इतिहास उषा किरण खान: हिंदी और मैथिली भाषा की लेखिका

उषा किरण खान: हिंदी और मैथिली भाषा की लेखिका

खान की रचनाओं में सामाजिक असमानता, लैंगिक गतिशीलता और मानवीय संबंधों की जटिलताओं जैसे विषयों का पता लगाया गया है। उनका उपन्यास 'भामाती', 18वीं सदी की मैथिली रानी का एक काल्पनिक वृत्तांत, उनकी ऐतिहासिक विशेषज्ञता और स्पष्ट कथन का प्रमाण है।

‘परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी बह आज चली’… अपने फेसबुक पेज पर अपने जीवन को सहेजती हुई मानो कितना कुछ सीखा रही हो। उषा किरण खान हिंदी और मैथिली भाषाओं के साहित्यिक क्षेत्र में एक चमकता सितारा थीं। 24 अक्टूबर 1945 में जन्मी, खान का जीवन दो अलग-अलग भाषा और सांस्कृतिक क्षेत्रों के साथ जुड़ा था। जहां सार्वजनिक क्षेत्र में हिंदी का दबदबा था, वहीं मैथिली, जिसे उत्तर भारत में लाखों लोग बोलते हैं, उनके दिल में एक ख़ास जगह रखती थी। यह द्विभाषिता उनकी साहित्यिक यात्रा की पहचान बन गई। उन्होंने दोनों भाषाओं में उपन्यास, कहानियां, नाटक और कविताएं लिखीं। उनकी विविध अभिव्यक्तियों और बारीकियों को सहजता से अपनाया।

उषा किरण की कम उम्र में ही एक आईपीएस अफसर से शादी हो गई और गृहस्थी का भार संभालते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखा। वे इतिहास की प्रोफ़ेसर बन गईं और लिखने का शौक पूरा रखती रहीं। उन्होंने इसके साथ-साथ कई संगठनों की स्थापना की। उनकी रुचि साहित्य और संस्कृति में थी। उन्होंने नाटक लिखे और संगठनों से जुड़ी रहीं। उनकी संस्था ‘आयाम’ ने साहित्य में रुचि रखने वाली महिलाओं के लिए एक सार्थक जगह प्रदान की। संगठन का गठन करते समय उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की कि वह लिखने-पढ़ने वाली महिलाओं के समूह को समर्थन प्रदान करना चाहती हैं, जिसे अब तक ऐसी जगह कहीं नहीं मिली। 

उनके लेखन से समाज में बदलाव लाने का नहीं, तो कम से कम चरित्रों को समर्थन प्रदान करने का माध्यम बनाता था। उनके लेखन से आत्म-विवर्तन करने वाली स्त्रियों को समर्थन और साहस मिला, जिससे वे सामाजिक उत्थान का सामर्थ्य प्राप्त कर सकती थीं।

‘ऊषा किरण खान मैथिली साहित्य मंदिर’ की स्थापना

खान की रचनाओं में सामाजिक असमानता, लैंगिक गतिशीलता और मानवीय संबंधों की जटिलताओं जैसे विषयों का पता लगाया गया है। उनका उपन्यास ‘भामाती’, 18वीं सदी की मैथिली रानी का एक काल्पनिक वृत्तांत, उनकी ऐतिहासिक विशेषज्ञता और स्पष्ट कथन का प्रमाण है। एक अन्य उल्लेखनीय कृति  ‘हसीना मंजिल’, में सामाजिक अपेक्षाओं और पहचान की खोज से जूझ रही महिलाओं के जीवन को खंगाला जाता है। अपने पूरे लेखन के काल में खान ने मैथिली भाषा और साहित्य के लिए सक्रिय रूप से हिमायत किया है। उन्होंने साहित्यिक गतिविधियों और छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए ‘ऊषा किरण खान मैथिली साहित्य मंदिर’ की स्थापना की। उनके प्रयासों ने इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और मान्यता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

लेखन के माध्यम से सामाजिक उत्थान का प्रयास

उषाकिरण खान ने खूब लेखन किया और उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। उन्होंने हिंदी और मैथिली भाषाओं में कई अद्भुत उपन्यास जैसे ‘पानी पर लकीर’, ‘फागुन के बाद’, ‘सीमांत कथा’, ‘रतनारे नयन चर्चित रहे’ (हिंदी) और ‘भामती’, ‘सिरजनहार’ (मैथिली) लिखे। उनकी कहानियों के संग्रहों में भारतीय जीवन और सांस्कृतिक मन का चित्र है। वे मैथिली नाटक और बाल नाटक भी लिख चुकी हैं। ‘हीरा डोम’ जैसे नाटक इन में से एक चर्चित प्रयास है। उनकी कविताओं में सरल सहज भावपूर्ण संवेदना भरा हुआ है।

तस्वीर साभार: BBC

उनमें कुशल लेखिका और एक परिपक्व सोच वाली महिला के गुण थे। वे दुखी और थकी-हारी महिलाओं के लिए उदार हृदय से जानी जाती थी। उनके लेखन से समाज में बदलाव लाने का नहीं, तो कम से कम चरित्रों को समर्थन प्रदान करने का माध्यम बनाता था। उनके लेखन से आत्म-विवर्तन करने वाली स्त्रियों को समर्थन और साहस मिला, जिससे वे सामाजिक उत्थान का सामर्थ्य प्राप्त कर सकती थीं।

उषाकिरण खान ने खूब लेखन किया और उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। उन्होंने हिंदी और मैथिली भाषाओं में कई अद्भुत उपन्यास जैसे ‘पानी पर लकीर’, ‘फागुन के बाद’, ‘सीमांत कथा’, ‘रतनारे नयन चर्चित रहे’ (हिंदी) और ‘भामती’, ‘सिरजनहार’ (मैथिली) लिखे।

लेखन में सौंदर्यबोध और प्रकृतिबोध

खान के माता-पिता गांधीवादी थे और उन्होंने उषा को अदब की दुनिया से मिलवाया। बाबा नागार्जुन की उनके पिता के साथ दोस्ती थी और कई साहित्यकारों का भी उनके घर आना-जाना होता था। क्रांतिकारियों की जमात ने खान के मन पर गहरा प्रभाव डाला था। उषा किरण खान ने अपने जीवन में नागार्जुन के साथ समय बिताया और कई लेखकों के साथ वैचारिक सहकार किया। डॉ. ओम निश्चल ने अज्ञेयशती पर ‘जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है’ शीर्षक से प्रेम कविताएं संपादित की और उनकी भूमिका में अज्ञेय के विविध चित्रों की सजावट थीं।

तस्वीर साभार: BBC

उनके हस्ताक्षर, चित्र, और पुस्तकों के कवर पेज के साथ एक चित्र था, जिसमें अज्ञेय नदी के किनारे शिला पर उषाकिरण खान के साथ बैठे हुए नदी को निहार रहे थे। यह चित्र एक संसार को समर्थित कर रहा था। शायद यह किसी समागम का चित्र था, जिसे अज्ञेय ने स्थापित किया था। इस चित्र से उनका सहज सौंदर्यबोध और प्रकृतिबोध दिखता था।

लेखनी में महिलाओं के लिए खोलती दरवाजे

वह अपनी आत्मकथा को लिख रही थीं, जिसका एक अंश हाल ही में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में बिना तारीख के बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन में स्त्री-पुरुषों के समान योगदान और अपने परिवार के स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ी जीवंत भूमिका पर लिखना चाहा, जिसकी नोट्स वह बना रही थीं। वह बिहार की संस्कृति-सभ्यता की अद्भुत अनुगाथा थीं और उनके लेखन में भारतीयता का पूरा चेहरा प्रकट होता था। उनके लेखन में विपन्नता के चित्र भी उभरते थे, लेकिन उनके उठाए चरित्रों में स्वाभिमान की छाया दिखती थी। उनके साहित्य में वो बिहार की साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां समेटी हुई थीं। वह धुन और उसके जुनून के प्रति संबंधित रहती थीं, जो उनके भीतर हमेशा मौजूद थे। ‘आयाम’ में भिन्न विचारों के लिए महिलाओं के लिए दरवाज़े खुले रखे गए थे, जिनकी रुचि पढ़ने-लिखने में थी। आयाम में शामिल महिलाओं ने रोहित वेमुला की मृत्यु पर प्रतिरोधी कविताएं मोर्चे में रखीं और अपने प्रतिरोध को ज़ाहिर किया।

उनके साहित्य में वो बिहार की साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां समेटी हुई थीं। वह धुन और उसके जुनून के प्रति संबंधित रहती थीं, जो उनके भीतर हमेशा मौजूद थे। 

गांव और शहर का मिश्रण

‘अड़हुल की वापसी’ जैसी कहानी ने प्रेम को नई कैफ़ियत, नया लय, और अनोखे भाव से भरा है। उनकी कई कहानियां ठेठ कोसी क्षेत्र के गांव की दुनिया की हैं, और उनके लेखन में गांव के घर की भाषा की खुशबू है। उषा ने कई कहानियां लिखी जिन में से, ‘पीड़ा के दंश’ एक ऐसी कहानी है जिसमें नैतिकता के मापदंड बदले गए। उनकी कहानियों में मध्यवर्ग के मूल्य और रिश्ते में बदलाव दिखाता है। उनकी कहानियों में गाँव की सादगी और शहर का जीवन मिलेगा, प्रेम का एक अलग रंग मिलेगा।हर किरदार आपको बड़ी हमदर्दी, बड़ी सफ़ाकी और हिकारत से अपने बीच ले जाता है। इन कहानियों के माध्यम से हम जीवन को नजदीक से देख सकते हैं। उन्होंने तमाम विषयों पर लिखा, जिसमें सेक्स जैसे विषय भी शामिल था।

उनकी कहानियों में गाँव की सादगी और शहर का जीवन मिलेगा, प्रेम का एक अलग रंग मिलेगा।हर किरदार आपको बड़ी हमदर्दी, बड़ी सफ़ाकी और हिकारत से अपने बीच ले जाता है। इन कहानियों के माध्यम से हम जीवन को नजदीक से देख सकते हैं।

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित

तस्वीर साभार: The Indian Express

उनका सारा लेखन जीवन से प्रेरित है। खान का योगदान केवल साहित्यिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था। एक अकादमिक इतिहासकार के रूप में भी, उन्होंने कई शोध पत्र और किताबें लिखीं, जिनमें ‘पटना कॉलेज का इतिहास’ भी शामिल है। ऐतिहासिक शोध के प्रति उनके समर्पण ने सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को समझने में उनकी मदद की, जिसे उन्होंने अपनी रचनात्मक कृतियों में चित्रित किया। 2015 में, साहित्य और शिक्षा में उनके योगदान के लिए खान को प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस सम्मान ने हिंदी और मैथिली दोनों साहित्यिक क्षेत्रों में उनके प्रभाव को रेखांकित किया, भारतीय साहित्य में एक प्रमुख आवाज़ के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया।

उषा किरण खान का जीवन और कार्य आकांक्षी लेखकों और सांस्कृतिक उत्साही लोगों के लिए एक प्रेरणा के रूप में काम करते हैं। भाषाओं को जोड़ने, विविध आख्यानों का जश्न मनाने और कम प्रतिनिधित्व वाली आख्यानों को आवाज देने की उनकी क्षमता हमें एक अमूल्य विरासत देकर गई है। उन्हें 2011 में ‘भामती’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। बिहार की प्रतिष्ठित साहित्यकार उषा किरण खान ने 11 फरवरी 2024, को आख़िरी सांसे ली। एक सम्मानित लेखिका, इतिहासकार और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित खान ने भारतीय साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने कहानियां लिखी, जो सामाजिक वास्तविकताओं, मानवीय भावनाओं और बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।

Source:

  1. Wikipedia
  2. Hindustan
  3. Jaano Junction

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