समाजकानून और नीति साल 2022 में अदालतों द्वारा लिए गए वे फैसले जो हमें पीछे की ओर ले जाते हैं 

साल 2022 में अदालतों द्वारा लिए गए वे फैसले जो हमें पीछे की ओर ले जाते हैं 

न्यायपालिका व्यवस्था पर प्रश्न तब उठता है जब न्यायिक फैसले पक्षपाती हो , जब इन फैसलों में रूढ़ीवादी विचारधारा की बू आती हो, जब पितृसत्तातमक समाज को एक ढाल दी जाती हो। हम सभी का अपनी कानून व्यवस्था और  फैसलों  पर बहुत विश्वास होता है। एक उम्मीद होती है कि यहां से हमें न्याय मिलेगा लेकिन कभी-कभी हमारी अदालतें इस पर खरी नहीं उतरते और हमें काफी निराशा होती है। साल 2022 में भी सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा कुछ ऐसे ही फैसले लिए गए जो हमे पीछे की ओर धकेलते हैं।

न्यायपालिका व्यवस्था पर प्रश्न तब उठता है जब न्यायिक फैसले पक्षपाती हो , जब इन फैसलों में रूढ़ीवादी विचारधारा की बू आती हो, जब पितृसत्तातमक समाज को एक ढाल दी जाती हो। हम सभी को अपनी कानून व्यवस्था और फैसलों पर बहुत विश्वास होता है। एक उम्मीद होती है कि यहां से हमें न्याय मिलेगा लेकिन कभी-कभी हमारी अदालतें इस पर खरी नहीं उतरती हैं और हमें काफी निराशा होती है। साल 2022 में भी देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा कुछ ऐसे ही फैसले लिए गए जो हमे पीछे की ओर धकेलते हैं।

1- बिलकिस बानो की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की

बिलकिस बानो

सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। इस याचिका में बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसके तहत गुजरात सरकार के रिमिशन पॉलिसी के अंतर्गत 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया था। बता दें कि गुजरात के 2002 बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों को गुजरात सरकार की ‘छूट नीति (रेमिशन पालिसी)’ के तहत बीते 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया। साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद पांच महीने की गर्भवती बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उनकी तीन साल की बेटी की भी निर्मम रूप से हत्या कर दी गई थी। साथ ही उनके परिवार के सात सदस्यों की भी बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। जनवरी 2008 में मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने दोषी पाए जाने के बाद इन 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

2- बलात्कारी से शादी का आदेश देकर रेप कल्चर को बढ़ावा

बलात्कारी को ‘दयालु’ बताने वाले फैसले को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने संशोधित किया
सांकेतिक तस्वीर

कोई भी व्यक्ति कानून के पास न्याय की उम्मीद में जाता है। ऐसे उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश की एक नाबालिग सर्वाइवर न्याय के लिए कोर्ट गई तो कोर्ट ने सर्वाइवर को आरोपी के साथ समझौता करने को कह दिया और आरोपी से शादी करने का फरमान दे दिया। भारतीय अदालतों के ऐसे बहुत से फैसले हैं जहां बलात्कार सर्वाइवर को न्याय में दोषी के साथ शादी करने के लिए कह दिया जाता है। दोषी को सज़ा से बरी सिर्फ इसलिए कर दिया जाता है क्योंकि वह सर्वाइवर से शादी करने के लिए राज़ी हो जाता है। ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने पिछले एक महीने में बलात्कार के तीन आरोपियों को इस शर्त पर ज़मानत दी गई कि वे सर्वाइवर से शादी कर लें। 

3. बलात्कारी को दयालु बताकर सजा कम की 

18 अक्टूबर को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के आए एक फैसले के दौरान की गई टिप्पणी काफी निराश करनेवाली थी। अदालत की पीठ ने यह कहते हुए बलात्कार के आरोपी की सजा कम कर दी थी कि आरोपी ‘दयालु’ है कि उसने सर्वाइवर की हत्या नहीं की और इस टिप्पणी के साथ दोषी की आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष की सजा में बदल दी। एक बलात्कारी के प्रति इस तरह की हमदर्दी अदालत की ओर से शर्मिंदगी का विषय है। अदालत के इस फैसले और बलात्कारी को ‘दयालु’ कहने की चौतरफ़ा आलोचना हुई, जिसके बाद अदालत ने इस मुद्दे को स्वतः संज्ञान में लिया। अदालत ने उस टिप्पणी को अनजाने में हुई गलती कहते हुए अपने फैसले में भी सुधार किया है।

4. शादी पर केरल हाई कोर्ट का बयान रूढ़िवादी सोच का प्रदर्शन

केरल हाई कोर्ट
केरल हाई कोर्ट

केरल के एक दंपत्ति ने अलाप्पुझा की फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अपील की। वे दोंनो लोग एक साथ नहीं रहना चाहते। लेकिन फैमिली कोर्ट ने उनका तलाक नामंजूर कर दिया उसके उपरांत दोनो हाई कोर्ट की तरफ रुख किए। हाई कोर्ट का कहना था, “आज कल लोग उपभोक्तावादी हो गए है शादी जैसे रिश्तों को भी ”प्रयोग करो फेंक दो” के फॉर्मूले पर चला रहे हैं। शादी को तोड़ते वक्त लोग बच्चों का भी ध्यान नहीं रख रहे हैं ,और इनकी तादाद बढ़ती जा रही है। लिव इन रिलेशनशिप के मामले बढ़ रहे हैं, ताकि अलग होने पर आसानी से अलविदा कहा जा सके।” जिस तरह अदालत ने यह याचिका खारिज करते हुए पति-पत्नी के रिश्ते और शादी की संस्था की व्याख्या की थी वह ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के विचारों के द्वारा बनाई छवि है जिसमें पति का साथ ही पत्नी का जीवन है, भले ही वह किसी भी स्थिति में हो। कोर्ट के फैसले में नैतिकता की झलक है किंतु जब दो लोग एक साथ रहने को राजी नहीं हैं तो नैतिक फैसले दोंनो के जीवन को और अधिक उलझा सकता है।

5. कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब पर लगे प्रतिबंध से जुड़ी याचिका को जब खारिज किया

"क्या एक लोकतंत्र में हिजाब पहनने की मांग बहुत ज्यादा है?"
“क्या एक लोकतंत्र में हिजाब पहनने की मांग बहुत ज्यादा है?”

कर्नाटक हाई कोर्ट की एक बेंच ने हिजाब मामले में मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में धार्मिक प्रथा का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है। इसके साथ ही राज्य द्वारा स्कूल वर्दी का निर्धारण अनुच्छेद 25 के तहत छात्राओं के हिजाब पर एक उचित प्रतिबंध है, इस प्रकार, कर्नाटक सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत धार्मिक आधार पर तेजी से ध्रुवीकृत हो रहा है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दूसरे धर्मों के लोगों के साथ हिंसा की ख़बरें आम हो रही हैं। न्यायालय को अपना निर्णय देते समय यह बात ध्यान में भी रखनी चाहिए थी कि उसके इस निर्णय से कितने लोग प्रभावित होंगे। इस निर्णय को लेते हुए मुस्लिम महिलाओं का ध्यान नहीं रखा गया है। साथ ही यह मुस्लिम महिलाओं की आजादी को छीनता है।


Comments:

  1. Supriya Tripathi says:

    इन मुद्दों पर हमें पुनः विचार करने की जरूरत है ।

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content