इंटरसेक्शनलजेंडर आखिर कब मिलेगी औरतों को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आज़ादी?

आखिर कब मिलेगी औरतों को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आज़ादी?

दिल्ली में रहने वाली चिकी बहुत बड़े-बड़े सपने नहीं है। शायद अपनी इच्छा अनुसार कपड़े पहन पाने की छूट ही उसके लिए सबसे बड़ी बात है। वह बताती है, "मैं सब तरह के कपड़े पहनना पसंद करती हूँ। लेकिन पहनती वही हूँ जो घर वाले कहते हैं। जैसे सूट-सलवार और दुपट्टा।

सभी के लिए आज़ादी के मायने अलग है। लेकिन जब हम लड़कियाँ अपनी मर्जी के मुताबिक कपड़े पहनने की बात करती हैं, तो उसपर इतना बवाल और सवाल क्यों? आख़िर कौन सा जुर्म कर देते हैं वे अगर अपनी पसंद के कपड़े पहनना चाहते हैं। चाहे वह अपनी धार्मिक पहचान के आधार पर कपड़े पहने या फिर जो उसका मन करे वो हर तरह से यह उसका अधिकार होना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। तो क्या अधिकार हैं महिलाओं का? क्यों उनकी पसंद के कपड़ों तक को एक गंभीर मुद्दा बनाया जाता है। नेता तक महिलाओं के कपड़ों को मुद्दा बनाकर उनपर छीटाकंशी करते दिखते हैं।  

नेताओं और अदालतों के विवादित बयान

पिछले साल भारतीय जनता पार्टी के विधायक एमपी रेणुकाचार्य ने कहा था कि आज महिलाओं के कपड़ों के कारण बलात्कार के मामलों की संख्या बढ़ रही हैं क्योंकि उन कपड़ों से पुरुषों को उकसाया जाता है। उन्होंने आगे जोड़ा कि यह सही नहीं और यह आखिरकार हमारे देश की महिलाओं के सम्मान का मामला है। वहीं केरल में नीट की परीक्षा में महिला परीक्षार्थियों को चेकिंग के नाम पर उनके कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। हाल ही में केरल की एक अदालत ने यौन हिंसा के एक मामले में आरोपी को ज़मानत देते हुए हिंसा के लिए महिला के कपड़ों को ज़िम्मेदार माना है।

“मैं सब तरह के कपड़े पहनना पसंद करती हूँ। लेकिन पहनती वही हूँ जो घर वाले कहते हैं। जैसे सूट-सलवार और दुपट्टा। और यह ऐसा होना चाहिए जिसमें बदन न देखे, चिपका-चिपका न हो ताकि लोगों की नज़र न पड़े।”

क्यों नहीं होती है मुझे हैरानी

रोज़ाना की जिंदगी में ऐसे किस्से और खबरें हमारे लिए आम हैं। कभी कोई नेता बोलता है, तो कभी कानून की तरफ से इस तरह की बयानबाजी आ जाती है। हर बार महिलाओं के कपड़ों को एक समस्या की तरह दिखाया जाता है। महिला के कपड़ों को कारण बताकर विक्टिम ब्लेमिंग की जाती है लेकिन यौन हिंसा करने वाले से कोई सवाल तक नहीं। आख़िर कब तक हम पितृसत्तात्मक व्यवस्था के तहत लैंगिक असमानता का बढ़ावा करते रहेंगे। ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जो आए दिन सुनने और देखने को मिलती है। लड़कियों और महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाओं में उनके कपड़ों को मुद्दा बनाकर खड़ा कर दिया जाता है। रोजमर्रा के जीवन में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो इन चीजों को रोज सहती है।

गुरलीन को ऐसे कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था, जिसके अंदर वह लड़की जैसी दिखे। उन्हें वह कपड़े पहनने पसंद नहीं थे जो जेंडर के आधार पर बांटा गया हो। साथ ही, ऐसे कपड़े जिससे वह लड़का या लड़की अलग से नज़र आए। वह सिर्फ पजामा या शर्ट पहनना पसंद करती थी। 

मनपसंद कपड़े पहनने की इच्छा

दिल्ली में रहने वाली चिंकी के बहुत बड़े-बड़े सपने नहीं है। शायद अपनी इच्छा अनुसार कपड़े पहन पाने की छूट ही उसके लिए सबसे बड़ी बात है। वह बताती है, “मैं सब तरह के कपड़े पहनना पसंद करती हूँ। लेकिन पहनती वही हूँ जो घर वाले कहते हैं। जैसे सूट-सलवार और दुपट्टा। यह ऐसा होना चाहिए जिसमें बदन न देखे, बहुत टाइट न हो ताकि लोगों की नज़र न पड़े।” गुरलीन बताती हैं कि उन्हें अपने पसंद के कपड़े पहनने के लिए लोगों से लड़ना पड़ता है। सबसे पहली लड़ाई उन्होंने घर में लड़ी क्योंकि उन्हें ब्रा पहनना पसंद था। उनकी माँ हमेशा कहती ब्रा पहनो और दुपट्टा ओढ़कर रहो। लेकिन वह हमेशा इन बातों का विरोध करती और आज भी यह बात कायम है।

कपड़ों के वजह से मानसिक तनाव

गुरलीन को एक गैर सरकारी संस्था में काम करते वक्त भी अपने कपड़ों की वजह से बहुत सी बातें सुनने को मिली। उन्हीं के साथ के कर्मचारी उन्हें कपड़ों के लिए टोकते थे कि कैसे कपड़े पहने हैं। सूट क्यों नहीं पहनती जैसी बातें। लेकिन गुरलीन को ऐसे कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था, जिसके अंदर वह लड़की जैसी दिखे। उन्हें वह कपड़े पहनने पसंद नहीं थे जो जेंडर के आधार पर बांटा गया हो। साथ ही, जिससे वह लड़का या लड़की अलग से नज़र आए। वह सिर्फ पजामा या शर्ट पहनना पसंद करती थी। 

कपड़ों के चुनाव के मामले में रीना कहती हैं “अपनी पसंद के कपड़े पहनकर जब मैं बाहर जाती हूँ, तब मर्दों से ज्यादा औरत उन्हें घूर-घूर के देखती हैं। इतना ही नहीं, बहुत सी बातें भी कहती हैं जैसे कि कैसी लड़की है, सब कुछ दिख रहा है, कुछ ढंग का पहन लो।” गुलाबो एक शादीशुदा महिला है जो अपने खानदान की पहली बहु है जो पढ़ाई कर रही है। उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि वह सूट-सलवार पहने क्योंकि शादी होने की वजह वह सिर्फ़ साड़ी पहनती है। जब कभी वह पति को कहती है कि क्या वह सूट पहन सकती है तो पति हमेशा मना कर देता है।  

कपड़ों के चुनाव के मामले में रीना कहती हैं “अपनी पसंद के कपड़े पहनकर जब मैं बाहर जाती हूँ, तब मर्दों से ज्यादा औरत उन्हें घूर-घूर के देखती हैं। इतना ही नहीं, बहुत सी बातें भी कहती हैं जैसे कि कैसी लड़की है, सब कुछ दिख रहा है, कुछ ढंग का पहन लो।”

क्या महिलाएं अपनी पसंद के कपड़े पहनती है

अलग-अलग महिलाओं से बात करने पर ज्यादातर के जवाब यही मिलें कि वे जो पहनती हैं या जिस तरह के कपड़े उन्हें पसंद नहीं। इसको लेकर उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। बड़ी संख्या में महिलाओं और लड़कियों को उनकी पसंद या सहजता के आधार पर कपड़े पहनने की वजह से टॉर्गेट किया जाता है। इस तरह की छीटाकंशी की वजह से बहुत सी महिलाओं ने कहा है कि वे वह कपड़े पहनाना पसंद करती हैं जिससे लोगों की नजरें उनपर कम जाए। वही अगर वह पसंद के कपड़े पहनती है तो समाज और लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं। चाहे वह अपने घर में ही क्यों न हो, लोग बोलना बंद नहीं करते। इसी तरह के अनुभव में निजी भी है। मुझे भी अपनी पसंद के कपड़े पहने के लिए संघर्ष करना पड़ा। घर और बाहर हर जगह इस तरह के संघर्ष करने पड़े और यह पुरुषवादी समाज में महिलाओं के साथ होने वाली वह असमानता है जिस पर चर्चा तक नहीं की जाती है।

मुझे जब मेरे कपड़ों की वजह से भेदभाव और रोक-टोक का सामना करना पड़ा तो काफी चीजें परेशान करने वाली थी। शुरुआत में मुझे यह सब समझ ही नहीं आया था कि यह क्या हो रहा है। किशोरावस्था में शरीर में अनेक बदलाव हो रहे थे लेकिन कभी किसी ने बातों के बारे में बताया नही। और बड़े प्यार से दुप्पटा और चुन्नी ओढ़ाया जो कि मुझे कभी भाता नहीं था। मेरी माँ का कहना था कि यह मुझे गंदी नजरों से बचाएगा। मैं छोटी थी और दुपट्टा मेरे पहचान और इच्छा से बड़ा। मैं कभी अलमारी में टुप्पटा छुपा देती तो कभी गिला कर देती तो कभी कैची चलाती और उसको फाड़ देती ताकि कोई ओड़ने को कहे तो ये कारण कहती। ये सारी कहानी उन्हें बताती पर फ़िर माँ से मार खाती। बहुत सवाल उन दिनों मेरे मन में चलते चल रहे होते थे। भाई भी तो बड़ा हो रहा था। उसे फ़िर चुन्नी क्यों नहीं ओढ़ाई जाती। सारा भार मुझ पर ही क्यों? 

घर की चारदिवारी में रहते हुए हर चीज के लिए संघर्ष करना पड़ा। वहाँ लड़की होने की वजह से जिंदगी में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। मेरा शारीरिक गठन गठीला और बड़ा था। मेरे तन और मन दोनों बदल रहे थे। लेकिन कभी किसी ने बातों के बारे में बताया नहीं। लेकिन बड़े प्यार से दुप्पटा और चुन्नी ओढ़ाया जो कि मुझे कभी भाता नहीं था। लेकिन माँ का कहना था कि यह मुझे गंदी नजरों से बचाएगा।

क्या आज बदले हैं हालात

आज भी स्थिति बहुत बदली नहीं है घर में अपनी पसंद के कपड़े पहना मुश्किल है। घर के बाहर जाकर मैं अपने पसंद के कपड़े जरूर पहनती हूँ। लेकिन हमेशा अपनी पसंद के कपड़े पहनने की वजह से लोग बहुत बुरा-भला कहते हैं। जहाँ काम करती थी वहाँ तो मुझे बिगड़ी लड़की मान कर सुधारने में लग गए। ढंग के कपड़े पहनो, छाती ढकी रखो और भी बहुत कुछ जिसकी वजह से मुझे नौकरी तक छोड़नी पड़ी। मेरे चरित्र पर बहुत सारे सवाल उठाए गए क्योंकि मैं अपनी पसंद के कपड़े पहनती हूँ। आज़ादी के इतने साल बाद भी हम औरतें या लड़कियाँ अपनी पसंद के कपड़े पहन नहीं पाती है और समाज में रहने वाला हर व्यक्ति औरतों को सिखाता है, क्या पहनाना चाहिए। लैंगिक भेदभाव की जड़े इतनी गहरी है कि महज कपड़ों की वजह से भी हम महिलाओं और लड़कियों को अपने कपड़ों की वजह से हिंसा, भेदभाव, अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।  

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