‘पढ़ेगी लड़की तभी तो उन्नति होगी’, ‘शिक्षित लड़की एक नहीं दो घरों को शिक्षित करती है’, ‘अब महिलाएं इतनी सुरक्षित है कि रात में भी गहने पहनकर निकलती है’, ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ इस तरह के नारे और योजनाएं लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा को लेकर सरकारों की जुबान पर सबसे ज्यादा आते हैं। लेकिन वास्तव में जब असल में इन्हें लागू करने की बात आती है तो सरकारों और योजनाओं का रूप रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक होता है, जहां लड़कियों के उत्थान के नाम पर उनपर एक ओर बंदिश लगाई जाती है, उनपर निगरानी रखी जाती है।
हाल ही में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सेफ सिटी परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने लड़कियों की सुरक्षा को लेकर निजी कोचिंग संस्थानों के लिए देर शाम की कक्षाओं पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। महिला सुरक्षा के नाम होने वाले ये कदम पहली नज़र में कुछ लोगों को सकारात्मक पहल लग सकते हैं। लेकिन वास्तव में यह लैंगिक असामनता की खाई को और गहरा करने काम करते हैं।
प्रियंका कहती है, “इस बड़े शहर में रहकर मैं अपनी पढ़ाई और नौकरी साथ-साथ कर पा रही हूं कि यहां समय की उस तरह बंदिश नहीं है जैसे मेरे गाँव में थी। ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद केवल घर वालों के भरोसे में कोचिंग नहीं कर सकती तो नौकरी और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी साथ-साथ कर रही हूं।”
हिंसा से बचाने के लिए आज़ादी पर रोक
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ कोचिंग संस्थानों को लड़कियों के आने से लेकर प्रस्थान तक उनकी सुरक्षा तय करने की जिम्मेदारी भी करनी होगी। सरकार ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि कोचिंग संस्थानों को शाम को एक निश्चित समय के बाद लड़कियों के लिए कक्षा आयोजित नहीं करनी चाहिए, जिससे वे समय पर अपने घर पहुंच सकें। ख़बर के मुताबिक़ प्रवक्ता ने कहा है कि उपद्रवियों के इकट्ठा होने और छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए निजी कोचिंग संस्थानों पर निगरानी रखी जा रही है। महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा तय करने के लिए योगी सरकार ने सेफ सिटी परियोजना लागू की है, जिसमें गौतमबुद्ध नगर के 17 नगर निगमों के प्रवेश और निकाय बिंदुओं के साथ-साथ सरकारी और गैर-सरकारी स्कूल, कॉलेज, मदरसे और विश्वद्यालयों में सीसीटीवी के माध्यम से निगरानी बढ़ाई जाएगी।
इस परियोजना के तहत 162 उच्च शिक्षण संस्थानों में 5,505 कैमरे लगाए गए। इनमें 21 सरकारी डिग्री/ पीजी कॉलेज, 85 सहायता प्राप्त डिग्री/पीजी कॉलेज, 49 गैर सहायता प्राप्त डिग्री/पीजी कॉलेज और 7 राज्य विश्वविद्यालय शामिल है। इसमें लखनऊ का क्षेत्रीय कार्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले कॉलेज शामिल नहीं हैं। 418 कोचिंग संस्थानों में कुल 866 कैमरा लगाए जाएंगे जिसकी प्रक्रिया चल रही है।
क्या लड़कियों को नहीं है आगे बढ़ने का अधिकार
स्मार्ट और सुरक्षित शहर बनाने की जो पहली तस्वीर जेहन में आती है, वह है सबसे के लिए ‘समान’ शहर जहां कोई भेदभाव ना हो। लेकिन इसके उलट राज्य सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के नाम पर परियोजनाओं के तहत लड़कियों के शिक्षा के अधिकार में बाधा उत्पन्न करने का काम कर रही है। महिलाओं के लिए देर रात कर्फ्यू लगाकर उनकी सुरक्षा तय नहीं की जा सकती है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। सुरक्षा के नाम पर उनके शरीर और उनकी एजेंसी को खत्म करना है। ज़रूरी यह है कि युवा महिलाओं और लड़कियों को सामाजिक जीवन में आगे बढ़ने, शिक्षा और आर्थिक रूप से सक्षम होने के लिए प्रेरित करना चाहिए और ऐसे अवसर पैदा करने चाहिए।
सपने पूरे करने गांव से शहर आना क्या अब होगा बेकार
भारतीय समाज में आज भी लड़कियों को ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के चलते जन्म से लेकर जीवन के आखिरी पड़ाव तक अनेक तरह की बंदिशों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सरकारों का काम लड़कियों और महिलाओं के जीवन को सीमित करने वाले व्यवहार को बदलना है, ना कि उसे ही अपनाकर असमानता को बढ़ावा देना। गाजियाबाद जिले में रहने वाली प्रियंका एक संस्थान में मैनेजर के तौर पर काम करती हैं। अपने ऑफिस से आने के बाद वह सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए कोचिंग भी जाती है। वहां से लौटने के बाद कुछ समय घर के काम और अपनी पढ़ाई के बाद वह शाम को अपने घर के पास से ही एक प्राइवेट कोचिंग संस्थान से कोचिंग करती है।
वह अपने गांव से दूर रहकर इस शहर में पढ़ने और नौकरी करने आई है। प्रियंका कहती है, “इस बड़े शहर में रहकर मैं अपनी पढ़ाई और नौकरी साथ-साथ कर पा रही हूं। यहां समय की उस तरह की बंदिश नहीं है जैसे मेरे गाँव में थी। ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद केवल घर वालों के भरोसे मैं कोचिंग नहीं कर सकती थी। इसलिए नौकरी और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी साथ-साथ कर रही हूं। काम से लौटने के बाद बाकी चीजों को मैनेज करते हुए मैं शाम में कोचिंग भी कर रही हूं ताकि बेहतर नौकरी पा सकूं और अपनी और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर कर सकूं। अगर इस तरह के नियम लागू होते है, तो यह मेरे लिए बहुत मुश्किल ला देंगे। नौकरी और पढ़ाई दोनों साथ में करके मैं आगे बढ़ सकती हूं। वरना तो मैं अपने सपने पूरे नहीं कर पाऊंगी।”
नौकरी और घर के बीच शाम को ही ही सकता है कोचिंग
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देवबंद की रहने वाली सरिता (बदला हुआ नाम) एक निजी कॉलेज में शिक्षिका हैं। वह दिनभर कॉलेज में पढ़ाने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखे हुए है। कॉलेज के बाद घर और उसके बाद कॉचिंग उनका डेली रूटीन है। घर पर बच्चों को संभालने के साथ-साथ वह देर शाम वही एक कोचिंग इस्टीट्यूट से सरकारी नौकरी के लिए भी तैयारी कर रही है। वह कहती हैं, “नौकरी के साथ-साथ खुद की पढ़ाई और घर-बच्चों को संभालना बहुत मुश्किल भरा काम है। कॉलेज के बाद शाम को बच्चों के होमवर्क को कराने के बाद और रात के खाने की तैयारी के बाद एक घंटे के लिए कोचिंग जाती हूं। ये सिर्फ इसी वजह से हो रहा है कि यहां मेरे जैसी कई टीचर और नौकरीपेशा लोग है, जो अपनी ऑफिस के बाद अपनी तैयारी भी कर पा रहे हैं। लेकिन अगर सरकार ऐसी रोक लगाती है तो यह बहुत बड़ी समस्या है। सुरक्षा के नाम पर आवाजाही पर रोक लगाना किसी भी समस्या का हल नहीं है, बल्कि सरकार को ऐसी प्रवृत्ति को खत्म करने की पहल करनी चाहिए।”
“लड़कियों पर रोकना पिछड़ी सोच को बढ़ावा देना है”
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर जिले की रहने वाली अंशू एक छात्रा है। लड़कियों के कोचिंग की टाइमिंग को लेकर बनाए गए नियम पर उनका कहना है, “हमारे शहर में वैसे तो इतनी लेट कोई कोचिंग इंस्टीट्यूट खुलता ही नहीं है क्योंकि यहां भी सबको यही लगता है कि लड़कियों का ज्यादा देर रात निकलना सुरक्षित नहीं है। क्या सच में लड़कियों पर रोकटोक लगाने से उनकी सुरक्षा को मजबूत या तय किया जा सकता है? ये तो एक पिछड़ी सोच है। लड़कियों के लिए सुरक्षित और सम्मानित माहौल बनाने के लिए पुरुषवादी मानसिकता को बदलना होगा जहां लड़के और लड़कियों में अंतर समझा जाता है। लड़कियों के साथ होने वाले व्यवहार को बदलकर ही हम सुरक्षित समाज बना सकते हैं ना कि रोकटोक लगाकर।”
हिंसा का हल महिलाओं पर निगरानी नहीं
निगरानी और रोकटोक का व्यवहार हमेशा महिलाओं और लड़कियों के साथ उनकी लैंगिक पहचान की वजह से होता आ रहा है। सरकार का निगरानी और रोकटोक लगाना इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि यह महिलाओं पर नियंत्रण का एक रूप है। सीसीटीवी के कैमरों से निगरानी और आवाजाही पर प्रतिबंध को सुरक्षा के लिहाज से तर्कसंगत बताया जाता है। लेकिन निगरानी न केवल महिलाओं को सुरक्षित रखने में विफल रहती है बल्कि यह अपनी तरह से हिंसा भी पैदा करती है।
इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट के शोध से पता चलता है कि महिला सुरक्षा पहल लैंगिक हिंसा के अंतर्निहित कारणों से सार्थक रूप से जुड़ी नहीं है। इस तरह की पहल उनके शरीर को नियंत्रित के रूप में दिखाते हैं। वहीं, द डिप्लोमेट में प्रकाशित लेख के मुताबिक सीसीटीवी आवश्यक रूप से सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित नहीं बनाते हैं। वास्तव में, कैमरों की मौजूदगी यह संकेत देने का एक तरीका है कि किसी विशेष स्थान में कौन है और किसे इससे दूर रखना चाहिए। जब बड़े पैमानों पर कंट्रोल रूम पुरुष द्वारा संचालित होते हैं, तो वे महिलाओं पर नज़र रखने का काम करते हैं, जिससे ताक-झांक की स्थिति बन जाती है।
अंशू एक छात्रा है। लड़कियों के कोचिंग की टाइमिंग को लेकर बनाए गए नियम पर उनका कहना है, “हमारे शहर में वैसे तो इतनी लेट कोई कोचिंग इंस्टीट्यूट खुलता ही नहीं है क्योंकि यहां भी सबको यही लगता है कि लड़कियों का ज्यादा देर रात निकलना सुरक्षित नहीं है। क्या सच में लड़कियों पर रोकटोक लगाने से उनकी सुरक्षा को मजबूत या तय किया जा सकता है? ये तो एक पिछड़ी सोच है।
लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार है। हर व्यक्ति को अपनी पसंद से जीने का अधिकार है। लेकिन हमारे समाज में लैंगिक पहचान के आधार पर अभिव्यक्ति और स्वायत्ता को सबसे पहले खत्म करने का काम किया जाता है। लड़कियों के अधिकारों से दूर करने में पितृसत्तात्मक परिवार और सरकारें एक जैसा व्यवहार करती है। शिक्षा का अधिकार नहीं कहता है कि देर रात में लड़कियां पढ़ नहीं सकती है। सुरक्षा का मतलब यह नहीं है कि निजता, शिक्षा और चयन के अधिकार को नियंत्रित किया जाए। इसलिए महिलाओं, लड़कियों और अन्य लैंगिक अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित और समावेशी समाज बनाने के लिए संवेदनशील होकर नीतियां बनानी होगी न कि पितृसत्तात्मक रवैये को आगे रखकर।