क्या क्लाइमेट जेंच की वजह से मेंस्ट्रुअल स्वास्थ्य प्रभावित होता है? जब हम पर्यावरण को मेंस्ट्रुअल साइकल से जोड़ते हुए देखते तो यह विषय बहुत ही अनदेखा और ग़ैर चर्चा वाला बन जाता है। पहला, पीरियड्स एक टैबू, शर्म का विषय है जिस पर बात करना वर्जित है। दूसरा जलवायु परिवर्तन को लेकर जब बात आती है तो अधिकतर लोग जलवायु परिवर्तन और मेंस्ट्रुअल स्वास्थ्य में कोई संबंध नहीं बना पाते हैं। हालांकि ये दोनों विषय स्वास्थ्य, स्वच्छता, गरीब, उपलब्धता और समानता जैसे कई अन्य पहलुओं से जुड़े हुए हैं।
मेंस्ट्रुअल हेल्थ और प्राकृतिक आपदा
जब-जब प्राकृतिक आपदाएं आती है तो बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन होता हैं। खतरे की जगह से निकलकर लोग सुरक्षित जगह पहुंचते हैं। विस्थापित लोगों के समूह में वे लोग भी शामिल होते हैं जिनके पीरियड्स चल रहे होते हैं या जिनको पीरियड्स आते हैं। अक्सर प्राकृतिक आपदाओं के दौरान स्वास्थ्य शिविरों में क्रोनिक बीमारियों को प्राथमिकता दी जाती है। आमतौर पर पीरियड्स स्वास्थ्य प्रबंधन से संबंधित मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। शेल्टर कैंप में लोगों तक शौचायल, सैनेटरी पेड्स, नैपकिन की पहुंच दूर हो जाती है। ऐसे में साफ-सफाई न होने की वजह से इंफेक्शन होने का जोखिम बढ़ जाता है। इतना ही नहीं तनाव की वजह से भी मेंस्ट्रुअल साइकल में गड़बड़ देखने को मिलती है जिस वहज से पीरियड्स जल्दी या देर से आते हैं।
यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट चेंज की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की अति मौसमी घटनाओं का पुरुष और महिला दोनों पर अलग-अलग असर पड़ता है। जो उनके रोज के काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है। बीते वर्ष प्रकाशित हुए द लैंसेट के अध्ययन के अनुसार पीरियड्स पॉवर्टी और मेंस्ट्रएल हेल्थ का संबंध क्लाइमेट जस्टिस से जुड़ा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन ने महिला अधिकारों, स्वास्थ्य और आजीविका को काफी नुकसान पहुंचाया है फिर भी महिलाओं के मेंस्ट्रुअल हेल्थ पर जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ता है इस पर चर्चा को अभी तक विकसित नहीं किया गया है। शोध के अनुसार वैश्विक स्तर पर 500 मिलियन महिलाएं और लड़कियां पीरियड्स पोवर्टी का सामाना करती हैं।
मौसम में बदलाव की वजह से पीरियड्स के समय चक्र में बदलाव
तामपान में बढ़ोत्तरी, हीटवेव्स और बाढ़ की वजह से लोग विस्थापित होते हैं। ऐसी स्थिति में महिलाएं या लड़कियां अपने साथ मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स नहीं रख पाती हैं। इनकी जगह वे घर के बने विकल्पों की ओर रूख करती हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सूखे में पानी की कमी की वजह से पीरियड्स के दौरान स्वच्छता रखने में कामयाब नहीं हो पाती हैं।
इंटरनैशनल जर्नल ऑफ एनवायमेंट रिसर्च और पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित जानकारी के अनुसार जलवायु परिवर्तन से महिलाओं में मेंस्ट्रुएल साइकल या पहला पीरियड्स के समय में बदलाव होने की वजह से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। यह पेपर प्रकाश डालता है कि कैसे प्राकृतिक आपदाएं, मौसम में ज्यादा बदलाव खाने की उपलब्धता और गुणवत्ता को प्रभावित करती है और पर्यावरण में मौजूद केमिकल की वजह से लड़कियों में पहले पीरियड्स या तो समय से पहले आ जाते हैं या देरी से आते हैं।
इस समीक्षा की सह लेखिका डॉ. मेरी रैजिना बोलेंड के अनुसार, “मेंस्ट्रुअल साइकल शरीर में कई महत्वपूर्ण हिस्सों को प्रभावित करता है। इसलिए जब पीरियड्स बहुत जल्दी या देरी से आते हैं तो यह बाद में शरीर में कई तरह की बीमारियों को करने का कारण बनता है। मेंस्ट्रुअल साइकल और पीरियड्स की टाइमिंग के परीक्षण के समय यह समझने का महत्वपूर्ण हिस्सा होगा कि जलवायु परिवर्तन, महिलाओं और मेंस्ट्रुअल साइकल वाले सभी लोगों के स्वास्थ्य को भविष्य में कैसे प्रभावित करेगा।”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में निजी क्लीनिक पर मैडिकल प्रैक्टिस करने वाली डॉ. भावना का कहना हैं, “बिगता पर्यावरण, बढ़ती गर्मी क्या हमारे मेंस्ट्रुएल साइकल पर असर डालता है तो इसका जवाब हां में है। यह असर सीधा ना होकर कई अन्य तरीकों होता है। बदले वातावरण और बढ़ते तापमान से हमारी दिनचर्या बदलती जा रही है। लोगों में तनाव बढ़ रहा है जो पीरियड्स से जुड़ी कई समस्याओं का प्रमुख कारण है। तनाव की वजह से मेंस्ट्रुएल साइकल लंबा हो सकता है। गर्म वातावरण, पीरियड्स के दौरान मुश्किल बढ़ाने का काम करता है अधिक पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है। गर्मी में अधिक पसीना आना, शरीर में पानी की कमी हो सकती है जिसके कारण शरीर में कमजोरी हो सकती है। ऐसे में हैवी ब्लीडिंग और पेन से यह कमजोरी और ज्यादा बढ़ सकती है। साथ ही खराब पर्यावरण में हमारे खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता भी बेहतर नहीं रही है जिससे शरीर में पोषक तत्वों की कमी रहती है। शरीर में पोषक तत्वों की कमी से हार्मोन्स प्रभावित होते हैं और इसका सीधा असर मेंस्ट्रुएल हेल्थ पर पड़ता है।”
सुंदरवन की महिलाओं का प्रभावित मेंस्ट्रुअल स्वास्थ्य
पारिस्थितिक रूप से भारत का सुंदरवन का क्षेत्र बहुत ही नाजुक है। मैंग्रोव वनों का यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण बुरी तरह प्रभावित है। जलवायु परिवर्तन की वजह से सुंदरवन क्षेत्र का पानी खारा हो गया है। यहां खेती करना मुश्किल हो गया है और लोग मछली पकड़ने का काम करने पर मजबूर है। यह बदलाव महिलाओं के लिए न केवल आर्थिक तौर पर जुड़ा बल्कि स्वास्थ्य प्रभावों से भी संबंधित है। महिलाओं को मछली पकड़ने के लिए घंटों खारे पानी में बिताना पड़ता है।
आउटलुक इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार खारे पानी में लंबे समय तक रहने की वजह से सुंदरवन क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं में अनियमित पीरियड्स, वजाइना में इंफेक्शन, यूटीआई, यूरीन इंफेक्शन और मिसकैरिज जैसी समस्याएं आम बात हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार पानी का खारापन लगातार बढ़ रहा है और महिलाओं का स्वास्थ्य बिगड़ रहा हैं। पीरियड्स को लेकर जुड़ी वर्जनाओं की वजह से महिलाएं शुरू में इस तरह की बातें छिपाती हैं। वे डॉक्टरों को अपनी समस्याएं खुलकर बताने से बचती हैं। जब बहुत ही गंभीर स्थिति होती है तब परेशानी को बताती है। बार-बार होने वाले इंफेक्शन की वजह से गर्भधारण करने में भी महिलाओं को समस्या का सामना करना पड़ रहा हैं।
यूएन युवा पर्यावरण एक्टिविस्ट हिना सैफी का कहना हैं, “जलवायु परिवर्तन की वजह से प्राकृतिक आपदाएं बड़ी संख्या में और भंयकर रूप में देखने को मिल रही हैं। जब-जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो महिलाओं के लिए यह ज्यादा मुश्किले लाती हैं। मेंस्ट्रुएल हेल्थ को बनाए रखने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता पड़ती हैं वे उनसे दूर हो जाती हैं। प्राकृतिक घटनाओं के समय स्वास्थ्य कैंप तक में मेंस्ट्रुएल हेल्थ के पहलू को महत्व नहीं दिया जाता है। साथ ही शेल्टर में गंदगी का सामना करना पड़ता है, पीरियड्स मैनेजमेंट नहीं होता है। इस तरह से पर्यावरण, मेंस्ट्रुएल हेल्थ को प्रभावित करता है।”
हर महीने पूरी दुनिया में 1.8 लोग मेंस्ट्रुअल साइकल से गुजरते हैं। करोड़ों लड़कियां, महिलाएं, ट्रांसजेंडर मेन और नॉन बाइनरी पर्सन पहले से ही अपने मेंस्ट्रएल साइकल के दौरान स्वच्छता और स्वास्थ्य की नज़र से पूरा करने से वंछित है। ऐसे में पर्यावरण के बिगड़ती स्थिति और मेंस्ट्रुअल साइकल पर उसके पड़ने वाले असर से स्थिति और भी संकटग्रस्त होने की संभावना है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सतत विकास लक्ष्यों के तहत सब तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच की मांग को समय पर पूरा करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में तेजी से काम करना बहुत ज़रूरी है।