“हेलो सर, हेलो मैडम” हम अपने स्कूल में सबसे पहले लैंगिक पहचान के आधार पर इस तरह के संबोधनों से ही परिचित होते हैं। स्कूल में स्थापित किए गए जेंडर बाइनरी इस व्यवहार को फिर हर स्तर पर जीवनभर अपनाने लगते हैं। लेकिन एक समावेशी समाज जिसमें हर जेंडर के व्यक्ति को समान व्यवहार मिले उसके लिए जेंडर न्यूट्रल भाषा और व्यवहार को महत्व दिया जाना बहुत ज़रूरी है। स्कूलों को इस तरह के कदम उठाने के लिए सबसे सही जगह माना जाता है क्योंकि स्कूल पहली जगह होती है जहां बच्चा अपने परिवार के बाद किसी सामाजिक वातावरण से परिचित होता है। किसी भी तरह के मूल्यों को स्थापित करने में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसीलिए समावेशी मूल्य और समानता की सीख के लिए स्कूलों के माध्यम से ऐसे व्यवहार की शिक्षा देना बहुत ज़रूरी है।
लैंगिक समानता का व्यवहार स्थापित करने के लिएहाल ही में इस दिशा में कदम उठाते हुए केरल में फैसला लिया गया है कि अब वहां स्कूल में ‘मैडम’ और ‘सर’ की जगह केवल ‘टीचर’ शब्द का इस्तेमाल संबोधन के लिए किया जाएगा। केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (केएससीपीसीआर) के निर्देश के अनुसार अब से स्कूल में शिक्षकों से संवाद के लिए बच्चों को केवल ‘टीचर’ शब्द का ही इस्तेमाल करना होगा। केरल चाइल्ड राइट्स पैनल ने निर्देश में कहा है कि सर या मैडम की जगह टीचर अधिक जेंडर न्यूट्रल टर्म है।
पैनल की ओर से यह निर्देश राज्य के सभी स्कूलों में लागू करने के लिए कहा गया है। बाल अधिकार आयोग ने यह भी कहा है कि सर और मैडम की जगह टीचर शब्द का संबोधन बच्चों में समानता बनाए रखने में मदद कर सकता है। यह कदम बच्चों में शिक्षक के प्रति लगाव को भी बढ़ाएगा। भाषा के आधार पर होनेवाला लैंगिक भेदभाव और जेंडर आधारित पूर्वाग्रहों को खत्म करने के लिए केरल का यह फैसला एक ज़रूरी कदम नज़र आता है।
केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (केएससीपीसीआर) के निर्देश के अनुसार अब से स्कूल में शिक्षकों से संवाद के लिए बच्चों को केवल ‘टीचर’ शब्द का ही इस्तेमाल करना होगा। केरल चाइल्ड राइट्स पैनल ने निर्देश में कहा है कि सर या मैडम की जगह टीचर अधिक जेंडर न्यूट्रल टर्म है।
जेंडर न्यूट्रल भाषा क्यों ज़रूरी है?
पांरपरिक तौर पर लोगों पर लोग यही सोचते हैं कि केवल दो तरह के जेंडर होते हैं- पुरुष और महिला। लेकिन जेंडर बाइनरी की इस अवधारणा से इतर अलग-अलग जेंडर आइडेंटिटी के लोग भी हमारे समाज में मौजूद हैं। बहुत से लोग खुद को नॉन बाइनरी, ट्रांस, क्वीयर और अलग-अलग पहचान से संबोधित करते हैं। इस संदर्भ में लैंगिक पहचान की विविधता को भाषा में शामिल करने और एक समावेशी समाज बनाने के लिए जेंडर न्यूट्रल भाषा और शिक्षा का होना बहुत ज़रूरी है।
केरल सरकार जेंडर न्यूट्रल शिक्षा के लिए लगातार कदम उठा रही है। साल 2021 में राज्य में लगातार महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के बाद मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज्य की स्कूली शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने के लिए संशोधित करने के लिए कहा था।
स्कूल में जेंडर न्यूट्रल भाषा की अहमियत पर बात करते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कस्बे जानसठ में एक निजी स्कूल में पढ़ानेवाली पूजा चौधरी का कहना है, “शिक्षा एक सबसे महत्वपूर्ण टूल है जिसके ज़रिये हम विविधताओं को जान सकते हैं। हम खुद को शिक्षित कर अनेक चीजों के बारे में समझ बना सकते हैं। जेंडर की अवधारण को लेकर बात करें तो हमारी भाषा हमारे समाज का ही हिस्सा है। यही वजह है कि नर्सरी लेवल में आज भी “मम्मी की रोटी गोल और पापा का पैसा” जैसी बात पढ़ाई जाती है। स्त्री-पुरुष की अवधारणा तो बच्चों के दिमाग में यहीं से गढ़ी जा रही है। अगर हमारे सिलेबस और स्कूल में जेंडर न्यूट्रल भाषा का इस्तेमाल होगा तो हमारे बच्चे खुद-ब-खुद इससे आगे सोच पाएंगे। वे एक तय तरीके से हो रही चीजों से आगे निकल पाएंगे, मान्यताओं पर सवाल उठाएंगे। विविधता लाने के लिए हमें जेंडर न्यूट्रल को एजुकेशन के पूरे सिस्टम में लाने की ज़रूरत है।”
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी कोशिशें
लैंगिक समानता का मतलब है कि सभी लोगों को समान अधिकार मिले, समाज में उन्हें स्वीकृति मिले। इसके लिए हमें परंपराओं और पूर्वाग्रहों को खत्म कर प्रगतिशील कदमों को उठाना होगा। जेंडर की बनाई अवधारणा को खत्म करने और केवल स्त्री और पुरुष तक ही दो लैंगिक पहचान के महत्व देने वाली सोच से आगे निकलना होगा। भारत में इस दिशा में कुछ समय से कोशिशें हुई हैं जिससे संस्थान, स्कूल आदि के माहौल को जेंडर के आधार पर अधिक संवेदनशील और समावेशी बनाया जा सके। केरल सरकार जेंडर न्यूट्रल शिक्षा के लिए लगातार कदम उठा रही है। साल 2021 में राज्य में लगातार महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के बाद मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज्य की स्कूली शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने के लिए संशोधित करने के लिए कहा था।
हैदराबाद स्थित ‘द नैशनल एकेडमी ऑफ द लीगल स्टडीज एंड रिसर्च’ ने बीते वर्ष यह घोषणा की थी जहां जेंडर और सेक्सुअल अल्पसंख्यकों लोगों के लिए समावेशी शिक्षा की नीति पेश की थी। यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया था कि भारत के अधिकतर विश्वविद्यालयों में वॉशरूम और हॉस्टल में जेंडर न्यूट्रल स्पेस की बहुत कमी है। हमारा उद्देश्य यूनिवर्सिटी कैंपस, हॉस्टल को एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोगों के लिए सहज बनाना है।
ऑउटलुक में छपी ख़बर के मुताबिक साल 2021 में केरल राज्य सरकार ने स्कूल में जेंडर न्यूट्रल यूनिफार्म को अपनाने की बात सामने आई थी। हालांकि और मुद्दों की तरह इस पर राजनीति के बाद सरकार की ओर यह स्पष्ट किया गया कि वह सब स्कूलों को इसका पालन करने को नहीं कह रही है। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार केरल सरकार ने राजनीतिक विरोध के बाद जेंडर न्यूट्रल शिक्षा के लिए उठाए कदमों से पीछे हटकर कुछ फैसलों को वापिस लिया। इतना ही नहीं केरल में इसी दिशा में एक और कदम उठाया गया और नये अकादिम वर्ष 2023-24 से केवल लड़के या लड़कियों के स्कूल को बंद करके को-स्कूल एजुकेशन को बढ़ावा देगा। लेकिर बड़े स्तर पर राज्य सरकार को राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
जेंडर न्यूट्रल एजुकेशन को प्रमोट करने के लिए भारत में जितने कदम उठाए जाा रहे हैं उतना ही उनका विरोध भी हो रहा है। साल 2021 की इंडिया टुडे की ख़बर के मुताबिक एनसीआरटीई ने जेंडर न्यूट्रल ट्रेनिंग मैन्यूअल को अपनी साइट्स से हटा लिया था। दरअसल एनसीईआरटी ने एजुकेशन सिस्टम को समावेशी बनाने के लिए यह मैनुअल बनाया था जिसे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा विसंगतियों को दर्ज कराने के बाद हटा लिया गया था। इसी दिशा में एक अन्य पहल हैदराबाद में स्थिति यूनिवर्सिटी स्तर पर भी की गई।
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार हैदराबाद स्थित ‘द नैशनल एकेडमी ऑफ द लीगल स्टडीज एंड रिसर्च’ ने बीते वर्ष यह घोषणा की थी। जहां जेंडर और सेक्सुअल अल्पसंख्यकों लोगों के लिए समावेशी शिक्षा की नीति पेश की थी। यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया था कि भारत के अधिकतर विश्वविद्यालयों में वॉशरूम और हॉस्टल में जेंडर न्यूट्रल स्पेस की बहुत कमी है। हमारा उद्देश्य यूनिवर्सिटी कैंपस, हॉस्टल को एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोगों के लिए सहज बनाना है।
स्कूल में जेंडर न्यूट्रल भाषा की अहमियत पर बात करते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कस्बे जानसठ में एक निजी स्कूल में पढ़ानेवाली पूजा चौधरी का कहना है, “नर्सरी लेवल में आज भी “मम्मी की रोटी गोल और पापा का पैसा” जैसी बात पढ़ाई जाती है। स्त्री-पुरुष की अवधारणा तो बच्चों के दिमाग में यहीं से गढ़ी जा रही है। अगर हमारे सिलेबस और स्कूल में जेंडर न्यूट्रल भाषा का इस्तेमाल होगा तो हमारे बच्चे खुद-ब-खुद इससे आगे सोच पाएंगे। वे एक तय तरीके से हो रही चीजों से आगे निकल पाएंगे, मान्यताओं पर सवाल उठाएंगे। विविधता लाने के लिए हमें जेंडर न्यूट्रल को एजुकेशन के पूरे सिस्टम में लाने की ज़रूरत है।”
भारत में लैंगिक समानता और हर लिंग के पहचान रखनेवाले लोगों के लिए समावेशी माहौल को बनाने के लिए शैक्षिक स्तर पर कुछ प्रयास बीते दिनों में किए जा रहे हैं। लेकिन साथ ही इस तरह के फैसलों के विरोध के बाद यह भी स्पष्ट होता है कि परंपराओं के जकड़े जाल और राजनीति फायदे की वजह से इन प्रयासों को आगे बढ़ने में बाधा भी आ रही है। केरल हो या राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिक्षण परिषद का जेंडर न्यूट्रल शिक्षा के विस्तार पर कदम पीछे करना या मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना दिखाता है कि भारत में सभी लिंग के लोगों के आधार पर समावेशी शिक्षा, व्यवहार और वातावरण बनाने के लिए अभी बहुत इंतजार करना होगा।