साल 1961 में पहले मानव के अंतरिक्ष में भेजे जाने के बाद से ही महिलाओं को भी अंतरिक्ष में भेजने की दिशा में प्रयास शुरू हो गए थे। आंकड़े के अनुसार यह भी स्पष्ट है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अतंरिक्ष यात्री के तौर कम गई हैं। द कन्वरसेशन वेबसाइट में छपी जानकारी के अनुसार अब तक 566 लोग अंतरिक्ष में यात्रा कर चुके हैं। इसमें से केवल 65 महिलाएं अतरिक्ष में यात्रा कर चुकी हैं। कुल प्रतिशत का यह केवल 11.7 फीसदी है। यही नहीं चांद पर महिला अंतरिक्ष यात्री को भेजने की अभी भी योजनाएं ही बन रही है। नासा ने 2024 में पहली महिला और अगला पुरुष चांद पर भेजने की घोषणा की हुई है। भले ही विज्ञान के हर क्षेत्र में महिला वैज्ञानिक काम कर रही हो, अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हो लेकिन मानव अंतरिक्ष यात्रा के 60 साल के समय के बाद भी महिलाएं कई जगह पहली बार मुख्य भूमिकाओं में शामिल नहीं हुई हैं।
हालांकि महिलाओं का शरीर अंतरिक्ष में भेजने के लिए पुरुषों के मुकाबले ज्यादा अनुकूल है इस पर काफ़ी बहस हो चुकी है। द स्काई नाइट मैंगजीन में छपे लेख के मुताबिक़ 1960 के दशक से ही इस विषय में तर्क दिए थे कि महिलाएं अंतरिक्ष में जाने के लिए ज्यादा योग्य हो सकती हैं। महिलाएं लंबाई में छोटी और वजन में हल्की होती है इस वजह से अंतरिक्ष में जाने के लिए वह पुरुषों के मुकाबले ज्यादा योग्य है। उस दौरान कई प्रोग्राम में यह बात साबित भी की गई। पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्र में महिलाओं काे सामने आकर कई भूमिकाओं में काम करने के लिए कई बाधाओं को पार करना होता है।
अंतरिक्ष में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दुनिया के दो बड़ी ताकतों सोवियत यूनियन (यूएसएसआर) और अमेरिका में प्रतिस्पर्धा बनी हुई थी। दोंनो देश 1959 और 60 के दशक में अपने पहले अंतरिक्ष यात्री को भेजने की तैयारी में थे। इसके लिए सेना के हाई स्पीड पायलट को चुना जा रहा था लेकिन सब पुरुष थे।
अंतरिक्ष मिशन में महिलाएं
अंतरिक्ष में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दुनिया के दो बड़ी ताकतों सोवियत यूनियन (यूएसएसआर) और अमेरिका में प्रतिस्पर्धा बनी हुई थी। दोंनो देश 1959 और 60 के दशक में अपने पहले अंतरिक्ष यात्री को भेजने की तैयारी में थे। इसके लिए सेना के हाई स्पीड पायलट को चुना जा रहा था लेकिन सब पुरुष थे। 1959 में अमेरिकी प्रेस द्वारा 13 महिला पायलटों के एक समूह मर्करी-13 के रूप में अंतरिक्ष यात्री बनने का मौका था। नासा के कर्मचारियों की देखरेख में इन पायलटों का सफल स्वास्थ्य का परीक्षण भी हुआ था लेकिन नासा इसके लिए तैयार नहीं था। यह एक प्राइवेट फंडिग मिशन था। इसको किसी तरह की सरकारी मदद नहीं मिली थी। महिला अंतरिक्ष यात्रियों के विचार की वजह से काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इस वजह से आखिर में महिलाओं के अंतरिक्ष यात्री बनने के इस विचार को त्यागना पड़ा। महिलाओं को अंतरिक्ष यात्री बनाना चाहिए या नहीं इसकी जांच हुई।
इस पर मर्करी-13 की अमेरिकी पायलट जैरी कॉब ने कहा था कि मुझे यह बहुत हास्यास्पद लगता है जब मैं अखबार में पढ़ती हूं कि न्यू मैक्सिको के कॉलेज में एक चमगादड को अंतरिक्ष उड़ान के लिए प्रशिक्षण दे रहा है। मुझे लगता है कि महिलाओं को अंतरिक्ष उड़ान के लिए यह प्रशिक्षिण महत्वपूर्ण होगा। वह चमगादड़ की जगह लेने के लिए तैयार है अगर अंतरिक्ष में जाने का यह एकलौता रास्ता है।
इसके बाद यूएसएसआर के निदेशक निकोलाई कमानिन से फॉरेन प्रेस में महिलाओं के स्पेस में भेजने के सवाल उठने से आगे निकलकर 1961 में वहां महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने की पैरवी की। इसके बाद अंतरिक्ष में महिलाओं के सफर के लिए एक प्रोग्राम शुरू हुआ। महिलाओं के अंतरिक्ष में जाने के कार्यक्रम को राष्ट्र के प्रभुत्व और पुरुषों के एकाधिकार से भी संघर्ष करना पड़ा। सोवियत सरकार भी महिलाओं की स्पेस में भेजने के लिए ज्यादा इच्छुक नहीं थी लेकिन सोवियत यूनियन के प्रीमियर निकिता क्रुश्चेवा की इसमें बहुत रूचि थी। वह अमेरिका की महिलाओं के समानता के मुद्दे पर सोवियत संघ की श्रेष्ठता को स्थापित करना चाहते थे।
अंतरिक्ष में पहली महिला
16 जून 1963 में अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला सोवियत यूनिनय की वेलेंटीना टेरेश्कोवा बनीं। उन्होंने इस यात्रा में 70 घंटे का समय बिताया था। पृथ्वी पर लौटने से पहले उन्होंने ऑर्बिट में कुल 48 चक्कर लगाए थे। वह पहली महिला थीं जिन्होंने अकेले अंतरिक्ष की यात्रा की थी। महज 26 साल की उम्र में वेलेंटीना ने अंतरिक्ष यात्रा कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया था। वोस्तोक-6 के लिए टेरेश्कोवा के नाम का चयन 400 से अधिक एप्लीकेशन फॉर्म में से हुआ था।
साल 1978 में नासा ने अंतरिक्ष उम्मीदवार के तौर पर छह महिलाओं को चुना। 1982 में यूएसएसआर की स्वेतलाना स्वित्स्काया अंतरिक्ष में जाने वाली दूसरी महिला बनीं। सोयुज टी-7 पर उन्होंने उड़ान भरी। इसके बाद अमेरिका की ओर से अंतरिक्ष में पहली बार महिला गई। जून 1983 में शैली राइड, पहली अमेरिकन महिला और अंतिरक्ष में जाने वाली तीसरी महिला बनीं। वह एसटीएस-7 स्पेस शटल चैलेंजर के दल की सदस्य थी।
25 जुलाई 1984 में स्वेतलाना स्वित्स्काया ही स्पेस वॉक करने वाली दुनिया की पहली महिला बनी थीं। स्वेतलाना अंतरिक्ष में दो बार जाने वाली दुनिया की पहली महिला बनी थीं। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम रोस्कोस्मोस राज्य निगम को मिला। इसकी मेज़बानी दो महिलाओं ने की थी। साल 1994 येलेना वी. कोंडाकोवा, रसिया फेडरेशन की तरफ से अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला यात्री बनीं।
भारत की ओर से अबतक किसी महिला को अंतरिक्ष यात्रा पर नहीं भेजा गया है। भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और इंजीनियर कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला बनी थीं। चावला नासा में मिशन स्पेशलिस्ट और स्पेस शटल कोलंबिया के तहत रोबोटिक आर्म ऑपरेटर थी। 17 नवंबर 1997 में उन्होंने छह अंतरिक्ष यात्री दल के रूप में पहली अंतरिक्ष उड़ान भरी थी।
दुनिया के अलग-अलग देशों की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री
90 का दशक आते-आते दुनिया के कई देशों में अंतरिक्ष में महिलाओं के जाने का सफ़र शुरू हो गया था। जनवरी 1992 में रॉबर्टा बोंडर, स्पेस शटल डिस्कवरी से उड़ान भरने वाली पहली कनाडाई महिला अंतरिक्ष यात्री बनीं। चियाकी मुकाई जापान की ओर से अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला बनीं। मुकाई एशिया की पहली महिला थीं जिन्होंने अंतरिक्ष का सफर तय किया था। यही नहीं यह पहली जापानी नागरिक बनी जिन्होंने दो बार अंतरिक्ष की दूरी तय की। मुकाई ने अंतरिक्ष में 566 घंटो का समय गुजारा है। 2021 में चीन ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत अपनी पहली महिला यात्री लियू यांग को तिंयायोंग-1 से शेनजुआ-9 पर अंतरिक्ष में भेजा था। माई जैमिसन अंतरिक्ष में जाने वाली पहली अफ्रीकी अमेरिकी महिला थीं। अनुषी अंसारी, ईरानी मूल की अमेरिका अंतरिक्ष यात्री हैं। वह पहली अंतरिक्ष पर्यटक हैं। अंतरिक्ष में पहली मुस्लिम और ब्लॉग बनाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता हैं।
भारत की ओर से अबतक किसी महिला को अंतरिक्ष यात्रा पर नहीं भेजा गया है। भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और इंजीनियर कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला बनी थीं। चावला नासा में मिशन स्पेशलिस्ट और स्पेस शटल कोलंबिया के तहत रोबोटिक आर्म ऑपरेटर थी। 17 नवंबर 1997 में उन्होंने छह अंतरिक्ष यात्री दल के रूप में पहली अंतरिक्ष उड़ान भरी थी। उन्होंने अंतरिक्ष में 15 दिन और 12 घंटे का समय बिताया था। इसके छह साल बाद कल्पना चावला दोबारा अंतरिक्ष में गई। लेकिन इस बार कल्पना का अंतरिक्ष से पृथ्वी का सफर पूरा न हो सका और 1 फरवरी 2003 में पृथ्वी पर वापस लौटते समय यह मिशन फेल हो गया और कल्पना समेत सभी सात क्रू के लोगों की मौत हो गई।
दुनिया भर के हर पूर्वाग्रह को तोड़ते हुए महिला वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष का सफर तय किया है। महिला वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अपने सफर को धीरे-धीरे बढ़ाया और ब्रह्मांड की खोज में उनका योगदान आज भी जारी है। एलीन गोलेव ने नासा के कानून को लिखा। पैगी व्हाइसन ने 665 से ज्यादा समय अंतरिक्ष में गुजारा है। सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में ट्रायथलॉन करने का एक अन्य रिकॉर्ड अपने नाम बनाया हैं। नासा वैज्ञानिक क्रिस्ट्रीना कोच अंतरिक्ष में कुल 328 दिनों तक रहकर एक महिला द्वारा एकल अंतरिक्ष रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं। इन जैसे तमाम महिला वैज्ञानिक हैं जो अंतरिक्ष दुनिया के रहस्य खोलने के लिए इस दिशा में काम कर रही हैं।
स्रोतः