घरों में महिलाएं बाद में खाना खाती है यदि भोजन कम है तो वह कम खाना खाती है और कभी-कभी खाती भी नहीं है।
केयर रिपोर्ट की सिफारिशें
जिस तरह से महिलाएं दुनिया का भरण-पोषण करती हैं, उसी तरह हमें उन्हें डेटा क्लेक्शन के तरीकों और विश्लेषण में सही जगह देने की आवश्यकता है। इससे उनके बीच स्थापित अंतर को जाहिर किया जा सकें और उनका समाधान निकालने के लिए उनपर काम किया जा सकें। खाद्य सुरक्षा और लैंगिक असमानता को वैश्विक स्तर पर एंड्रेस करने का समय है। इससे प्रभावित महिलाओं और लड़कियों को भूख से जुड़ी लिंग आधारित हिंसा और असुरक्षा से बचाने के लिए उनको समर्थन देने की आवाश्यकता है। लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की ज़रूरत है।
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भारत में कोविड-19 में कैसे खाद्य सुरक्षा प्रभावित हुई
कोविड-19 महामारी के बाद अचानक लगे लॉकडाउन ने भारत सरकार की ओर से पाबंदी लगाई जिसके चलते सारी सेवाएं ठप्प हो गई थी। लॉकडाउन के दौरान साल 2020 में अधिकतर राज्यों में मिड डे मिल और आंगनवाडी केंद्र बंद हो गए थे। कुछ समय के लिए इन योजनाओं के बंद होने का सीधा प्रभाव गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण पर पड़ा। लॉकडाउन और महामारी के चलते महिलाओ के रोजगार और आय में कमी होने की वजह से भी उनके भोजन और पोषण को प्रभावित किया है।
भारत के महिलाएं कम क्यों खाती हैं?
भारतीय समाजिक व्यवस्था में महिलाएं के लिए कोई बेहतर स्थिति नहीं है। बरसों पुरानी रीतियों के नाम पर उन्हें पोषण से दूर रखा जा रहा हैं। सबको परोसकर कर खुद आखिर में खानेवाले भारतीय महिलाएं कम क्यों खाती हैं इसी संदर्भ में साल 2020 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश राज्य के लखनऊ और फतेहपुर में महिलाओं के कम खाने की वजह को जानने की कोशिश की गई। रिपोर्ट के अनुसार दोंनो क्षेत्रों में महिलाओं के कम खाने की प्रमुख वजहों में फूड टैबू, आर्थिक स्थिति, रूढ़िवाद और पाबंदी है। घरों में महिलाएं बाद में खाना खाती हैं, यदि भोजन कम है तो वह कम खाना खाती हैं और कभी-कभी खाती भी नहीं हैं। वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ फलों को खाने की पाबंदी लगाई हुई है। ठीक इसी तरह किशोर लड़कियों को खट्टी चीजें और खट्टे फल खाने के लिए भी रोका जाता है। लड़कियों पर यह पाबंदी उनकी महावारी की वजह से लगाई जाती है।
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तस्वीर साभारः सुश्रीता बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए