इतिहास डॉ. सविता आंबेडकर: जिनके हिस्से का सम्मान उन्हें कभी नहीं मिला

डॉ. सविता आंबेडकर: जिनके हिस्से का सम्मान उन्हें कभी नहीं मिला

बाबा साहब की मृत्यु के बाद सविता आंबेडकर को क्यों निशाना बनाया गया? उस वक्त के दलित नेताओं ने सविता आंबेडकर को किनारे क्यों कर दिया था? उनके खिलाफ़ साजिशें क्यों रची गईं? दलित वर्ग सविता आंबेडकर को उनके हिस्से की गरिमा, सम्मान क्यों नहीं दे सका है? बड़ा सवाल कि क्या इन मिथकों में रत्ती भर भी सच्चाई थी? इन सभी सवालों का जवाब डॉ. सविता आंबेडकर द्वारा लिखित संस्मरण ‘बाबा साहब, माय लाइफ विद डॉ. आंबेडकर’ में मिलते हैं।

हम अपने घरों में राजनीति, इतिहास उससे जुड़े हुए अहम लोगों की बातचीत करते ही हैं। इन्हीं बातचीत में तमाम मिथक भी हमारी समझ, बहसों का हिस्सा बन जाते हैं। यूं तो इस देश के हर नागरिक के लिए बाबा साहब भीमराव आंबेडकर एक ज़रूरी किरदार हैं लेकिन दलित वर्ग बाबा साहब को अपने ज़्यादा करीब पाता है। ऐसी ही तमाम चर्चाओं में हमारे घर के बड़े लोगों ने बाबा साहब के महापरिनिर्वाण के संदर्भ में बताया था कि उनकी दूसरी पत्नी सविता आंबेडकर पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। पंडित नेहरू ने बाबा साहब को मारने के लिए सविता को भेजा था और एक रात बाबा साहब के कमरे की सभी खिड़कियां, दरवाज़े बंद करके ज़हरीली गैस उसमें छोड़ दी गई जिससे दम घुटने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।

हम छोटे थे इसीलिए इस बात का विश्वास किया और अभी कुछ दिनों पहले ही इस मिथक को मैंने सविता आंबेडकर की किताब, ‘बाबा साहब, माय लाइफ विद डॉ. आंबेडकर’ पढ़कर तोड़ा है। सविता आंबेडकर के खिलाफ़ सिर्फ़ यही एक मिथक नहीं है, बहुत सारी अन्य मिथक भी हमारे आस-पास मौजूद रहे हैं। विजय सुरवाड़े जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी बाबा साहब के जीवन से संबंधित चीजें इक्कठा करने में लगा दी, वह कहते हैं, “सविता को दिसंबर 1956 में आंबेडकर की मृत्यु के लिए दोषी ठहराया गया था। ऐसी साजिश के सिद्धांत थे कि उन्होंने बाबा साहब आंबेडकर को एक गिलास छाछ में जहर दिया था या तकिये से उनका दम घोंट दिया था।”

सविता आंबेडकर के खिलाफ़ इतनी साजिशें रची गईं कि भारत सरकार को बाबा साहब की मृत्यु के सही कारण जानने के लिए जांच बैठानी पड़ी और हुआ वही जो सच था, गृह मंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने सदन में यह ऐलान किया कि बाबा साहब की मृत्यु प्राकृतिक थी ना कि कोई साजिश। बाबा साहब की मृत्यु के बाद सविता आंबेडकर को क्यों निशाना बनाया गया? उस वक्त के दलित नेताओं ने सविता आंबेडकर को किनारे क्यों कर दिया था? उनके खिलाफ़ साजिशें क्यों रची गईं? दलित वर्ग सविता आंबेडकर को उनके हिस्से की गरिमा, सम्मान क्यों नहीं दे सका है? बड़ा सवाल कि क्या इन मिथकों में रत्ती भर भी सच्चाई थी? इन सभी सवालों का जवाब डॉ. सविता आंबेडकर द्वारा लिखित संस्मरण ‘बाबा साहब, माय लाइफ विद डॉ. आंबेडकर’ में मिलते हैं।

तस्वीर साभार: Wikipedia

किताब के अंग्रेजी संस्करण के पहले पन्ने पर ही डॉ. सविता ने लिखा है, “जब मैं डॉ. आंबेडकर के जीवन में आई, तो वह मधुमेह, न्यूरिटिस, गठिया, उच्च रक्तचाप और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित थे।” उन्होंने बाबा साहब के लिखे उन सभी पत्रों का हिस्सा इसमें दर्ज़ किया है जिनमें बाबा साहब ने अपनी ख़राब तबीयत का ज़िक्र किया था। बाबा साहब भाऊराव गायकवाड को 23 सितंबर 1931 में लंदन से लिखे पत्र में कहते हैं, “आपका 4 तारीख का पत्र पाकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मुझे आपकी बात सुनने का इंतज़ार किए बिना बहुत पहले ही आपको लिखना चाहिए था। लेकिन आप जानते हैं कि मैं किस खराब स्वास्थ्य स्थिति में निकला था और मुझे अपनी सारी ऊर्जा जनता (बाबा साहब द्वारा शुरू किया गया अखबार)के लिए लिखने के लिए बचाकर रखनी पड़ी।”

ऐसे ही शिवतारकर को शिमला से 23 अप्रैल 1932 में लिखे गए पत्र में डॉक्टर साहब ने लिखा, “पेचिश से बुरी तरह प्रभावित होने के कारण मेरा स्वास्थ्य काफी गिर गया है।” इसी तरह दसियों पत्रों के हवाले से सविता आंबेडकर यह बात झूठी साबित करती हैं कि उनके आने के बाद से बाबा साहब की स्थिति ख़राब होने लगी थी। बल्कि डॉक्टर आंबेडकर के जीवन में सविता के आने से उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ था और वह संविधान बनाने के काम को अच्छे से कर पाए थे।

बाबा साहब के एक नज़दीकी दोस्त थे अर्थशास्त्री डॉक्टर राव। बाबा साहब अधिकतर उनके यहां आते-जाते रहते थे। सविता भी वहां आती जाती थीं। ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान डॉक्टर राव के यहां डॉक्टर आंबेडकर और सविता का मिलना हुआ जहां सविता को बाबा साहब की तमाम बीमारियों के बारे में पता चला और वह यह सोचकर चिंतित हो उठीं कि जो व्यक्ति इस देश के संविधान में इतनी बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं उनका स्वस्थ रहना उतना ही ज़रूरी है। ऐसी ही अन्य मुलाकातों के सिलसिले के परिणामस्वरूप दोनों की शादी हुई।

बाबा साहब और सविता आंबेडकर ने एक-दूसरे को अपने अपने लिए बेहतर पाया और साथ रहे। बाबा साहब जिस महिला से, अपनी जीवनसाथी से इतना प्रेम करते थे, फिर उनके जाने के बाद, उन्हें मसीहा मानने वालों ने उस महिला के खिलाफ़ प्रपंच क्यों रचे?

सवाल है बाबा साहब को इतनी बीमारियां हुई कैसे? वे अपने जीवन में जातीय दंश से लेकर प्रियजनों की मृत्यु का दुख बराबर झेलते रहे जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा था लेकिन बावजूद इसके वह अपने काम को लेकर इतने गंभीर थे कि ख़राब परिस्थितियों में भी उन्होंने पढ़ना-लिखना नहीं छोड़ा था। दिनचर्या में आराम, बढ़िया खाना सब गायब था, घंटों तक वह किताबों में व्यस्त रहते थे। स्वास्थ्य को बुरी तरह नज़रंदाज़ करने का नतीजा उच्च रक्तचाप, गठिया, डायबिटीज का होना हुआ। सविता आंबेडकर का असली नाम शारदा कबीर था, सविता नाम उन्हें खुद बाबा साहब ने प्रेम में दिया था।

12 मार्च 1948 को बाबा साहब ने शारदा कबीर (सविता आंबेडकर) को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लिखा था, ” मुझे ख़ुशी है कि आप स्टेशन नहीं आईं। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आपने खुद पर कैसे नियंत्रण रखा। मैं बहुत कमजोर हूं, बहुत कोमल हूं और भावनाओं के वशीभूत हूं। लोगों की मेरे बारे में बहुत गलत धारणा हैं, वे सोचते हैं कि मैं कठोर हृदय वाला, क्रूर, स्पष्टवादी, ठंडा, तार्किक, पूर्णतया दिमाग वाला और हृदयहीन हूं। मुझमें एक कोमलता है जो मुझे कमजोर और झुकने वाली बनाती है। मुझे आशा है कि मेरे द्वारा बहाए गए आंसुओं के लिए आप मुझे कमज़ोर नहीं समझेंगी।”

बाबा साहब और सविता आंबेडकर ने एक-दूसरे को अपने अपने लिए बेहतर पाया और साथ रहे। बाबा साहब जिस महिला से, अपनी जीवनसाथी से इतना प्रेम करते थे, फिर उनके जाने के बाद, उन्हें मसीहा मानने वालों ने उस महिला के खिलाफ़ प्रपंच क्यों रचे? सविता आंबेडकर से लोगों ने प्रेम क्यों नहीं किया जो खुद उनके बाबा साहब की पत्नी थीं, प्रेमिका थीं?

अपनी किताब में सविता आंबेडकर ने लिखा है कि उस वक्त के दलित नेताओं ने उनके खिलाफ विरोध शुरू कर दिया था ताकि समुदाय से उन्हें अलग किया जा सके। इन नेताओं का उत्साह राजनीतिक आवेगों और नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित था। कुछ दलित नेताओं ने जो सविता आंबेडकर के खिलाफ आवाज़ें उठाई उससे दलित वर्ग के आम लोगों के बीच उनकी पहचान धुंधली होती गई थी। एक शोधकर्ता और आंबेडकरवादी, सदानंद फुलज़ेले ने कहा है, “महाराष्ट्र के लोगों के मन में उनके बारे में कई गलतफहमियां थीं। वे सोचते थे कि सविता ने बाबा साहब को धीमा जहर दिया है। एक बार, (रामदास) अठावले ने एक पार्टी कार्यक्रम में उन्हें मंच पर लाने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।”

किताब के अंग्रेजी संस्करण के पहले पन्ने पर ही डॉ. सविता ने लिखा है, “जब मैं डॉ. आंबेडकर के जीवन में आई, तो वह मधुमेह, न्यूरिटिस, गठिया, उच्च रक्तचाप और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित थे।” उन्होंने बाबा साहब के लिखे उन सभी पत्रों का हिस्सा इसमें दर्ज़ किया है जिनमें बाबा साहब ने अपनी ख़राब तबीयत का ज़िक्र किया था।

सविता आंबेडकर रत्नागिरी जिले की सारस्वत ब्राह्मण थीं लेकिन क्योंकि किताबें पढ़ने की शौकीन थीं इसीलिए बुद्ध में थोड़ी बहुत दिलचस्पी रखती थीं। बाबा साहब से विवाह के बाद अक्टूबर 1956 में बाबा साहब के साथ उन्होंने भी बौद्ध धम्म अपना लिया था। बाबा साहब के बेटे यशवंत राव ने भी उनसे अच्छे संबंध नहीं रखे थे। मेरे निजी अनुभव ये हैं कि आज भी जहां कहीं बाबा साहब की जीवनी सुनाई जाती है वहां सविता आंबेडकर को नेहरू की बहन कहकर, उन्हें हत्यारा करार दे दिया जाता है या फिर बाबा साहब की जीवनी में से सविता आंबेडकर नाम का चैप्टर हटा ही दिया जाता है। साल 2022 में दिल्ली सरकार ने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में बाबा साहब के जीवन पर म्यूजिकल प्ले कराया था जिसे मैं देखने गई थी और उस पूरे जीवनी नाटक में से सविता आंबेडकर गायब थीं। यह सविता आंबेडकर के योगदान के साथ, उनके अस्तित्व के साथ, बाबा साहब की पत्नी के साथ कितना अन्याय है कि उनके हिस्से का सम्मान हम अभी तक उन्हें नहीं दे पाए हैं।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content