बायस्टैंडर इंटरवेंशन एक अप्रोच है, एक तरीका है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग तरह की हिंसा जैसे, बुलिंग, घरेलू हिंसा, यौन शोषण और लैंगिक हिंसा आदि का सामना करने के लिए किया जाता है। बायस्टैंडर उस व्यक्ति को कहते हैं जिसका संभावित हिंसक घटना से कोई सीधा संबंध न हो। इस थ्योरी का मानना है कि हिंसक घटनाएं अक्सर सामाजिक दायरे में ही होती हैं। घटना के साक्षी लोगों के पास यह क्षमता होती है कि वह मामले में दख़ल देकर हिंसक घटना को घटने से रोक सकता है।
बायस्टैंडर इंटरवेंशन का उद्देश्य लोगों को संभावित हिंसा के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई करने के प्रेरित करना और एक सुरक्षित समाज का निर्माण करना है। हम जब भी ऐसी स्थिति में होते हैं जहां हमें लगता है कि किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक या अन्य तरह की हिंसा हो सकती है और वह संभावित रूप से खतरे में है तो हम उचित समय पर सही कदम उठाकर उनकी रक्षा कर सकते हैं। इस प्रकार बायस्टैंडर इंटरवेंशन हमें एक सतर्क और जागरूक इंसान बनाता है। आइए इस पूरी थ्योरी को हम विस्तार से समझते हैं।
बायस्टैंडर इंटरवेंशन को अच्छे से समझने और यौन हिंसा या जेंडर आधारित अन्य हिंसा के संदर्भ में इसकी भूमिका को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम पहले यह ठीक से समझ लें कि यौन हिंसा शब्द का अर्थ क्या है। यौन हिंसा का मतलब किसी व्यक्ति के साथ किए गए हर उस अवांछित यौनिक व्यवहार, क्रिया या गतिविधि है, जिसमें उसकी सहमति नहीं हो। इसमें बलात्कार, यौन हावभाव या व्यवहार, हमला आदि शामिल हो सकते हैं।
बायस्टैंडर इफेक्ट क्या है?
बायस्टैंडर इंटरवेंशन उन सभी गतिविधियों के समूह को कहा जा सकता है जो बायस्टैंडर इफेक्ट के परिणामों की रोकथाम के लिए ज़रूरी हैं। अब जानते हैं कि यह बायस्टैंडर इफेक्ट क्या है। बायस्टैंडर कोई भी वह व्यक्ति हो सकता है जो किसी आपातकालीन या हिंसक घटना का साक्षी हो यानी जब वह घटना घट रही हो या घटने वाली हो तब वह व्यक्ति मौके पर मौजूद हो। यह व्यक्ति विक्टिम का कोई परिचित या रिश्तेदार भी हो सकता है। हालांकि ऐसा ज़रूरी नहीं है। ऐसी संभावना भी हो सकती है जहां बायस्टैंडर कोई अनजान व्यक्ति हो।
बायस्टैंडर इफेक्ट वह मनोवैज्ञानिक प्रभाव है जिसमें भीड़ में मौजूद लोग किसी व्यक्ति के साथ हो रही हिंसा की स्थिति में दख़ल देने या रोकने का प्रयास नहीं करते। भीड़ की संख्या जितनी अधिक होती है, लोगों का घटना को नज़रंदाज़ करना भी उतना ही बढ़ जाता है। हमें आए दिन ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती हैं कि सड़क पर हो रही हिंसा को भीड़ देखती रही, वीडियो बनाती रही और विक्टिम की मौत हो गई। आप सभी को याद होगा कि हाल ही में दिल्ली के शाहबाद से ऐसी घटना सामने आई थी जिसमें एक सोलह वर्षीय लड़की की एक लड़के ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी और आसपास के लोग बगल से ऐसे गुज़र गए जैसे कुछ हुआ ही न हो।
इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष देखें तो किसी आपातकालीन स्थिति में जहां किसी व्यक्ति को सहायता चाहिए, आसपास मौजूद लोगों के मन में असमंजस हो जाता है कि उन्हें आख़िर क्या करना चाहिए? हमारा दिमाग ऐसी असाधारण और दुर्लभ स्थितियों के लिए तैयार नहीं होता। बायस्टैंडर इफेक्ट पर स्टडी करने वाले सोशल मनोवैज्ञानिक लाटेन और डार्ले के अनुसार, किसी विक्टिम की मदद करने से पहले, एक दर्शक पांच चरणों की निर्णय प्रणाली से गुजरता है। अव्वल तो वह यह संदेह करता है कि कुछ गड़बड़ है। फिर उस स्थिति को आपातकालीन स्थिति या संकटजनक स्थिति में परिभाषित करता है और यह तय करता है कि वह इस स्थिति में सहायता या दख़ल देने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार है या नहीं। आखिर में वह मदद करने का तरीका चुनता है और उसे लागू करता है। नोटिस करने, परिभाषित करने, निर्णय लेने, चुनने और लागू करने के इन चरणों में असफल होने से हीं लोगों की भीड़ अक्सर हिंसा को नहीं रोक पाती है।
किसी प्रकार का ऐक्शन न लेना इस बात पर भी निर्भर करता है कि कितने लोग उस घटना को देख रहे हैं। हर दर्शक को लगता है यह उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह दख़ल दे, यह तो साथ खड़े अन्य लोगों की ज़िम्मेदारी है। जितनी भीड़ होती है, लोगों का रवैया भी उतना ही लापरवाह होता है। दर्शक की मनोस्थिति, मौके की गंभीरता और लोगों की प्रतिक्रिया आदि कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो यह निर्धारित करती है कि बायस्टैंडर की प्रतिक्रिया क्या होगी। इस स्थिति में घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, और शारीरिक शोषण के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो जाती है।
बायस्टैंडर इफेक्ट के इन दुष्परिणामों और चुनौतियों को देखते हुए यह ज़रूरी हो जाता है कि हम बायस्टैंडर इंटरवेंशन को समझें और उसे अपनाएं। इसके तहत मुख्य रूप से यह तीन गतिविधियां शामिल हैं:
- डायरेक्ट इंटरवेंशन: जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, डायरेक्ट इंटरवेंशन में हम किसी आपातकालीन स्थिति में तुरंत हस्तक्षेप करते हैं और सर्वाइवर की रक्षा करते हैं। यह यौन हिंसा या लैंगिक हिंसा की रोकथाम के लिए बेहद ज़रूरी है।
- डेलीगेट करना: जब हम किसी भी कारण से प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकते, तो ऐसे में हमारे पास यह विकल्प होता है कि हम किसी ऐसे व्यक्ति को सूचित करें जिनके पास मौजूदा स्थिति से निपटने की क्षमता हो। उदाहरण के लिए हम जब देख रहे हैं कि किसी व्यक्ति की जान खतरे में और हमलावर के पास हथियार है जिससे वह हमें भी क्षति पहुंचा सकता है, तो ऐसी स्थिति में हम किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस को सूचित कर सकते हैं।
- ध्यान भटकाना: जब संकट की स्थिति में खुद से हस्तक्षेप करना या किसी को सूचित करना मुमकिन न हो, तब हम बातचीत के ज़रिये या विषय बदलकर हमलावर को उसके उद्देश्य से भटका सकते हैं।
बायस्टैंडर इंटरवेंशन महज़ आकस्मिक हिंसा को रोकने के लिए ही ज़रूरी नहीं है, बल्कि यह समाज में सहमति, सम्मान और सुरक्षा की महत्ता को भी स्थापित करता है। बायस्टैंडर इफेक्ट की स्टडी करने वाले मनोवैज्ञानिकों ने यह सुनिश्चित किया है कि लोगों का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें इन स्थितियों में दख़ल देने की प्रेरणा मिली है या नहीं। सरल शब्दों में कहें तो, यदि लोगों को संकटजनक स्थिति में दख़ल देकर विक्टिम की रक्षा करने की सामाजिक शिक्षा दी जाए और ऐसा करने पर उन्हें सराहना मिले तो अधिक से अधिक लोगों को अहसास होगा कि हिंसा को रोकना उनकी भी ज़िम्मेदारी है। इस प्रकार निश्चित तौर पर बलात्कार, शारीरिक उत्पीड़न, यौन हिंसा या अन्य लैंगिक हिंसा के मामलों में कमी आएगी। आखिर में यह ज़रूरी हो जाता है कि लोगों को बायस्टैंडर इंटरवेंशन के प्रति जागरूक बनाया जाए क्योंकि समाज में महिलाओं समेत सभी हाशिये के समूहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।