इंटरसेक्शनलजेंडर खुद की पसंद से साथी चुनने पर भावनात्मक हिंसा का सामना करती महिलाएं!  

खुद की पसंद से साथी चुनने पर भावनात्मक हिंसा का सामना करती महिलाएं!  

लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा के रूप बहुत व्यापक है। महिलाएं और जेंडर माइनॉरिटी के ख़िलाफ़ हिंसा केवल शारीरिक हिंसा तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्हें भावनात्मक हिंसा का भी सामना करना पड़ता है।

“जब आप एक लड़की होकर अपनी पसंद से जीना चाहती हैं तो आपका बहिष्कार कर दिया जाता है। औरतों को समाज में कैसे रहना चाहिए, कैसे प्यार करना चाहिए और कैसे व्यवहार करना चाहिए इसका एक तय पैमाना है अगर इससे अलग आप कुछ करते हैं तो आपके करीबी, आपका परिवार आपकी सबसे बड़ी बाधा होते हैं। सब आप पर दबाव बनाते  हैं और एक वक्त आपको लगता है कि आप अकेले और अब जो करना है खुद ही करना है।” दिव्यांशी नर्गिंस की पढ़ाई करने वाली छात्रा हैं जो कुछ समय से एक रिलेशनशिप में हैं। 

भारतीय संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को खुद की पसंद से जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। कानून के तहत 18 साल की उम्र के बाद दो बालिग व्यक्ति अपनी पसंद के साथ किसी से भी विवाह कर सकता है लेकिन भारतीय पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज में संविधान के द्वारा दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी को सबसे पहले नष्ट किया जाता है। पुरुषवादी समाज में जब एक लड़की अपनी एजेंसी का इस्तेमाल करते हुए खुद की पसंद से जीवनसाथी चुनने का फैसला करती है तो उसे हिंसा का सामना करना पड़ता है।

लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा के रूप बहुत व्यापक है। महिलाएं और जेंडर माइनॉरिटी के ख़िलाफ़ हिंसा केवल शारीरिक हिंसा तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्हें भावनात्मक हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। दिव्यांशी जैसी बहुत सी महिलाएं हैं जिन्होंने चयन के अधिकार के इस्तेमाल की वजह से अपने जीवन में भावनात्मक हिंसा का सामना किया है। उनके अनुभव साधारण लग सकते है लेकिन उनकी जड़े इतनी गहरी है कि उन्होंने अवसाद का सामना किया है और खुद के व्यक्तित्व को शून्य होता महसूस किया है।

हेल्थलाइन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भावनात्मक दुर्व्यवहार में आपको डराने, नियंत्रित करने या अलग-थलग करने का प्रयास किया जाता हैं। इस प्रकार के दुर्व्यवहार में शारीरिक हिंसा शामिल नहीं है, हालांकि इसमें मौखिक रूप से हिंसा की धमकियां शामिल होती है। यह व्यवहार धीरे-धीरे शुरू होता है और लगातार बना रहता है।

भावनात्मक हिंसा  क्या है?

मनोवैज्ञानिक हिंसा, लैंगिक हिंसा का ऐसा कृत्य है जो भावनात्मक हानि पहुंचाता है। जहां किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान के कारण किसी की गतिविधियों को नियंत्रित करना, उस पर प्रतिबंध लगाना आदि। नैशनल डायमेस्टिक वायलेंस हॉटलाइन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भावनात्मक शोषण को पहचान पाना आसान नहीं होता है। इसकी सूक्ष्मता के कारण इसका शुरू में पता लगाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन भावनात्मक हिंसा अन्य शोषण का एक आधार होती है। अक्सर इसका इस्तेमाल कर सर्वाइवर के आत्म सम्मान और आत्म मूल्य को खत्म कर दिया जाता है और शोषण करने वाला भावनात्मक निर्भरता को बढ़ाता है।

हेल्थलाइन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भावनात्मक दुर्व्यवहार में आपको डराने, नियंत्रित करने या अलग-थलग करने का प्रयास किया जाता हैं। इस प्रकार के दुर्व्यवहार में शारीरिक हिंसा शामिल नहीं है, हालांकि इसमें मौखिक रूप से हिंसा की धमकियां शामिल होती है। यह व्यवहार धीरे-धीरे शुरू होता है और लगातार बना रहता है। 26 वर्षीय आंचल खुद की पसंद से शादी करने के कारण अपने साथ हुई भावनात्मक हिंसा को याद करते हुए कहती है, “जब मेरे घर वालों को इस बात के बारे में पता चला कि मैंने अपनी मर्जी से शादी करनी है मेरे ऊपर हाथ तो नहीं उठाया गया लेकिन भावनात्मक शोषण करके मुझे इतना परेशान किया गया था कि मैं घंटों एक जगह बैठी रहती थी। लगातार रोज मुझसे एक सी बातें कही जाती, मैंने घर की इज़्ज़त खराब कर दी है, धोखा दिया है। मैंने पढ़ाई के नाम पर उनके साथ घर से बाहर निकलकर विश्वासघात किया है।”

“पूरा परिवार मुझे घेरकर बैठ जाता था”

तस्वीर साभारः रितिका बैनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए।

आंचल का आगे कहना है, “जैसे ही मेरे परिवार के लोगों को यह पता चला कि मैंने कोर्ट मैरिज की है उसके बाद वे मुझ पर शारीरिक हिंसा तो नहीं कर सकते थे लेकिन भावनात्मक रूप से उन्होंने मुझे इतनी गहरी चोट पहुंचाई है कि अब लगभग तीन साल होने वाले है और आज भी उन जख्मों की चोट मेरे अंदर से नहीं गई है। पूरा परिवार मुझे घेरकर बैठ जाता था, बार-बार हर कोई एक ही बात दोहराता था। मैंने और मेरे पार्टनर ने इंटरकास्ट मैरिज की है तो मुझे यही कहा जाता कि मैंने समाज में उनको बदनाम कर दिया है। मेरे चरित्र पर उंगली उठाई गई। मेरी बहनें मुझे कहती कि मैं सेक्सुअल ऐपिटाइट हूं। मुझे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कहती थी। मैंने कुछ गलत किया है तो वे संभाल लेगी। मुझे पूरी तरह घर में कैद कर दिया गया था इतना ही नहीं अगर मैं बाथरूम में भी ज्यादा वक्त लगाती थी तो मुझे आवाज़ लगानी शुरू कर दी जाती थी। लगभग छह महीने मुझे पूरी तरह से कैद में करके रखा गया था। बीच में ही मेरी कोचिंग छुड़वा दी गई थी।” 

वह आगे कहती है, “ आखिर में जब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा तब मुझे मेरे पार्टनर के साथ जाने दिया। हमारे पास कोर्ट का मैरिज सर्टिफिकेट था और मैं बालिग थी इस कारण से मुझे शारीरिक किसी तरह की चोट नहीं पहुंचाई गई लेकिन मेरे मन को इतना परेशान कर दिया गया था कि मैं आज भी सोती हुई डर जाती हूं। मैं खाना-पीना तक भूल गई थी और मेरे दिमाग में सिर्फ हर वक्त परिवार के लोगों द्वारा कही बातें घूमती थी। सभी चीजें मुझे उसी तरह से याद है। महज अपनी पसंद से पार्टनर चुनने की वजह से मुझे घर के हर छोटे-बड़े इंसान जिस तरह से अपमानित और बुरा महसूस कराया है वह मैं पूरी तरह भूल नहीं पाई हूं। हालांकि कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे कुछ याद नहीं है एक अजीब सी शांति से भर जाती हूं और मुझे कुछ समझ नहीं आता है। भले ही मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गई हूं।”

दिव्यांशी आगे कहती है, “मेरा कॉलेज पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था और मुझे कहा गया कि अगर मैं उनकी बात नहीं सुनूंगी तो मुझे किसी तरह की फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं किया जाएगा। मेरी फीस नहीं दी जाएगी। इस तरह से पसंद के लड़के से शादी की इच्छा रखने की वजह से भावनात्मक और आर्थिक शोषण किया गया।

नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भावनात्मक हिंसा, दुर्व्यवहार की हिंसा सबसे कम रिपोर्ट की जाने वाली हिंसा का एक रूप है साथ ही यह सर्वाइवर के अधिक हानिकारक साबित हुई है। हमारे एक अध्ययन के अनुसार 19 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया है कि उन्होंने बीते वर्ष भावनात्मक हिंसा का सामना किया था। एएफएचएस-4 के अनुसार 13 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया है कि उन्होंने भावनात्मक हिंसा का सामना किया है। शोध के अनुसार शादी के रिश्ते में लगभग 19.8 फीसदी महिलाओं ने भावनात्मक हिंसा का सामना किया है उन्हें अपमानित किया गया है उन्हें अपने बारे में बुरा महसूस कराया गया है।

“मुझे भावनात्मक और आर्थिक हिंसा करना पड़ रहा है सामना”

खुद की पसंद से साथी चुनने पर भावनात्मक हिंसा का सामना करती महिलाएं  
तस्वीर साभारः रितिका बैनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए।

टाइम ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार बीते वर्ष राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा दर्ज कुल 30,957 शिकायतों में से 9,710 शिकायत जीवन जीने के अधिकार से संबंधित थी जिनमें महिलाओं का भावनात्मक शोषण किया गया। मथुरा की रहने वाली दिव्यांशी फिलहाल एक नौकरी कर रही है। भावनात्मक शोषण के अपने अनुभवों के बारे में उनका कहना है, “मैं हमेशा से बहुत साहसी लड़की रही हूं और बोल्ड भी। मैंने अपने जीवन को हमेशा खुद को आगे रखकर जीने की कोशिश की है। अभी मेरा कॉलेज पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है लेकिन स्थिति ऐसी बन गई की मुझे पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी करनी पढ़ रही है। मैंने परिवार को शुरू में ही बता दिया था कि मैं एक लड़के को पसंद करती हूं और हम एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं। उसके बाद आखिरी साल आते-आते जब हमारे इस रिश्ते को आगे बढ़ाने और भविष्य को लेकर बात हुई तो मेरे परिवार ने इसका सबसे ज्यादा विरोध किया है। वे लगातार मुझपर इमोशनल प्रेशर बनाते रहे। कॉलेज में हॉस्टल में रहने के कारण हर समय वे मुझसे बाते नहीं कर सकते थे तो उन्होंने मुझ पर अलग तरह से दबाव बनाने का काम किया गया।”

दिव्यांशी आगे कहती है, “मेरा कॉलेज पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था और मुझे कहा गया कि अगर मैं उनकी बात नहीं सुनूंगी तो मुझे किसी तरह की फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं किया जाएगा। मेरी फीस नहीं दी जाएगी। इस तरह से पसंद के लड़के से शादी की इच्छा रखने की वजह से भावनात्मक और आर्थिक शोषण किया गया। मेरे सभी क्लासमेट अपने घरों में रहकर फाइनल एग्जाम का इंतजार कर रहे हैं और हॉस्टल छोड़ने से पहले मेरे दिमाग में यह चल रहा था कि मैं कहा रहूंगी। लगातार काफी मेहनत करने के बाद मुझे एक बेहतर नौकरी मिली है। मेरे नंबर अच्छे थे मुझे स्कॉलरशिप मिली थी जिस वजह से मैं अब सर्वाइव कर पा रही हूं। केवल अपनी पसंद से जिंदगी जीने के कारण मुझ पर इस तरह के भावनात्मक और आर्थिक दबाव बनाए जा रहे हैं ताकि मैं अपने फैसले से पीछे हट जाऊं। मेरे जीने के अधिकार को पूरी तरह से खत्म किया जा रहा है।”

भावनात्मक हिंसा का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। वीमन हेल्थ में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भावनात्मक शोषण के कारण क्रॉनिक पेन, डिप्रेशन, एग्जायटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सर्वाइवर की याददाशत पर गहरा असर पड़ता है। ‘क्या सच में ऐसा हुआ था?’ गैसलाइटिंग के चलते खुद के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में ही वह भूल जाता है। खुद में ही शर्मिंदगी महसूस होती है। तनावपूर्ण स्थिति स्थायी हो जाती है जिससे आत्मग्लानि भी महसूस कराई जाती है और आत्मविश्वास पूरी तरह खत्म कर दिया जाता है।।

आंचल का आगे कहना है, “जैसे ही मेरे परिवार के लोगों को यह पता चला कि मैंने कोर्ट मैरिज की है उसके बाद वे मुझ पर शारीरिक हिंसा तो नहीं कर सकते थे लेकिन भावनात्मक रूप से उन्होंने मुझे इतनी गहरी चोट पहुंचाई है कि अब लगभग तीन साल होने वाले है और आज भी उन जख्मों की चोट मेरे अंदर से नहीं गई है। पूरा परिवार मुझे घेरकर बैठ जाता था, बार-बार हर कोई एक ही बात दोहराता था।

अगर साथी या परिवार के किसी सदस्य के आसपास रहने से आप भयभीत, भ्रमित या अलगाव महसूस करते है तो वह भावनात्मक शोषण का ही तरीका है। भावनात्मक शोषण करने वाले व्यक्ति का लक्ष्य दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता की भावनाओं को कमजोर करना है। भावनात्मक शोषण घरेलू हिंसा और पारिवारिक हिंसा का एक रूप है। भावनात्मक हिंसा करने वाला आपका परिवार, माता-पिता, जीवनसाथी, रोमांटिक पार्टनर, केयरटेकर यहां तक की व्यस्क बच्चा भी हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है कि वह अपने किसी भी रिश्ते या परिवार में सम्मान के साथ रहे लेकिन महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यकों के साथ उनकी लैंगिक पहचान की वजह से परिवार और सगे-संबंधी ही सबसे पहले भावनात्मक रूप से परेशान, अपमानित करके असुरक्षित माहौल बनाते हैं।

कई महिलाओं को अपने रिश्तों में हिंसा का सामना करना पड़ता है। पारंपरिक बाधा को तोड़ने की वजह से भी समाज में अपनी जेंडर की पहचान की वजह से विशेष तौर पर महिलाओं और लड़कियां हिंसा का सामना करती हैं। भावनात्मक हिंसा की वजह से वे ऐसे रिश्तों में या तो फंसी रहती हैं या रिश्तों से बाहर निकलने का प्रयास ही नहीं कर पाती है। रिश्तों की जटिलता, भावनात्मक लगाव के कारण वे अपने रिश्तों में हिंसा के अदृश्य रूप का सामना करती है। लैंगिक पहचान की वजह से ताउम्र तक भी अपमानजनक रिश्ते में रहती हैं।  


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