वर्तमान समय में महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक स्थिति में असमानता की खाई बहुत गहरी हो चुकी है। तमाम ग्लोबल स्तर पर जारी रिपोर्ट्स भी इस बात की लगातार तस्दीक कर रही हैं। इन क्षेत्रों में लैंगिक समानता हासिल करना एक चुनौती बन गई है। वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की हालिया एक रिपोर्ट ने इस बात पर एक और मोहर लगा दी है। दुनिया भर से लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए एक सदी से अधिक का समय लग सकता है। नई रिपोर्ट का अनुमान है कि महिलाएं अगले 131 वर्षों तक पुरुषों के बराबर नहीं पहुंच पाएंगी। मौजूदा समय की असमानता की स्थिति को देखते हुए इसे खत्म करने में साल 2154 का इंतजार करना होगा।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर है। दक्षिण एशिया प्रांत में भारत अपने पड़ोसी देश केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आगे है। भारत लैंगिक समानता के मुद्दे पर अपने पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका से काफी पिछड़ चुका है। दक्षिण एशिया में बांग्लादेश सबसे बेहतर रैंक में शीर्ष 100 में 59वें पायदान पर है। हालांकि बीते वर्ष के मुकाबले भारत की रैंक में सुधार आया है। साल 2022 में भारत के 146 देशों में 135वें पायदान पर रखा गया था।
यह रिपोर्ट दुनिया के 146 देशों में लैंगिक असमानता की स्थिति को लेकर जारी की गई है। रिपोर्ट में महिलाओं की शिक्षा, राजनीति, आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य पर जारी की गई है। यह लंबे समय से चलने वाला सूचकांक है जो साल 2006 के बाद से लगातार लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में हुई प्रगति को ट्रैक करने का काम कर रहा है। साल 2023 में ग्लोबल जेंडर गैप स्कोर 68.4 फीसदी है, इसमें पिछले साल के मुकाबले 0.3 प्रतिशत का मामूली सा सुधार हुआ है। यह बदलाव दिखाता है कि बदलाव की दर बहुत धीमी है।
दुनिया धीरे-धीरे कोविड-19 के प्रकोप से बाहर निकल रही है। रिपोर्ट के अनुसार 146 देशों इंडेक्स में विश्व स्तर पर स्वास्थ्य और उत्तरजीविता में लैंगिक अंतर का 96 प्रतिशत कम हो गया है। रिपोर्ट के अनुशार शिक्षा के क्षेत्र में 2006 से 2023 के समय में लैंगिक अंतर को 95.2 फीसदी खत्म कर दिया गया है।
बात अगर आर्थिक भागीदीरी की करे तो इसमें 60.1 फीसदी का अंतर है। इस तरह आर्थिक क्षेत्र में जेंडर गैप को खत्म करने के लिए 169 वर्षों का समय लगने का अनुमान है। राजनीतिक सशक्तिकरण में अंतर में 22.1 दर है। राजनीति के क्षेत्र में अंतर को खत्म करने के लिए 162 वर्षों का समय लग सकता है। दक्षिण एशिया में लैंगिक समानता की दर 63.4 प्रतिशत हासिल की है यह दुनिया के आठ क्षेत्रों में से नीचे से दूसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया के क्षेत्र में जेंडर गैप को खत्म करने की जो गति है उसे देखते हुए लैंगिक समानता हासिल करने में लगभग 149 वर्ष का अनुमान लगाया गया है।
बात आर्थिक अवसर और अर्थव्यवस्था में भागीदारी की
भारत में महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर और अर्थव्यवस्था में भागीदारी पहले ही बहुत सीमित है। जेंडर गैप 2023 की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर की रैंक में भारत की स्थिति बहुत चिंताजनक है। 146 देशों में भारत की 142वीं रैंक है। देश ने आर्थिक क्षेत्र में सामनता की केवल 36.7 फीसदी दर हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार देश में पुरुषो और महिलाओं की आय और वेतन में बड़ा अंतर है। साथ ही नौकरियों में शीर्ष पदों और टेक्निकल भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी पिछले साल के मुकाबले कमी देखी गई है।
शिक्षा के क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन बेहतर
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 में भारत का प्रर्दशन बेहतर रहा है। 146 देशों में भारत ने 26वां स्थान हासिल किया है। शिक्षा के क्षेत्र में सभी स्तर पर लैंगिक समानता हासिल करते हुए भारत का स्कोर 1 है। यह शिक्षा प्रणाली में एक सकारात्मक बदलाव को दिखाता है। रिपोर्ट यह बताती है कि महिलाएं आगे बढ़ने के लिए लगातार शिक्षा का सहारा ले रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार स्टेम के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है। नॉन-स्टेम क्षेत्र की नौकरियों में लगभग 49.3 फीसदी महिलाओं को रोजगार हासिल हैं लेकिन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नौकरियों में केवल 29.2 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं। हालांकि बीते समय के मुकाबले विज्ञान और तकनीक के विषयों में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाली महिलाओं की प्रतिशता बढ़ी है लेकिन महिलाओं को नौकरियों में रखने का चलन धीमी गति से हो रहा है।
स्वास्थ्य के मामले में भारत का खराब प्रदर्शन
दुनिया की पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था वाले देश भारत में अगर स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बात करे तो स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है। दुनिया के 146 देशों में भारत 142वें नंबर पर है। बीते साल भारत इस लिस्ट में 146वें पायदान पर था। भारत समेत दक्षिण एशिया के अधिकत्तर देश स्वास्थ्य के मामले में खराब स्थिति में है। भारत में लिंग अनुपात में अंतर को लेकर भी रिपोर्ट में बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार एक दशक से अधिक की धीमी प्रगति के बाद भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में 1.9 प्रतिशत का सुधार दर्ज किया गया है। हालांकि सुधार के बावजूद स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के इंडेक्स में भारत का स्कोर बहुत कम है।
राजनीति में लैंगिक असमानता लगातार बरकरार
वैश्विक स्तर राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करे तो तस्वीर में महिला का प्रतिनिधित्व बहुत कम नज़र आता है। दुनियाभर में राजनीतिक सशक्तिकरण में लैंगिक समानता लाने के लिए 162 वर्ष लगेंगे। दुनिया में लैंगिक अंतर को खत्म करने की दर 22.1 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार 31 दिसंबर 2022 के अनुसार लगभग 27.9 फीसद वैश्विक आबादी उन देशों में रह रही है जहां महिलाएं नेतृत्व का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। साल 2013 से 2021 और 2022 में विशेष तौर पर इसमें बढ़ोत्तरी हुई है। भारत में राजनीतिक सशक्तिकरण इंडेक्स में भी तरक्की दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में भारत ने 25.3 फीसदी समानता हासिल की है। राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत कुल 146 देशों में 59वें पायदान पर है। भारत में स्थानीय स्तर पर राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। बोलीविया (50.4%), भारत (44.4%) और फ्रांस (42.3%) सहित 18 देशों स्थानीन शासन में 40% से अधिक महिलाओं का प्रतिनिधित्व हासिल कर लिया है।
विश्व आर्थिक मंच के अनुसार कहा गया है कि महिलाओं और पुरुषों में अवसरों में असमानता का एक प्रमुख कारण डिजिटल डिवाइड है। आंकड़ों के अनुसार टीचिंग और मॉनिटरिंग कोर्स के अलावा अन्य क्षेत्रों में महिलाओं का नामाकंन कम है। तकनीकी शिक्षा (43.7%), एआई और बिग डेटा (33.7%) समानता 50 प्रतिशत से भी कम दर्ज की गई है। विश्व आर्थिक मंच की मैनेजिंग डायरेक्टर सादिया जाहिदी के अनुसार हाल के कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता में धीमी गति देखी गई है। इसकी एक मुख्य वजह कोविड-19 महामारी है जिसका प्रभाव महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा और कार्यक्षेत्र को बाधित करने में पड़ा है। आज दुनिया के कुछ हिस्सों में आंशिक रिकवरी देखी जा रही हैं जबकि कुछ अन्य खराब होने के कारण अन्य संकट का सामना कर रहे हैं।
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 में शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तीकरण के क्षेत्र में बीते समय से कुछ प्रगति दिखाई गई है लेकिन आर्थिक भागीदारी में अंतर पोस्ट महामारी के संकट की आर्थिक घंटी बतायी है। रिपोर्ट के अनुसार पॉली क्राइसिस से रिकवरी बहुत धीमी और अधूरी है। वर्तमान संदर्भ तकनीक, जलवायु परिवर्तन के साथ महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में गिरावट का जोखिम पैदा कर रहा है। इससे न केवल लाखों महिलाएं और लड़कियां आर्थिक पहुंच और अवसर खो रही हैं बल्कि इन बदलावों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है।