संस्कृतिसिनेमा दहाड़: जेंडर और जाति की परतों को उकेरती एक सीरीज़

दहाड़: जेंडर और जाति की परतों को उकेरती एक सीरीज़

सीरीज़ में वर्तमान राजनीतिक और सामाजित परिस्थिति को बखूबी जोड़ते हुए अलग-अलग मुद्दों एक दूसरे से जोड़ते हुए उजागर किया। लव जिहाद, जातिगत अहंकार, जातिगत और हिंसा, लैंगिक भेदभाव, कार्यक्षेत्र में महिला के साथ दुर्व्यवहार, सिस्टम में राजनीति, दहेज प्रथा, शादी का दबाव, जेंडर और जाति के कारण लडकियों की जिदंगी पर पड़ने वाले प्रभाव आदि को अलग-अलग सीन और किरदारों के ज़रिये दिखाया गया है।

हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रीलीज़ हुई सीरीज़ ‘दहाड़’ राजस्थान राज्य के परिवेश में गावों और शहरों की दलित समुदाय की लड़कियों की कहानियों और मुद्दों को जोड़ते हुए बनाई गई है। सीरीज़ का निर्देशन रीमा कागती और रूचिका ओबरॉय ने किया है। सीरीज़ में सोनाक्षी सिन्हा, गुलशन देवैया, विजय वर्मा और सोहम शाह मुख्य कलाकार की भूमिका में दिखाई देते हैं।

राजस्थान राज्य के मंडावा क्षेत्र पर फिल्माई गई इस सीरीज़ में सोनाक्षी सिन्हा ने एक सब-इंस्पेक्टर अंजली भाटी का किरदार निभाया है जो दलित समुदाय से आती हैं। सीरीज़ की शुरुआत में उन्हें एक क्लास में बॉक्सिंग और पहलवानी करते हुए दिखाया गया है। क्लास खत्म होने पर उन्हें अपने कोच के पैर न छूते हुए हाई-फाइव करते हुए दिखाया गया। यहां गुरु-शिष्य की उस ब्राह्मणवादी सोच पर चोट की गई है जिसके तहत गुरु का पांव छूना अनिवार्य माना जाता है।

सीरीज़ के दूसरे मुख्य किरदार हैं गुलशन देवैया जो मंडावा क्षेत्र थाना इंचार्ज देवी लाल सिंह की भूमिका में हैं। देवी लाल ईमानदारी और सच्चाई से अपना काम करते है लेकिन सिस्टम और राजनीति का हिस्सा नहीं बनने के कारण हर जगह से उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है। सोहम शाह, कैलाश पर्घी के किरदार में हैं जो उसी थाने में काम करते हैं। रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर मंडावा में उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है जहां उन्हें केस की इंचार्ज अंजली भाटी के अंडर काम करने में शर्म महसूस होती है और इसलिए वह अपना ट्रांसफर करवाना चाहते हैं। विजय वर्मा, आनंद स्वर्णकार के किरदार में हैं जो लड़कियों के कॉलेज में हिंदी प्रोफेसर हैं। इस किरदार को शांत, सरल, सुलझे हुए स्वभाव का दिखाया गया है। वह हर शनिवार और रविवार दूर-दराज के गांवों में जाकर बच्चों को पढ़ाने और कहानियां सुनाने का काम करते हैं।

तस्वीर साभार:  Amazon Prime

सीरीज़ में वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति के अलग-अलग मुद्दों को एक दूसरे से जोड़ते हुए उजागर किया गया है। लव जिहाद, जातिगत अहंकार, जातिगत हिंसा और भेदभाव, लैंगिक भेदभाव, कार्यक्षेत्र में महिला के साथ दुर्व्यवहार, सिस्टम में राजनीति, दहेज प्रथा, शादी का दबाव, जेंडर और जाति के कारण लड़कियों की जिदंगी पर पड़ने वाले प्रभाव आदि को अलग-अलग सीन और किरदारों के ज़रिये दिखाया गया है।

सीरीज़ की कहानी की शुरुआत होती है तब जब मंडावा के एक मशहूर ठाकुर परिवार की एक लड़की रजनी अपने साथी अल्ताफ के साथ घर छोड़कर चली जाती है। इस मामले को ‘लव जिहाद’ का रंग दे दिया जाता है। इसी विवाद के बीच एक दलित जाति से आनेवाला व्यक्ति अपनी लापता बहन की शिकायत लेकर आता है लेकिन पुलिस उसकी शिकायत पर ध्यान नहीं देती।

सीरीज़ की शुरुआत में उन्हें एक क्लास में बॉक्सिंग और पहलवानी करते हुए दिखाया गया है। क्लास खत्म होने पर उन्हें अपने कोच के पैर न छूते हुए हाई-फाइव करते हुए दिखाया गया। यहां गुरु-शिष्य की उस ब्राह्मणवादी सोच पर चोट की गई है जिसके तहत गुरु का पांव छूना अनिवार्य माना जाता है।

दलित और गरीब होने के कारण उसकी रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। आखिरकार वह परेशान होकर यह झूठ बोलता है कि उसकी बहन कावेरी को कोई मुस्लिम लड़का भगाकर ले गया है। उसके ऐसा कहते ही पुलिस पर उसकी बहन को खोजने का राजनीतिक दबाव डाला जाता है। कावेरी के मामले की तहकीकात से शुरू हुआ मामला पहुंचता है 27 लड़कियों के मर्डर की गुत्थी और एक सीरियल किलर तक जिसकी किसी को भनक भी नहीं रहती।

जाति, गरीबी और पितृसत्ता का दबाव कैसे बनता है लड़कियों की हत्या का कारण

“खोई हुई सारी लड़कियां पिछड़ी जाति की हैं इसलिए कोई हो-हल्ला नहीं हुआ अगर इसमें से एक भी लड़की उंची जाति की होती तो बवाल मच जाता।” सोनाक्षी का यह डायलॉग इस कहानी की एक मज़बूत कड़ी है जो हमारे समाज की सच्चाई को भी उजागर करता है। सीरीज़ में राजस्थान के उस परिवेश में दिखाया गया है जहां जातिगत भेदभाव चरम पर है। सीरियल किलर का शिकार हुई सभी लड़कियों की कहानी लगभग एक जैसी रहती है।

सभी लड़कियां हाशिये की जाति से आती थीं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। ऐसे में उनके परिवार उनकी शादी नहीं करवा पा रहे थे क्योंकि उनके लिए दहेज के पैसे जुटाना एक चुनौती थी। ऐसे में उनका परिवार उन्हें बोझ समझता। इन लड़कियों को हर दिन तानों से गुज़रना पड़ता। साथ ही इन्हें अपने परिवार की तरफ से न बाहर जाने की आज़ादी थी न किसी से मिलने-जुलने की। ऐसे में लड़कियों को किसी अंजान शख़्स का उन्हें फोन करके सांत्वना देना, साथी बनना, दोस्ती कर प्यार जताना और सबसे बड़ी बात कि बिना दहेज के शादी के लिए तैयार हो जाना। इस तरह सीरियल किलर इन लड़कियों को फंसाता।

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अंजली भाटी अपनी मां के साथ रहती है अपनी पढ़ाई और मेहनत के ज़रिये सब-इंस्पेक्टर बनी है। एक अधिकारिक पद पर रहते हुए भी उन्हें अपने आसपास औ रकाम की जगह पर हाशिये की जाति से होने के कारण भेदभाव का सामना और संघर्ष करना पड़ता है। थाने में वह इकलौती महिला पुलिसकर्मी भी होती हैं। ऐसे में उनका संघर्ष कैसे बतौर एक दलित महिला दोगुना है सीरीज़ में इसे बेहतर तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है। इस केस की जांच के दौरान तथाकथित ऊंची जाति के लोग अंजलि को अपने घर के अंदर नहीं आने देते। दूसरी तरफ अंजलि की मां भी उस पर शादी का दबाव डालती है जाति के कारण। अपने खुद के संघर्ष को समझते हुए और परिस्थितियों को देखते हुए वह इन लड़कियों के केस में अपनी पूरी ताकत लगा देती है।

“खोई हुई सारी लड़कियां पिछड़ी जाति की हैं इसलिए कोई हो-हल्ला नहीं हुआ अगर इसमें से एक भी लड़की उंची जाति की होती तो बवाल मच जाता।” सोनाक्षी का यह डायलॉग इस कहानी की एक मज़बूत कड़ी है जो हमारे समाज की सच्चा को भी उजागर करता है। सीरीज़ में राजस्थान के उस परिवेश में दिखाया गया है जहां जातिगत भेदभाव चरम पर है।

सीरीज़ में हम देखते हैं कि अंजली भाटी के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा पितृसत्ता को चुनौती देती हुई नजर आती है लेकिन उनके व्यवहार में पितृसत्तात्मक पैमानों के तहत उन्हें रौबीली और मर्दाना दिखाने की कोशिश की गई। ऐसे में इस किरदार को लेकर यह सवाल उठता है कि क्यों महिलाओं को अपनी जगह बनाने के लिए पितृसत्तात्मक ढांचे के अनुसार ही काम करना पड़ता है। सीरीज़ में जिस तरीके से मुद्दे को उठाया गया है उससे कई सवाल भी उठते हैं। जैसे सीरियल किलर को एक मनोरोगी के रूप में दिखाने की कोशिश की गई है जो सिर्फ दलित लड़कियों की हत्या करता है। वह ऐसा क्यों करता है यह सीरीज़ की कहानी से साफ़ नहीं होता। अगर वह मनोरोगी है तो वह सिर्फ दलितों की हत्या क्यों कर रहा है। ऐसे कई सवालों के साथ सीरीज़ हमें छोड़ती है।


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