हिजाब प्रतिबंध के बाद उडुपी के सरकारी पीयूसी में मुस्लिम छात्रों की आबादी के एडमिशन में 50% से अधिक की गिरावट देखी गई है। साल 2022-23 में, उडुपी के सरकारी PUCs में 186 मुस्लिम छात्रों (91 लड़कियों और 95 लड़कों) ने एडमिशन लिया, जो साल 2021-22 की तुलना में लगभग आधा है। 2021-22 में कुल 388 छात्रों ने (178 लड़कियों और 210 लड़कों) एडमिशन लिया था। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि पिछले वर्ष 5,962 की तुलना में 2022-23 में उडुपी में सरकारी संस्थानों में पीयूसी के लिए रजिस्टर्ड सभी श्रेणियों में लगभग 4,971 छात्र ही पंजीकृत हुए। जबकि जिले में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों (कक्षा 11) में प्रवेश करनेवाले मुस्लिम छात्रों की संख्या में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। वहीं, दूसरी ओर सरकारी पीयूसी में मुस्लिम आबादी के प्रवेश में भारी गिरावट आई है।
एक तरफ जहां सरकारी संस्थानों में मुस्लिम आबादी के रजिस्ट्रेशन में गिरावट आई है तो दूसरी ओर निजी संस्थानों में मुस्लिम आबादी के रजिस्ट्रेशन में बढ़त हुई है। 2022-23 में, निजी पीयूसी में मुस्लिम छात्र-छात्राओं के कुल 927 (487 लड़कियों और 440 लड़कों) रजिस्ट्रेशन हुए जो कि 2021-22 की तुलना में 662 (328 लड़कियों और 334 लड़कों) अधिक हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में सलियाथ ग्रुप ऑफ एजुकेशन के प्रशासक असलम हैकडी के हवाले से कहा है, “हमारे पीयू कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों का नामांकन पहली बार लगभग दोगुना हो गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि हिजाब के मुद्दे ने वास्तव में उन्हें व्यक्तिगत और अकादमिक रूप से प्रभावित किया है।” ऐसा नहीं है कि केवल छात्राओं के माता-पिता ही अपनी लड़कियों को सांप्रदायिक मुद्दों से दूर रखना चाहते हैं। मुस्लिम छात्रों के माता-पिता भी अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित हैं। परिणामस्वरूप छात्रों को भी सरकारी संस्थानों की जगह निजी संस्थानों में प्रवेश करवाया जा रहा है।
बता दें कि बीते साल कर्नाटक के उडुपी के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की छह मुस्लिम छात्राओं को कॉलेज परिसर में उनके हिजाब पहनने के कारण कॉलेज परिसर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। इसके कारण ज़िले में हिजाब पर लगे प्रतिबंध के कारण मुस्लिम छात्राओं के लिए कई मुश्किले खड़ी की जाने लगीं। मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर फाइनल परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी गई। नतीजतन ज़िले की बहुत सी छात्राओं का पूरा साल बर्बाद हो गया। हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के आदेश के विरोध में कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं। हालांकि, हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा और लड़कियों की याचिका को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि हिजाब पहनना मुस्लिम आस्था का ज़रूरी अंग नहीं है। हाई कोर्ट के इस फैसले ने एक विवाद खड़ा कर दिया।
हिजाब प्रतिबंध के बाद उडुपी के सरकारी पीयूसी में मुस्लिम छात्रों की आबादी के एडमिशन में 50% से अधिक की गिरावट देखी गई है। साल 2022-23 में, उडुपी के सरकारी PUCs में 186 मुस्लिम छात्रों (91 लड़कियों और 95 लड़कों) ने एडमिशन लिया, जो साल 2021-22 की तुलना में लगभग आधा है
हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जहां दो न्यायाधीशों की पीठ ने स्प्लिट वर्डिक्ट (अलग-अलग फैसला) दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इस मामले में अपना निर्णय दिया। दोनों जजों ने इस मामले में अलग-अलग फैसला सुनाया। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, वहीं दूसरी ओर जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए फैसला सुनाया। पूरी तरह से विपरीत निर्णय देने के बाद, उपर्युक्त पीठ ने अंत में कहा कि बेंच द्वारा व्यक्त किए गए अलग-अलग विचारों को देखते हुए, एक उपयुक्त बेंच के गठन के लिए मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा।
हिजाब प्रतिबंध ने कैसे मुस्लिम छात्राओं को शिक्षा से दूर किया
हिजाब प्रतिबंध के बाद से ही एक डर जो सबके सामने बार-बार उभर कर आ रहा था वह था कि इस रोक से हज़ारों मुस्लिम छात्राओंकी शिक्षा प्रभावित होगी। शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने पर लगाई गई रोक के कारण अनगिनत मुस्लिम छात्राओं का भविष्य अंधकार में चला जाएगा। इन छात्राओं को पढ़ाई और अपनी परंपरा के बीच चुनाव करने की मुश्किल स्थिति से गुज़रना पड़ेगा। कुछ छात्राओं ने तो पिछले साल ही पढ़ाई छोड़ दी थी, तो कुछ ने परंपरा से समझौता किया था। उन्होंने पढ़ाई की खातिर हिजाब छोड़ दिया।
पिछले साल जस्टिस धूलिया ने हिजाब मुद्दे पर निर्णय देते समय लड़कियों की पढ़ाई के बिंदु को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी की थी कि हिजाब प्रतिबंध का दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह होगा कि हम एक लड़की को शिक्षा से वंचित कर देंगे। एक लड़की जिसके लिए अपने स्कूल के गेट तक पहुंचना अभी भी आसान नहीं है। इसलिए इस मामले को ऐसे भी देखा जाना चाहिए। एक लड़की को अपने स्कूल तक पहुंचने के लिए पहले से ही बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह अदालत खुद के सामने यह सवाल रखेगी कि क्या हम एक लड़की की शिक्षा से इनकार करके उसके जीवन को बेहतर बना रहे हैं क्योंकि वह हिजाब पहनती है।
पिछले साल सितंबर में पीयूसीएल की एक रिपोर्ट ‘कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध का प्रभाव’ प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के कर्नाटक राज्य सरकार के आदेश और निर्देश को बरकरार रखने वाले उच्च न्यायालय के फैसले के कारण कर्नाटक भर में हजारों मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा तक पहुंच छीन ली गई। संगठन ने यह भी आरोप लगाया कि कर्नाटक सरकार ने कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंधित है यह सुनिश्चित करने के अपने एक फैसले में अपने संवैधानिक दायित्व को पूरी तरह से नज़रअंदाज कर दिया। सरकार के इस एक निर्देश के कारण कई छात्रों को शिक्षण संस्थान छोड़ना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया कि कोर्ट के फैसले के बाद छात्र स्कूल, कॉलेज जाने से डरने लगे। रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र किया गया कि कैसे इस पूरी घटना के बाद हिंदू समुदाय के लड़के वॉट्सऐप पर धमकाने वाले मेसेज पोस्ट करने लगें।
छात्राओं की सालों की मेहनत बर्बाद होती नज़र आ रही है
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में मुसलमानों की साक्षरता दर, जो भारत की आबादी का 15.4% है, 57% से थोड़ा अधिक थी। इसके अतिरिक्त, महिला साक्षरता दर केवल लगभग 52% थी जो देश में सबसे कम है। इतने सालों से, देश भर में खासकर ग्रामीण इलाक़ों में और पिछड़े इलाक़ों में ज़मीनी स्तर पर सरकार, लोग और सामाजिक कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करने के लिए लड़ रहे थे कि लड़कियों को स्कूलों में जाने और अपने स्वयं के अधिकारों को सुरक्षित करने का अवसर दिया जाए। अब जब लोग आखिरकार शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं और लड़कियों को स्कूल भेज रहे हैं, तो कुछ ऐसा सामने आता है जो इस प्रक्रिया को बाधित करने लगता है। ऐसे में सरकार को और विरोध करने वालों को यह समझना ज़रूरी है कि इससे निश्चित रूप से मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का कदम इस मुद्दे पर सालों की प्रगति को कम कर देगा।
पिछले साल जस्टिस धूलिया ने हिजाब मुद्दे पर निर्णय देते समय लड़कियों की पढ़ाई के बिंदु को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी की थी कि हिजाब प्रतिबंध का दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह होगा कि हम एक लड़की को शिक्षा से वंचित कर देंगे। एक लड़की जिसके लिए अपने स्कूल के गेट तक पहुंचना अभी भी आसान नहीं है। इसलिए इस मामले को ऐसे भी देखा जाना चाहिए।
हिजाब मामला एक ऐसे समय में उठाया गया है जब देश की बहुसंख्यक ताकतें अल्पसंख्यकों और हाशिये की पृष्ठभूमि के लोगों के खिलाफ़ होती जा रही हैं। धार्मिक स्वतंत्रता के सिकुड़ने की चिंताओं के अलावा, मुस्लिम लड़कियों के माता-पिता हिजाब प्रतिबंध के बाद कैंपस में बार-बार होने वाली धमकियों और हिंसा से भी चिंतित हैं। दक्षिणपंथी भीड़ द्वारा एक युवा मुस्लिम लड़की को स्कूल कैंपस में घेरने का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसने मुस्लिम माता-पिता के डर को और बढ़ा दिया। पीयूसीएल की रिपोर्ट में कुछ मुस्लिम छात्राओं ने यह भी बताया कि कुछ लड़कों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से परेशान किया और उनके लिए “ओ हिजाब” और “ओ बुर्का” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। कुछ कॉलेजों ने छात्रों को बचाने के बजाय उत्पीड़न को जारी रखा। यही कारण है कि माता-पिता अपने बच्चों के एडमिशन को सरकारी संस्थानों से हटा कर निजी संस्थानों की ओर ले जा रहे हैं और जो माता-पिता निजी संस्थानों की फीस नहीं भर सकते हैं उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा से दूर कर दिया है।
कुछ मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनने में सहज महसूस करती हैं। दूसरे लोगों को इसे उत्पीड़न के संकेत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। दुनियाभर में महिलाएं जो चाहती हैं उसे पहनने और अपना जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अगर एक युवा मुस्लिम लड़की अपनी मर्जी का इस्तेमाल करना चाहती है तो यह अन्य लोगों के लिए, मंत्रियों के लिए चिंता का विषय क्यों है? शिक्षा से इसका क्या लेना-देना है? हिजाब पहनकर आई हुई लड़की कैसे किसी दूसरे धर्म के लोगों को कैसे प्रभावित कर सकती है या कैसे किसी की शिक्षा को प्रभावित कर सकती है यह बात समझ से परे है।