डॉ. भीमराव आंबेडकर को हम सभी संविधान निर्माता के रूप में जानते ही हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व और काम सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था। भारतीय समाज से संबंधित तकरीबन हर क्षेत्र में उनका योगदान देखने को मिलता है। लेकिन उस योगदान को बड़े स्तर पर भारतीय मुख्यधारा ने पहचाना नहीं है। उन्हीं कामों में से एक काम उनका भारत की जल नीति को लेकर है। हालांकि, महाड़ सत्याग्रह, जो 20 मार्च 1927 को बाबा साहब ने दलितों के लिए महाड़ तालाब का पानी इस्तेमाल करने के लिए किया गया था उसकी चर्चा होती है। इस सत्याग्रह का उद्देश्य यह बताना था कि दलितों को भी पानी का समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। हम इसी सत्याग्रह तक पानी को लेकर उनके संघर्ष को सीमित कर देखते हैं जबकि भारतीय जल नीति में बाबा साहब का योगदान प्रासंगिक है और विस्तृत भी।
बाबा साहब और आज़ाद भारत की नयी जल नीति
साल 2016 में मुंबई में मैरीटाइम इन्वेस्टमेंट समिट के उदघाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहब को भारत में जल एवं नदी नौवहन नीति के आर्किटेक्ट कह संबोधित किया था और कहा था, “हम में से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि बाबा साहब ने जल, नौवहन और बिजली से संबंधित दो शक्तिशाली संस्थान बनाए। वे थे: केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई और नेविगेशन आयोग और केंद्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड।”
बाबा साहब साल 1942 से लेकर 1946 तक वायसरॉय की एग्जिक्यूटिव काउंसिल में बतौर लेबर मेंबर शामिल थे। उनके सुझाव पर केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई और नैविगेशन आयोग बनाया गया था। इसे आज केंद्रीय जल आयोग (सेंट्रल वॉटर कमीशन) के नाम से जानते हैं। यह जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है और वर्तमान में यह भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
इस आयोग का मुख्य उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नेविगेशन, पेयजल आपूर्ति है। इसके साथ ही पूरे देश में जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण और उपयोग के लिए संबंधित राज्य सरकारों के परामर्श से योजनाएं शुरू करने और आगे बढ़ाने की जैसी जिम्मेदारियां आयोग निभाता है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण जल विद्युत स्टेशन स्थल, जल-विद्युत सर्वेक्षण, बिजली उत्पादन की समस्याओं का विश्लेषण और थर्मल पावर स्टेशन की जांच के लिए बनाया गया था।
डॉ. आंबेडकर और रिवर प्रोजेक्ट्स
नदी के पानी को लेकर सभी का एक विचार था कि बस बाढ़ को रोका जाए। इस पर डॉ. आंबेडकर सहमत नहीं थे। उनका विचार था, “अगर जल का संरक्षण सार्वजनिक हित की दृष्टि से अनिवार्य है तो ज़ाहिर तौर पर तटबंधों की योजना ग़लत योजना है। यह एक ऐसा साधन है जो साध्य यानी जल संरक्षण, आदि की पूर्ति नहीं करता इसलिए, इसे छोड़ देना चाहिए।” पानी को लेकर चर्चा थी कि अधिकतम पानी विनाश का कारण है जिससे उनका मतलब बाढ़ से था। तब बाबा साहब ने इस विचार के खिलाफ़ कहा था कि पानी की कमी होना विनाशकारी है न कि अधिक पानी। अधिक पानी को सही तकनीक से उपयोग में लाना लाभकारी ही सिद्ध होगा। उनका यह विचार उनके द्वारा सुझाए गए वाटर प्रोजेक्ट्स में, कमीशंस में भली भांति देखने को मिलते हैं।
बाबा साहब ने साल 1942 से 1946 के बीच नयी जल नीति की नींव रखी थी जिसके तीन मुख्य अंग थे। पहला- नदियों की घाटी के आधार पर जल संसाधन विकास के लिए बहुउद्देशीय दृष्टिकोण अपनाना। दूसरा, नदी घाटी प्राधिकरण की अवधारणा का परिचय और तीसरा, जल और बिजली संसाधनों के विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र में तकनीकी विशेषज्ञ निकायों का निर्माण। वह रेलवे से ज़्यादा रिवर कैनल, रिवर प्रोजेक्ट्स के समर्थक थे। नदियों का इस्तेमाल ज़्यादा लाभकारी बनाने के पीछे उनका तर्क था कि नदियों का पानी बिजली बनाने, सिंचाई और नौका परिवहन में बहुत मददगार साबित हो सकता है। साथ ही इससे बाढ़ को भी आने से रोका जा सकता है।
उन्होंने अपने बहुआयामी दृष्टिकोष को आज़ाद भारत की बड़ी-बड़ी नदी परियोजनाओं को साकार किया था। इस में सबसे पहला योजना , दामोदर रिवर वैली कॉर्पोरेशन था। दामोदर नदी को बंगाल और झारखंड का दुख कहा जाता रहा है क्योंकि इसकी वजह से इन क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ आती है। इस योजना के तहत कई डैम इस नदी पर तैयार किए गए। जिस वक्त इस योजना को अमल में लाना था तब वायसरॉय लॉर्ड वावेल थे। वह चाहते थे कि इस योजना के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्ट, इंजीनियर आएं। लेकिन डॉ. आंबेडकर ने वायसरॉय के खिलाफ़ अमेरिकन टेनेसी वैली अथॉरिटी को इस काम के लिए चाहते थे जिन्होंने अमेरिका में टेनेसी वैली स्कीम का निर्माण किया था। डॉ. आंबेडकर वायसरॉय के खिलाफ़ गए सिर्फ़ इसीलिए क्योंकि इस योजना से भारतीयों का हित जुड़ा था।
हमने सामाजिक विज्ञान की किताबों में पहली बार भाखड़ा नांगल डैम (सतलज नदी पर) और हीराकुड डैम (महानदी पर) के बारे में जाना। लेकिन इन किताबों ने हमें इनके निर्माण के पीछे के विचारक के बारे में नहीं बताया। हालांकि, अकादमिक जगह ने यह हमें शुरू से बताया कि जवाहरलाल नेहरू, डैम को आधुनिक भारत का ‘मंदिर’ कहते थे। लेकिन इन ‘मंदिरों’ के विचारक, उनकी भूमिका के बारे में चर्चा तक नहीं की जाती। ये दोनों ही डैम योजना बाबा साहब की दूरदृष्टि के प्रमाण हैं। भाखड़ा नांगल डैम उस दौर में भी 1500 मेगा वाट तक बिजली उत्पादन कर रहा था। तीसरी महत्वपूर्ण योजना थी सोन रिवर वैली योजना।
हालांकि, यहां इस बात का उल्लेख करना भी ज़रूरी है कि बांधों से होनेवाले नुकसान, ख़ासकर पुनर्स्थापन और पुनरुद्धार को या तो टाला जाता रहा है या स्पष्ट रूप से नजरअंदाज कर दिया जाता है। सरकारें इस ओर अब बिल्कुल ध्यान नहीं देतीं।टिहरी बांध और नर्मदा पर सरदार सरोवर परियोजना के मामलों के बावजूद प्रभावित क्षेत्रों से अन्य कस्बों और शहरों में बड़े पैमाने पर पलायन में स्पष्ट हैं, जिससे कई सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पैदा हो रही हैं।
संविधान निर्माता जो पानी से संबंधित राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक पहलुओं को समझते थे, ऐसे कैसे मुमकिन होता कि वे संविधान में इसे जगह नहीं देते। पानी को लेकर राज्यों के बीच मतभेद हो सकते हैं, वह इसे बखूबी समझते थे। परिणामस्वरूप इंटर स्टेट वॉटर डिस्प्यूट्स ऐक्ट 1956 हमारे सामने आया। यह अधिनियम अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों से संबंधित है। अधिनियम के तहत, एक राज्य सरकार केंद्र सरकार से अंतर-राज्यीय नदी विवाद को विवाद के समाधान के लिए ट्रिब्यूनल में भेजने का अनुरोध कर सकती है। रिवर बोर्ड्स एक्ट 1956 का प्रावधान संविधान में देखने मिलता है। यह अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के विनियमन और विकास के लिए नदी बोर्डों की स्थापना का प्रावधान करने वाला अधिनियम है।
बाबा साहब का जन्मदिन ‘जल दिवस‘ के रूप में भी मनाया जाता है। जल नीतियों में उनके योगदान को महत्ता देते हुए दिसंबर 2016 में सेंट्रल वाटर कमीशन के सेमिनार में, जो बाबा साहब द्वारा जल संबंधी नीतियों, योजना में योगदान को याद करते हुए आयोजित किया गया था, उसमें बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुईं केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण पूर्व मंत्री सुश्री उमा भारती ने यह घोषणा की थी कि 14 अप्रैल (बाबा साहब का जन्मदिन) को देश में जल दिवस (नैशनल वाटर डे) के रूप में मनाया जाएगा। महाड़ सत्याग्रह से लेकर संविधान में जल संबंधित कानूनों को जगह देने तक, वह समझते थे कि पानी एक ऐसी वजह है जिसके कारण हाशिये के तबके के लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। इतनी नदियों वाले देश में पानी को लाभदायक रूप से इस्तेमाल करने के लिए नदी केंद्रित बहुउद्देशीय योजनाएं भारत में लानी बेहद ज़रूरीं है ताकि पानी का न्यायिक तरीके से समान रूप से वितरण किया जा सके।
स्रोत: