साल 2018 की बात है साक्षी (बदला हुआ नाम) जो पेशे एक निजी कंपनी में एचआर के पद पर कार्यरत हैं। उनका कहना है, “ तब एक कंपनी में मेरी नयी नौकरी की शुरुआत थी और मैं अचानक दफ्तर में बेहोश हो गई थी।” उनकी हालात देखकर उनके ऑफिस में अफरा-तफरी मच गई थी। उनके सहयोगी मेडिकल हेल्प के लिए कॉल करने लगे थे। दरअसल साक्षी की बेहोशी की वजह उनका मेंस्ट्रुअल साइकल का शुरू होना था। साक्षी पीरियड्स के पहले दिन बेहद दर्द की वजह से चक्कर खाकर गिर गई थीं। वह बताती हैं, “मेरी हालात देखकर ऑफिस से मुझे हॉस्पिटल ले जाने की बात होने लगी, जबकि मैं चाहती थी कि मैं घर जाकर आराम करूं। मुझे किसी तरह की डॉक्टरी सलाह की नहीं बल्कि दर्द को राहत देने के लिए आराम की ज़रूरत थी लेकिन यह किसी को समझ नहीं आया।”
कार्यस्थल पर पीरियड्स के दौरान किसी भी कर्मचारी को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े इसके लिए मेंस्ट्रुअल लीव का प्रावधान है। लोगों के लिए कार्यस्थल पर इस तरह के प्रावधान न केवल उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है बल्कि उनका अधिकार भी है। भारत के संदर्भ में बात करें तब मेंस्ट्रुअल लीव का मुद्दा आता है तो पुरुषवादी समाज इसे अपने साथ नाइंसाफी और एक बेतुके प्रावधान के रूप में देखता है। भारतीय रूढ़िवादी समाज में पीरियड्स को एक मुद्दा माना ही नहीं जाता है जिस वजह से अक्सर पुरुषों के मुंह से सुना जाता है कि अगर पीरियड्स लीव ही चाहिए तो नौकरी करनी ही क्यों है! बावजूद इसके देश के कई राज्यों और निजी संस्थानों में हाल के कुछ समय में इससे जुड़े कदम उठाए जा रहे हैं और पीरियड्स लीव को कंपनियां अपनी पॉलिसी में शामिल कर रही हैं।
लेकिन हाल ही राजस्थान में इस विषय में एक अलग पहल सामने आई है। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार राजस्थान समाज कल्याण बोर्ड ने बीते शुक्रवार को पीरियड्स के दौरान महिलाओं के लिए वर्क फॉर्म होम के प्रावधान की सिफारिश की है। इसके तहत राज्य सरकार में महिला कर्मचारियों को पीरियड्स के दौरान घर पर ही रहकर काम करने की सुविधा दी जा सकती है। अब सरकार इस पर जल्द ही फैसला ले सकती है।
समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष अर्चना शर्मा की ओर से कहा गया है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को ऑनलाइन काम करने की सुविधा दी जाए। वे छुट्टी की मांग नहीं कर रहे हैं। जब ई-फाइलिंग का दौर है तो ऐसे में महिलाओं हित के लिए उनको पीरियड्स के दौरान वर्क फ्रॉम होम दिया जा सकता है।
राजस्थान की महिलाएं इस सुझाव को कैसे देखती हैं
पीरियड्स लीव का विषय जब भी सामने आता है तो इस पर बहुत अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं। जिन लोगों को पीरियड्स होते हैं, खुद उनकी राय दो वर्गों में बंटी दिखती है। कुछ लोग इसके पक्ष में नज़र आते हैं तो कुछ इस नीति का विरोध कर, इसे नौकरियों में लैंगिक समानता की राह में बाधा के रूप में देखते हैं। छुट्टी से अलग वर्कफ्रॉम होम के मामले पर महिलाओं की क्या राय है इसको जानने के लिए फेमिनिज़िम इन इंडिया ने राजस्थान से ताल्लुक रखनेवाली कुछ महिलाओं से बात कर उनके विचार जानने की कोशिश की।
राजस्थान समाज कल्याण बोर्ड ने बीते शुक्रवार को पीरियड्स के दौरान महिलाओं के लिए वर्क फॉर्म होम के प्रावधान की सिफारिश की है। इसके तहत राज्य सरकार में महिला कर्मचारियों को पीरियड्स के दौरान घर पर ही रहकर काम करने की सुविधा दी जा सकती है। अब सरकार इस पर जल्द ही फैसला ले सकती है।
पीरियड्स के दौरान वर्कफ्रॉम होम के विकल्प पर राजस्थान के भिवाड़ी में रहनेवाली बेबी कहती हैं, “देखिए अगर इस तरह का कोई फैसला राज्य में लिया जा रहा है तो सच में यह एक अच्छा कदम है। दरअसल, कुछ महिलाओं के लिए पीरियड्स का समय बहुत दर्दनाक होता है। उस दौरान उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर कुछ ऑफिस में घर रहकर काम किया जा सकता है तो इस कम से कम ज़रूरतमंद महिलाओं के लिए अप्लाई करना चाहिए। वैसे भी कोविड के बाद से हम देख चुके हैं कि ऑनलाइन काम करने का चलन बढ़ा है तो यह एक बेहतर विकल्प है। इससे काम भी होगा और छुट्टी भी नहीं होगी। वैसे भी पीरियड्स के नाम पर छुट्टी को पुरुष तो गलत समझते हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं बहाने बनाकर इस तरह की छुट्टी लेती हैं तो इस लिहाज़ से ये सही है काम भी होगा और कर्मचारी पीरियड्स में ज्यादा भागदौड़ से बच जाएंगे।”
राजस्थान के झुंझुनु जिले की रहनेवाली चेतना फिलहाल दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही हैं। इस ख़बर पर उनका कहना है, “हमें यह देखना भी होगा कि यह सुविधा कितने लोगों के लिए है। सरकारी दफ्तर और आईटी सेक्टर की महिलाओं के लिए है जो लैपटॉप या कम्प्यूटर के लिए काम करती है। लेकिन टीचर या नर्स है तो उनको तो काम पर जाना ही होगा। टीचर में भी जब कोविड आया तो ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई लेकिन सरकारी स्कूलों के लिए कोई सिस्टम नहीं है। यह प्रस्ताव सरकारी कर्मचारियों के लिए है। केवल एक छोटा सा हिस्सा इसका लाभ ले सकता है। मैं तो यह कहूंगी कि वही बात हो गई कि हम अधूरी लड़ाई लड़ रहे हैं। कुछ नहीं से तो कुछ ही सही। तो छुट्टी के लिए हमें तो नयी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। मैं इस बात में उस फैसले को याद करती हूं कि बिहार की लालू सरकार ने वैतनिक पीरियड्स लीव का फैसला कैसे लिया होगा। जब एक राज्य सरकार एक फैसला ले सकती है तो केंद्र या दूसरा राज्य भी ऐसा काम कर सकता है। यह एक छोटे वर्ग के लिए है। हालांकि, उनके लिए जो पहले से कई स्तर पर बहुत सक्षम है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित साल 2017 में नीदरलैंड में हुए एक सर्वे में यह बात निकलकर आई थी कि पीरियड्स की वजह से कार्यस्थल और स्कूल से जुड़े कामों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इस सर्वे में 14 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि पीरियड्स की वजह से उन्होंने काम या स्कूल से छुट्टी ली थी। सर्वे में कई लोगों ने कहा था कि उन्होंने अपने लक्षणों को सहन करते हुए काम किया था।
वह आगे कहती हैं, “पीरियड्स के दौरान लीव के सिस्टम को हमें बनाना होगा। बतौर छात्र बात करूं तो मुझे याद है जब हम स्कूल या कॉलेज में पीरियड्स के दौरान नहीं जाते थे तो सब कुछ मिस ही हो जाता है। इस चीज के समाधान के लिए कहा जाता है कि आप टीचर से अलग से पूछ सकते हैं लेकिन दो दिन के पूरे छूटे हुए काम से एक-दो सवाल पूछे जा सकते हैं, पूरा लेक्चर नहीं। साथ वाले भी इसमें ज्यादा कुछ अपडेट नहीं दे सकते हैं। इस पहलू पर कोई चर्चा नहीं होती है। लेकिन महिला कर्मचारियों के लिए जब एक राज्य सरकार कर सकती है तो फिर दूसरी क्यों नहीं इस पर बात होनी चाहिए।”
क्यों पीरियड्स के दौरान इस तरह की सुविधाओं की ज़रूरत है
पीरियड्स होने वाले सभी लोगों के अनुभव एक जैसे नहीं होते हैं। यह कुछ लोगों के लिए बहुत सामान्य होते हैं तो कुछ के लिए बहुत दर्दनाक अनुभव होता है। दर्द और कमजोरी की वजह से कई परेशानी का काम करना पड़ता है। यही नहीं, दुनिया में हुए कई अध्ययनों और सर्वे में यह बात सामने निकलकर आई है कि पीरियड्स के दौरान होनेवाली परेशानियों की वजह से काम पर असर पड़ता है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित साल 2017 में नीदरलैंड में हुए एक सर्वे में यह बात निकलकर आई थी कि पीरियड्स की वजह से कार्यस्थल और स्कूल से जुड़े कामों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इस सर्वे में 14 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि पीरियड्स की वजह से उन्होंने काम या स्कूल से छुट्टी ली थी। सर्वे में कई लोगों ने कहा था कि उन्होंने अपने लक्षणों को सहन करते हुए काम किया था।
भारत में पीरियड्स लीव जैसे मुद्दे पर बात
हाल के कुछ समय की बात करें तो पीरियड्स को लेकर बातचीत के कुछ ऐसे उदाहरण नज़र आते हैं जिसे कह सकते है कि पीरियड्स को लेकर बातचीत की पहल हुई है। इससे सकारात्मक इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भारतीय रूढ़िवाद समाज में पीरियड्स को बीमारी, अपवित्रता जैसी चीजों से जोड़ा जाता है। इस पर खुलकर बात करने को बेशर्मी का तगमा दे दिया जाता है। बीते कुछ समय से नेताओं से लेकर निजी कंपनियों तक में पीरियड्स होने वाले लोगों की आवश्यकताओं पर सार्वजनिक मंचों से बात की गई है। कई राजनीतिक पार्टी के नेता अपनी चुनावी घोषणा पत्रों और रैलियों में पीरियड्स के लिए सैनेटरी नैपकिन को मुहैया कराने का वादा करते नज़र आए हैं। अपनी रैलियों में पीरियड्स के विषय पर बोलते दिखे हैं। इससे अलग पीरियड्स लीव के बारे में बात करे तो समय-समय पर कार्यक्षेत्र में इसकी मांग की जाती है। बिहार राज्य में पीरियड्स लीव का प्रावधान है। जोमेटो जैसी कंपनी भी अपने यहां पीरियड्स लीव की नीति लाई है। इससे पहले साल 2021 में उत्तर प्रदेश में महिला शिक्षक संघ ने पीरियड्स के दौरान छुट्टी की मांग की थी।
राजस्थान के झुंझुनु जिले की रहने वाली चेतना फिलहाल दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही हैं। इस ख़बर पर उनका कहना है, “हमें ये देखना भी होगा कि ये सुविधा कितने लोगों के लिए है। सरकारी दफ्तर और आईटी सेक्टर की महिलाओं के लिए है जो लैपटॉप या कम्प्यूटर के लिए काम करती है। लेकिन टीचर या नर्स है तो उनको तो काम पर जाना ही होगा। टीचर में भी जब कोविड आया तो ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई लेकिन सरकारी स्कूलों के लिए कोई सिस्टम नहीं है। यह योजना का प्रस्ताव सरकारी कर्मचारियों के लिए है। केवल एक छोटा सा हिस्सा इसका लाभ ले सकता है। मैं तो ये कहूंगी कि वहीं बात हो गई कि हम अधूरी लड़ाई लड़ रहे हैं। कुछ नहीं से तो कुछ ही सही। तो छुट्टी के लिए हमें तो नई लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
ये बीते कुछ समय की घटनाएं है जिनके बाद कार्यस्थल पर पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं को एड्रेस करने की बात पर चर्चा हुई है। इसमें एक अलग पहलू की तरह पीरियड्स के दौरान वर्क फॉर्म होम का विकल्प भी कार्यस्थल की नीतिओं को संवेदनशील बनाने का एक कदम दिखता है। लेकिन यह एक सीमित वर्ग और क्षेत्र की बात करता है। इस तरह का कदम कार्यस्थल पर लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ाता दिखाता है लेकिन पीरियड्स लीव वाले मुद्दे को भी भुलाया नहीं जा सकता है। सभी क्षेत्र में वर्कफ्रॉम होम की नीति सटीक नहीं बैठती है। असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले लोगों के पक्ष को देखने की ज़रूरत है। असंगठित क्षेत्र में सीमित वेतन में विषम परिस्थितियों में काम करनेवाले लोगों को भी ध्यान रखना होगा।
पीरियड्स के दौरान बहुत तकलीफों का सामना करने वाले लोगों के लिए पीरियड्स लीव बहुत आवश्यक है। पीरियड्स और वर्कप्लेस की आवश्यकताओं को लेकर बातचीत और नीतियां कार्यस्थल को अधिक समावेशी, काम की गुणवत्ता और व्यवहार को लेकर हर पहलू पर लगातार संवाद करने की आवश्यकता है। यही नहीं इसमें जेंडर की बाइनरी से अलग ट्रांस समुदाय, नॉन बाइनरी लोगों के अधिकारों और ज़रूरतों को भी ध्यान में रखने की आवश्कता है। पीरियड्स के विषय की व्यापकता को देखकर इससे जुड़ी नीतियों को बनाने और क्रियान्वयन के लिए प्रयास होने चाहिए।