समाजकैंपस हैदराबाद इफलू विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न का मामला और हमारे कैंपसों का असुरक्षित माहौल

हैदराबाद इफलू विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न का मामला और हमारे कैंपसों का असुरक्षित माहौल

यह मामला 18 अक्टूबर 2023 को देर रात सामने आया। जब छात्रों ने प्रदर्शन शुरू किया तो उन पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कई एफआईआर दर्ज कराई गई, अब तक छात्रों के ख़िलाफ़ कुल तीन एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी हैं। इस मामले पर हमने इफलू के छात्रों से बात की जो इन प्रदर्शनों में शामिल रहे और एफआईआर में नामज़द हैं।

हैदराबाद स्थित इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजेस यूनिवर्सिटी की एक छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न का मामला सामने आने के बाद से विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं। सर्वाइवर के लिए न्याय की मांगें तेज़ होने लगती हैं। लेकिन छात्रों के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले में असंवेदनशीलता और गैर जिम्मेदारी बरत रहा है। 

इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजेस यूनिवर्सिटी (इफलू) में पिछले एक माह से विवाद छिड़ा हुआ है। इफलू के छात्र पिछले काफी वक्त से विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न की संवेदनशीलता, रोकथाम और निवारण (स्पर्श) समिति के पुनर्गठन की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें अधिकतर तादाद में महिला छात्राएं मौजूद थीं। जिनमें से एक छात्रा के साथ जो इन प्रदर्शनों में सक्रियता से शामिल थीं लगभग रात के दस बजे दो लड़कों द्वारा प्रदर्शन को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं और छात्रा पर शारीरिक हमला भी किया गया। जिसके बाद से यूनिवर्सिटी कैंपस में सर्वाइवर के साथ हुए बर्ताव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन होने शुरू हो गए। 

बी. ए. इंग्लिश की छात्रा नूरीन (बदला हुआ नाम) बताती है, “यह मामला 18 अक्टूबर को हुआ और 19 अक्टूबर की सुबह लगभग पांच बजे विश्वविद्यालय के छात्र प्रॉक्टर आवास पर जमा हुए। छात्र शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रॉक्टर से जवाब मांगने लगे। कुछ देर बाद प्रॉक्टर ने हमें संबोधित किया और छात्रा के साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ कार्रवाई का आश्वासन दिया।”

छात्रों के अनुसार यह मामला 18 अक्टूबर 2023 को देर रात सामने आया। जब छात्रों ने प्रदर्शन शुरू किया तो उन पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कई एफआईआर दर्ज कराई गई, अब तक छात्रों के ख़िलाफ़ कुल तीन एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी हैं। इस मामले पर हमने इफलू के छात्रों से बात की जो इन प्रदर्शनों में शामिल रहे और एफआईआर में नामज़द हैं। पहली और तीसरी एफआईआर में नामज़द और बी. ए. इंग्लिश की छात्रा नूरीन (बदला हुआ नाम) बताती है, “यह मामला 18 अक्टूबर को हुआ और 19 अक्टूबर की सुबह लगभग पांच बजे विश्वविद्यालय के छात्र प्रॉक्टर आवास पर जमा हुए। छात्र शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रॉक्टर से जवाब मांगने लगे। कुछ देर बाद प्रॉक्टर ने हमें संबोधित किया और छात्रा के साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ कार्रवाई का आश्वासन दिया।”

वह आगे बताती है कि 18 अक्टूबर को यूनिवर्सिटी कैंपस में फिलिस्तीन को लेकर एक चर्चा रखी गई थी लेकिन जब छात्र इस चर्चा के लिए जमा हुए तो विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इसे रोकने को कहा गया जिसके बाद उस आयोजन को रद्द कर दिया गया। इस घटना के दूसरे ही दिन यानी 19 अक्टूबर को अचानक एक एफआईआर आती है जिसमें 11 छात्र नामज़द होते हैं और यह एफआईआर विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर टी सैमसन की शिकायत पर दर्ज की जाती है। जिसमें भारतीय दंड संहिता की धाराएं 153, 143, 153a, 149 के तहत मामला दर्ज किया जाता है। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से यह शिकायत दर्ज की जाती है कि छात्रों ने एक आयोजन को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में सांप्रदायिक माहौल फैलाने का प्रयास किया जबकि वे चर्चा का आयोजन विश्वविद्यालय प्रशासन के आदेश के बाद फौरन रद्द कर दिया गया था। लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि प्रशासन उसी आयोजन का सहारा लेकर छात्रों पर अवैध मामले दर्ज करा रहा है। 

इफलू से पीएचडी कर रहे छात्र जिन्होंने अपना नाम ना बताने की शर्त पर हमसे बात करते हुए कहा कि इस मामले में पहली एफआईआर जब हुई तो उसमें एक ऐसे छात्र का भी नाम मौजूद था जो उस समय राज्य में ही मौजूद नहीं था। इसी से मालूम होता है कि यह एफआईआर अपने आप में ही अवैध है इसका कोई आधार नहीं। इसी मामले के‌ चलते प्रॉक्टर को बदल दिया गया और वाइस चांसलर का कार्यकाल भी खत्म हो चुका है। छात्रा के साथ हुए अन्याय के संबंध में मामला तो दर्ज हो चुका है लेकिन पुलिस अब तक आरोपियों को ढूंढ नहीं पाई। उल्टा न्याय की गुहार लगा रहे छात्रों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए जा रहे हैं।

नूरीन ने हमें यह भी बताया कि जब प्रदर्शनों का सिलसिला जारी था इस दौरान एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पर छात्रों द्वारा एक प्रदर्शन किया गया जिसके बाद चार छात्रों के ख़िलाफ़ एक प्रोफेसर जो पर्सन विद लो विजन हैं, की शिकायत पर एक दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई। प्रोफेसर का तर्क है कि छात्रों ने उन पर हमला करने की कोशिश की और उनके ख़िलाफ़ नारेबाजी की। लेकिन छात्रों के अनुसार ऐसा कुछ नहीं था छात्र शांतिपूर्ण तरीके से इंसाफ की मांग कर रहे थे जिसे बार-बार विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अनदेखा किया जा रहा था। वह आगे कहती है, “दूसरी एफआईआर में जो धाराएं लगाई गई उनमें विकलांग व्यक्तियों के ख़िलाफ़ अत्याचार से संबंधित और भी कई गंभीर आपराधिक धाराएं शामिल थीं। ऐसा लग रहा था जैसे छात्र ही मुजरिम हैं जबकि असल मुजरिमों का अब तक कोई अता-पता नहीं। 

रजिस्ट्रार द्वारा दर्ज एफआईआर की कॉपी।

छात्रों से बात करने के दौरान हमें तीनों एफआईआर की सॉफ्ट कॉपी प्राप्त हुई तो हमने उन्हें पढ़ने की कोशिश की। पढ़ने पर यह मालूम हुआ कि दूसरी एफआईआर डॉ सुरेश बाबू नामक प्रॉफेसर की शिकायत पर दर्ज की गई जबकि तीसरी एफआईआर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रॉफेसर नरसिम्हा राव केदारी की शिकायत पर दर्ज की गई।

एक अन्य छात्र हर्षित (बदला हुआ नाम) ने हमसे बात करते हुए बताया कि छात्रों की मांगें हैं कि यौन उत्पीड़न की संवेदनशीलता, रोकथाम और निवारण (स्पर्श) समिति पुनर्गठन की जाए, छात्रा के साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए और इस दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन की गैर जिम्मेदारी के चलते वाइस-चांसलर समित सभी पदाधिकारि इस्तीफा दें और छात्रों पर दर्ज किए गए अवैध केस को जल्द से जल्द वापस लिया जाए। इन्हीं मांगों को लेकर 6 नवंबर को छात्रों ने भूख हड़ताल की लेकिन उसी समय पुलिस ने छात्रों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया ताकि छात्र प्रदर्शन ना करें। कुछ घंटों की हिरासत के बाद सभी छात्रों को छोड़ दिया गया।

18 अक्टूबर की घटना के बारे में बताते हैं कि इफलू का कैंपस अन्य विश्वविद्यालयों की तरह कोई बहुत बड़ा कैंपस नहीं है जहां सुरक्षा को लेकर कोई समस्या हो। लगभग 100 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरे और सैंकड़ों सुरक्षा गार्ड्स के होते यह घटना कैंपस के गेट के करीब हुई। जहां पर सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षाकर्मी हर वक्त मौजूद होते हैं इसके बावजूद अब तक अपराधियों का पता नहीं लगाया जा पा रहा है। 

इस घटना के दूसरे ही दिन यानी 19 अक्टूबर को अचानक एक एफआईआर आती है जिसमें 11 छात्र नामज़द होते हैं और यह एफआईआर विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर टी सैमसन की शिकायत पर दर्ज की जाती है। जिसमें भारतीय दंड संहिता की धाराएं 153, 143, 153a, 149 के तहत मामला दर्ज किया जाता है।

छात्रों के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले को अनावश्यक रूप से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। असल मामले पर कार्रवाई करने के बजाए मामले को छिपाने का प्रयास कर रहा है। छात्र पिछले एक माह से न्याय की मांग कर रहे हैं लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। जब इस मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन से उनका पक्ष जानने के लिए हमने रजिस्ट्रार प्रॉफेसर नरसिम्हा राव केदारी से संपर्क किया तो उन्होंने बात को यह कहते हुए टाल दिया कि आधे घंटे बाद कॉल करें अभी लंच टाइम है। जबकि हमने 2:30 बजे के करीब उन्हें कॉल किया था।


नोटः लेख में शामिल सभी तस्वीरें उवैस सिद्दीकी ने उपलब्ध करवाई हैं।

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