संस्कृतिसिनेमा माई रीः पारिवारिक संघर्षों के बीच खुद की पहचान चुनती सशक्त महिला किरदारों से भरी एक ड्रामा सीरीज़

माई रीः पारिवारिक संघर्षों के बीच खुद की पहचान चुनती सशक्त महिला किरदारों से भरी एक ड्रामा सीरीज़

जहां तकरीबन हर ड्रामा में पितृसत्तात्मक मुख्य पुरुष कलाकार के प्रति ही सहानुभूति दिखाई जाती रही है वहां माई री की स्टोरी लाइन एकदम अलग है। बाल विवाह और महिलाओं को केंद्र में रखते हुए यह ड्रामा अंत में "हैप्पी एंडिंग" की परिभाषा दर्शकों की इच्छा के विरुद्ध लेकिन कहानी के लिए सटीक मोड़ पर खत्म होता है।

वैश्वीकरण के दौर में इंटरनेट ने एक देश के लोगों को दूसरे देश के लोगों से कला, मनोरंजन के माध्यम से जोड़ा है। मनोरंजन के मामले में सरहदें भी लोगों को जोड़ने से रोक नहीं पाई हैं। के ड्रामा से लेकर सी ड्रामा का क्रेज युवा पीढ़ी में बढ़ता हुआ नज़र आया है। इन दो ड्रामा इंडस्ट्री के अलावा पाकिस्तानी ड्रामा भी भारत में खूब देखे जा रहे हैं, एपिसोड के प्रसारण के कुछ ही घंटों में मिलियन में व्यूज़ आते हैं। पाकिस्तानी ड्रामा जैसे खुदा और मोहब्बत की मुख्य अदाकारा इकरा अज़ीज़ तो ट्विटर पर भी ट्रेंड करने लगी थीं। हालिया वक्त में हमसफ़र ड्रामा भी खूब पॉपुलर हुआ। लेकिन आज हम लीक से हटकर प्रसारित हुए ड्रामा ‘माई री’ की बात करेंगे।

जहां तकरीबन हर ड्रामा में पितृसत्तात्मक मुख्य पुरुष कलाकार के प्रति ही सहानुभूति दिखाई जाती रही है वहां माई री की स्टोरी लाइन एकदम अलग है। बाल विवाह और महिलाओं को केंद्र में रखते हुए यह ड्रामा अंत में “हैप्पी एंडिंग” की परिभाषा दर्शकों की इच्छा के विरुद्ध लेकिन कहानी के लिए सटीक मोड़ पर खत्म होता है। यह ड्रामा एआरवाई डिजिटल पर प्रसारित हुआ है। इसका निर्देशन मीसन नक़वी ने किया है। ड्रामा के लीड किरदार हैं एनी (आइना आसिफ़) और फाखिर (समर अब्बास जाफरी) जिनके इर्द गिर्द घूमती हुई कहानी बाकी महिलाओं की जिंदगी पर प्रकाश डालती है। एनी की मां, आयशा (माया खान) और फाखिर की मां, समीना (मारिया वस्ती) हर वक्त बच्चों के फैसले में साथ देती हैं।

आयशा का पति यानी एनी का पिता, हबीब (साद ज़मीर फरीदी) और फाखिर का पिता, जहीर (नौमान एजाज़) का खुद का कारोबार है जिसमें महिलाओं की दखल नहीं है, घर की महिलाएं भी पर्याप्त पढ़ी-लिखी नहीं हैं। वक्त के साथ जहीर की तबियत बिगड़ती हुई नज़र आती है ऐसे में जहीर यह चाहत रखता है कि वह ज़िंदा रहते हुए फाख़िर का विवाह करता जाए, अपनी जिम्मेदारी पूरी करता जाए इसीलिए वह एनी और फाखिर की कम उम्र में (अठारह वर्ष आयु होने से पूर्व) ही शादी करा देता है। समीना इस कम उम्र की शादी के ख़िलाफ़ होती है लेकिन उसकी सुनी नहीं जाती है। जहीर के जाने के बाद समीना कारोबार को संभालने की कोशिश करती है क्योंकि हबीब सिर्फ घपले करता है, कारोबार के घटते प्रॉफिट से चिंतित समीना जब दफ़्तर में आने लगती है तब उसका कम पढ़ा लिखा होना उसे हर वक्त अखरता है।

यह ड्रामा एआरवाई डिजिटल पर प्रसारित हुआ है। इसका निर्देशन मीसन नक़वी ने किया है। ड्रामा के लीड किरदार हैं एनी (आइना आसिफ़) और फाखिर (समर अब्बास जाफरी) जिनके इर्द गिर्द घूमती हुई कहानी बाकी महिलाओं की जिंदगी पर प्रकाश डालती है।

वहीं हबीब की दूसरी पत्नी भी होती है राहीला (हिबा अली खान) जिससे हबीब ने आयशा को तलाक़ देने की धमकी पर शादी की होती है। इस शादी की बुनियाद थी आयशा से सिर्फ़ दो बेटियां होना, एक भी बेटा न होना। उसके पास बेटा नहीं था इसीलिए तलाक़ की धमकियों के बूते हबीब उसे खूब दबाके रखता है। एनी कम उम्र की बेहद समझदार किरदार है, शादी के बाद वह अपनी उम्र से कई गुना बढ़ जाती है, घर के काम के साथ-साथ वह पढ़ाई भी जारी रखती है लेकिन स्कूल में उसकी शादी का पता लगते ही वह और छात्रों के बीच हँसी का कारण बन जाती है। कई बार हबीब उसकी पढ़ाई छुटवाना चाहता रहा है लेकिन समीना, आयशा और फाखिर उसकी ढाल बने रहते हैं।

शादी के एक साल एक भीतर एनी मां बन जाती है, मां बनने के साथ-साथ वह पोस्ट पार्टम डिप्रेशन से भी गुजरती है और उसका शरीर भी कमज़ोर पड़ जाता है इससे उसकी पढ़ाई में तकलीफें आती हैं लेकिन स्कूल की प्रिंसिपल, आयशा, समीना उसका साथ नहीं छोड़ती हैं। एनी और फाखिर का बतौर पति-पत्नी रिश्ता बहुत सुहावना नहीं है, कम उम्र में इतनी जिम्मेदारियों का बोझ, एक बच्ची की परवरिश और दोनों के ही सपनों का बिखर जाना उनके बीच हमेशा एक खाई बनाए रखता है। बहुत छोटी बातों पर दोनों लड़ते हैं, शॉपिंग पर जाते हैं तो अपनी उम्र में प्ले स्टेशन से खेलने की इच्छा रखने वाला फाखिर, बेटी के लिए खिलौने लेता है। दोनों ही किरदार अपनी मानसिक, भावनात्मक तकलीफों का ज़िक्र करते हुए बार-बार घर के बड़ों को कोसते हैं कि अपनी संतुष्टि के लिए उन्होंने दोनों का बचपन मार डाला और सबसे ज्यादा प्रभावित हुई एनी।

तस्वीर साभारः Reviewit.pk

वहीं आयशा जो हमेशा अपनी बच्ची का साथ देती है। वह एक सर्वाइवर महिला है जिसके पास पति के तिरस्कार के सिवाय कुछ नहीं है, हबीब की हिंसा झेलते-झेलते वह एक रोज़ इतनी थक जाती है कि तलाक़ की धमकी पर वह कह ही देती है कि उसे तलाक़ दे दिया जाए। समीना, सुलझी महिला है, सही-गलत का फर्क जानती है, आयशा के लिए सबसे सपोर्टिव बनी हुई समीना, हबीब को ही घर से बाहर का रास्ता दिखा देती है। शादी के बंधन में फंसे हुए एनी फाखिर जब अपने बीच की उलझनों से पीड़ित होना बंद नहीं होते तब वे तलाक़ का फैसला लेते हैं। फाखिर का देश से बाहर पढ़ने जाने से पहले दोनों के बीच तलाक़ होता है लेकिन इस फैसले के साथ कि वे दोनों पति-पत्नी ना रहे हों लेकिन अपनी बेटी के माता-पिता हमेशा रहेंगे। इसी फैसले के साथ, एनी अपनी पढ़ाई पाकिस्तान में ही पूरी करते हुए इंजीनियर बनती है और समीना, आयशा महिलाओं के लिए एक हाउस खोलते हैं जहां वे सुरक्षित महसूस करें। यही इस ड्रामा का अंत है। लेकिन ड्रामा का यह अंत दर्शकों को खासा पसंद नहीं आया है, यूट्यूब पर ड्रामा देखते वक्त हमने कमेंट्स में दर्शकों के विचार देखे, वह इस ड्रामा का सीजन टू चाहते हैं। क्यों? क्योंकि फाखिर और एनी के बीच मोहब्बत का रिश्ता बनते देखना चाहते हैं।

साउथ एशियन ड्रामा को कहानी कहने का अपना रुख बदल लेना चाहिए क्योंकि महिला की “अच्छी औरत” की छवि जो स्थापित की जा रही है वह अंत में महिलाओं के साथ जेंडर आधारित हिंसा को जन्म देती है।

दर्शक के तौर पर हमारी कंडीशनिंग ऐसी की गई है कि मुख्य किरदार एक-दूसरे के लिए सही मैच नहीं हैं तब भी वे साथ में दिखाए जाएं। लेकिन माई री के लेखकों ने इस बार दर्शक को चुनौती दी है कि वह कहानी के अंत को किरदार की नज़र से देखें ना कि अपनी खुशी को महत्ता दें। एनी और फाखिर के रिश्ते की एंडिंग अगर एक सुखी जोड़े के रूप में दिखाई जाती तो लोगों के दिमाग में यह भी स्थापित हो जाता कि बाल विवाह किया जाना खराब नहीं है क्योंकि अंत में वे शादी के रिश्ते में एक हो ही जाएंगे, खुश हो ही जाएंगे। इसीलिए एक खराब रिश्ते को ढोने से बेहतर है उसे खत्म कर देना। एनी ने, आयशा ने अंत में अपनी मुक्ति का रास्ता खुद चुना जिसमें समीना ने साथ दिया। एनी अपने लिए फैसला ले सकी क्योंकि वह शिक्षित थी। एनी का किरदार सशक्त किरदार है, उसने यह देख लिया कि बड़ों के एक फैसले ने उसकी जिंदगी बदलकर रख दी, इसके बाद उसने किसी बड़े को हक़ नहीं दिया कि उसके हक़ में फैसला कर सके।

भारतीय टेलीविजन पर भी बाल विवाह की थीम को केंद्र में रखते हुए एक सीरियल “बालिका वधु, कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते” आया था, आनंदी का उसमें बाल विवाह होता है, हालांकि उसका और जगिया जिससे उसकी शादी हुई होती है का भी रिश्ता चलता नहीं है लेकिन एनी और आनंदी के किरदार में फर्क है फैसले लेने के अधिकार का। आनंदी के जीवन के फैसले बाकी लोग लेते रहे। दो सीरियल एक ही थीम लेकिन कहानी कहने का, सोच स्थापित करना का तरीका एकदम अलग है। साउथ एशियन ड्रामा को कहानी कहने का अपना रुख बदल लेना चाहिए क्योंकि महिला की “अच्छी औरत” की छवि जो स्थापित की जा रही है वह अंत में महिलाओं के साथ जेंडर आधारित हिंसा को जन्म देती है। माई री ड्रामा की कहानी सरल महसूस हो सकती है लेकिन उसका संदेश सरल नहीं है बल्कि इस दिशा में मज़बूत है कि औरतों का अपने लिए फैसला लेना पुरुष प्रधान समाज में बहुत सी मुश्किलों के बूते हासिल हो पाता है और शिक्षा इस दिशा में पहला कदम है।


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