समाजकानून और नीति लिव-इन रिलेशनशिप : समाज से लेकर अदालतें भी रूढ़िवादी सोच से पीड़ित हैं

लिव-इन रिलेशनशिप : समाज से लेकर अदालतें भी रूढ़िवादी सोच से पीड़ित हैं

लोग लिव-इन रिलेशन के माध्यम से एक अच्छे साथी की खोज में होते हैं। वह समझते हैं कि साथ रहने के लिए केवल प्यार काफी नहीं है।

वेबसाइट बूमलाइव की रिपोर्ट बताती है कि बीती 11 मई से 18 मई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव-इन में रह रहे जोड़ों की पांच याचिकाओं पर सुनवाई की है। जिसमें से तीन सिंगल बेंच ने जोड़ों को सुरक्षा देने का आदेश दिया जबकि 2 अन्य ने ऐसा नहीं किया। अब इस मुद्दे पर एक बड़ी बेंच अपना फैसला सुनाएगी। उदाहरण के तौर पर बीती 18 मई को ऐसी ही एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की बेंच ने यह कहते हुए एक कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप सामाजिक और नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। जिन कपल्स को कोर्ट द्वारा सुरक्षा नहीं दी गई उस फैसले का कोई विशेष आधार ना होने के कारण यह तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। समाज से हटकर कोई भी व्यक्ति कोर्ट में जाता है तो उसे इतनी उम्मीद होती है कि कानून संवैधानिक रूप से सभी उनकी स्थिति को देखते हुए उसके न्याय के पक्ष में फैसला देगा लेकिन अगर कोर्ट समाज का हवाला देकर इस तरह का कदम उठाएगी तो जाहिर सी बात है समाज आगे बढ़ने के बजाय पीछे चला जाएगा। जहां फैसला किसी की जान के लिए होना है, चाहे वो किसी भी प्रकार की याचिका हो उस पर कोर्ट का फैसला सुरक्षा के मद्देनजर ही होना चाहिए था।

यह किस प्रकार का फैसला है जहां कोई अपनी जिंदगी के लिए सुरक्षा मांग रहा है, वहीं कोर्ट समाज की नैतिकता के चलते सुरक्षा नहीं दे पा रहा है। बता दें कि ऑनर किलिंग ऐसी ही मानसिकता का घिनौना रूप है। ऑनर किलिंग की घटनाएं जो अक्सर तब होती है जब प्रेमी जोड़े घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ किसी अन्य जाति या धर्म में शादी करते हैं या प्रेम करते हैं। इसके अलावा वर्ग का फासला भी इस तरह के अपराधों में काफी मायने रखता है। अगर कोर्ट इस प्रकार का फैसला सुनाता है तो हो सकता है वह ऑनर किलिंग से जुड़े आंकड़ों को गंभीर न मानता है। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 से प्रेम-प्रसंग से जुड़ी हत्या के मामले में 28 फीसद की वृद्धि हुई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नाधिश जो दलित समुदाय से संबंध रखता था उसे स्वाति जो कि उच्च जाति की थी उससे प्रेम हो जाता है, कुछ समय बाद यह दोनों शादी भी कर लेते हैं लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद ही स्वाति के पिता दोनों का मर्डर कर देते हैं और तमिलनाडु के कृष्णागिरी में नदी के पास फेंक देते हैं।

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इसके अलावा मई 2018 में केविन जोसेफ और नीनू जो आपस में एक-दूसरे के साथ रहना चाहते थे, दोनों ने शादी भी कर ली थी लेकिन लड़की के पिता जिन्हें अपनी ‘इज्जत’ बेहद प्यारी की उन्होंने केविन की हत्या करवा दी। शायद इससे उनकी बिगड़ी हुई इज्जत बच गई हो, बाद में केविन की लाश कोल्लम बांध के पास मिली। नीनू के पिता को यह संबंध गवारा नहीं था क्योंकि वह लड़का अलग धर्म से संबंध रखता था। इस तरह की कई घटनाएं हैं जो समाज का घिनौना चेहरा सामने लाती हैं। जो यह बताना चाहती हैं कि बच्चे अपनी सीमा लांघने की कोशिश ना करें, अपने वर्ग और जाति से अलग ना सोचे। एक नागरिक के तौर पर उनका कोई अधिकार मायने नहीं रखता। वे बस यह जानते हैं कि आप अगर इस तरह का कोई कदम उठाते हैं तो उससे उनकी इज्ज़त चली जाती है, घर का नाम खराब होता है और संस्कृति खराब होती है। खास तौर पर ऐसा लड़कियों के मामले में होता है क्योंकि घर की ‘इज्ज़त’ तो लड़की ही होती है। ऊपर दिए गए उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि दोनों ही मामलों में लड़की के पिता ही ऑनर किलिंग जैसा कदम उठा रहे हैं।

लिव-इन रिलेशन को लेकर बहुत सारी धारणाएं हैं। जो लोग इस तरह के रिलेशन में हैं वे इसे एक अच्छा विकल्प मानते हैं जिसमें आप उस इंसान के साथ रह सकते हैं जिसके साथ आप रहना चाहते हैं। यह हमारे जीवन जीने का तरीका है जो हमारा मौलिक अधिकार है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार यह आपका मौलिक अधिकार है कि आप किसी के भी साथ अपनी इच्छानुसार बेफिक्र होकर रह सकते हैं। जो लोग यह मानते हैं कि लिव-इन संबंध में रहने पर कभी भी कुछ भी हो सकता है या तो ऐसा नहीं है यह रिलेशन कानूनी रूप से पूरी तरह से सुरक्षित है। उदाहरण के तौर पर घरेलू हिंसा का कानून जो एक शादीशुदा जोड़े पर कायम होता है वह समान रूप से लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ो पर भी लागू होता है। अगर कभी दोनों के बीच बात बिगड़ती भी है तो पीड़ित घरेलू हिंसा कानून के तहत केस दर्ज करवा सकता है। हालांकि लिव इन रिलेशन में इस प्रकार की स्थिति शादी संबंधों के मुकाबले कम देखी जा सकती है क्योंकि इस रिश्ते में दो लोग एक-दूसरे की इच्छा से साथ में रहते हैं। उन पर किसी तरह का कोई दवाब नहीं होता। लोग लिव-इन रिलेशन के माध्यम से एक अच्छे साथी की खोज में होते हैं। वह समझते हैं कि साथ रहने के लिए केवल प्यार काफी नहीं है। दोनों आगे आने वाले समय में साथ रह सकें उसके लिए आपसी समझ भी बेहद ज़रूरी है ताकि आगे उन्हें मानसिक तनाव और शारीरिक प्रताड़ना जैसी स्थिति का सामना ना करना पड़े। 

युवा पीढ़ी इस तरह की समस्या से बचने के लिए लिव इन रिलेशन को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखती है। इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने लिव-इन रहने वाले लोगों से बात की। दिल्ली के शाहदरा में रहने वाले अनिल और सुरभि (बदले हुए नाम) बताते हैं कि वह लगभग ढाई साल से साथ में हैं लेकिन जिस घर में वह रहते हैं। उसके अलावा उन्हें बाहर भी अपने-आप को एक दोस्त की तरह ही दिखाना होता है ताकि लोग कोई अजीब प्रतिक्रिया ना दें। कई बार लोग उनके रिश्ते को लेकर सवाल करते हैं तो वह दोस्त के रूप में दिखाते हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के हाव-भाव के कारण उन्हें मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता था। हालांकि अब ऐसा कम होता है। वे यह मानते हैं कि शादी समाज में रहने के लिए ज़रूरी है शादी के बिना समाज में नहीं रहा जा सकता लेकिन जिसे हम पसंद करते हैं, जिसका साथ हमें अच्छा लगता है उसके साथ रहना अन्य अनुभवों में से एक है और एक अच्छे रिश्ते की नींव है। अगर संस्कृति को देखे तो इसमें महिलाओं को किस तरह से रखा गया है, उन्हें किस प्रकार की की समानता दी जाती है, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है। संस्कृति एक तरह का सामाजिक दबाव कायम करती है जो समय और स्थिति के अनुसार बदलता भी है। उन्होंने बताया कि हमारे घरों में भी इस प्रकार के रिश्ते को मंजूरी नहीं है। हालांकि दोनों के बहन और भाई हमारे रिश्ते के बारे में जानते हैं। अनिल कहते हैं कि उनके घर में माहौल कुछ इस तरह का है कि वे सब जानते हुए भी इस बारे में जानना नहीं चाहते। लिव-इन रिलेशन को लेकर बहुत सारी धारणाएं हैं। जो लोग इस तरह के रिलेशन में हैं वे इसे एक अच्छा विकल्प मानते हैं जिसमें आप उस इंसान के साथ रह सकते हैं जिसके साथ आप रहना चाहते हैं। यह हमारे जीवन जीने का तरीका है जो हमारe मौलिक अधिकार है।

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शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018) मामले में सुप्रीम कोर्ट लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी दर्जा देता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पीठ ने यह स्पष्ट किया था कि दंपत्ति / परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए और यदि आवश्यक हो तो उन्हें उसी जिले के भीतर या कहीं और सुरक्षित घर में भेजा जाना चाहिए । इसके साथ ही राज्य सरकार को सुझाव दिया गया था वह प्रत्येक जिला मुख्यालय में एक सेफ हाउस स्थापित करने पर विचार कर सकता है। नंद कुमार और अन्य बनाम केरल राज्य में जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने इस बात पर जोर दिया है कि लिव इन रिलेशनशिप को संविधान ने ही मान्यता दी है, जिसने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 के तहत अधिनियम की धारा 2 खंड 2 के प्रावधान के तहत अपना स्थान पाया है। विवाह के समान इस रिश्ते में रहने वाले पुरुष साथी और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ जरूरत पड़ने पर शिकायत भी दर्ज कराई जा सकती हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई कर रहे यशवीर मौर्य बताते हैं कि लिव इन रिलेशन हमारे मौलिक अधिकारों में शामिल हुए तो अगर कोर्ट सुरक्षा ना देने का फैसला देते हैं और उसका आधार सामाजिक नैतिकता बताता है तो यह सीधे तौर पर मौलिक अधिकारों का हनन है जो हमारे जीवन जीने के अधिकारों में शामिल होता है।

ऊपर दिए गए उदाहरण से यह साफ होता है की कोर्ट भी लिव इन रिलेशन को स्वीकृति दे चुका है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोच्चि फैमिली कोर्ट के अनुसार साल 2019 में 3122 तलाक की याचिका कोर्ट में दायर की गई थी। आगे आने वाले समय में यह आंकड़ा और बढ़ता हुआ नजर आया, साल 2020 के पहले 24 दिनों में ही 226 तलाक की याचिका डाली गई। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि तलाक लेने वाले जोड़ों की संख्या बढ़ी है। साथ ही साल 2015 से पहले एक रिपोर्ट के अनुसार तलाक का आंकड़ा बेहद कम था यानी 100 में से केवल एक ही जोड़ा तलाक की याचिका डालता था लेकिन उसके बाद से यह आंकड़े बहुत तेजी से बढ़े हैं। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में अक्सर मां-बाप बच्चों की शादी अपने अनुसार कर तो देते हैं लेकिन उसके बाद उन लोगों के संबंध कई कारणों से ठीक प्रकार से नहीं चल पाते जिनमें से कई लोग तलाक की अर्जी डाल देते हैं तो वहीं कई लोग परिवार के दवाब में आपस में घुटते चले जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जितना बड़ा टैबू हमारे समाज को लिव-इन रिलेशनशिप को माना जाता है, उतना ही बड़ा टैबू तलाक को माना जाता है।

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तस्वीर साभार : Tribune India

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