इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ कंचन सेंदरे: ग्रामीण इलाके में एक ट्रांस महिला के पत्रकार होने का संघर्ष

कंचन सेंदरे: ग्रामीण इलाके में एक ट्रांस महिला के पत्रकार होने का संघर्ष

पत्रकारिता के साथ-साथ वह ट्रांस समुदाय के लिए काम कर रही हैं। वर्तमान में कंचन सेंदरे ख़बर लहरिया के साथ पत्रकार के तौर पर काम कर रही हैं। वे अपनी रिपोर्ट के ज़रिये ट्रांस समुदाय और महिलाओं के मुद्दों को उठाने का काम कर रही हैं।

कंचन सेंदरे एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। उनका जन्म ओडिशा में हुआ था और वर्तमान में वह छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में रहती हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी छत्तीसगढ़ से हुई है। कंचन ने सामाजिक विज्ञान में मास्टर्स डिग्री तक की पढ़ाई की है। घर-परिवार के लोगों से विचारधारा न मिलने पर कंचन को बहुत कम उम्र में घर छोड़ना पड़ा था। उसके बाद वह ट्रांस समुदाय के साथ रहने लगीं। उनकी टोली से जुड़कर उन्होंने उनके तौर-तरीकों का भी पालन करना शुरू कर दिया।

कंचन को शुरू से ही पढ़ने को शौक था तो उन्हें प्राइवेट पढ़ाई शुरू की और साथ में ट्रांस समुदाय के लिए काम करना भी शुरू कर दिया। बतौर सामाजिक कार्यकर्ता वह ट्रांस समुदाय के मुद्दों पर लंबे समय से काम करती आ रही हैं। वह ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड, छत्तीसगढ़ की सदस्य भी रही हैं। साथ ही कोरोनो में ट्रांसजेंडर में वैक्सीन की सजगता को लेकर भी उन्होंने काम किया। वह ‘संघर्ष एक जीवन समिति’ नाम की संस्था की अध्यक्ष भी हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ वह ट्रांस समुदाय के लिए काम कर रही हैं। वर्तमान में कंचन सेंदरे ख़बर लहरिया के साथ पत्रकार के तौर पर काम कर रही हैं। वे अपनी रिपोर्ट के ज़रिये ट्रांस समुदाय और महिलाओं के मुद्दों को उठाने का काम कर रही हैं। पेश है फेमिनिज़म इन इंडिया के साथ उनकी बातचीत के कुछ अंशः

फेमिनिज़म इन इंडिया: अपने पत्रकार बनने के सफ़र के बारे में बताइए और आपको कब लगा कि आपको पत्रकारिता का करनी है और क्यों? 

कंचन: मैं शुरुआत से ही ट्रांसजेंडर सुमदाय के मुद्दों पर काम करती थी। बहुत सारे रिपोर्टर्स से इस बारे में चर्चा करती थी। मैंने देखा है कि लोग ट्रांसजेंडर के मुद्दों को प्रकाशित ही नहीं करते और लोग उनके मुद्दों को समझते ही नहीं थे। वैसे मेरा शुरू से ही मन था कि मैं पत्रकारिता करूं और साथ ही साथ जो ट्रांसजेंडर समुदाय के मुद्दे हैं, जनहित के मुद्दे हैं उन मुद्दों को मीडिया में रख सकूं। वे चीजें प्रकाशित हो सकें जिससे लोग उसे देखें, सुनें। पत्रकारिता की शुरुआत मैंने छत्तीसगढ़ के एक क्षेत्रीय अख़बार हरिभूमि में रिपोर्टर के तौर पर की थी। उसके बाद पिछले दो साल से मैं ख़बर लहरिया, चम्बल मीडिया के साथ मिलकर काम कर रही हूं। विशेष तौर पर जो भी ट्रासजेंडर समुदाय के मुद्दे हैं उन्हें हम ख़बर लहरिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं। अपने काम के ज़रिये मैं ट्रांस समुदाय को लेकर जो भ्रांतियां है उनको दूर करना चाहती हूं। 

फेमिनिज़म इन इंडिया: आप ग्राउंड रिपोर्टिंग पर भारत के दूर-दराज ग्रामीण इलाके से रिपोर्टिंग करती हैं, बतौर पत्रकार आपको किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

कंचन: चुनौतियों का सामना बहुत ज्यादा करना पड़ता है। पहला तो यह कि जब हम ग्रामीण क्षेत्र में रिपोर्टिंग करने जाते हैं तो उस जगह पर बहुत सारे साधन नहीं होते हैं। मेरा मेन फोकस ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े विषयों पर रहता है। आज भी यह समुदाय अपने आपको अलग-थलग मानता है। ट्रांस समुदाय के लोग छिपकर रहते हैं। लोग बात नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर लोगों को उनकी पहचान के बारे में पता चल जाएगा तो उन्हें समाज से बाहर कर दिया जाएगा। इस तरह से ग्रामीण क्षेत्र से ट्रांसजेंडर समुदाय के मुद्दों पर बातें करना ही बहुत चुनौतीपूर्ण है।  

कोविड-19 वैक्सीन कैंप के दौरान कंचन सेंदरे (नीली साड़ी में)

फेमिनिज़म इन इंडिया: आप पत्रकार के साथ एक एक्टिविस्ट भी हैं, ट्रांस समुदाय को लेकर विशेषतौर पर काम करती हैं। इस दौरान आप किन मुद्दों को लेकर सक्रिय रहती हैं?

कंचन: हम ट्रांस समुदाय, फीमेल सेक्सवर्कर्स और महिलाओं से जुड़े मुद्दे ख़ासतौर पर घरेलू हिंसा के मुद्दों को उठाने की कोशिश करते हैं। ये वर्ग समाज में आज भी उपेक्षित है। मीडिया जल्दी से इनकी बातों को सामने नहीं लाता है। खुद शासन-प्रशासन भी इसे मुद्दा ही नहीं मानता है। चाहे वे ट्रांसजेंडर समुदाय के मुद्दे हो या चाहे वे फीमेल सेक्स वर्कर के मुद्दे हो। मेरा यही फोकस रहता है कि मैं इन दोंनो समुदाय के मुद्दों को उठा सकूं। लोग इस बारे में जानें। इस वर्ग को भी समानता का अधिकार मिले जो एक स्त्री-पुरुष को मिलता है। जैसे बाकी महिलाओं को सम्मान मिलता है वैसे फीमेल सेक्स वर्कर्स को भी सम्मान की नज़रो से देखा जाए। 

इस वर्ग को लेकर लोगों के बीच आज भी पुरानी धारणाएं ही बनी हुई हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां बनी हुई हैं। इस समुदाय को लेकर बहुत डर का माहौल लोगों के अंदर है। लोगों का मानना है कि ट्रांस लोग बहुत आक्रमक होते हैं। ट्रांस समुदाय के लोग बहुत बदतमीज़ होते हैं। ऐसे विचार लोगों के मन में आज भी हैं। उसी तरीके से लोगों के मन में फीमेल सेक्सवर्कर को लेकर भी ये लगता है कि ये हमारे समाज का अंग ही नहीं हैं। अगर हम इनका साथ देंगे तो ये बाकी लोग क्या कहेंगे। ऐसी सोच की वजह से भी लोग इन समुदाय के साथ नहीं आते हैं। इस तरह की समस्या केवल ग्रामीण स्तर पर नहीं है बल्कि शहरों में भी लोगों के भीतर ऐसी ही सोच है।    

फेमिनिज़म इन इंडिया: आप ट्रांस समुदाय के मुद्दों पर मेनस्ट्रीम मीडिया की रिपोर्टिंग और कवरेज को कैसे देखती है? 

कंचन: देखिए, मीडिया एक ऐसी चीज है जो लोगों की आवाज़ बनकर उनकी ताकत की तरह काम करती है। हमारे जो मुद्दे हैं उसे लोगों तक पहुंचाता है, शासन-प्रशासन तक हमारी बात रखता है। लेकिन जैसे मैंने शुरू में ही कहा था वैसे ही मीडिया में भी, बड़े संस्थानों में भी यही कमी देखने को मिलती है कि वे ट्रांसजेंडर समुदाय या फीमेल सेक्सवर्कर्स के मुद्दों को मुद्दा ही नहीं मानते हैं। अगर कोई ट्रांसजेंडर है या फीमेल सेक्स वर्कर है, उनके साथ कोई भी घटना होती है, पुलिस की रेड पड़ती है, गिरफ्तारी होती है या फिर ट्रांसजेंडर कहीं पर भीख मांग रहा है और उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तो मीडिया में इस चीज को प्राथमिकता दी जाती है। अगर कोई ट्रांसजेंडर जनहित के मुद्दों पर काम करता है या कोई फीमेल सेक्स वर्कर जनहित के मुद्दों पर काम कर रही है तो उन चीजों को कभी दिखाया नहीं जाता।

मैं तो ख़बर लहरिया, चम्बल मीडिया का धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने इन मुद्दों को जनहित का मुददा बनाया। वे इन मुद्दों को प्रकाशित करने में हमारी सहायता करते हैं। अगर मैं छत्तीसगढ़ की ही बात करूं तो ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति ज्यादा बदली नहीं है। बहुत कम परिवार ही इस बात को स्वीकार कर पाते हैं। बहुत कम लोग है जो शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। आज हम छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां की शिक्षा व्यवस्था में ऐसे बच्चों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है जिससे उनका संरक्षण किया जा सकें। अधिकतर लोग सेक्सवर्स या नाच-गाने जैसे पेशों पर ही आजीविका के लिए निर्भर हैं। चम्बल मीडिया ने जो हमें स्पेस दिया है उससे हम इस वर्ग में जो आगे बढ़नेवाले लोग हैं उनकी कहानियां कह पा रहे हैं, परेशानी बता रहे हैं। इससे इस वर्ग के लोगों में भी सजगता आ रही है। मीडिया में स्पेस मिलने से लोगों के बीच मौजूद रूढ़िवादी सोच को खत्म करने के लिए काम किया जा सकता है। मीडिया में जब ट्रांसजेंडर समुदाय की बात होगी तो उनके अधिकारों के लिए काम होगा।

फेमिनिज़म इन इंडिया: भारत में बतौर एक ट्रांसजेंडर पत्रकार आप अपने कुछ अनुभव क्या हमारे पाठकों से साझा करना चाहेंगी? आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

कंचन: मैं समाज को यहीं कहना चाहूंगी कि समाज को भी हमें स्वीकार करना चाहिए। आज के युग में एक ट्रांसजेंडर हर वह काम कर सकता है जो एक स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। मैं खुद की ही बात करूं तो अपनी पढ़ाई पूरी करके मैं एक रिपोर्टर के और एक एक्टिविस्ट के तौर पर काम कर रही हूं। हर एक फील्ड में हमें मौका मिलना चाहिए। कोई ट्रांसजेंडर डॉक्टर बनना चाह रहा है, कोई टीचर, इंजीनियर बनना चाह रहा है तो सभी को मौका मिलना चाहिए ताकि हम अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकें। हम दिखा सकें कि हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं। जिस तरह मैं आज पत्रकारिता कर रही हूं उस तरह से कई ऐसे बच्चे हैं जिन्हें हमें बढ़ावा देना चाहिए। ट्रांसजेंडर होने के नाते मौके ही नहीं मिलते है ये मौके मिलने बहुत ज़रूरी हैं। जब हमें मौके मिलेंगे तो हम खुद को बेहतर साबित भी कर सकते हैं।

लोगों को आज भी लगता है कि ट्रांसजेंडर के साथ हम बैठेंगे, उनके साथ चलेंगे तो हम क्या सोचेंगे। लोगों के अंदर डर जैसी अलग-अलग भावनाएं होती हैं तो इस वजह से लोग बचते हैं। हम तो समानता जब मानेंगे जब बस में एक महिला के साथ ट्रांस जेंडर सफर करें और लोगों को परेशानियां न हो। पब्लिक स्पेस में ट्रांस जेंडर की उपस्थित से लोगों को फर्क न पड़े, उन्हें अजीब नज़रों से न देखें, हम उस दिन मानेंगे कि लोगों में समानता है। ट्रांस जेंडर के लोगों के प्रति नकारात्मकता की वजह से इस समुदाय के बच्चें आगे नहीं बढ़ पाते है। काबलियत होने के बावजूद उन्हें मौका नहीं दिया जाता है। ट्रांसजेंडर लोगों के बारे में लोग बात ही नहीं सुनना पसंद करते है। यहां लोगों को थोड़ा सोचना होगा, ट्रांस लोगों को सुनना होगा। जब वन टू वन चर्चा होगी तो पुरानी अवधारणा तोड़ने में मदद मिलेंगी।

फेमिनिज़म इन इंडिया: आपकी नज़र में देश में सभी वर्ग, लिंग और जाति की पहचान रखने वाले लोगों की आवाज़ को मजबूत करने के लिए किस तरह के कदम उठाने चाहिए?

कंचन: मैं ये चाहती हूं कि सरकार जैसे बाकी समुदाय के बारे में सोचती है वैसे ही हमारे बारे में भी सोचने की ज़़रूरत है। आदिवासी महिलाओं के बारे में सोचने की ज़रूरत है। फीमेल सेक्स वर्कर के बारे में भी बात करने की ज़रूरत है। पिछड़ा वर्ग के बारे में बात करनी चाहिए। आज जो योजनाएं है उनमें इनकी भी भागीदारी भी होनी चाहिए। अलग से आरक्षण होना चाहिए। मैं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सरकार के साथ काम करने का भी अनुभव रहा है। मेरा ये मानना है कि जिस तरह से सरकार अन्य जानकारियों के लिए विज्ञापन लगाती है उसी तरह ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़ी बातें और जानकारी के लिए भी काम अपने स्तर पर काम करें। उनके अधिकारों और उनकी योजनाओं के बारे में सबको सूचित करें। ख़ासतौर पर चुनावों में ट्रांस जेंडर की भागीदारी को बढ़ाएं। स्कूलों की जो पाठ्य पुस्तक है उनमें ट्रांसजेंडर के बारे में भी पढ़ाना चाहिए कि ट्रांस जेंडर होते क्या है? उनके मुद्दे क्या है? उन्हें कैसे सम्मान मिलना चाहिए। इन सब पर जानकारी के लिए हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था से शुरू करनी चाहिए।  


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