समाजमीडिया वॉच लैंगिक हिंसा की कवरेज में क्षेत्रीयता का महत्व| #GBVInMedia

लैंगिक हिंसा की कवरेज में क्षेत्रीयता का महत्व| #GBVInMedia

हरी क्षेत्र के मुकाबले गांव और कस्बों में होनेवाली लैंगिक हिंसा से जुड़ी ख़बरों की संख्या बहुत बदल जाती है। रिसर्च में शामिल हिंदी के तीनों अख़बारों के जिन-जिन संस्करणों की ख़बरों का विश्लेषण हमने किया है उनमें यह अंतर मिला है।

एडिटर्स नोट: यह लेख हमारे अभियान #GBVInMedia के तहत प्रकाशित किया गया है। यह लेख हमारी रिपोर्ट लैंगिक हिंसा और हिंदी मीडिया की कवरेजका ही एक हिस्सा है। इस अभियान के अंतर्गत हम अपनी रिपोर्ट में शामिल ज़रूरी विषयों को लेख, पोस्टर्स और वीडियोज़ के ज़रिये पहुंचाने का काम करेंगे।

भारतीय मीडिया में गांव और शहर के क्षेत्र के आधार पर कवरेज में अंतर को बड़े स्तर पर देखा जाता है। हिंदी मीडिया में लैंगिक हिंसा की ख़बरों का अध्ययन करते समय देखा गया कि यह अंतर और बड़ा हो जाता है। शहरी क्षेत्र के मुकाबले गांव और कस्बों में होनेवाली लैंगिक हिंसा से जुड़ी ख़बरों की संख्या बहुत बदल जाती है। रिसर्च में शामिल हिंदी के तीनों अख़बारों के जिन-जिन संस्करणों की ख़बरों का विश्लेषण हमने किया है उनमें यह अंतर मिला है। लैंगिक हिंसा के मुद्दे पर किस तरह क्षेत्रीयता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है हम ख़बर लहरिया की इस रिपोर्ट के इस अंश को देखकर समझ सकते हैं।

रिसर्च में शामिल अमर उजाला में अप्रैल के महीने में लैंगिक आधारित हिंसा की हमनें 63 ख़बरों का विश्लेषण किया जिनमें से ग्रामीण क्षेत्र से केवल 17 ख़बर दर्ज की गई हैं। इसी अख़बार में मई में लैंगिक हिंसा की ख़बरों के विश्लेषण के दौरान कुल 51 ख़बरों में से ग्रामीण क्षेत्र की केवल 13 ख़बरें हमें मिली। जून के महीने में अमर उजाला में 45 ख़बरों में से केवल 9 ख़बरें ग्रामीण क्षेत्र से पाई गई। 

रिसर्च में शामिल दूसरे हिंदी अख़बार राष्ट्रीय सहारा में क्षेत्र के आधार पर ख़बरों के विश्लेषण पर अप्रैल में कुल 54 महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध की ख़बरों में से 13 ग्रामीण क्षेत्र से दर्ज की गई। इसमें आगे मई में 54 ख़बरों के क्षेत्र के आधार पर विश्लेषण करने पर 22 ख़बरें गांव-देहात से दर्ज की गई। जून के माह में राष्ट्रीय सहारा की 61 लैंगिक हिंसा पर आधारित ख़बरों का विश्लेषण किया गया जिसमें 21 ख़बरें ग्रामीण क्षेत्र की मिली। 

राजस्थान पत्रिका के रिसर्च में शामिल किए गए संस्करण में मई में 18 लैंगिक हिंसा आधारित ख़बरों का विश्लेषण किया गया जिसमें तीन ख़बर ग्रामीण क्षेत्र की है। जून में राजस्थान पत्रिका की 14 ख़बरों के विश्लेषण में केवल तीन ख़बर ग्रामीण क्षेत्र की मिली। तीनों हिंदी अख़बारों में केवल राष्ट्रीय सहारा की तीन ख़बर ऐसी दर्ज की गई है जिनमें हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं की गोपनीयता को बरकरार करने के नाम पर सर्वाइवर के नाम को बदला गया है। इसके अलावा ख़बर के विश्लेषण में किसी तरह की सावधानी नहीं बरती गई है। इन तीन ख़बरो में से एक ग्रामीण क्षेत्र की है और अन्य दो शहरी क्षेत्र की घटना की है।   

इस मुद्दे पर ख़बर लहरिया की मैनेजिंग एडिटर मीरा देवी कहती हैं, “शहरों में लैंगिक हिंसा की घटनाएं होती हैं तो उन्हें मीडिया का कवरेज जिस स्तर पर मिलता है, वैसा ज़रूर होना चाहिए। लेकिन लैंगिक हिंसा की कुछ घटनाओं को एक ‘ब्रैंड’ की तरह देखा जाता है और फिर हर बार उनका ही उदाहरण दिया जाता है। लेकिन वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं लेकिन इनकी कवरेज इस स्तर पर नहीं होती है।”

वह आगे कहती हैं, “मैं जिस जगह से आती हूं बुंदेलखंड से, वहां तो औरतें अपने साथ हुई हिंसा की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करवा पाती हैं। यहां सर्वाइवर्स पर ही दोष मढ़ दिया जाता है, उन्हें धमकियां मिलती हैं, अगर केस दर्ज भी हो जाए तो वापस लेने का दबाव डाला जाता है। यहां सत्ता का बेहद प्रभाव है। यह फर्क ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में साफ़-साफ़ नज़र आता है। थोड़ा बदलाव अब ग्रामीण क्षेत्रों में आ रहा है। हमने मुद्दा उठाया है कि मेनस्ट्रीम मीडिया कभी ग्रामीण क्षेत्रों को कवर नहीं करती। पत्रकारिता के क्षेत्र में ग्रामीण मुद्दों की कवरेज होनी चाहिए। यह बेहद ज़रूरी है। मैं यह बात पैनल्स, चर्चाओं, पत्रकारिता स्कूलों से लेकर हर जगह दोहराती हूं कि ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर रिपोर्टिंग करनी बहुत ज़रूरी है।”


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