समाजविज्ञान और तकनीक विज्ञान के क्षेत्र में बौद्धिक संपदा के अधिकारों से दूर महिलाएं

विज्ञान के क्षेत्र में बौद्धिक संपदा के अधिकारों से दूर महिलाएं

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी एक नॉन-फिजिक्ल संपत्ति है जो किसी व्यक्ति या निगम के पास होती है। इस तरह की बौद्धिक संपदा का अधिकार व्यक्तियों को उनके दिमागी उत्पादन के आधार पर मिलता है। अर्थात इंसान अपनी सोच-विचार, शोध और कल्पनाओं से किसी भी क्षेत्र में जो उत्पाद तैयार करता है।

इक्कीसवीं सदी के दौर में भी लैंगिक असमानता की जकड़ मज़बूती से बनी हुई है। बात जब विज्ञान और तकनीकी जगत की आती है तो इसे पुरुषों का क्षेत्र ही माना जाता है। हमारे समाज में विज्ञान को ‘काबिलियत और बुद्धिमता’ से जोड़ा जाता है और पितृसत्तात्मक सोच कहती है कि इस पर केवल पुरुषों का ही ‘हक’ है। इस सोच की वजह से विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में लैंगिक असमानता बड़े स्तर पर मौजूद है।

सदियों से चले आ रहे असमानता के इस पैटर्न के कारण विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को उनकी क्षमता और योगदान के मुकाबले कम सराहना मिलती है। महिला वैज्ञानिकों को उनकी रचनात्मकता, अविष्कार, नवाचार और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण और समानता के लिए हर साल विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डे) मनाया जाता है। साल 2023 के विश्व बौद्धिक संपदा दिवस का थीम वीमन और आईपीः त्वारित नवाचार और रचनात्मकता है।

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी क्या है

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी एक नॉन-फिजिक्ल संपत्ति है जो किसी व्यक्ति या निगम के पास होती है। इस तरह की बौद्धिक संपदा का अधिकार व्यक्तियों को उनके दिमागी उत्पादन के आधार पर मिलता है। अर्थात इंसान अपनी सोच-विचार, शोध और कल्पनाओं से किसी भी क्षेत्र में जो उत्पाद तैयार करता है। बौद्धिक संपदा का अधिकार उसके अविष्कार या कला के स्वामित्व को संरक्षित करने के लिए है। इससे सृर्जनकर्ता को उसका मालिकाना हक मिलता है। वह अपने काम को उत्पाद के रूप में इसके इस्तेमाल के लिए लाइसेंस या बेच सकता है। बौद्धिक संपदा किसी व्यक्ति के बौद्धिक विकास को दिखाती है। पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिजाइन आदि बैद्धिक संपदा के प्रकार हैं। 

ग्लोबल जेंडर गैप इन इनोवेशन एंड क्रिएटिविटी रिपोर्ट में साल 1999 से 2020 के बीच अंतरराष्ट्रीय पेटेंट आवेदनों में से महिलाओं की भागीदारी का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार केवल 23 फीसदी महिलाएं कुल प्रतिभागियों में शामिल थी और अविष्कारों की सूची में केवल 13 महिलाएं शामिल हुईं।

बौद्धिक संपदा अधिकार और जेंडर गैप

महिलाओं को अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों को हासिल करने और उनकी रक्षा करने के लिए लैंगिक भेदभाव, कार्यस्थल पर भेदभाव और इन अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस वजह से पेटेंटिंग में लैंगिक अंतर बहुत ज्यादा है। डब्ल्यूआईपीओ के आंकड़ों के मुताबिक़ साधारण पैकेजिंग से लेकर मोबाइल फोन और ऑटोमोटिव एक्सटीरियर तक उत्पादों के लुक और फील के पीछे पांच डिजाइनरों में से केवल एक महिला का योगदान है।

ग्लोबल जेंडर गैप इन इनोवेशन एंड क्रिएटिविटी रिपोर्ट में साल 1999 से 2020 के बीच अंतरराष्ट्रीय पेटेंट आवेदनों में से महिलाओं की भागीदारी का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार केवल 23 फीसदी महिलाएं कुल प्रतिभागियों में शामिल थी और अविष्कारों की सूची में केवल 13 महिलाएं शामिल हुईं। महिलाओं की अधिक भागीदारी बायोटेक्नोलॉजी, भोजन, केमेस्ट्री और फार्मास्यूटिकल्स जैसे सेक्टर में है और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में सबसे कम पेटेंट उनके नाम है। महिला अन्वेषकों में निजी क्षेत्र की तुलना में अकादमिक ज्यादा प्रचलित है। वे अधिकतर पुरुषों की लीड टीम या अकेले काम करती हैं। मौजूदा रूझानों को देखते हुए इस क्षेत्र में लैंगिक समानता लाने में 2061 साल तक का समय लग सकता है। 

महिलाओं को कला और रचनात्मक कामों में ज्यादा काम करती है लेकिन पेटेंट को लेकर वे यहां भी पीछे हैं। साल 2022 के डिजाइन गतिविधि के प्राइमरी आंकड़ों के मुताबिक़ ग्लोबल इंटस्ट्री डिजाइन में लगभग 21 फीसदी महिला डिजाइनर हैं जो दुनिया भर में कुल डिजाइन एक्टिविटी का 80 प्रतिशत कवर करती है। यह दर साल 2001 के मुकाबले दुगनी हो गई है लेकिन पुरुषों के मुकाबले आने में 2099 साल तक का समय लगेगा। 

बौद्धिक संपदा अधिकारों के यह अंतर पाटने में लंबा समय लगेगा। साल 1865 में फरमीना ओर्दूनो स्पेन की पहली महिला बनी थीं जिन्हें बिना किसी पुरुष की साहयता के अविष्कार आवेदन करने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने दूध वितरण के लिए एक गाड़ी का पेटेंट अपने नाम कराया था। तमाम भेदभाव के बावजूद विज्ञान के क्षेत्र महिलाएं अपने काम में लगी हुई हैं। महिला दिमाग की बदौलत पूरी तरह से सौर ऊर्जा संचालित घर से जुड़ा पेटेंट दर्ज हुआ है। वहीं ग्रेस हूपर ने कंप्यूटर प्रोग्राम टेक्नोलॉजी का पेटेंट अपने नाम से किया है। ऐसे ही आइसक्रीम बनाने या विंडस्क्रीन वाइपर जैसे पेटेंट महिलाओं के नाम हैं। यह लिस्ट बहुत बड़ी है लेकिन उनके काम और अविष्कार के अनुसार छोटी है। साल 2021 में पीसीटी अनुप्रयोगों में सूचीबद्ध 16.5 फीसदी महिला अविष्कार थीं।  

तस्वीर साभारः WeAreTechWomen

एसटीईएम के क्षेत्र में लैंगिक असमानता

कई अध्ययनों के अनुसार जो महिलाएं एसटीईएम क्षेत्रों में कार्यरत हैं वे पेटेंट प्रणाली में समकक्ष पुरुषों की तुलना में बहुत कम संलग्न करती हैं। वीआईपीओ मैंगजीन में प्रकाशित लेख के मुताबिक़ महिला वैज्ञानिक और इंजीनियरों को अपने पुरुष सहयोगियों के रूप में शोध के लिए पेटेंट हासिल करने की संभावन आधे से भी कम है। यह स्थिति अकादमिक और औद्योगिक दोनों जगह पर देखने को मिलती है। महिलाओं की बढ़ती संख्या के बावजूद एसटीईएम क्षेत्रों में सभी उम्र की महिलाओं के समूहों में पेटेंटिंग का अंतर है।

कई विस्तारित सर्वे और डेटा के अनुसार एसटीईएम के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं सामाजिक प्रतिक्रियाओं की वजह से अपने शोध को पेटेंट कराने और व्यवसायीकरण करने में अपनी भागीदारी से पीछे हटती है। महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर अपने सहयोगी पुरुषों के मुकाबले अपने अविष्कारों और व्यवसायीकरण के बारे में कम सोचती हैं। महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को सामाजिक नेटवर्क से बाहर किए जाने की अधिक संभावना होती है। ये नेटवर्क उन्हें अपने अविष्कार के व्यवसायीकरण करने में समर्थन देने में सक्षम बनाते है। उदाहरण के लिए महिलाओं को प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बोर्डों या सलाहकार पैनल में बैठने के लिए आमंत्रित किए जाने की संभावना कम होती है। इस वजह से उनकी अन्य लोगों या संगठनों तक पहुंच कम होती है। दूसरी ओर फाइनेंसर और पूंजीपति महिला वैज्ञानिकों के काम में भी कम रूचि दिखाते हैं और उनके प्रयासों को गंभीरता से नहीं लेते है। 

भारत में राष्ट्रीय बैद्धिक संपदा अधिकार नीति को 2016 में अपनायी गई थी। इसका मुख्य लक्ष्य महिला रचनाकारों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों शिक्षकों और ट्रेनर्स के बीच निर्माण को प्रोत्साहित करने और समर्थन देने से है। हालांकि पेटेंट से जुड़े नियमों में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता है जिससे कार्यबल में महिलाओं की समावेशी भागीदारी सुनिश्चित हो सकें।

एसटीईएम के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं सामाजिक प्रतिक्रियाओं की वजह से अपने शोध को पेटेंट कराने और व्यवसायीकरण करने में अपनी भागीदारी को रोकती हैं। महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर अपने सहयोगी पुरुषों के मुकाबले अपने अविष्कारों और व्यवसायीकरण के बारे में कम सोचती हैं।

आईपी अधिकारों तक महिलाओं की पहुंच ज़रूरी

हर जगह महिलाएं वैज्ञानिक सफलताएं हासिल कर रही हैं, वे नई तकनीक सरलीकरण में बराबर का योगदान दे रही हैं। महिलाओं के रचनात्मक योगदान से दुनिया का प्रारूप बदल रहा है लेकिन बहुत कम महिलाएं आईपी प्रणाली में हिस्सा ले रही हैं। महिला वैज्ञानिकों में इस प्रणाली के इस्तेमाल करने से वे अपने काम की सुरक्षा कर सकती हैं और उसका मूल्य भी बढ़ा सकती है। इस तरह से और बेहतर प्रौद्योगिकियों को विकसित किया जा सकता है। इससे अधिक महिला नेतृत्व में इजाफ़ा होगा और उनके प्रतिनिधित्व को बल मिलेगा।   


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