समाजविज्ञान और तकनीक वाहन सुरक्षा क्रैश डमी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नदारद क्यों?

वाहन सुरक्षा क्रैश डमी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नदारद क्यों?

1970 के दशक से कार सुरक्षा निर्धारित करने के लिए क्रैश टेस्ट डमीज़ का इस्तेमाल किया जाता रहा है। अबतक सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली डमी औसत पुरुषों द्वारा बनाई और उनके वजन पर आधारित रही है।

गाड़ी को चलाते समय स्टेरिंग किसके हाथ में कार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन उसको इस्तेमाल करने वाले पर होता है। यानी गाड़ी को इस्तेमाल करने वाले पर उसके आकार, मॉडल, तकनीक का बहुत असर पड़ता है। लैंगिक असमानता की वजह से तकनीक और उसकी सेवाओं में महिला उपभोक्ता के पक्ष को नज़रअंदाज कर दिया जाता है। ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में जेंडर गैप कितना ज्यादा इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते साल पहली बार गाड़ियों के लिए होने वाले क्रैश टेस्ट के लिए महिला डमी का निर्माण हुआ। 

सड़क हादसों में महिलाओं को ज्यादा जोखिम

वर्ल्ड बैंक.कॉम में प्रकाशित एक लेख के अनुसार कार दुर्घटना में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को 47 फीसदी ज्यादा चोट लगने का जोखिम रहता है। महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा गर्दन में चोट (व्हिपलैश इंजर्री) होने की संभावना होती है। ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में जेंडर गैप की वजह से महिलाओं के लिए सड़क पर चलना और वाहनों का इस्तेमाल करना ज्यादा खतरनाक है। यातायात सुरक्षा में सुधार के लिए नये-नये पैमाने और सुधार किए जा रहे लेकिन इन पैमानों में महिला पक्ष को नज़रअंदाज किया जाता आ रहा है। सड़कों पर दौड़ने वाली कारों के लिए क्रैश-टेस्ट डमी 50 से अधिक सालों से इस्तेमाल होती आ रही है लेकिन जेंडर की विभिन्नता को अनदेखा करते हुए।

बीते वर्ष स्वीडिश इंजीनियरों की एक टीम ने टेक परीक्षण के क्षेत्र में महिलाओं की अनदेखी को खत्म करने हुए पहली महिला डमी का निर्माण किया। यह डमी 162 सेमी (5फीट 3इंच) लंबी और 62 किलो है, जो महिला आबादी का अधिक प्रतिनिधित्व है।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में हुए शोध के मुताबिक़ किसी कार की आमने-सामने की दुर्घटना में सीट बेल्ट बांधने के बावजूद महिलाओं को गंभीर चोट लगने का खतरा पुरुषों से 73 फीसदी ज्यादा होता है। साफ है इसकी पहली वजह यह है कि ऑटोमोबाइल सुरक्षा के लिए बने नियमों के तहत कार कंपनियां जिस तरह के सुरक्षा मानक तय करती है वो केवल पुरुषों ध्यान में ही रखकर बनाए जाते हैं बजाय महिलाओं के। इसी लिए सुरक्षा मानको को जांचने के दौरान फीमेल क्रैश डमी की बहुत आवश्यकता है।

क्रैश टेस्ट डमी क्या है?

तस्वीर साभारः CNN

एक क्रैश टेस्ट डमी या डमी एक फुल स्केल एंथ्रोपोमोर्फिक परीक्षण उपकरण (एटीडी) है जो यातायात टकराव के दौरान मानव शरीर के आयाम, वजन अनुपात और आर्टिक्यूलेशन का अनुकरण करता है। डमी का इस्तेमाल शोधकर्ताओं, ऑटोमोबाइल और विमान निर्माताओं द्वारा दुर्घटना में किसी व्यक्ति की चोटों की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। आधुनिक डमी मुख्यतौर पर डेटा रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे कि प्रभाव का वेग, क्रशिंग फोर्स, झुकना, मुड़ना और शरीर का टॉर्क आदि।  

शुरुआत में इस तरह के परीक्षण के लिए मानव शव या जानवरों का इस्तेमाल किया जाता था। उसके बाद आधुनिक बदलाव होने पर मानव शरीर की डमी का निर्माण किया गया। नए परीक्षण और बदलावों के लिए इन डमी में लगातार बदलाव होते रहे लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के लिए आधार ऐसे मानकों में इस्तेमाल नहीं हुए। 1970 के दशक से कार सुरक्षा निर्धारित करने के लिए क्रैश टेस्ट डमीज़ का इस्तेमाल किया जाता रहा है। अबतक सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली डमी औसत पुरुषों द्वारा बनाई और उनके वजन पर आधारित रही है। हालांकि तमाम आंकड़े और शोध यह साफ करते है कि महिलाएं कुल ड्राइवरों का आधा प्रतिनिधित्व करती हैं और दुर्घटनाओं के लिए चोट लगने की संभावना अधिक होती है।

जो डमी कभी-कभी महिलाओं के प्रॉक्सी के तौर पर इस्तेमाल की जाती है, वह पुरुष डमी का छोटा सा संस्करण होता है, जो मोटे तौर पर 12 साल की लड़की के आकार का होता है। इस प्रॉक्सी डमी का आकार 149 सेमी (4फीट 8 इंच) लंबी और 48 किलो वजन वाला है।

दशकों से पुरुष केंद्रित परीक्षण की वजह से महिलाओं को अपने जीवन की कीमत चुकानी पड़ी है। तमाम सबूत होने के बावजूद कि महिलाओं के शरीर कार दुर्घटनाओं में पुरुषों से इतर प्रतिक्रिया करते हैं बावजूद इसके दर्घटना परीक्षणों में उपयोग किये जाने वाले मानकों में एक औसत पुरुष शरीर के अनुपात पर आधारित रहे हैं। बीसीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जो डमी कभी-कभी महिलाओं के प्रॉक्सी के तौर पर इस्तेमाल की जाती है, वह पुरुष डमी का छोटा सा संस्करण होता है, जो मोटे तौर पर 12 साल की लड़की के आकार का होता है। इस प्रॉक्सी डमी का आकार 149 सेमी (4फीट 8 इंच) लंबी और 48 किलो वजन वाला है। यह 1970 के दशक के मध्य के मानकों के अनुसार सबसे छोटी पांच फीसदी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है।  

पहली महिला डमी का निर्माण

तस्वीर साभारः Board Panda

बीते वर्ष स्वीडिश इंजीनियरों की एक टीम ने टेक परीक्षण के क्षेत्र में महिलाओं की अनदेखी को खत्म करने हुए पहली महिला डमी का निर्माण किया। यह डमी 162 सेमी (5फीट 3इंच) लंबी और 62 किलो है, जो महिला आबादी का अधिक प्रतिनिधित्व है। तकनीक शब्द के तौर पर कहे तो सीट मूल्याकंन उपकरण के लिए औसत महिला के शरीर के आधार पर डिजाइन तैयार किया गया। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार स्वीडिश नैशनल रोड एंड ट्रांसपोर्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में ट्रैफिक सुरक्षा नियमों के लिए काम करने वाली प्रोफेसर एस्ट्रिड लिंडर के अनुसार, “नई महिला क्रैश टेस्ट डमी नियामकों द्वारा अपनाए जाने वाले परीक्षण विधियों को बदल देगी जिसके परिणामस्वरूप हम बेहतर वाहन सुरक्षा की उम्मीद कर सकते हैं।” 

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में हुए शोध के मुताबिक़ किसी कार की आमने-सामने की दुर्घटना में सीट बेल्ट बांधने के बावजूद महिलाओं को गंभीर चोट लगने का खतरा पुरुषों से 73 फीसदी ज्यादा होता है।

सड़क पर गियर बदलती, अपने नाम से वाहन खरीदती, पेशे के रूप में ड्राइवर बनती महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। भारत के साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ उस वर्ष कुल नए ड्राइविंग लाइसेंस 10.5 मिलियन से अधिक थे जिनमें से 14.9 प्रतिशत महिलाओं के थे। हर साल यह संख्या बढ़ती जा रही है। भारत के बड़े शहरों में काम पर जाने के लिए महिला खुद ड्राइव कर रही हैं और ड्राइवर के तौर पर काम करके भी महिलाएं पैसा कमा रही हैं। कुल मिलाकर महिलाओं की वाहन इस्तेमाल करने में सख्या बढ़ रही है इसलिए महिलाओं के अनुसार सुरक्षा मानकों को महत्व दिया जाना बहुत आवश्यक है। महिला क्रैश डमी इसी दिशा में एक आवश्यक कदम है जिसकी मदद से वाहनों की सुविधाओं, आकार, सुरक्षा को बहुत ही बेहतर तरीके से डिजाइन किया जा सकता है, जिससे सड़कें महिला चालकों के लिए सुरक्षित हो जाती है।


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