संस्कृतिसिनेमा ट्रांस समुदाय के संघर्ष को दर्ज करने की सफल कोशिश है फिल्म ‘ताली’

ट्रांस समुदाय के संघर्ष को दर्ज करने की सफल कोशिश है फिल्म ‘ताली’

ट्रांस एक्टिविस्ट श्रीगौरी सावंत के जीवन पर आधारित, वेब सीरीज़ 'ताली' एक मध्यम वर्गीय परिवार में गणेश से गौरी बनने तक के सफर में भावनात्मक उथल-पुथल के साथ समाज की अस्वीकार्यता के खिलाफ आवाज़ उठाने और एक ऐतिहासिक फैसले तक की यात्रा की दमदार कहानी है।

साल 2014 में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को कानूनी रूप से मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण का अधिकार है, चूंकि वे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग हैं। कोर्ट ने यह भी माना कि यह मानवाधिकार का मामला है। आज शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका समान अधिकार है। लेकिन इस अधिकार को हासिल करने में सालों से चले आ रहे संघर्ष पर लोगों का बहुत ज्यादा ध्यान कभी गया नहीं है। ट्रांस समुदाय के लोगों के इसी संघर्ष को दिखाने की कोशिश करती ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता गौरी सावंत पर बायोपिक ‘ताली’ अगस्त में रिलीज़ की गई।

इस सीरीज़ में अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने मुख्य भूमिका निभाई है। निर्माता अर्जुन सिंह बरन और कार्तिक निशानदार की ताली में कुल 6 एपिसोड हैं जो ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत के बचपन से लेकर कार्यकर्ता बनने की कहानी बताते हैं। साथ ही उन हालातों में गौरी के संघर्ष को भी बड़ी बारीकी से दिखाते हैं। सीरीज़ में ‘गणेश’ का ‘गौरी’ बनने का सफर किन उतार -चढ़ाव से गुजरा, इसका एहसास दर्शकों को कराने की पूरी कोशिश की गई है। ताली के निर्देशक रवि जाधव ने फिल्म के निर्माण के लिए अपने कुछ विचार साझा किए। वह बताते हैं कि इस कहानी का सबसे बड़ा चुनौती थी इसकी सादगी थी। फिल्म बनाने के क्रम में इस बात का खासा ध्यान रखा गया कि कहीं कुछ दृश्य जरुरत से ज्यादा नहीं लगने चाहिए। किरदारों में मानवीय गुण प्रदर्शित हो ताकि दर्शकों को देख कर लगे कि यह सभी एक जैसे हैं; वो हमसे अलग नहीं हैं।

ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, गौरी सावंत के जीवन पर आधारित यह वेब सीरीज़, उनके साहसी जीवन, परिवर्तन, मातृत्व की यात्रा और उस लड़ाई पर प्रकाश डालती है जिसके कारण भारत के हर दस्तावेज़ में ट्रांस समुदाय को तीसरे जेन्डर के तरह शामिल किया गया।

गणेश से गौरी तक की कहानी

सीरीज़ शुरूआती एपिसोड में बड़ी-सी बिंदी लगाए गौरी सावंत के रूप में सुष्मिता सेन कहती हैं कि मैं गोरी, ये कहानी मेरे जैसे कई लोगों की है, क्योंकि ये गौरी भी कभी गणेश था। फ्लैशबैक में एपिसोड में, जहां गौरी एक पत्रकार अमैंडा को अपनी कहानी सुनाते हुए बताती हैं कि कैसे वह बचपन में गणेश था। एक दृश्य में दिखाया जाता है कि स्कूल की क्लास में एक 12-14 साल का लड़का बैठा है, जिससे टीचर पूछती हैं कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा? जब वो जवाब में ‘मां’ बनने की बात कहता है, तो उसे सजा मिलती है। आगे के एपिसोड में दिखाया गया है कि कैसे गुस्सैल और रूढ़िवादी सोच के उसके पिता गणेश को हार्मोनल दवाईयां खिलाकर उसे ‘ठीक’ करने की कोशिश करते हैं।

आसान नहीं रहा गौरी का किरदार निभाना

सीरीज़ में गौरी सावंत की भूमिका में अभिनेत्री सुष्मिता सेन के लिए भी यह किरदार आसान नहीं था। सुष्मिता बताती हैं कि ताली की सबसे अच्छी चीज़ यह है कि ये सीरीज़ दर्शकों से झूठ नहीं बोलती। हम जबरदस्ती नक़ल उतारने की कोशिश नहीं करते हैं। ये इंसानियत की कहानी है, इसे हम इंसान की तरह दिखाएंगे। ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, गौरी सावंत के जीवन पर आधारित यह वेब सीरीज़, उनके साहसी जीवन, परिवर्तन, मातृत्व की यात्रा और उस लड़ाई पर प्रकाश डालती है जिसके कारण भारत के हर दस्तावेज़ में ट्रांस समुदाय को तीसरे जेन्डर के तरह शामिल किया गया।

2014 में, वह ट्रांसजेंडर लोगों के गोद लेने के अधिकार के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाली गौरी पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति बनीं। गौरी सावंत ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के याचिकाकर्ताओं में से एक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कौन हैं गौरी सावंत

गौरी सावंत एक ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय को कानूनी मान्यता दिलाने के संघर्ष में मुख्य भमिका निभाई। श्रीगौरी सावंत का जन्म गणेश के रूप में हुआ और उनका पालन-पोषण पुणे में हुआ। 7 साल की उम्र में उन्होंने अपनी माँ को खो दिया। उनके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे। बचपन से ही गौरी को सजने संवरने का बहुत शौक था। पिता के साथ मतभेद होने के कारण गौरी बचपन में ही घर से भाग गई। शुरुआत में गौरी गैर सरकारी संस्था हमसफर ट्रस्ट के साथ जुड़ी। कुछ समय बाद, वर्ष 2000 में, कवि अशोक रो और दो अन्य लोगों के साथ, गौरी ने मुंबई के मलाड में ‘सखी चार चौघी’ नामक अपना गैर सरकारी संस्था शुरू किया। यह संस्था ट्रांसजेंडर लोगों और एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों की मदद करता है। साथ ही यह संस्था ट्रांस समुदाय के लोगों के लिए नौकरी ढूंढ़ने में मदद करता है। 2014 में, वह ट्रांसजेंडर लोगों के गोद लेने के अधिकार के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाली गौरी पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति बनीं। गौरी सावंत ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के याचिकाकर्ताओं में से एक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सामूहिक प्रयास की परिणति में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के रूप में हुई जिसने आधिकारिक तौर पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मान्यता दी। 2008 में गौरी की बेटी गायत्री की माँ की एड्स से मृत्यु हो जाने के बाद गौरी ने गायत्री नाम की एक लड़की को गोद लिया।

गौरी के किरदार में सुष्मिता सेन का किरदार

सुष्मिता सेन ने ट्रांसजेंडर गौरी सावंत की भूमिका को बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है। देख कर ऐसा लगता है कि वेब सीरीज की पूरी बागडोर उन्हीं के कंधों पर टिकी है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि अपने किरदार के साथ न्याय करने में सुष्मिता सेन पूरी तरह सफल रही हैं। सीरीज के बाकी कलाकारों में नितेश राठौर, अंकुर भाटिया, कृतिका देव, ऐश्वर्या नारकर, विक्रम भाम और अनंत महादेवन भी अपनी-अपनी भूमिकाओं पर खरे उतरे हैं। अपने सीरीज़ का पहला लुक शेयर करते हुए इंस्टाग्राम पर सुष्मिता सेन ने बताया था कि इस खूबसूरत व्यक्ति को चित्रित करने और उसकी कहानी को दुनिया के सामने लाने का सौभाग्य पाने से ज्यादा गर्व और आभारी कुछ भी नहीं है।

जब बचपन में गणेश (बाद में गौरी) से पूछा जाता है कि वह बड़े होकर क्या बनना चाहता है तो उसका जवाब होता है ‘माँ’। पुरुष होकर ‘माँ बनने’ की बात को हमारा समाज स्वीकार नहीं पाता और इसी अस्वीकार की लड़ाई में आगे चलकर गौरी को जीत हासिल होती है।

गौरी के संघर्ष की कहानी

सीरीज़ की कहानी पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के पीछे छिपे संघर्षों को उजागर करने की तरफ झुकती हुई दिखाई देती हैं। जहां सीरीज़ की एक-एक कड़ी गौरी सावंत की समाज में स्थान पाने की लड़ाई को प्रदर्शित करता है। हर एपिसोड में सुष्मिता सेन ने बड़े ही बारीकी के साथ भावनात्मक रूप से गौरी सावंत के किरदार को पकड़ने की कोशिश की है। वह अपनी भाव-भंगिमाओं, हाव-भाव, बड़ी आंखों और यहां तक ​​कि मौन रहकर भी बहुत सारी भावनाओं को व्यक्त करने में सफल हुई हैं। वह बड़े ही प्रभावी ढंग से दर्शकों को श्रीगौरी की दुनिया में खींच लेती है। न सिर्फ ऊपरी तौर पर बल्कि गौरी सावंत के आतंरिक संघर्ष, उनकी इच्छा और दृढ़ संकल्प के भावों को पकड़ने में भी अभिनेत्री सुष्मिता सेन काफी हद तक सफल रही हैं। उनकी एक्टिंग की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी।

फिल्म के दमदार डायलॉग

सीरीज़ के डायलॉग ट्रेलर के समय से ही काफी चर्चा में रहे। सुष्मिता सेन की बुलंद आवाज़ में दमदार डायलॉग के दर्शकों का ध्यान सफलतापूर्वक अपनी तरफ खिंचा। एक दृश्य में जहां गौरी सावंत (सुष्मिता सेन) ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए लड़ते हुए एक समाचार चैनल से बात कर रही है, वह व्यक्त करती है कि यह कितना दर्दनाक है जब ट्रांसजेंडर समुदाय को उनका बुनियादी हक़ नहीं मिलता। इसे बताने के लिए उनसे कहलवाया जाता है कि जिस देश में कुत्तों का भी जनगणना होती है पर ट्रांसजेंडरों का नहीं, ऐसे देश में आप जैसे लोगों के बीच जीना, यह ‘डरावना’ है। वह इस वाक्य से अपना विरोध जाहिर करते हुए समाज के क्रूरता का सामना करते हुए लगातार संघर्ष करती हुई दिखाई देती है। फिल्म के डायलॉग जितने दमदार हैं, उतना ही दमदार तरीके से अभिनेत्री ने इसे पर्दे पर प्रदर्शित किया।

जेंडर के बाइनरी को तोड़ने की कोशिश

मां होना कोई जेंडर नहीं, फीलिंग है।” सीरीज़ के एक अंश में हमने देखा है कि जब बचपन में गणेश (बाद में गौरी) से पूछा जाता है कि वह बड़े होकर क्या बनना चाहता है तो उसका जवाब होता है ‘माँ’। पुरुष होकर ‘माँ बनने’ की बात को हमारा समाज स्वीकार नहीं पाता और इसी अस्वीकार की लड़ाई में आगे चलकर गौरी को जीत हासिल होती है। वह बतौर ट्रांसजेंडर एक बच्चे को गोद लेते हैं। पूरी कहानी में दर्शाया गया है कि माँ बनना किसी एक जेंडर विशेष का हक़ नहीं हो सकता बल्कि माँ बनना एक भाव है, एक फीलिंग है। गौरी सावंत की लड़ाई उस समाज से दिखाई गई है जिसने बच्चे को जन्म देने जैसी जैविक प्रक्रिया को किसी शक्ति के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिश की है। कहानी मातृत्व के सही अर्थ को बताते हुए ट्रांसजेंडर समुदाय को बच्चा गोद लेने के हक़ में चुनौती का सामना करती गौरी को दिखाती है। फिल्म में अनेक रूप में जेन्डर बाइनरी को तोड़ने की कोशिश की गई है।

तस्वीर साभार: Mid Day

कभी धीमी तो कभी रफ्तार पकड़ती कहानी

ट्रांस एक्टिविस्ट श्रीगौरी सावंत के जीवन पर आधारित, वेब सीरीज़ ‘ताली’ एक मध्यम वर्गीय परिवार में गणेश से गौरी बनने तक के सफर में भावनात्मक उथल-पुथल के साथ समाज की अस्वीकार्यता के खिलाफ आवाज़ उठाने और एक ऐतिहासिक फैसले तक की यात्रा की दमदार कहानी है। वेब सीरीज़ का हर अंश दर्शक को ट्रांसजेंडर के जीवन के अनदेखे पहलुओं को जानने और समझने का समय देता है। सीरीज़ के एपिसोड के कहानी की रफ़्तार कहीं धीमी तो कहीं तेज़ होती सी दिखाई देती है। जब फ्लैशबैक में गौरी अपने बचपन के संघर्षो का जिक्र करती है, तो कहानी कहीं कहीं धीमी पड़ जाती है। लेकिन, अभिनेत्री सुष्मिता सेन के बेहतरीन डायलॉग डिलीवरी और अनोखा साज-शृंगार दर्शकों का दिल जीत लेती है।

ट्रांस एक्टिविस्ट श्रीगौरी सावंत के जीवन पर आधारित, वेब सीरीज़ ‘ताली’ एक मध्यम वर्गीय परिवार में गणेश से गौरी बनने तक के सफर में भावनात्मक उथल-पुथल के साथ समाज की अस्वीकार्यता के खिलाफ आवाज़ उठाने और एक ऐतिहासिक फैसले तक की यात्रा की दमदार कहानी है।

कहानी के साथ न्याय की हैं सुष्मिता

सुष्मिता सेन को गहरे रंग की साड़ी, बड़ी बिंदी और भरी आवाज़ के साथ श्रीगौरी सावंत के असल चेहरे से मेल खाने देने की कोशिश की गई है ताकि दर्शक भावों को बेहतर तरीके से पकड़ सकें। सुष्मिता सेन के साथ बाकि के किरदारों की कहानी को भी गौरी के इर्द-गिर्द ही रचा गया है ताकि दर्शकों का कहानी से जुड़ाव बना रहे। अपने वेब सीरीज़ के प्रमोशन के दौरान सुष्मिता सेन कहती हैं कि यह किरदार उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन उन्हें यह भी पता है कि इस तरह की भूमिका के लिए तजुर्बे की जरूरत होती है, ताकि हम किरदार और उसकी परिस्थितियों की गंभीरता को समझ सकें। निसंदेह मिस यूनिवर्स रह चुकी सुष्मिता के लिए इतने कठिन किरदार को बखूबी निभा पाना मुश्किल रहा होगा। परदे पर उनका अभिनय गौरी सावंत की कहानी के साथ न्याय करता हुआ ही दिखाई देता है।

आज श्री गौरी सावंत एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस दुनिया में आज भी गौरी सावंत जैसे ट्रांस समुदाय के लोगों को बड़े पर्दे पर कितना दिखाया जाता है। हमारे समाज में श्री गौरी जैसे ट्रांस समुदाय के कितने ही लोग होंगे। उनकी कहानियों को जानना न सिर्फ नए विचार और नए भावनाओं को पाने जैसा है, बल्कि बड़े पर्दे पर ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को खुल कर सामने आना चाहिए, जिससे सभी को मुख्यधारा में स्थान मिल सके। सिनेमा का कार्य केवल दर्शकों का मनोरंजन ही नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से समाज के दृष्टिकोण को बड़े पैमाने पर बदलना भी है। ‘ताली’ जैसी अन्य फिल्में बनेगी तो ट्रांस समुदाय को मुख्यधारा में वह स्थान मिल सकता है जिससे वह आज तक वंचित हैं।

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