समाजख़बर भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा का माहौल और बुलडोज़र द्वारा प्रयोजित न्याय: ह्यूमन राइट्स वॉच

भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा का माहौल और बुलडोज़र द्वारा प्रयोजित न्याय: ह्यूमन राइट्स वॉच

भारत में लगातार मुसलमान और कमजोर वर्ग के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। भारतीय अधिकारी, प्रशासन अपनी कार्रवाई से उन्हें परेशान कर रहे हैं। ख़ासतौर पर हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार वाले राज्यों में मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अपमानजनक और भेदभावपूर्ण नीतियों का प्रयोग किया जा रहा है। हाल ही में जारी हुए ‘ह्यूमन राइट्स वॉच रिपोर्ट 2023’ में भारत के लिए यह कहा गया है।

हिजाब पहने स्कूल लड़कियां और स्कूल का दरवाजा उनके लिए बंद, बुलडोज़र चलाकर प्रशासन का लोगों के घर तोड़ना, जातिगत हिंसा, लिचिंग, धार्मिक हिंसा, लैंगिक हिंसा की न जाने कितनी ख़बरें भारत में हो रहे मानवाधिकार उल्लघंन की तस्वीर को दिखाती हैं। भारत में न्याय, अधिकार अब अपवाद बनते जा रहे हैं। विशेषतौर पर जब सामने अल्पसंख्यक या सत्ता से सवाल करनेवाले लोग हो। सोचिए अगर कोर्ट का आदेश न आता तो शायद हल्द्वानी से भी वहीं तस्वीरें आती जैसी ख़ासतौर से उत्तर प्रदेश से आती रहती हैं। देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार बुलडोजर शांति का प्रतीक है। 

भारत में लगातार मुसलमान और कमजोर वर्ग के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। ख़ासतौर पर बीजेपी की सरकार वाले राज्यों में मुसलमान और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अपमानजनक और भेदभावपूर्ण नीतियों का प्रयोग किया जा रहा है। हाल ही में जारी हुई ‘ह्यूमन राइट्स वॉच रिपोर्ट 2023’ में भारत के लिए यह कहा गया है। रिपोर्ट में भारत की मौजूदा धार्मिक राजनीतिक माहौल पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अधिकारी ने ईसाइयों और विशेषतौर पर दलित और आदिवासी समुदाय पर जबरन धर्म परिवर्तन कानून का दुरुपयोग किया है।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने दुनिया के 100 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा करते हुए 712 पेज की वर्ल्ड रिपोर्ट 2023 जारी की है। यह रिपोर्ट का 33वां संस्करण है। भारत की वर्तमान मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता ज़ाहिर करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अधिकारी अपनी ताकतों का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। रिपोर्ट में देश में मानवाधिकारों के हनन और चिंताओं का विवरण देते हुए साल 2022 की अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा कार्रवाई, लोगों के घर ढहाना, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और राजनीतिक रूप से प्रेरित लोगों पर आपराधिक आरोपों की अलग-अलग घटनाओं का वर्णन किया गया है। रिपोर्ट में जम्मू एवं कश्मीर के हालातों, पुलिस हिंसा, दलित, धार्मिक अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई का ज़िक्र किया गया है।

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा

अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट हो या मौजूदा भारतीय हालात, ये दोंनो ही यह स्पष्ट करते हैं कि देश में इस समय धर्म केंद्रित राजनीति हो रही है। हिंदू धर्म के तथाकथित संरक्षण के नाम पर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रशासनिक स्तर पर तुरंत न्याय के तौर पर मुसलमान समुदाय के लोगों के घरों को तोड़ा जा रहा है। हाल ही में इसी तरह का मामला उत्तराखंड के हल्द्वानी से सामने आया था। मीडिया में प्रकाशित ख़बर जहां अतिक्रमण को हटाए जाने के लिए हाईकोर्ट की ओर से 4,365 लोगों के घरों को अवैध कर उन्हें तोड़ने का आदेश सामने आया था। इस फैसले से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग प्रभावित थे जिस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई।

रिपोर्ट में बीते साल ही मुस्लिम छात्राओं के हिजाब मामले में सर्वोच्च अदालत का इस मामले में फैसला न देने का भी ज़िक्र भी किया गया है। इसमें राज्य द्वारा हिजाब पहननेवाली छात्राओं पर प्रतिबंध और सुप्रीम कोर्ट के इस मामले पर फैसले देने में विफलता को भी दर्ज किया गया है।

एचआरडब्ल्यू  की रिपोर्ट में मुसलमानों के साथ कार्रवाई के तौर पर उनके घर गिराने की कई घटनाओं का ज़िक्र किया है। ऐसी कई घटनाओं के ज़िक्र में कहा गया है जिनमें मुसलमानों को सजा देकर सबक सिखाने जैसा संदेश दिया गया है। इसमें गुजरात में एक हिंदू त्योहार में बाधा डालने के आरोप में मुस्लिम युवक की सरेआम पुलिस द्वारा पिटाई करना जैसी घटनाएं शामिल हैं।

रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर तोड़ने की कई घटनाओं का ज़िक्र किया गया है। अप्रैल में, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में सरकारी तंत्र ने सांप्रदायिक मुद्दों पर कार्रवाई करते हुए ज्यादातर मुसलमानों की संपत्ति को सजा के नाम पर ध्वस्त किया है। बीबीसी की ख़बर के अनुसार भाजपा की नेता नुपुर शर्मा के पैंगबर मोहम्मद पर दिए विवादित बयान के बाद उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन करने के बाद स्थानीय प्रशासन ने मुस्लिम घरों को ध्वस्त किया। रिपोर्ट में इस तरह की कार्रवाई पर कहा गया है कि सरकारी तंत्र ने इन ढांचों के अवैध होने का दावा कर उनके विध्वंस को सही ठहराने की कोशिश की है। 

इतना ही नहीं रिपोर्ट में भाजपा के नेताओं के बयान के बारे में भी कहा है जो विध्वंस और मुस्लिम वर्ग के ख़िलाफ़ कार्रवाई का समर्थन करते दिखते हैं। ऐसे कदमों से साफ दिखता है कि इसका मकसद मुसलमानों को सामूहिक सजा देना है। इस तरह की घटनाएं प्रत्यक्ष तौर पर दिखाती हैं कि भारत में भारत में मुसलमानों को सिर्फ उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर फौरी तौर पर सजा देने का चलन बढ़ा है।

अतिक्रमण हटाने के नाम पर मुसलमानों को उजाड़ा जा रहा है। लगातार इस तरह की घटनाओं के ज़रिये योजनाबद्ध तरीके से उन्हें मानसिक तौर पर आघात दिया जा रहा है। कुछ मामलों में अदालतों की दखल के बाद कार्रवाई को रोका गया है। नहीं तो लगातार प्रशासन और पुलिस खासतौर पर अल्पसंख्यक वर्ग के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई कर रही है।

सिविल सोसायटी के ख़िलाफ़ माहौल

भारत में सिविल सोसायटी, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और मीडिया की आज़ादी को लेकर भी ह्यूमन राइट्स वॉच रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं। देश में लगातार सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला जा रहा है। उन्हें ज़मानत देने में देरी की जा रही है। स्वतंत्र मीडिया के लोगों को भी निशाना बनाकर उनपर कार्रवाई की जा रही है। एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में तीस्ता सीतलवाड की गिरफ्तारी, पत्रकार सिद्दकी कप्पान, ऑल्ट न्यूज़ के जुबैर अहमद और रूपेश कुमार के मामलों का भी ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लोगों के अधिकार की बात करने वाली आवाज़ को दबाया जा रहा है। इतना ही नहीं सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के विदेश जाने पर रोक को अभिव्यक्ति की आज़ादी के ख़तरे में शामिल किया है। भारत में मीडिया की स्वतंत्रता लगातार खत्म होती जा रही है। पिछले साल वर्ल्ड फ्रीमड प्रेस इंडेक्स 2022 में भारत ने 180 देशों में से 150वें नंबर पर था। इस रिपोर्ट में पत्रकारों के ख़िलाफ़ हिंसा, राजनीतिक मीडिया का बंटवाटा और मीडिया ऑनरशिप के तहत भारत में प्रेस पर संकट के तौर पर दर्ज किए गए।

अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा

बीते साल की कई ऐसी घटनाओं को ज़िक्र करते हुए कहा गया है कि भारत में सरकारी तंत्र ने राजनीति से प्रेरित आरोप लगाकार सरकार के आलोचक पत्रकारों को गिरफ्तार किया है। एचआरडब्ल्यू ने भारत के लिए कहा कि मानवाधिकारों के मानकों का उल्लंघन करने में चीन की नकल करन की कोशिश की है। भारत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हीं उल्लंघनों में से कई की नकल की है, जिनसे चीनी सरकार ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दमन किया। जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ व्यवस्थित भेदभाव, शांतिपूर्ण अंसतोष का दमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल। इतना ही नहीं मानवाधिकारों को लागू करने वाले संस्थानों के कामकाज में बहुसंख्यक पूर्वाग्रहों वाला भी कहा है। 

इतना ही नहीं रिपोर्ट में भाजपा के नेताओं के बयान के बारे में भी कहा है जो विध्वंस और मुस्लिम वर्ग के ख़िलाफ़ कार्रवाई का समर्थन करते दिखते हैं। ऐसे कदमों से साफ दिखता है कि इसका मकसद मुसलमानों को सामूहिक सजा देना है।

कुछ अन्य फैसले

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के बारे में चिंता जताते हुए कहा है कि भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। इस रिपोर्ट में बिलकिस बानो के आरोपियों की रिहाई के बारे में भी कहा गया है। हम आपको बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 से पहले गुजरात में बिलकिस बानो के साथ बलात्कार के दोषियों को रिहा कर दिया गया था। इसमें आगे सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई का मामला सामने आया था। इसमें ऑनलाइन मुस्लिम महिलाओं की प्रोफाइल बनाकर उनकी बोली लगाई जा रही थी। एक के एक बाद इस तरह की घटनाओं के बाद ख़ासतौर पर मुखर मुस्लिम महिलाओं को डराने-धमकाने के लिए किया।  

छात्रवृत्ति पर रोक और प्रभावित अल्पसंख्यक समुदाय

रिपोर्ट में बीते साल ही मुस्लिम छात्राओं के हिजाब मामले में सर्वोच्च अदालत का इस मामले में फैसला न देने का भी ज़िक्र किया है। इसमें राज्य द्वारा हिजाब पहनने वाली छात्राओं पर प्रतिबंध और सुप्रीम कोर्ट के इस मामले पर फैसले देने में विफलता को भी दर्ज किया गया है। अगर दूसरे पहलू से देखें तो ये मामले सीधे तौर पर मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा तक की पहुंच को प्रभावित कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार हिजाब विवाद के बाद कर्नाटक विधानसभा में एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि कर्नाटक में पीयू कॉलेज से 1000 से अधिक हिजाब पहनेवाली लड़कियों ने कॉलेज छोड़ दिया है।

इससे अलग ख़बर यह है कि भारत की केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के लिए छात्रवृत्ति को रोकने का फैसला किया। इसका सीधा असल ऐसे समुदाय के बच्चों की शिक्षा से वंचित करना है। इसी तरह की द वायर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार गुजरात में प्री-मैट्रिक छात्रवृति पर रोक के बाद मुस्लिम माता-पिता और छात्रों का संघर्ष बढ़ गया है। ये सरकार की ओर से लिए ऐशे फैसले हैं जो सीधे तौर पर मुस्लिम समुदाय के भविष्य यानी बच्चों को प्रभावित करते हैं। 

भारत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हीं उल्लंघनों में से कई की नकल की है, जिनसे चीनी सरकार ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दमन किया। जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ व्यवस्थित भेदभाव, शांतिपूर्ण अंसतोष का दमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल।

दलित, आदिवासियों के ख़िलाफ़ हिंसा

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लगातार दलित और आदिवासी समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून को गलत इस्तेमाल से ईसाइयों, ख़ासकर दलित और आदिवासी समुदाय के ईसाइयों को निशाना बनाा जा रहा है। जुलाई में एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन की शिकायत पर उत्तर प्रदेश में छह दलित ईसाई महिलाओं को जबरन धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दलित और आदिवासी महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा होने का ज्यादा खतरा है। 

भारत सरकार के आधिकारिक एनसीआरबी के जारी आंकड़ों के मुताबिक़ 2021 में दलितों के ख़िलाफ़ 50,900 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की तुलना में 1.2 फीसदी अधिक है। ठीक इसी तरह आदिवासियों के ख़िलाफ़ 6.4 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। आदिवासी समुयदाय के ख़िलाफ़ अपराध के 8,802 मामले सामने आए। एनसीआरबी आंकड़ों के मुताबिक़ मध्य प्रदेश, राजस्थान में दलितों के ख़िलाफ़ सबसे अधिक अपराधिक मामले दर्ज हुए। मीड़िया की अलग-अलग ख़बरों के मुताबिक़ बीते कुछ ही दिनों में दलितो के साथ दुर्व्यवहार और हिंसा की कई वारदातें सामने आई है। उत्तराकाशी में एक दलित युवक की मंदिर में घुसने पर पिटाई की गई।

लैंगिक पहचान और भारतीय अदालत के फैसले

एचआरडब्लूय ने अपनी रिपोर्ट में कई पहलुओं पर भारत में मानवाधिकारों की स्थिति की बात की है। इसमें लैंगिकता के पहलू में भारतीय अदालतों के कुछ फैसलों की प्रशंसा भी की है। एचआरडब्ल्यू रिपोर्ट में लेस्बियन, गे बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदायों और महिलाओं के अधिकारों के सशक्तिकरण की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण बताया है। अदालन ने परिवार की परिभाषा के विस्तारीकरण करने उसमें होमोसेक्सुअल जोड़े, एकल माता-पिता को अन्य परिवारों में शामिल करने को सही कदम बताया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के अबॉर्शन से जुड़े फैसले को भी प्रगतिशील बताया है। सुप्रीम कोर्ट के सभी महिलाओं के लिए चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति जो भी हो, सिसजेंडर महिलाओं के साथ अन्य व्यक्तियों को भी उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो अबॉर्शन का अधिकार दिया। अदालत के इस दिशा में दिए फैसलों को प्रगतिशील बताया गया है।

एचआरडब्ल्यू ने कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी निशाना बनाकर फैसले ले रही है। इस पूरी रिपोर्ट में विशेष तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ सत्तारूढ़ भाजपा में बढ़ते बहुसंख्यक हमलों का विवरण दिया। तमाम मामले दिखाते भी हैं कि पुलिस कार्रवाई से लेकर प्रशासन, सरकार का रवैया अल्पसंख्यकों के प्रति क्रूर होता जा रहा है। 


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content