समाजकैंपस विद्यार्थियों के दमन का परिसर बना इलाहाबाद विश्वविद्यालय

विद्यार्थियों के दमन का परिसर बना इलाहाबाद विश्वविद्यालय

विद्यार्थी विवेक की पीठ लहूलुहान हो जाती है। एक चीफ प्रॉक्टर का किसी प्रदर्शन करते विद्यार्थी  को यूँ पीटना सबको अप्रत्याशित लगता है क्योंकि ये किसी विश्विद्यालय के चीफ प्रॉक्टर की गरिमा के विरुद्ध आचरण था।

आप एक अन्याय करते हैं विद्यार्थी उसका शांति से विरोध करते हैं। उस विरोध करने के कारण आप दूसरा अन्याय करते हैं विद्यार्थी उसका विरोध करते हैं तब आप बौखला कर अपनी बर्बरता दिखाते हैं लेकिन आप भूल जाते हैं जब शोषितों के भीतर प्रतिरोध पनप जाता है तो आपका दमन आपकी बर्बरता उसे दबा नहीं पाती है। ये वही समय है जब सत्ता अपने उन्माद के शीर्ष पायदान पर होती है तो वह अन्याय की सीढ़ियों पर चढ़ती जाती है। 16 अक्टूबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जो विद्यार्थी के साथ बर्बरता हुई वह इसी एक अन्याय से दूसरे अन्याय की तरफ बढ़ते जाना क्रम का हिस्सा था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि के ख़िलाफ़ विद्यार्थी प्रदर्शन कर रहे थे। आंदोलन करनेवाले विद्यार्थियों को निलंबित कर दिया गया। फिर विद्यार्थियों ने जब उस निलंबन का विरोध किया तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह खुद हाथ में लाठी लेकर निकलते हैं और विद्यार्थी विवेक को बर्बरता से पीटने लगते हैं। विद्यार्थी विवेक की पीठ लहूलुहान हो जाती है। एक चीफ प्रॉक्टर का किसी प्रदर्शन करते विद्यार्थी को यूं पीटना सबको अप्रत्याशित लगता है क्योंकि ये किसी विश्विद्यालय के चीफ प्रॉक्टर की गरिमा के विरुद्ध आचरण था।

इन्हीं कुछ सालों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन तमाम तरह के प्रतिबंध विद्यार्थियों पर लगातार लगा रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे तानाशाही का एक संस्थान बनता जा रहा है। यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि आज विश्वविद्यालयों में जिस तरह से अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाते विद्यार्थियों का दमन हो रहा है उसके पीछे वर्तमान सत्ता की तानाशाही नीति है।

इस विरोध-प्रदर्शन की शुरुआत तब हुई जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 400% फीस बढ़ा दी गई। यहीं से प्रशासन के दमन की श्रृंखला शुरू होती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन फीस बढ़ने के विरोध में शुरू किया। आंदोलन को  विश्वविद्यालय प्रशासन अपने दमन से तोड़ने में कामयाब रही। आंदोलनरत विद्यार्थी जो आंदोलन को लीड कर रहे थे उनको गिरफ्तार कर लिया गया। वे अभी भी जेल में हैं। फी हाइक से जुड़े विद्यार्थियों  की रिहाई और विश्वविद्यालय में अन्य सुविधा की मांग जैसे साफ पानी, टायलेट, स्वास्थ सुविधा, विद्यार्थी  संघ की बहाली आदि को लेकर फेसबुक पर पोस्ट तथा कैंपस में पर्चा बांटने के लिए दलित शोध विद्यार्थी मनीष कुमार का निलंबन कर दिया गया।

इन्हीं कुछ सालों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन तमाम तरह के प्रतिबंध विद्यार्थियों पर लगातार लगा रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे तानाशाही का एक संस्थान बनता जा रहा है। यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि आज विश्वविद्यालयों में जिस तरह से अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाते विद्यार्थियों का दमन हो रहा है उसके पीछे वर्तमान सत्ता की तानाशाही नीति है।

मनीष कुमार के निलंबन को रद्द करने के लिए वाइस चांसलर को ज्ञापन देने और फी हाइक से जुड़े हरेंद्र यादव को परीक्षा देने विश्वविद्यालय ने रोक दिया। मनीष कुमार के निलंबन और मुख्य रूप से हरेंद्र यादव के परीक्षा न देने की प्रशासन की कार्रवाई के विरोध में विद्यार्थी शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। विद्यार्थी विवेक भी प्रदर्शन में शामिल थे उनके यह कहने पर कि परीक्षा देने का अधिकार तो एक अपराधी को भी होता है, पुलिस एक कैदी को भी परीक्षा दिलवाने लाया जाता है। तभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह विश्वविद्यालय के कैंपस से निकलते हैं और गार्ड से लाठी लेकर क्रूरता से विवेक को पीटने लगते हैं।

छात्र विवेक के साथ हुई हिंसा के ख़िलाफ विद्यार्थियों का प्रदर्शन, तस्वीर साभार: AISA AU

ये सदियों की घृणा का परिणाम था क्योंकि जिस तरह से विद्यार्थी विवेक प्रदर्शन कर रहे थे वो एकदम संवैधानिक अधिकारों के अंतर्गत था। विद्यार्थी की पिटाई का वीडियो देख कर, उसकी लहूलुहान पीठ को देखकर गोरख याद आते हैं कि-सदियों पुरानी है उनकी घृणा/ सदियों पुराना है उनका गुस्सा कहने के लिए ये विद्यार्थी  आंदोलन और विश्विद्यालय प्रशासन की लड़ाई है। लेकिन ये अबरों और जबरों की लड़ाई है जो समाज में हमेशा से चली आ रही है जहां राकेश सिंह जैसे सम्पत्ति और सत्ता में सने क्रूर लोग ही उस तरफ खड़े हैं। किसी अपराध के लिए जब यह कहा जायेगा कि पुलिस नहीं पहुंची या गवाह या साक्ष्य नहीं मिल पाया इस लिये अपराधी बच गया। लेकिन यहां पुलिस के सामने ही एक व्यक्ति एक निर्दोष विद्यार्थी को पीट रहा है और पुलिस दर्शक बनी हुई है, उल्टे विद्यार्थी को ही गिरफ्तार करके ले जाती है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों  के ऊपर हो रही दमनात्मक कार्यवाही का आलम यह है कि कुछ महीने पहले कैम्पस में एक विद्यार्थी की मौत हो गई। उक्त घटना में मीडिया स्टडी के विद्यार्थी  शुतोष जब पानी पीने के बाद जब अचानक बेहोश होकर गिर गए तब उनके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने न एंबुलेंस की व्यवस्था की और ना ही अन्य किसी साधन को कैम्पस के अंदर आने दिया गया। जिसका कारण विश्वविद्यालय प्रशासन यूनियन भवन के मुख्य गेट पर ताला लगा दिया जाना था। यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के मुताबिक परिसर के आदेश के अनुसार यूनियन भवन पर इस घटना के कुछ दिन पहले ही यूनियन भवन के गेट पर ताला लगाने  की कार्रवाई की गई थी। कुछ ही दिन बाद यह भयानक घटना घट गई। प्रशासन के इस प्रतिबंधन के भयानक कानून और लापरवाही ने एक विद्यार्थी  की जान ले ली। इन सभी वजहों से हुई देरी के कारण विद्यार्थी की वही पर मौत हो गई।  

विद्यार्थियों का आरोप है कि आशुतोष की मृत्यु विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही के कारण हुई है और इसको लेकर विद्यार्थी संगठन लगातार एकजुट है और लगातार आंदोलन कर रह थे इस प्रदर्शन को दबाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस के बल का प्रयोग किया और प्रदर्शन कर रहे कई विद्यार्थियों  के खिलाफ मुकद्दमा और गिरफ्तारी करवाई। लगभग 14 विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ मुकदमा और दो की गिरफ्तारी हो चुकी है। 

आशुतोष के साथी रमन जो घटना के समय उनके साथ थे बताते हैं, “आशुतोष बाहर से आए और उन्होंने एफसीआई बिल्डिंग के बगल में स्थित कार्यालय में पानी पिया और थोड़े समय बाद ही है बाहर निकले ही थे कि वह बेहोश होके गिर गए। इसके बाद एंबुलेंस बुलाया गया पर वह समय पर नहीं पहुंच सकी उसके बाद हम परिसर की एंबुलेंस के लिए गए पर वह परिसर प्रशासन द्वारा उपलब्ध नहीं करवाई गई। उसके बाद किसी बाहरी वाहन को भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने अंदर नहीं आने दिया। बाद में विद्यार्थियों द्वारा बेहोश विद्यार्थी को ई-रिक्शे से अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें डाक्टर द्वारा मृत घोषित कर दिया गया।”

मृतक विद्यार्थी को न्याय दिलाने के लिए के लिए आवाज़ उठा रहे छात्र नेताओं को विश्वविद्यालय प्रशासन पुलिस के बल पर लगातार परेशान कर रहा है। आशुतोष की मौत के बाद परिसर के तमाम विद्यार्थी संगठनों ने विश्वविद्यालय के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और परिसर में पर्याप्त साधन न होने की निंदा करते हुए उसकी मांग उठाई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राथमिक चिकित्सा की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। महिला हॉस्टल का चिकित्सा केंद्र भी वर्षो से बंद पड़ा है। एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस तरह की जरूरी सुविधा का न होना इस बात का उदाहरण है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपने विद्यार्थियों  के लिए कितना संवेदनहीन है।

बातचीत में विद्यार्थी बताते हैं कि परिसर प्रशासन की तानाशाही का आलम यह है कि आए दिन परिसर के विद्यार्थियों के ऊपर लगातार नयी-नयी कार्रवाई की जा रही है। उनकी कार्यवाही में मुकद्दमा, निलंबन, गिरफ्तारी आदि शामिल है। जैसे कि आप मनीष कुमार के एक दो महीने के अंदर ही दूसरे निलंबन को देख सकते हैं। विश्वविद्यालय में ही अध्यनरत विद्यार्थी साक्षी कहतीं हैं कि परिसर में प्रतिबंध के कानून के बनाए जाने का अब एक सत्र चल गया है आए दिन नये-नये प्रतिबंध विद्यार्थी पर लगाए जा रहे हैं और नोटिस जारी किए जा रहे हैं। जगह- जगह आपको साबित करना पड़ता है कि आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हैं। कही बैठने की वजह को अब विश्वविद्यालय प्रशासन को बताना अति-आवश्यक हो गया है।

विद्यार्थियों का आरोप है कि आशुतोष की मृत्यु विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही के कारण हुई है और इसको लेकर विद्यार्थी संगठन लगातार एकजुट है और लगातार आंदोलन कर रह थे इस प्रदर्शन को दबाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस के बल का प्रयोग किया और प्रदर्शन कर रहे कई विद्यार्थियों  के खिलाफ मुकद्दमा और गिरफ्तारी करवाई। लगभग 14 विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ मुकदमा और दो की गिरफ्तारी हो चुकी है। 

इसी प्रकरण में लगातार प्रदर्शन कर रहे राजनीति के शोध विद्यार्थी मनीष कुमार को निलंबित कर दिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मनीष पर बिना अनुमति प्रदर्शन करने और परिसर को अशांत करने का आधार बनाकर कार्रवाई की गई है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मुद्दे को दबाने के लिए और विद्यार्थियों  को रोकने के लिए बिल्कुल तानाशाही हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है। परिसर में विद्यार्थियों पर कड़े प्रतिबंध की कार्रवाई कर दी है। एक गेट पर पूर्णत ताला जड़ दिया है। विद्यार्थियों के गेट से प्रवेश करने पर पहले गार्ड उनसे उसके कैंपस में रहने की वजह और स्थान की वे कहां जा रहे हैं पूछते हैं उसके बाद ही कैंपस में प्रवेश की अनुमति है।

विश्वविद्यालय की केंद्रीय लाइब्रेरी में 6 बजे के बाद प्रवेश बंद कर दिया गया है आप अगर छह बजे के बाद बाहर यानी परिसर में से ही बाहर से आते हैं तो आपको अंदर नहीं आने दिया जाएगा चाहे आपका बैग अंदर ही क्यों न हो वो आप नहीं ले सकते हैं। छह बजे के बाद आपको परिसर में ही प्रवेश की अनुमति नहीं है। परिसर में एक नोटिस जारी किया गया है कि आप अपना आईकार्ड हमेशा साथ रखे क्योंकि आपकी कभी भी और कही भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थी होने का प्रमाण मांगा जा सकता है। परिसर ने ये भी नोटिस जारी किया है कि बिना परमिट के आप परिसर में प्रदर्शन नहीं कर सकते अगर ऐसा हुआ तो प्रशासन आप पर कार्रवाई करेगा।

हमारे शिक्षण संस्थान विश्विद्यालय हमें लोकतांत्रिकता और समानता का मूल्य बोध सिखाते हैं, सामाजिक विषमताओं को तोड़कर हमें ज्यादा मनुष्य बनना बताते हैं लेकिन जब शिक्षक और संस्थान ही सत्ता की एक बड़ी इकाई की तरह कार्य करने लगते हैं तो आने वाली नस्लों को नष्ट करते हैं। वे जातिवादी, हिंसा, साम्प्रदायिकता के व्यवहार का प्रदर्शन कर एक गैरबराबरी के समाज को बढ़ावा देते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में न्याय के लिए खड़े दलित विद्यार्थ  के साथ हुई बर्बरता बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और पूरी तरह जातिवाद से प्रेरित है।


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