हमारे देश में अपराधियों/दोषियों का जेल से रिहाई के बाद स्वागत होना नयी बात नहीं है। बिलकिस बानो के बलात्कार के दोषियों का जेल से रिहाई के बाद जोर-शोर से स्वागत किया गया था। इसी तरह का स्वागत अब बस में महिला के सामने मास्टरबेशन करनेवाले एक दोषी का किया गया है। द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार बीती 18 मई को केरल के एर्नाकुलम जिले की KSRTC की बस में एक व्यक्ति को महिला के सामने मास्टरबेशन करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। लेकिन लगभग तीन हफ्ते बाद 3 जून को उसे ज़मानत मिल गई। जेल से ज़मानत मिलने के बाद ‘ऑल केरल मेन्स एसोसिएशन’ (AKMA) के सदस्यों ने बाकायदा माला पहनाकर आरोपी का स्वागत किया। हालांकि, वे ये जानते थे कि उसने एक महिला का सार्वजनिक रूप से शोषण किया है।
मामला केरल का है। शिकायत करने वाली महिला 18 मई को बस से त्रिशूर से कोच्चि जा रही थी। बस में सावद शा नाम का यह आरोपी भी सवार था। आरोप है कि वह दो महिलाओं के बीच में बैठा था और वहीं पर मास्टरबेशन करने लगा। महिला ने अपने मोबाइल फ़ोन पर उसकी इस हरकत को रिकॉर्ड कर लिया और इसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। वीडियो में आरोपी को बस से उतरकर भागने की कोशिश करते भी देखा गया। लेकिन कंडक्टर और चालक ने उसे पकड़ लिया। बाद में उसे पुलिस को सौंप दिया गया था। नेदुंबसेरी पुलिस ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। सावद शा को लगभग तीन हफ्ते पहले रिमांड पर भेज दिया गया था। कुछ दिनों बाद उसे ज़मानत मिल गई।
भारत में पब्लिक मस्टरबेशन की यह पहली अनोखी घटना नहीं है। इससे पहले भी ये अपराध हमारे देश में होते रहे हैं और महिलाओं को भयभीत करते रहे हैं। 7 फरवरी 2018 को, दिल्ली विश्वविद्यालय की 23 वर्षीय एक छात्रा ने घर लौटने के लिए एक पब्लिक बस ली, उसने अचानक अपनी सीट हिलती हुई पाई। स्थिति को समझने में उसे थोड़ा समय लगा। उसने महसूस किया कि उसके बगल में खड़ा आदमी मास्टरबेशन कर रहा था। उसने छात्रा को अपनी कोहनी से भी टच किया। जब छात्रा ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई तो बस में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया बल्कि उसको यह कहा गया कि अगर उसे इससे परेशानी है तो वो बस से उतर जाए। छात्रा ने आरोपी की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी।
जुलाई 2015 में, दिल्ली में एक महिला ने कैब ली। अपनी यात्रा के दौरान उसने महसूस किया कि ड्राइवर बेहद बेचैन था और अपने आप में कुछ बुदबुदा रहा था। जांच करने पर पता चला कि वह ड्राइविंग के दौरान मास्टरबेशन कर रहा था। उसका गाड़ी पर बहुत कम नियंत्रण था। महिला के अनुसार ऐसा करते समय उसके चेहरे पर मुस्कान थी जिसने महिला को कई रातों के लिए परेशान कर दिया।
साल 2015 में ही, एक ब्रिटिश ट्रैवल राइटर, लुसी हेमिंग्स ने भारत में अपनी यात्रा के दौरान सार्वजनिक मास्टरबेशन की कई घटनाओं का वर्णन किया था। उन्होंने अपने इस भयावह अनुभव पर एक ब्लॉग लिखा जो कि वायरल हो गया। वायरल हो रहे उनके ब्लॉग में उन्होंने जो कहा, वह समस्या की सीमा को समझने के लिए महत्वपूर्ण था। उन्होंने लिखा था, “जितना मैं इसे स्वीकार करने से नफरत करती हूं, यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ है। वास्तव में, संभावना है, यदि आप कभी भारत गए हैं, तो आप कम से कम एक ऐसे यात्री से मिले होंगे जिसने इस तरह के व्यवहार का अनुभव किया हो, या किसी और के बारे में सुना होगा जिसके साथ ऐसा हुआ है।”
ये कुछेक घटनाएं ऐसी हैं जो कि लाइमलाइट में आई हैं क्योंकि सर्वाइवर महिलाओं ने इसके प्रति आवाज़ उठाई। अगर वास्तव में महिलाओं का सर्वे किया जाए तो पता लगेगा कि महिलाओं की लगभग आधी आबादी ने कहीं न कहीं किसी न किसी जगह इस तरह की घटनाओं का सामना किया है। महिलाओं पर सड़क पर उत्पीड़न की घटनाएं, जैसे टिप्पणियां, सार्वजनिक मास्टरबेशन और पीछा करना कोई बड़ी खबर नहीं है। हालांकि, पब्लिक में मास्टरबेशन किया जाना शारीरिक हिंसा नहीं है, क्योंकि इसमें सर्वाइवर को किसी भी तरह से छुआ या नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है, लेकिन यह व्यक्तिगत रूप से दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन कर रहा होता है। साथ ही यह सर्वाइवर को मानसिक पीड़ा और आघात पहुंचता है।
इस तरह की हिंसा के बारे में शिकायत करने वाली महिला हमेशा अपमानित या शर्मिंदा महसूस करती है। स्पष्ट कारण यह है कि सार्वजनिक रूप से मास्टरबेशन करना एक निहायत ही अशोभनीय काम है और ऐसा करना एक सर्वाइवर की मर्यादा को ठेस पहुंचाता है। सार्वजनिक मास्टरबेशन में अभद्र प्रदर्शन, हमला, सार्वजनिक व्यवस्था के विरुद्ध अपराध और सर्वाइवर के नागरिक अधिकारों के प्रयोग का उल्लंघन शामिल है।
सार्वजनिक मास्टरबेशन पर भारतीय कानून
भारतीय कानूनी प्रणाली के तहत सार्वजनिक मास्टरबेशन का कोई विशेष दंड या उल्लेख नहीं है। सार्वजनिक मास्टरबेशन भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 354 द्वारा निषिद्ध अपराध है, जो “एक महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल” से संबंधित है, धारा 509 जो “हावभाव या किसी महिला की लज्जा का अपमान करने के इरादे से कार्य” से संबंधित है। धारा 268 जो “सार्वजनिक उपद्रव” और / या धारा 355 के जो “किसी व्यक्ति को आपराधिक बल का उपयोग करने, उस व्यक्ति का अपमान करने का इरादा” से संबंधित है। मोटे तौर पर यह एक अश्लील दंडनीय कृत्य है।
हालांकि, एक ख़ास कानून की कमी और गैरमौजूदगी के कारण, सार्वजनिक मास्टरबेशन के कुछ ही मामले सामने आते हैं जिनके खिलाफ सर्वाइवर शिकायत करती हैं और बहुत कम मामलों में ही सजा मिलती है। महिलाओं के खिलाफ कई अन्य लैंगिक अपराध की तरह, इस अपराध की भी कम रिपोर्टिंग एक समस्या है। न्याय न मिलने में कमी या देरी से मिलने के कारण कई बार महिलाएं शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित होती हैं। पुलिस द्वारा इसे गंभीरता से भी नहीं लिया जाता है। जैसे जब नयी दिल्ली वाले मामलें में छात्रा शिकायत करने के लिए पुलिस स्टेशन गयी तो उसे इस काम में लगभग 7-8 घंटे का समय लगा और साथ ही उससे कई उलटे-सीधे सवाल भी पूछे गए।
कौन सी मानसिकता इसे करने के लिए पुरुषों को प्रोत्साहित करती है?
सार्वजनिक रूप से इस तरह की हरकत का कारण क्या है और फिर उस पर गर्व महसूस करने के पीछे आखिर कौन सी मानसिकता जुड़ी हुई है? ऐसी कौन सी मानसिक प्रवृत्ति है जो पुरुषों को इस तरह के काम के लिए उकसाती है? मर्दानगी की कौन सी परिभाषा में सार्वजनिक रूप से मास्टरबेट करना लिखा हुआ है? एक ऐसा कार्य जो निजी है उसे सबके सामने करने में कौन सी ‘मर्दानगी’ साबित होती है?
इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने पर पता चलता है कि इस प्रकार के कार्य वे पुरुष करते हैं जो कि ‘टॉक्सिक मस्क्युलिनिटी’ को अपनाये हुए होते हैं। ‘टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी‘ एक रवैया या सामाजिक दिशा-निर्देशों का समूह है जो रूढ़िवादी रूप से मर्दानगी से जुड़ा हुआ है जो अक्सर पुरुषों, महिलाओं और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह एक ऐसी रूढ़िवादी सोच है जोकि पुरुषों को सरेआम अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
‘टॉक्सिक मस्क्युलिनिटी’ वाले मर्द महिलाओं के प्रति यौन आक्रामक रवैया रखते हैं। जो पुरुष ‘टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी’ से प्रभावित होते हैं, वे यह मानने की अधिक संभावना रखते हैं कि वे महिलाओं के शरीर के हकदार हैं, जिससे यौन टिप्पणियों और महिलाओं के प्रति उत्पीड़न और बलात्कार के मिथकों पर विश्वास करने की संभावना अधिक होती है। ‘टॉक्सिक मस्क्युलिनिटी’ पुरुषों को अपने प्रभुत्व और मर्दानगी पर जोर देने के लिए आक्रामकता और हिंसा का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार की सोच समाज को प्रभावित करने वाले तरीकों में से एक यह है। साथ ही यह हिंसा को प्रोत्साहित करती है और उसे आगे बढ़ाती है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है
यौन उत्पीड़न की कहानियों की हाल की बाढ़ में उभरने वाली सबसे अजीब अपराधों में वे स्थितियां हैं जिनमें एक पुरुष किसी महिला को उसे मास्टरबेशन करते देखने के लिए आमंत्रित करता है। ऐसे व्यक्ति के मनोविज्ञान का विश्लेषण संभावित रूप से विषाक्त मर्दानगी के विभिन्न रूपों को समझने में हमारी सहायता कर सकता है।
इन पुरुषों के मनोविज्ञान को लेकर साइकोलोजिस्ट बताते हैं कि इस प्रकार के पुरुष चिंता, अहंकार, आक्रामकता का नार्सिसिस्टिक प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार के लोग दिखावटी कल्पना को अधिक मानते हैं जो मनुष्य की खुद को आश्वस्त करने की ज़रूर से पैदा होती है कि उसका जेंडर, उसकी मर्दानगी, खराब, दोषपूर्ण या महत्वहीन नहीं है। उसके कल्पित परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह होता है कि वह यह समझता है कि पास में मौजूद महिला उसके इस प्रदर्शन से मोहित और उत्साहित हो रही है, यही सोच उस पुरुष की मर्दानगी की सकारात्मक भावना की पुष्टि करती है।
यह स्पष्ट है कि पुरुषों का सार्वजनिक रूप से मास्टरबेशन करना एक काफी व्यापक घटना है जिसे अब तक अनदेखा किया गया है। लेकिन सार्वजनिक मास्टरबेशन पर यह चुप्पी टूटनी चाहिए क्योंकि यह ऐसी हिंसा है जिसकी छिपी हुई क्रूरता अपने सर्वाइवर्स के मन में गहरे निशान छोड़ जाती है। यह एक गंभीर मानसिक हमला है।