इंटरसेक्शनलजेंडर छोटे शहरों में लड़कियों के लिए तकनीक से जुड़ना हर रोज़ का संघर्ष

छोटे शहरों में लड़कियों के लिए तकनीक से जुड़ना हर रोज़ का संघर्ष

पूरे समय में मेरा अनुभव रहा लड़कियों के लिए समाज और परिवार में तकनीकी शिक्षा को लेकर सकारात्मक बदलाव लाना बेहद ज़रूरी है। साथ ही साथ उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए छोटे शहरों में एक सुरक्षित जगह का होना भी एक अहम भूमिका निभाता है।

आज का समय जो विज्ञान और उसके आविष्कारों, डिजिटल दुनिया से घिरा है जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट और ऑनलाइन माध्यमों से अपना काम और विकास न केवल काम के लिए बल्कि शिक्षा, व्यापार, जानकारी, हुनर, व्यवसाय, वाणिज्य कई क्षेत्र में कर रही हैं। कोविड ने इंटरनेट और ऑनलाइन माध्यमों पर हमारी निर्भरता और अधिक बढ़ा दी है। लेकिन इस डिजिटल दुनिया की एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि आज भी महिलाओ और लड़कियों के लिए इस विकास के अवसर में जगह बना पाना किसी चुनौती से कम नहीं है।

आज भी लड़कियों द्वारा तकनीक या विज्ञान के काम को करने को लेकर मजाक बनाया जाता है। उन पर कई मीम बनाए जाते हैं कि वे तकनीकी काम नहीं कर सकती हैं, ये सिर्फ पुरुषों का काम है। ऐसा बिना यह सोचे किया जाता है कि इससे पितृसत्तात्मक धारणा को कितनी मज़बूती मिलती है और यही सोच लड़कियों को मिलने वाले अवसर में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि जहां तकनीकि काम करने वाले पुरुष होते है वहीं कोई महिला काम कर रही हो तो भी पुरुष के काम को महत्व दिया जाता है महिला के काम को कम आंका जाता है।

इतिहास में कुछ महिलाओं की कंप्यूटर बनाने में अहम भूमिका रही है। जैसे एडा लवलेस जो गणितज्ञ थीं, जिन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को तैयार किया। एडमिरल ग्रेस हूपर जो कंप्यूटर प्रोग्रामर थीं जिन्होंने पहला कंप्यूटर लैंग्वेज कंपाइलर तैयार किया। हेडी लमार जो वैज्ञानिक थीं जिन्होंने संदेश भेजने के लिए माइक्रो तरंगों की खोज की जिससे आज के समय में सारी वायरलेस डिवाइस चल रही है इसके साथ ही हेडी ने एक ऐसा सिस्टम बनाया जो संदेशों को सुरक्षित रखने में काम आता है जिसे आज भी मिलट्री द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इन महिलाओं को वह पहचान नहीं मिली जो उनके पुरुष समकक्षों को हासिल है। आज भी इस क्षेत्र में महिलाओं की संख्या नगण्य है।

राजस्थान राज्य के अजमेर ज़िले में लड़कियों के लिए काम करनेवाली संस्था ‘महिला जन अधिकार समिति’ में ज़मीनी स्तर  पर लड़कियों के साथ उनकी तकनीकी और डिजिटल शिक्षा पर काम करने का मेरा चार साल का अनुभव रहा है। जब मैंने सेंटर में कंप्यूटर सीखने आनेवाली अलग-अलग समुदाय की लड़कियों के साथ जेंडर पर गहराई से अनुभवों को लेकर बात की तो जाना कि किस तरह वे अपनी जिंदगी में हर कदम पर लैंगिक असमानता को सह रही हैं। कैसे लैंगिक असमानता की सबकी अपनी कहानी है और इसका सबसे बड़ा प्रभाव उनकी शिक्षा, ख़ासकर तकनीकी शिक्षा पर है। छोटे शहरों और कस्बों में एक बात जो नज़र आती है वह यह कि लड़कियों की शिक्षा पर कम खर्च किया जाता है। ज्यादातर लड़कियां अपनी पढ़ाई ओपन से करती हैं।

हमारी संस्था में केवल लड़कियों के लिए ही महिला प्रशिक्षकों द्वारा निशुल्क कंप्युटर प्रशिक्षण के साथ-साथ डिजिटल शिक्षा दी जाती है। यहां आनेवाली काफ़ी लड़कियों के सपने विज्ञान और तकनीक क्षेत्र से जुड़े हैं। जैसे डॉक्टर, यूट्यूबर, नर्स, बैंक में नौकरी, तकनीक में नौकरी, नेवी जैसे क्षेत्रों में जाने के सपने के साथ वे कंप्यूटर सीखने आती हैं। जब इन सपनों को जेंडर से जोड़कर देखते हैं तो पाते हैं कि अधिकतर लड़कियों को दसवीं के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़े विषय लेने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है।

जो लड़कियां कंप्यूटर सीखकर जाती हैं उनका कहना है कि जब वे बाकी लड़कियों को सिखाती हैं, समाज के हर वर्ग के साथ काम करती हैं इससे गांव में लड़कियों की डिजिटल शिक्षा के लिए एक सकारात्मक माहौल ज़रूर बना है। आज गांव के बड़े-बुजुर्ग भी इस पर बात करने लगे हैं।

यहां किसी लड़की की मां उससे पिता से छिपकर उसे कंप्यूटर सीखने भेजती है तो कोई अपने घरेलू काम से समय निकालकर सीखने आती है तो कोई परिवार से लड़कर। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लड़कियां आज के डिजिटल वर्ल्ड में अपनी जगह बनाने, सपने पूरे करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए रोज संघर्ष करती हैं। यहां आनेवाली अधिकतर लड़कियों का मानना है कि अगर वह लड़की होने के बजाय लड़का होती तो उन्हें अवसर आसानी से मिल पाते और कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता।

तनु इसी सेंटर में कंप्यूटर सीखने आती हैं। वह बताती हैं कि जब उसने अपनी स्कॉलरशिप के पैसों से ऑनलाइन पढ़ाई के लिए फोन खरीदा तो वह परिवार का सामूहिक फोन बन गया और उसे इस्तेमाल करने ही बहुत कम दिया गया। वह आगे कहती हैं, “लड़कों को तकनीक या विज्ञान के क्षेत्र में काम करने के अवसर आसानी से मिल जाते हैं। जबकि लड़कियों की बाते आते हैं परिवार और समाज यह कहता है कि तकनीक या विज्ञान लड़कियों के लिए नहीं है। लड़कियों को घर में रहकर काम करना और शादी करके ससुराल जाना होता है। लड़कियां फोन चलाएंगी तो बिगड़ जाएंगी किसी के साथ भाग जाएंगी।”

यहां किसी लड़की की मां उससे पिता से छिपकर उसे कंप्यूटर सीखने भेजती है तो कोई अपने घरेलू काम से समय निकालकर सीखने आती है तो कोई परिवार से लड़कर। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लड़कियां आज के डिजिटल वर्ल्ड में अपनी जगह बनाने, सपने पूरे करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए रोज संघर्ष करती हैं। यहां आनेवाली अधिकतर लड़कियों का मानना है कि अगर वह लड़की होने के बजाय लड़का होती तो उन्हें अवसर आसानी से मिल पाते और कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता।

पूरे समय में मेरा अनुभव रहा लड़कियों के लिए समाज और परिवार में तकनीकी शिक्षा को लेकर सकारात्मक बदलाव लाना बेहद ज़रूरी है। साथ ही साथ उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए छोटे शहरों में एक सुरक्षित जगह का होना भी एक अहम भूमिका निभाता है। तकनीकी शिक्षा कैसे छोटे शहरों में महिलाओं को फायदा पहुंचाती है इसका एक उदारहण पिंकी गुर्जर हैं जो टेडवो की ढाणी गांव से हैं डिजिटल शिक्षा लेकर अपने और समुदाय में विभिन्न योजनाओं की जानकारी मोबाइल द्वारा लोगों को देती हैं और सेवाओं का लाभ पाने में मदद करती हैं। वहीं हमारी संस्था में कंप्यूटर सीखने आती दीपिका सोनी बताती हैं कि ऑनलाइन खरीददारी करना सीखकर उन्हें अपने क्षेत्र में छोटे बिजनेस करने में मदद मिली और उनकी कमाई हुई जिससे उन्होंने अपना स्मार्टफोन खरीदा।

जो लड़कियां कंप्यूटर सीखकर जाती हैं उनका कहना है कि जब वे बाकी लड़कियों को सिखाती हैं, समाज के हर वर्ग के साथ काम करती हैं इससे गांव में लड़कियों की डिजिटल शिक्षा के लिए एक सकारात्मक माहौल ज़रूर बना है। आज गांव के बड़े-बुजुर्ग भी इस पर बात करने लगे हैं। समुदाय की कई लड़कियां मोबाइल और डिजिटल शिक्षा के ज़रिये इस सोच को चुनौती दे रही हैं कि तकनीक और मोबाइल का इस्तेमाल उन्हें नहीं करना चाहिए। धीरे-धीरे अब कई लड़कियों को स्मार्टफोन भी उनके परिवार द्वारा दिया जा रहा है ताकि वे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ पाए।


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