खेलों को हमेशा एक व्यक्ति के विकास और कौशल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला कहा गया है। इतना ही नहीं सामुदायिक विकास और कूटनीति तक के लिए खेलों का इस्तेमाल होता आया है। लेकिन जब खेलों में ट्रांसजेंडर के अधिकार की बात आती है तो इसमें पहली चर्चा आज भी ट्रांस समुदाय की खेलों में शामिल होना या बैन तक सीमित है। खेलों को समावेशी और विभिन्नता का प्रतीक कहा जाता है लेकिन खेलों में ट्रांस समुदाय से आने वाले खिलाड़ियों के लिए अनेक बाधाएं लगातार बनी हुई है और बढ़ती भी जा रही है।
सरकार, नेताओं और खेल संस्थाएं ऐसे नियम बना रही है कि ट्रांस खिलाड़ियों के खेलने पर बैन लगाया जा रहा है। पहली नज़र में यह खेल जगत में स्थापित राजनीति और लैंगिक रूढ़िवाद को दिखाता है। पिछले कुछ समय से अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा खेलों में ट्रांस खिलाड़ियों को प्रतिबंध करने की ख़बरे सामने आ रही है। बीते मंगलवार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने ट्रांसजेंडर महिला खिलाड़ियों पर बैन लगा दिया है। बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार आईसीसी के ट्रांस महिला खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय महिला मैच में खेलने से रोक दिया है।
आईसीसी के मुख्य कार्यकारी ज्योफ एलार्डिस ने कहा है, “जेंडर पात्रता नियमों में बदलाव एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया के परिणाम के बाद हुआ है और यह विज्ञान आधारित है और यह समीक्षा के तहत विकसित किए गए मूल सिद्धांतों के अनुरूप है। हमारी प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय महिला खेल की अखंडता और खिलाड़ियों की सुरक्षा की रक्षा करना है।”
आईसीसी के नये नियमों के अनुसार कोई भी खिलाड़ी जो पुरुष प्यूबर्टी से गुजर चुका है, किसी भी सर्जरी या ट्रीटमेंट के बाद महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए योग्य नहीं होगा। आईसीसी ने कहा है कि नए नियमों की दो साल के भीतर समीक्षा की जाएगाी। ट्रांस महिला के ऊपर ये पाबंदी नौ महीने की परामर्श प्रक्रिया के बाद तय की गई है। गवर्निंग बॉडी ने कहा है कि नए नियम-नीति तुरंत प्रभावी होती है। आईसीसी ने कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट की अंखड़ता और खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए यह निर्णय ले रही है।
इस बदलाव पर आईसीसी के मुख्य कार्यकारी ज्योफ एलार्डिस ने कहा है, “जेंडर पात्रता नियमों में बदलाव एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया के परिणाम के बाद हुआ है और यह विज्ञान आधारित है और यह समीक्षा के तहत विकसित किए गए मूल सिद्धांतों के अनुरूप है। हमारी प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय महिला खेल की अखंडता और खिलाड़ियों की सुरक्षा की रक्षा करना है।” क्रिकेट में ट्रांस खिलाड़ियों पर बैन का फैसला कनाडा की पहली ट्रांस क्रिकेटर डेनिएल मैकगेही के आईसीसी के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के ठीक दो महीने बाद लिया गया है।
आईसीसी के नियम के बदलाव के बाद कनाडा की ओर से खेलने वाली ट्रांस खिलाड़ी डेनियल मैकगेही अब नहीं खेल पाएगी। पिछले नियम टेस्टोस्टेरोन के कम स्तर पर आधारित थे। मैकगैही ने पुराने सभी मानदंडों को पूरा किया था। इसी साल के शुरू में वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली पहली ट्रांस महिला खिलाड़ी बनी थी।
मैकगेही ने लॉस एंजिल्स में आईसीसी टी-20 विश्व कप क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में छह अंतरराष्ट्रीय मैच खेले थे जहां उन्होंने छह पारियों में 19.66 के औसत से 118 रन बनाए। उनका सर्वोच्च स्कोर ब्राजील के ख़िलाफ़ 45 गेंदों में 48 रन था। ट्रांस महिला खिलाड़ियों के बैन पर मैकगेही ने कहा है “यह स्पष्ट रूप से अविश्वसनीय और निराशाजनक है। मुझे उम्मीद है कि यह किसी को भी उसके सपनों का पीछा करने से हतोत्साहित नहीं करेगा। ट्रांस महिलाएं खेल में भी है और क्रिकेट में भी है।”
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार डेनियल मैकगेही ने घोषित नये नियमों के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की है। आईसीसी के यह नियम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लागू होंगे। घरेलू क्रिकेट बोर्ड अपने नियम स्थापित कर सकता है लेकिन ट्रांस क्रिक्रेटरों के महिला क्रिकेट के बैन के बाद जेंडर पात्रता घरेलू क्रिकेट बोर्डों के लिए एक विषय बनेगी। वर्तमान में इंग्लैड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के मार्गदर्शन के तहत सभी ट्रांस महिलाओं को महिला की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए मंजूरी के लिए लिखित आवेदन करना होगा। फिर केस टू केस के आधार पर साक्ष्यों की समीक्षा की जाएगी। गार्डियन की ख़बर के अनुसार ईसीबी ने कहा है कि हम लगातार समावेशिता, सुरक्षा और निष्पक्षता पर विचार करते हुए अपनी ट्रांसजेंडर नीति की समीक्षा जारी रखेंगे और इस काम के हिस्से के रूप में आईसीसी नियमों पर विचार करेंगे।
लगतार खेलों से ट्रांस समुदाय को किया जा रहा है दूर
ट्रांस समुदाय के लोगों को खेलों में आगे आकर और अपनी प्रतिभा दिखाने से लगातार रोका जा रहा है। अन्य खेलों में भी खिलाड़ियों को बैन किया जा रहा है। इसी वर्ष अप्रैल में विश्व एथलेटिक्स ने तय किया था कि ट्रांसजेंडर एथलीट ट्रैक एंड फील्ड में हिस्सा नहीं लेंगे। इससे आगे जुलाई में वर्ल्ड साइकलिंग की गवर्निंग बॉडी यूसीआई ने महिला स्पर्धाओं में हिस्सा लेने से ट्रांस महिलाओं पर रोक लगाई थी। इससे पहले रग्बी यूनियन, तैराकी, साइकिलिंग, एथलेटिक्स और रग्बी लीग भी निष्पक्षता और सुरक्षा पर चिंताओं का हवाला देते हुए ट्रांस खिलाड़ियों को खेल प्रतियोगिता से प्रतिबंधित कर चुके हैं।
इस तरह के एंटी ट्रांस स्पोर्ट्स फैसले दुनियाभर में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को अधिक कंलकित करने और उनके साथ होने वाले भेदभाव को और क्रूर करने काम करते हैं। एचआरसी फाउंडेशन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार 2021 में 27 एजीबीटीक्यू+ विरोधी नियम बडे़ स्तर पर लागू हुए थे जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 55 से अधिक सीधे तौर पर खेलों में ट्रांस खिलाड़ियों को निशाना बनाते हुए फैसले लिए गए और उन्हें टीम में उनकी जेंडर की पहचान की तहत खेलने से रोकते हैं।
ट्रांस समुदाय पर खेलों में बैन का स्वास्थ्य पर भी असर
लगातार दुनिया के अलग-अलग देशों में इस तरह के फैसले सामने आ रहे हैं जो ट्रांस एथलीट्स के खेलों में हिस्सा लेने पर रोक लगाते है। अमेरिका में लगभग आधे राज्यों में जेंडर अफर्मिंग प्यूबर्टी ब्लॉकर्स, हार्मोन्स एंड सर्जरी तक ट्रांस युवाओं की पहुंच पर प्रतिबंध के बाद कई राज्यों में ट्रांस युवाओं की भागीदारी खेलों में सीमित कर रहे है। अमेरिका में तेईस राज्य ट्रांस युवाओं को उनकी लैंगिक पहचान के अनुरूप स्कूली खेलों में भाग लेने से प्रतिबंधित करते हैं।
इस तरह के बैन के बाद जेएएमए में प्रकाशित शोध में यह बात जानने की कोशिश की गई है कि ट्रांस खिलाड़ियों और युवाओं पर लगे बैन का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है।। शोध के अनुसार इस तरह के बैन ट्रांस समुदाय बडे़ स्तर पर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में स्थायी गिरावट में योगदान कर सकते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि ट्रांस समुदाय पर खेलों का प्रतिबंध एक स्वास्थ्य का भी मुद्दा है।
इस तरह के संकीर्ण प्रतिबंध ट्रांस समुदाय के अधिकारों पर बड़े हमले के रूप में काम करते हैं। खेलों पर प्रतिबंध एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के युवाओं को आगे बढ़ने से रोकने और उदास होने का एक कारण बन सकते है। खेलों की संस्थाओं की ओर से लिए जा रहे ये रूढ़िवादी नियमों को स्थापित करने के साथ-साथ राजनीति का वो चेहरा भी जाहिर करती है जहां लैंगिक भेदभाव हर स्तर पर हावी है। साथ ही यह बहस उस जेंडर बाइनरी के बाहर निकलकर सोचने को भी कहती है क्योंकि स्त्री-पुरुष से अलग लैंगिक पहचान वाले भी लोग हैं और कही अधिक विविधता है।
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