इंटरसेक्शनलजेंडर महिलाओं के सशक्तीकरण में महिला-केंद्रित योजनाओं की भूमिका

महिलाओं के सशक्तीकरण में महिला-केंद्रित योजनाओं की भूमिका

एक भारतीय महिला के लिए, स्वतंत्रता का मतलब केवल संविधान के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता नहीं है। इसके मायने महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना, अधिक नौकरियां, उद्यमिता के अवसर, बढ़ी हुई सुरक्षा, दैनिक जीवन में आसानी और हर तरह की हिंसा से सुरक्षा भी है।

इस दशक में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण विश्व स्तर पर एजेंडे में शीर्ष पर हैं। लैंगिक असमानता को कम करने और महिलाओं का खुले माहौल में सांस लेने की स्वतंत्रता हासिल करने का संघर्ष लंबा चला है, और यह अभी ख़त्म नहीं हुआ है बल्कि आज भी चल रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने भी सतत विकास हासिल करन के लिए महिला सशक्तिकरण को एक ज़रूरी हिस्सा माना है। इसीलिए लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने इसे अपने सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी-5) में एक लक्ष्य के रूप में उल्लिखित भी किया है। लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर विभिन्न प्रयास और पहल की गई हैं। भारत भी अपने आधार पर लैंगिक समानता प्राप्त करने की कोशिश में लगा हुआ है।

अभी हाल में हमने अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है। एक भारतीय महिला के लिए, स्वतंत्रता का मतलब केवल संविधान के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता नहीं है। इसके मायने महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना, अधिक नौकरियां, उद्यमिता के अवसर, बढ़ी हुई सुरक्षा, दैनिक जीवन में आसानी और हर तरह की हिंसा से सुरक्षा भी है। भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव और पुरुष वर्चस्व कोई नई बात नहीं है। ये दो महत्वपूर्ण कारक महिला सशक्तिकरण में सबसे बड़ी रुकावट के रूप में काम करते हैं। शादी के नाम पर, लोकलाज के नाम पर, इज़्ज़त के नाम पर, समाज क्या कहेगा के नाम पर और भी अन्य बहानों के कारण महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित किया जाता है। महिलाओं को मजबूरन पुरुष के अधीन किया जाता है जिससे वे आत्मनिर्भर नहीं हो पाती। ऐसे अनगिनत यही भेदभावपूर्ण कारण महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधा बनते है।

संक्षेप में, महिला सशक्तीकरण की राह में कई कारक शामिल हैं। भारत में रूढ़िवादी सोच और पितृसत्तात्मक मानसिकता से लड़कर लैंगिक समानता को प्राप्त करने का रास्ता आसान नहीं है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिलाएं सशक्त हो, सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र को विभिन्न क्षेत्रों में उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की ज़रूरत है। चाहे वह मुफ्त रसोई गैस और शिक्षा योजनाएं हो या महिलाओं को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में सक्षम बनाना हो, महिलाओं को अपने जीवन में स्वतंत्र होने के लिए सशक्त बनाने के लिए सरकारें अलग-अलग वक़्त पर योजनाएं लाती रहती हैं।

सरकार द्वारा शुरू की जानेवाली महिला केंद्रित विभिन्न योजनाओं और नीतियों के ज़रिये ही महिला आबादी की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि मातृ मृत्यु दर, कन्या भ्रूण हत्या, जन्म के समय शिशु मृत्यु दर जैसी विभिन्न सामाजिक दुर्दशाओं का समाधान भी हुआ है।

अलग-अलग दौर में भारत सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें विकास और सुरक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। सरकार द्वारा की गई इन पहलों का उद्देश्य लैंगिक असमानता, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच जैसे मुद्दों का समाधान करना है। शिक्षा से जुड़ी योजनाएं, चुनाव में आरक्षण,  कामकाजी महिला छात्रावास, वन-स्टॉप सेंटर, महिला हेल्पलाइन, महिला पुलिस स्वयंसेवक और कई अन्य योजनाओं के माध्यम से, सरकार भारत में महिलाओं के लिए अधिक समावेशी और सुरक्षित वातावरण बनाने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर सवाल हमेशा बरकरार रहेंगे। लेकिन इस लेख के ज़रिये हम इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं कि कैसे महिला-केंद्रिय  ये योजनाएं उन्हें न केवल सहायता और संसाधन मुहैया करवाती हैं बल्कि जागरूकता को बढ़ावा देती हैं। साथ ही समाज में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करती हैं।

भारत के संदर्भ में मौजूदा स्थिति!

भारतीय महिलाएं ऐसे समाज में समानता और स्वीकार्यता के लिए संघर्ष कर रही हैं जो अभी भी सामाजिक पदानुक्रम के शिखर पर पुरुषों का सम्मान करता है। नकारात्मक लिंगानुपात, श्रमबल में असमान भागीदारी और कम साक्षरता दर महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव की पुष्टि जनगणना के आंकड़ों से भी की गई है जो सक्रिय और निष्क्रिय दोनों तरह से जनसांख्यिकी को प्रभावित करती है। सरकार द्वारा शुरू की जानेवाली महिला केंद्रित विभिन्न योजनाओं और नीतियों के ज़रिये ही महिला आबादी की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि मातृ मृत्यु दर, कन्या भ्रूण हत्या, जन्म के समय शिशु मृत्यु दर जैसी विभिन्न सामाजिक दुर्दशाओं का समाधान भी हुआ है।

कुछ सर्वे बताते बैं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहद अलग मुद्दों पर वोट चाहती हैं और वोट करती हैं। जहां अधिक पुरुषों द्वारा जाति, धर्म, राष्ट्रवाद और पहचान के आधार पर मतदान करने की संभावना है, वहीं महिलाएं आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की अधिक संभावना रखती हैं जिनका उनके जीवन की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है।

महिला केंद्रित सरकारी योजनाएं महिलाओं के वोटिंग के तरीके को प्रभावित करती हैं!

हाल के दशकों में भारत के लोकतंत्र में सबसे सुखद घटनाओं में से एक महिलाओं की बढ़ती चुनावी भागीदारी और महिला मतदाताओं का बढ़ता प्रभाव रहा है। 1962 में, पहली बार, भारत के चुनाव आयोग द्वारा पुरुष और महिला मतदान के लिए अलग-अलग आंकड़े उपलब्ध कराए गए थे। पुरुषों का मतदान 63.31% और महिलाओं का मतदान मात्र 46.63% था। साल 2019 तक महिलाओं के मतदान में 20.55 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई थी। पुरुषों के मतदान में केवल मामूली वृद्धि (3.71 प्रतिशत) देखी गई । वर्ष 2019 में भारतीय वोटर्स के इतिहास में एक नया मोड़ आया। यह लोकसभा चुनावों के इतिहास में पुरुषों के मतदान से अधिक महिलाओं के मतदान का पहला उदाहरण था। उसके बाद से चुनावों में महिलाओं के मतदान में और भी अधिक वृद्धि देखी गई है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 1962 और 2017-18 के बीच, राज्य विधानसभा चुनावों में महिलाओं के मतदान में 27 प्रतिशत की आश्चर्यजनक वृद्धि हुई।

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न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सर्वे बताते हैं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहद अलग मुद्दों पर वोट करना चाहती हैं और करती हैं। जहां अधिक पुरुषों द्वारा जाति, धर्म, राष्ट्रवाद और पहचान के आधार पर मतदान करने की संभावना है, वहीं महिलाएं आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की अधिक संभावना रखती हैं जिनका उनके जीवन की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है। महिला मतदाताओं के मतदान प्रतिशत में वृद्धि और अधिक महिला मतदाताओं द्वारा स्वतंत्र मतदान निर्णय लेने के साथ, पार्टियां और नेता महिला मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए विभिन्न रणनीतियां अपनाते हैं। नयी महिला वोटर्स उस पार्टी के लिए वोट करना अधिक पसंद करती हैं जो उनके सपनों को आसान कर दे। उनकी शिक्षा, सुरक्षा का ध्यान रखे। सबा, उत्तर प्रदेश की 22 वर्ष की महिला वोटर है। सबा चुनाव के समय ऐसी पार्टी को वोट देना पसंद करती है जो महिला केंद्रित स्कीम लाए, उन्हें आर्थिक रूप से सहयोग करे और महिला सुरक्षा पर ध्यान दे। सबा के अनुसार जाति और आरक्षण से पहले मुद्दा है महिला सुरक्षा और महिला सशक्तीकरण का।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार की जीत के पीछे का एक महिला केंद्रित स्कीम का होना है। केजरीवाल सरकार द्वारा फ्री बस सेवा की घोषणा, फ्री राशन, बिजली, शिक्षा जैसे मुद्दों ने महिलाओं को वोट देने के लिए आकर्षित किया। लोकनीति-सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वेक्षण से पता चला कि महिलाओं द्वारा अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में ‘आप’ को वोट देने की अधिक संभावना थी, क्रमशः 60% और 49%। यह व्यापक लैंग अंतर ही था जिसने पार्टी को महिला मतदाताओं के बीच भाजपा पर लगभग 25 प्रतिशत अंकों की अजेय बढ़त दिलाई। पुरुषों के बीच ‘आप’ की ‘भाजपा’ पर बढ़त केवल 6 प्रतिशत अंक थी। आप सरकार महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी रणनीति में पूरी ताकत लगा चुकी है। केजरीवाल सरकार के तहत दिल्ली, जेंडर बजटिंग पर केंद्र सरकार के 2012-13 दिशानिर्देशों को लागू करने वाले शुरुआती राज्यों में से एक बन गया था। 2018-19 में दिल्ली का जेंडर बजट 8.6% (कुल बजट का) केंद्र सरकार के आवंटन 5.1% से काफी अधिक रहा।

यही हाल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के लिए हुए चुनाव के समय में हुआ। ‘उज्जवला स्कीम, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,’ जैसी योजनाओं ने महिला वोटर्स को मोदी सरकार के लिए वोट डालने को लेकर उत्साहित किया। चुनावी क्षेत्र के रूप में महिलाओं का धीरे-धीरे उभरना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक उत्साहजनक विकास है। इससे महिला-केंद्रित मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित होने और अधिक महिलाओं को चुनावी राजनीति में आगे लाने की संभावना है। चुनाव में महिला आरक्षण महिला वोटर्स को वोट करने के लिए अधिक लुभाता है।


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