संस्कृतिसिनेमा न्याय पाने के संघर्ष को दिखाती फिल्म ‘एक बंदा काफी है’

न्याय पाने के संघर्ष को दिखाती फिल्म ‘एक बंदा काफी है’

फिल्म साल 2013 में जोधपुर के एक धर्मगुरु द्वारा 16 साल की नाबालिग के यौन उत्पीड़न का डॉक्यूमेंट है। माना जा रहा है कि यह धर्मगुरु आसाराम द्वारा किए गए शोषण की ही कहानी है जो फिलहाल अपनी बलात्कार के मामले में आजीवन कैद की सज़ा काट रहा है। 

बीती 23 मई को ओटीटी प्लैटफॉर्म ज़ी 5 पर रिलीज़ हुई कोर्ट ड्रामा फिल्म सिर्फ ‘एक बंदा काफी है’ में धर्म और सच्चाई के बीच की दीवार को पास से दिखाने की कोशिश की गई है। एक साधु या धार्मिक महात्मा के वेश में एक नाबालिग के शोषण को समाज कितना समझ पाता है या न्याय कर पाता है फिल्म में यही दिखाने की कोशिश है। फिल्म साल 2013 में जोधपुर के एक धर्मगुरु द्वारा 16 साल की नाबालिग के यौन उत्पीड़न का डॉक्यूमेंट है। माना जा रहा है कि यह धर्मगुरु आसाराम द्वारा किए गए शोषण की ही कहानी है जो फिलहाल अपनी बलात्कार के मामले में आजीवन कैद की सज़ा काट रहा है। 

यह फिल्म कई मायनों में अहम है। इसमें सर्वाइवर नाबालिग के अंदर न्याय के लिए लड़ने का जनून है, एक वकील का अपने फर्ज़ के लिए खड़े रहने की हिम्मत है और समाज में धर्म के ज़रिये पैदा की जा रही गंदगी का आईना है। यह फिल्म हमारा हाथ पकड़कर समाज की सच्चाई दिखाने का काम बेहद संजीदगी और गंभीरता के साथ करती है। इस फिल्म की पटकथा भी उतनी ही गंभीर है जितनी इसकी सिनेमेटोग्राफी। हम यह कह सकते हैं कि फिल्म ‘पिंक’ के बाद यह दूसरी कोर्ट ड्रामा फिल्म है जो दो घंटे 12 मिनट के बाद बहुत देर तक हमारा पीछा करती है और अपने आप कई सवाल पूछती, गढ़ती, बताती है।

फिल्म अपूर्व सिंह कार्की ने डायरेक्ट की है। इसके मुख्य किरदार में एक ईमानदार अधिवक्ता पीसी सोलंकी के रूप में मनोज बाजपेयी ने अपनी छाप छोड़ी है। सर्वाइवरा नू सिंह के रूप में अद्रिजा सिन्हा ने बेहतर अभिनय किया है।  पटकथा का गंभीर लेखन इसे सहज और कारगर बनाता है। एक लड़की का शोषण के ख़िलाफ़ आवाज उठाने, एक अधिवक्ता के कानूनी पेचीदगी से दो-दो हाथ करने और एक धर्मगुरु के कृत्य का यह सच देखा जाना चाहिए ताकि हमें पता रहे कि अपने आप को ‘गॉडमैन’ कहने वाले ये लोग समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं।

‘बाबा’ के भिंडवाड़ा के स्कूल में पढ़नेवाली 16 साल की नू सिंह मां और पिता के साथ थाने में जाकर उसके साथ हुई यौन हिंसा की शिकायत लिखवाती है। पॉक्सो ऐक्ट के कारण तुरंत बाबा की गिरफ्तारी हो जाती है। बाबा कोर्ट में पहुंचते हैं। हजारों की भीड़ में समर्थक उन्हें देखने आते हैं। बाबा दोनों हाथों से जेब से मूंगफली निकालकर लोगों में फेंकते हैं और कोर्ट में दाखिल होते हैं। बाबा पर धारा 342 (गलत कारावास), 370/4(एक से अधिक नाबालिग की तस्करी), 120। B(कठोर कारावास), 506(आपराधिक धमकी), 354। A(यौन उत्पीड़न), 376। D (छेड़छाड़, अनुचित स्पर्श/संबंध), 376/2। F(सामूहिक दुष्कर्म), 509 आईपीसी (महिला की गरिमा का अपमान), 5G। 6 (गंभीर प्रवेशन यौन हमला), सेक्शन 7। 8( गुप्तांग से छेड़छाड़) ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट(पॉक्सो), सेक्शन 23 जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। कोर्ट की पहली सुनवाई में बाबा को बेल नहीं मिल पाती है। एक कोर्ट वॉर शुरू हो जाता है।  जहां बाबा की ओर से डिफेंस काउंसिल यह साबित करने में लग जाता है कि सर्वाइवर नाबालिग नहीं है ताकि केस कमज़ोर बन जाए।  यहीं से कहानी आगे बढ़ती है।  

नू के परिवार को पता लगता है कि उनका वकील सौरभ शर्मा सौदेबाजी करने में लगा है जो उन्हें कभी न्याय नहीं दिला पाएगा। वे तुरंत पुलिस के पास पहुंच जाते हैं और उन्हें वकील के बारे में सब बता देते हैं।  उनमें से एक पुलिस कर्मचारी उन्हें एडवोकेट पीसी (पूनम चंद) सोलंकी के पास भेज देती है। सोलंकी पहले उनकी पूरी बात सुनते हैं और उन्हें हौसला देते हैं कि वह उनका केस जरूर लड़ेंगे। साथ ही वह यह कहते हैं, “यह लड़ाई काफी लंबी चलने वाली है, आप तैयार हो जाएं।”

तस्वीर साभार: Viral Study

मानसिक रूप से परिवार और खासकर नू सिंह को हौसला देते हैं कि यह लड़ाई तो लड़नी ही पड़ेगी। इस तरह कोर्ट की सुनवाई शुरू होती है। पीसी सोलंकी जाने माने पॉक्सो एक्ट ज्ञाता रहे हैं इसलिए उनके पास इस केस का मजबूत पक्ष था। उनका सामना देश के जाने-माने वकीलों के साथ हुआ। हालांकि, सोलंकी उनके फैन भी हैं। उनके साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं, उनकी बहुत इज्जत भी करते हैं लेकिन अगले ही पल अपनी बात पर अडिग होकर उन्हें मात भी देते हैं। इस केस में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।  यह फैसला किसकी ओर झुकता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। फैसला सुनाने से ठीक पहले सोलंकी कोर्ट में अपनी बातों से सबको भावुक कर देते हैं।

सोलंकी कहते हैं “पिछले 5 साल के इस केस में जो संघर्ष चला इसमें सबने कानून के बड़े-बड़े जानकारों को देखा और सुना। अब जब फैसला गिल्टी ओर नॉट गिल्टी, निर्दोष और गुनाहगार, ऐसी बातों पर आ खड़ा हो गया है।  इसको सही दिशा मिलना बहुत जरूरी है। एक बात जो मैंने नोटिस की- डिफेंस काउंसिल बाबा को डिफेंड करते-करते कहां चूक गया। वह चुके एक जघन्य अपराध को समझने में, वह चुके सर्वाइवर की मनोस्थिति समझने में, वह चुके इस बात को समझने में कि इस अपराध का समाज के ऊपर क्या प्रभाव पड़ सकता है। इस देश में लड़की का जीवनकाल बड़ा ही समस्याओं से भरा होता है और यह बच्ची उन सारी लड़कियों की व्यथा को बयां करती है।  इस महान देश में हर लड़की बचपन से युवावस्था तक किसी न किसी प्रकार से एक बार मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित होती है। यह लड़की आवाज उठाना चाहती है, अपने लिए लड़ना चाहती है।  यह बच्ची उन सब बच्चियों की उम्मीद है जो आपके फैसले के ऊपर अपनी आंख गड़ाए बैठी हैं।”

असल जिंदगी में यह केस लड़ने वाले पीसी सोलंकी जोधपुर में रहते हैं। वह बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताते हैं कि वह लड़की के माता पिता से आज भी संपर्क में हैं और यह मामला कोर्ट में अब भी चल रहा है। कई धमकियां मिली और केस न लड़ने को लेकर ऑफर भी आए लेकिन वह अडिग रहे। वह बताते हैं कि वह पुलिस कर्मचारियों को पॉक्सो एक्ट पर ट्रेनिंग भी दे चुके हैं। इस कानून को वह बारीकी से जानते हैं। हालांकि, इस फिल्म के संबंध में जानकारी उनसे साझा नहीं की गई जिसे लेकर वे नाराज हैं और फिल्म निर्माताओं को कानूनन नोटिस भिजवाया गया है। 


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