इंटरसेक्शनलजाति कैसे दहेज जातिवादी व्यवस्था का एक अहम हिस्सा है

कैसे दहेज जातिवादी व्यवस्था का एक अहम हिस्सा है

आप में से बहुत से लोगों ने अक्सर अपने आसपास के रीति-प्रथाओं के नाम पर कभी न कभी किसी के मुंह से यह कहते ज़रूर सुना होगा कि हमारी जाति में तो बहुत मान-सम्मान (लेन-देन) होता है। अगर ये शब्द आपने सुने होंगे तो जरा ठहर कर बोलने वाली की जाति और वर्ग को याद कीजिए।

अक्टूबर की एक शाम हमारे पड़ोस में एक नयी कार का आगमन होता है। पूरा परिवार घर से बाहर आकर तालियों से इसका स्वागत करते हैं। गाड़ी की खरीदारी पर खुश होना सामान्य है। लेकिन यहां एक बड़ी रकम देकर खरीदी गई मंहगी कार उस व्यवस्था का परिणाम है जिसकी वजह से इस देश में औसत हर घंटे एक महिला अपनी जान गंवा देती हैं। दरअसल यह चमचमाती कार उस परिवार ने अपनी बेटी की शादी के दहेज के लिए खरीदी है जिस पर आत्म प्रसन्न होकर सब ताली पीट रहे हैं। 

मनुष्य के सामाजिक जीवन में शादी को एक अहम हिस्सा माना जाता है लेकिन यह शादी किस तरह से होगी उसका भी एक तय खांचा बनाया गया है। दहेज प्रथा उसी का एक हिस्सा है। इसी तरह तथाकथित ऊंची जाति, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के लोग दहेज के लेन-देन को अपनी ‘इज्ज़त’ से जोड़कर देखते हैं। आप में से बहुत से लोगों ने अक्सर अपने आसपास कभी न कभी किसी के मुंह से यह कहते ज़रूर सुना होगा कि हमारी जाति में तो बहुत मान-सम्मान (लेन-देन) होता है। अगर ये शब्द आपने सुने होंगे तो जरा ठहरकर बोलने वाली की जाति और वर्ग को याद कीजिए। कहीं न कहीं दहेज की प्रशंसा का संबंध अमुक व्यक्ति की विशेष जाति और वर्ग से निकलकर ज़रूर आता है।

दहेज और जाति प्रथा का संबंध

भारत में अधिकतर लोग शादी अपने धर्म, समुदाय और जाति में ही करते हैं। अधिकतर परिवार अपने बच्चों की शादी अपनी जाति या तथाकथित ऊंची जाति में करना ही पसंद करते हैं। यह चलन न केवल जाति बल्कि दहेज प्रथा का विस्तार है। भारत में जाति की व्यवस्था में सवर्ण समुदाय को सामाजिक स्तर पर अनेक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। शिक्षा,साधनों तक उनकी पहुंच आसान है। तथाकथित ऊंची जातियां आर्थिक तौर पर इस वजह से अधिक संपन्न हैं। आर्थिक विकास की वजह से धनी लोगों का विकास बढ़ता है जिस वजह से दहेज प्रथा का भी विस्तार हुआ है। शादी को जाति का नेटवर्क बनाए रखने लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह से दहेज पर जाति का प्रभाव भी दिखता है।

श्रेष्ठता के नाम पर दहेज की व्यवस्था

भारत में संपन्न-साधन वर्ग और जाति के लोगों में खुद की श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए शादियों में दहेज का चलन ज्यादा है। दहेज प्रथा में जाति के पहलू पर सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नागपुर के जर्नल ऑफ वीमन लॉ एंड पॉलिसी मे कहा गया है कि इस विषय़ पर अधिक रिसर्च में यह सामने आया है कि जाति ने दहेज के पैटर्न को डिजाइन और नियंत्रित किया हुआ है। तथाकथित ऊंची जातियों में हाशिये के समुदायों के मुकाबले दहेज को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसकी एक वजह यह बताई गई है कि हाशिये के समुदाय से आने वाली महिलाएं कृषि श्रम के माध्यम से आर्थिक उत्पादन में लगी हुई है। इस तरह से उनके श्रम का आर्थिक मूल्य दहेज को अपेक्षाकृत कम कर देता है।

उत्पादन में उच्च जाति की महिलाओं के बहिष्कार की वजह से उनकी शादी में दहेज के लेन-देन को ज्यादा दिया जाता है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कहा जाता है कि अच्छे घर की औरतें बाहर जाकर काम नहीं करती है। इससे अलग यह निष्कर्ष भी सामने आया है कि उत्तर भारत के समाज में जाति और वर्ग के प्रभुत्व को कायम करने के लिए दहेज प्रथा को ज्यादा बल दिया जाता है। अलग-अलग शोधों के निष्कर्षों की प्रकृति को देखते हुए यह भी कहा गया है कि भारत में दहेज पर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है। 

दहेज का बढ़ता ग्राफ

तस्वीर साभारः World Bank

वैसे तो शान के नाम पर दहेज जैसी कुरीति का प्रचलन भारत के हर वर्ग-समुदाय में है। वर्ल्ड बैंक के द्वारा जारी एक लेख के मुताबिक़ भारत में अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में ऊंची जातियों के मुकाबले कम दहेज दिया जाता है। साल 1960 के बाद से किए विश्लेषण में दिखाया गया है कि कैसे भारत में तथाकथित ऊंची जातियों ने दहेज प्रथा को विस्तारित किया गया है।

एक लेख में समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास ने दहेज के संदर्भ में ‘संस्कृतिकरण का सिद्धांत’ कहा है। आसान शब्दों में, संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके तहत हाशिये के समुदाय से आनेवाले लोग उच्च जातियों की प्रथाओं की नकल करके अपनी स्थिति में सुधार करना चाहते हैं। इसमें दूसरा सिद्धांत में सिवान एंडरसन द्वारा दिया था जिसमें बताया गया है कि भारत में आर्थिक विकास ने भारत में दहेज को अपनाने में वृद्धि की है।

भारत में अंतरजातीय शादियों का चलन नाममात्र का है। हाल में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ भारत में साल दर साल दहेज के नाम पर हत्याओं के चलन में बढ़ोत्तरी हुई है। द न्यूज मिनट में प्रकाशित ख़बर के अनुसार 2020 के मुकाबले देश में 25 फीसद दहेज के मामले अधिक रजिस्टर्ड हुए हैं। दहेज उन्मूलन अधिनियम 1961 के तहत 13,534 केस अधिक दर्ज हुए हैं।

साल 2020 में एनसीआरबी के अनुसार यह दर 10,046 थी। देश में अंतरजातीय शादी यानि दो अलग-अलग जातियों में शादी की वजह से उसमें दहेज प्रथा का चलन कम है। कई अध्ययनों में यह बात सामने निकलकर आई हैं कि अंतरजातीय शादियों में दहेज के नाम पर लेन-देन का चलन बहुत कम है। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में अंतर जातीय शादी केवल 5.8 फीसदी होती है।

परंपराओं और रिवाज़ के तौर पर लगातार चलने वाले आर्थिक लेनदेन के कारण समाज में कई कुरीतियों को लगातार स्थापित करने का काम किया जा रहा है दहेज की व्यवस्था में आर्थिक संपन्नता जाति के वर्चस्व को स्थापित और पाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। 


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