समाजकानून और नीति सेम सेक्स शादी को मान्यता देने से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

सेम सेक्स शादी को मान्यता देने से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

पितृसत्तात्मक सामाजिक नियमों के मुताबिक औरत-मर्द की जेंडर बाइनरी से परे जो संबंध बनते हैं उसे शादी का नाम नहीं दिया जा सकता है। क्वीयर समुदाय पितृसत्तात्मक, होमोफोबिक समाज के नियमों को तोड़ने का काम करते हैं। 

इंटरनेट पर इन दिनों आदिला नसरीन और फातिमा नूरा की तस्वीरें सुर्खियों में हैं। यह वहीं कपल है जिसे जून 2022 में केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साथ रहने की अनुमति दी थी। इन्हें इनके परिवारवालों ने अलग कर दिया था। इसके बाद अदालत में गुहार लगाने के बाद दोंनो को अदालत की ओर से साथ रहने की अनुमति मिली थी। भारत में सेम सेक्स मैरिज कानूनी न होने की वजह से ऐसे जोड़ों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए एलजीबीटीक्यूएआई+ लोगों के अधिकारों के लिए इस अधिकार की मांग लगातार चलती आ रही है। इसलिए इस मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट सुनावाई के लिए तैयार

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में हैदराबाद के एक गे कपल द्वारा एक याचिका डाली गई। याचिका में उन्होंने सेम सेक्स शादी को मान्यता देने की मांग की है। भारत में होमोसेक्सुअलिटी को भले ही अपराध की कैटेगरी भले बाहर कर दिया गया हो लेकिन अभी तक इनके विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है।

पितृसत्तात्मक सामाजिक नियमों के मुताबिक औरत-मर्द की जेंडर बाइनरी से परे जो संबंध बनते हैं उसे शादी का नाम नहीं दिया जा सकता है। क्वीयर समुदाय पितृसत्तात्मक, होमोफोबिक समाज के नियमों को तोड़ने का काम करते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट से मांग करते हुए कहा गया है कि सेम सेक्स जोड़ों को शादी की मान्यता ‘स्पेशल मैरिज’ एक्ट के तहत दी जाए। साथ ही इसके लिए सभी अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए जाए। याचिकाकर्ता ने अपनी पसंद से शादी करने के अपने मौलिक अधिकार पर जोर दिया है। मौलिक अधिकारों के तहत ही उन्होंने अदालत से सेम सेक्स शादी की अनुमति देने की मांग की है। साथ ही उन्होंने इस मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण करने की गुहार भी लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत डाली गई है। इस अनुच्छेद के तहत भारत का हर नागरिक मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष याचिका डाल सकता है। इस जोड़े के अनुसार अपनी पसंद का विवाह करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है,जो कि एलजीबीटीक्यू+ समुदाय पर भी लागू होना चाहिए।

गौरतलब है इससे पहले 2018 में दायर की गई एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट मान चुका है कि एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोगों के पास भी दूसरे नागरिकों के समान ही मानवीय, मौलिक और संवैधानिक अधिकार है। लेकिन विवाह की संस्था को नियंत्रित करने वाला ढांचा इस समुदाय के लोगों को अपनी पसंद की शादी करने का अधिकार नहीं देता और यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। 

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आईपीसी की धारा 377 को 2018 मे खत्म कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया। हालांकि भारत में अभी भी सेम सेक्स की शादी को कानूनी तौर पर कोई मान्यता नहीं दी गई है।

सेम सेक्स मैरिज के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सरकार को चार हफ्तों के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली का पैनल इस मामले में सुनवाई करेगा और तय करेगी कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी जाए या नहीं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केरल सहित अन्य उच्च अदालत में लंबित याचिका को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। सभी को एक साथ सुना जाएगा। 

एक क्वीयर जोड़े ने अदालत में कहा है कि वह एक-दूसरे से प्यार करते हैं और बीते 17 सालों से एक दूसरे के साथ संबंध में हैं। हम दो बच्चों की परवरिश भी कर रहे है, लेकिन वे कानूनी रूप शादी नहीं कर सकते हैं। उनकी शादी को कानूनी मान्यता न मिलने की वजह से ऐसी स्थितियां पैदा हुई है, जिसके वजह से वे अपने दोनों बच्चों को न ही अपना नाम दे सकते हैं और न ही उनसे कानूनी संबंध रख सकते हैं। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम सेक्स शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की है। 

भारत में सेम सेक्स मैरिज अभी भी वर्जित है

सेम सेक्स मैरिज संबंधों को कई दफा मान्यता और कानूनी दर्जा देने के लिए प्रयास किया जाता रहा है। भारत में  एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की लंब समय से मांग रही है कि उन्हें उनका हक दिया जाए। दरअसल देश के कानून के अनुसार होमोसेक्सुअलिटी को भारतीय दंड संहिता 377 के तहत अपराध की श्रेणी में रखा गया था। इस धारा के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता, तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आईपीसी की धारा 377 को 2018 मे खत्म कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया। हालांकि भारत में अभी भी सेम सेक्स की शादी को कानूनी तौर पर कोई मान्यता नहीं दी गई है।

कानूनी मान्यता से इतर कई जोड़े कर चुके हैं शादी

हाल में सेम सेक्स मैरिज के जोड़ों ने सार्वजनिक तौर पर अपनी शादी रचाई है। इनमें से कई सोशल मीडिया पर भी काफ़ी वायरल हो रहे हैं। एक ख़बर के अनुसार लेस्बियन कपल ने आपस में शादी रचायी। इस जोड़े के अनुसार उन्हें समाज में अपनी स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इसी कड़ी में कई और नाम शामिल हैं जिन्होंने तमाम संघर्षों के साथ रहना चुना। ट्रांस समुदाय के जोड़ों की शादी को संवैधानिक मान्यता मिल जाए ऐसी मांग लंबे समय से बनी हुई है।

अमेरिका में सेम सेक्स मैरिज एक्ट पास 

जहां एक और भारत में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार विमर्श करने के लिए तैयार हो गई है। अमेरिका ने सेम सेक्स मैरिज एक्ट को सुरक्षित रखने के लिए, पास कर दिया गया है। यहां सेम सेक्स शादी दशकों से विवाद का विषय रहा है। अमेरिका की सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी और विपक्षी रिपब्लिकन दोंनो दलों द्वारा ही इस विधेयक का समर्थन किया गया और बीते 29 नवंबर को पास कर दिया गया है। 

दुनिया के अलग-अलग देशों में क्या है कानूनी स्थिति

हालांकि, धीरे-धीरे कई देशों में नागरिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के पक्ष में कानून बनते नज़र आ रहे है। रायटर्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ हाल में सिंगापुर में गे सेक्स संबंध से प्रतिबंध हटाने का फैसला लिया गया है। हालांकि सेम सेक्स मैरिज़ को मान्यता मिलनी अभी बाकी है। एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के मुद्दे बहुत पुराने हैं और दशकों से लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार नीदरलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां साल 2000 में सेम सेक्स शादी को मंजूरी मिली थी। उसके बाद से तकरीबन 17 यूरोपीय देश ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन, बेल्जियम, फिनलैंड, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, माल्टा, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्लोवेनिया और स्विटजरलैंड सेम सेक्स मैरिज को वैध बना चुके हैं।

2020 में इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन (ILGA) द्वारा एक रिपोर्ट पेश की गई थी। जिसमें 69 देशों में क्वीयर संबंधों को प्रतिबंधित बताया गया था और 11 देशों में इसके लिए मौत की सजा के बारे में जानकारी दी गई थी।

आज भी लोग इसे एक ‘बीमारी’ के तौर पर देखते हैं। एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोगों के प्रति यह व्यवहार उन्हें समाज से अलग-थलग कर देता है जिसका सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। इकोनॉमिक्स टाइम्स में प्रकाशित लेख के मुताबिक कई रिसर्च में यह बात सामने निकल कर कि रूढ़िवाद, कलंक, पूर्वाग्रह के चलते क्वीयर समुदाय के लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।

आज के दौर में एलटीजीबीटी समुदाय के लोगों के अधिकारों को कानूनी मान्यता देने की ओर कई देश कदम उठा रहे है। लेकिन आज भी पितृसत्तात्मक समाज में होमोसेक्सुअलिटी को ‘प्रकृति’ के ख़िलाफ़ माना जाता है। पितृसत्तात्मक सामाजिक नियमों के मुताबिक औरत-मर्द की जेंडर बाइनरी से परे जो संबंध बनते हैं उसे शादी का नाम नहीं दिया जा सकता है। क्वीयर समुदाय पितृसत्तात्मक, होमोफोबिक समाज के नियमों को तोड़ने का काम करते हैं। 


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content