पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहने वाली इति की डिलवरी के बाद उन्हें हैवी ब्लीडिंग हुई थी और देखते-देखते उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई और नौबत सर्जरी की आ गई। इति के साथ हुई इस घटना पर उनके आसपास की महिलाएं बहुत ही चुपचाप तरीके से चर्चा करते हुए आजकल के समय और डॉक्टरों को दोष देने में लगी थी क्योंकि वे इस बात से पूरी तरह अनजान थी कि इति उस समय पोस्टपार्टम हेमरेज से गुजर रही थी। नैशनल हेल्थ मिशन के अनुसार पोस्टपार्टम हेमरेज के कारण देश में लगभग 20 प्रतिशत माँओं की मौत हो जाती हैं। जानकारी की कमी की वजह से डिलीवरी के बाद होने वाली ब्लीडिंग को आम मानते हुए ब्लीडिंग पैटर्न में बदलाव को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
दरअसल एक बच्चे के जन्म के बाद माँ के स्वास्थ्य पर शारीरिक और मानसिक कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं। इन प्रभावों से कई तरह की परेशानियां बन जाती है जो माँ के जीवन को खतरे तक में डाल देती है। भारत में बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं तक डिलीवरी की बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं की पहुंच नहीं हैं। साथ ही बच्चे के जन्म के बाद माँ का स्वास्थ्य किस तरह से प्रभावित होता है, उससे किस-किस तरह की परेशानी हो सकती है उसके बारे न ज्यादा जाकरूकता है और न ही चर्चा होती है। डिलीवरी के दौरान और बाद में कई तरह की मेडिकल परेशानियों में से एक पोस्टपार्टम हेमरेज यानी पीपीएच है। आमतौर पर पोस्टपार्टम हेमरेज डिलीवरी के तुरंत बाद होता है कुछ मामलों में यह कुछ समय बाद भी होता है।
पोस्टपार्टम हेमरेज क्या है?
क्लीवलैंड क्लीनिक में प्रकाशित जानकारी के अनुसार पोस्टपार्टम हेमरेज (पीपीएच) बच्चे के जन्म के बाद गंभीर वजाइनल ब्लीडिंग है। यह ब्लीडिंग खतरनाक स्थिति हो सकती है जिसे मौत तक हो जाती है। पीपीएच आमतौर पर बच्चे को जन्म देने के बाद होता है। नॉर्मल डिलीवरी के बाद वजाइना से 500 मिली से ज्यादा खून निकलता है। सिजेरियन डिलीवरी में 1000 मिली ब्लीडिंग होती है और जब यह इससे ज्यादा होने लगे तो यह पोस्टपार्टम हेमरेज कहलाता है। पोस्टपार्टम हेमरेज दो प्रकार के होते हैं। प्राइमरी पोस्टपार्टम हेमरेज में डिलीवरी के 24 घंटों के अंदर अधिक ब्लीडिंग होती है, तो उसे प्राइमरी पीपीएच कहा जाता है। सेकेंड्री पीपीएच में डिलीवरी के 24 घंटे गुजरने के बाद और 6 हफ्ते बीतने तक बहुत अधिक मात्रा में ब्लड लॉस हो तो उसे सेकेंड्री पीपीएच कहते है।
पोस्टपार्टम हेमरेज क्यों होता है?
डिलीवरी के बाद ब्लीडिंग होना आम बात है लेकिन लंबे समय तक और अधिक होना खतरनाक है। प्लेसेन्टा, यूटरस से एक भाग जुड़ा होता है जो बच्चे को गर्भाव्यवस्था के दौरान भोजन और ऑक्सीजन देता है। डिलीवरी के बाद यूटरस, प्लेसेन्टा को बाहर निकालने के लिए कॉन्ट्रेक्ट होता रहता है। यह लेबर की तीसरी स्टेज कही जाती है। कुछ मामलों में यूटरस सिकुड़ना बंद कर देता है, जिससे ब्लड वेसल्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होनी शुरू हो जाती है। पोस्टपार्टम हेमरेज के 80 फीसदी मामलों के होने का यही कारण है। पोस्टपार्टम हेमरेज होने का खतरा तब भी हो सकता है जब प्लेसेन्टा के कुछ हिस्से गर्भाश्य की दीवार से जुड़े रहते हैं या डिलीवरी के दौरान रिप्रोडेक्टिव अंगों में किसी तरह का नुकसान पहुंचता है।
यूटेराइन अटोनीः यह डिलीवरी के बाद कोमल और कमजोर यूटरस को संदर्भित करता है। यह तब होता है जब यूरटाइन मांसपेशियां ब्लड वैसेल्स को बंद करने के लिए सिकुड़ती (कॉनट्रेक्ट) नहीं है। यह डिलीवरी के बाद तेजी से बल्ड लॉस होने का कारण बनता है।
यूरेटाइन ट्रॉमाः डिलीवरी के दौरान वजाइन, सर्विक्स, यूटरस और पेरिनेम को नुकसान होने से ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। डिलीवरी के दौरान फोरसेफ और वैक्यूम के इस्तेमाल करने से यूरेटाइन ट्रॉमा का खतरा बढ़ जाता है। कभी-कभी एक हेमेटोमा एक छिपे क्षेत्र में बन सकता है और डिलीवरी के घंटों या दिनों के बाद ब्लीडिंग हो सकती है।
रीटेंड प्लेसेन्टा टिशूः जब बच्चे की डिलीवरी के बाद भी प्लेसेन्टा बाहर नहीं आ पाता है तो इस स्थिति को रीटेंड प्लेसेन्टा कहते हैं। यह डिलीवरी के बाद यूटरस की कॉन्ट्रेक्ट करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
ब्लड क्लोटिंग कंडीशनः अगर गर्भवती महिलाओ को कोएग्युलेशन डिसऑर्डर ( जमाव विकार) या एक्लम्पसिया जैसी गर्भावस्था की स्थिति है तो यह शरीर की खून का थक्का जमने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। यह स्थिति एक छोटी सी ब्लीडिंग को भी अनियंत्रित कर सकती है।
पोस्टपार्टम हेमरेज होने का खतरा किसे हैं
डिलीवरी होने के बाद पोस्टपार्टम हेमरेज होने का खतरा किसी को भी हो सकता है। पीपीएस होने के कई कारक है लेकिन लगभग 40 फीसदी ब्लीडिंग बिना किसी खतरे के कारकों के होती है। अधिकतर पोस्टपार्टम हेमरेज होने का खतरा प्लेसेन्टा के निकलने के बाद होता है। सी-सेक्शन से होने वाली डिलीवरी के बाद पीपीएच होने का अधिक खतरा है। प्रेगनेंसी के समय कुछ समस्याओं की वजह से पीपीएच होने का जोखिम बढ़ जाता है जैसे लंबे समय तक चलने वाला लेबर, पूर्व में कुछ डिलीवरी हो चुकी हो, मोटापा, इन्फेक्शन, प्लेसेंटल अब्रप्शन जिसमें प्लेसेन्टा समय से काफी पहले यूटरस से अलग हो जाता है। मल्टीपल प्रेगनेंसी यानी एक से अधिक बच्चों का होना आदि।
पीपीएच के लक्षण
पोस्टपार्टम हेमरेज एक गंभीर और घातक स्थिति है। पीपीएच होने का मुख्य लक्ष्य बहुत अधिक मात्रा में ब्लीडिंग होना है। इस वजह से बड़ी मात्रा से शरीर से खून बह सकता है। यह ब्लड प्रेशर कम होने का एक कारण बनता है जो दिमाग और शरीर के अन्य अंगों तक खून की पहुंच को बाधित करता है। इसे सदमा लग सकता है और यह मौत होने का एक कारण बन सकता है। शरीर में लाल रक्त कणिकाओं का कम होना, उल्टी और जी घबराना, पेट या पेल्विक एरिया में दर्द होना आदि।
पीपीएच दुनिया भर में मातृ मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। द लैसेंट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित 2020 के एक अध्ययन के अनुसार भारत में वैश्विक स्तर पर मातृ मृत्यु का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें पीपीएच मुख्य कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल 14 मिलियन महिलाएं पीपीएच का सामना करती हैं जिस वजह से वैश्विक स्तर पर 70,000 से ज्यादा मातृत्व मृत्यु होती हैं। डब्लूएचओ के अनुसार ब्लीडिंग को कंट्रोल करने के लिए सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता होता है और जीवन भर प्रजनन अक्षमता का भी सामना करना पड़ सकता है।
स्रोतः