नारीवाद की पहली लहर उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में हुई जिसमें कई नारीवादी स्त्रियों और पुरुषों ने भाग लिया और समानता और समावेशी समाज की नींव रखने के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। उसके बाद समय-समय पर नारीवाद की दूसरी और तीसरी लहर आई जिसके चलते लोगों ने पितृसत्तात्मक परंपराओं के खिलाफ़ बोलना शुरू किया। पर इतिहास में ऐसे भी कई नाम हैं जो तब नारीवादी जीवन जी के गए जब नारीवाद शब्द भी प्रचलन में नहीं आया था। ऐसा ही एक नाम है अव्वैयार का।
अव्वैयार एक प्रमुख तमिल कवियित्री और संत थीं, जिन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिये सामाजिक और धार्मिक संदेशों को साझा किया। ‘अव्वैयार’ शीर्षक अलग-अलग समय में अलग-अलग महिलाओं कवियित्रियों द्वारा धारण किया गया है जिसका अर्थ है “आदरणीय वृद्ध महिला” लेकिन आमतौर पर यह नाम सबसे प्रसिद्ध अव्वैयार से संबंधित है जो संगम काल के समय की थीं। अव्वैयार का वास्तविक नाम तो किसी को नहीं पता पर इससे उनकी लोकप्रियता कम नहीं हो जाती। उनकी रचनाएं आज भी तमिलनाडु के स्कूलों में पढाई जाती हैं जो बच्चों से लेकर बड़ों तक सब में मशहूर हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के ज़रिये जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर प्रकाश डाला है, जिसमें धार्मिक भक्ति, नैतिक उपदेश, और बाल साहित्य शामिल हैं।
भारतीय समाज में शादी और बच्चा करना हर इंसान के जीवन का सबसे मुख्य और अहम पहलू माना जाता है पर ये पुरुषवादी समाज के द्वारा बनाई गई व्यवस्था का एक रूप है, तो औरतों के ऊपर इसको ढोने का बोझ थोड़ा और बढ़ जाता है जिसके चलते एक औरत का समय रहते शादी करना और माँ बनना खुदको आत्मनिर्भर बनाने से ज्यादा ज़रूरी हो जाता है। समाज और मनोरंजन की दुनिया भी बारी-बारी हमें एक आदर्श माँ, आदर्श बीवी और आदर्श बहू की छवि याद दिलाती रहती है। कोई अगर इनमें से किसी एक रूप में भी मेल ना खाये तो वो एक तथाकथित बुरी औरत बन जाती है।
आज से तकरीबन दो हज़ार साल पहले सोचिये एक औरत का विवाह ना करना, जगह-जगह घूम कर उपदेश देना और अपने मुताबिक एक स्वतंत्र जीवन जीना कैसा रहा होगा। अव्वैयार ने वैसे ही अपने जीवन को एक स्वतंत्र महिला के रूप में जिया और अपने समय के सामाजिक नियमों और अपेक्षाओं को चुनौती दी। वे सामाजिक सीमाओं से परे जाकर अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक यात्रा पर निकलीं जो उनके अंदर एक नारीवादी औरत को दर्शाता है।
अव्वैयार का जन्म एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके पिता ब्राह्मण थे और माँ दलित। जब अव्वैयार का जन्म हुआ तो उनके पिता धार्मिक यात्रा पर थे इसलिए उन लोगों ने अपने बच्चे को वहीं छोड़ने का सोचा और आगे बढ़ गए। रास्ते से गुज़र रहे एक कवि की नज़र उस बच्चे पर पड़ी और वो उस बच्चे को अपने साथ ले गया। जिसके चलते अव्वैयार की बहुत छोटी सी उम्र से ही कविताओं में रुचि रहने लगी। वो छोटी सी उम्र में भी कई ऐसे मुश्किल छंद लिख देती थीं जो बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं लिख पाते थे। उनकी कविताओं में आम जीवन की सादगी और सामाजिक, नैतिकता झलकती थी जो उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान लोगों से मिलते हुए महसूस की थी। अव्वैयार एक यात्री की तरह जगह-जगह यात्रा करती रहती थीं और लोगों से मिलकर उन्हें जीवन के मूल्य सिखाती रहती थी। उन्हें आम आदमी और सादा जीवन पसंद था जिसमें दिखावा ना हो जो कि उनकी कविताओं में बखूबी झलकता था।
पुराने समय में लोगों के बीच ज्ञान की बातें पहुंचाने का ज़रिया कविता, गीत और दोहे हुआ करते थे। उनकी रचनाएं भी लोगों को नैतिक जीवन के मूल्य सिखाती थीं। उन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिये आम लोगों को बताया कि जीवन में क्या सही है और क्या गलत, क्या करना चाहिए क्या नहीं, कैसे ज़रुरतमंदों की मदद करनी चाहिए और किसी के लिए गलत शब्द नहीं बोलना चाहिए। उनकी कविताएं जटिल ना होकर सरल और गहरी हुआ करती थी जिसकी वजह से लोग उन्हें पसंद करते थे।
उन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिये जो आत्मनिर्भरता, आत्म-सम्मान और ज्ञान की खोज को बढ़ावा दिया वो नारीवादी विचारों के साथ गहराई से मेल खाता है। एक पुरुष प्रधान समाज में अव्वैयार का महिला होकर किसी पर आश्रित ना रहना और अकेले जीवन जीना कई महिला विरोधी परंपराओं को तोड़ता है। उनका सम्मान न केवल एक कवि के रूप में किया जाता है बल्कि एक ज्ञानी और सलाहकार के रूप में भी किया जाता है। जब औरतों की बाज़ार में भागीदारी जैसे मुद्दे तक नहीं उठे थे तब वह राजाओं और सामान्य जनता दोनों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सलाह और मार्गदर्शन प्रदान किया करती थीं। उनके काम में समाजिक न्याय के प्रति उनकी गहरी समझ झलकती है जिस वजह से उस समय के कई राजा उनसे प्रजा की समस्याओं पर सलाह लिया करते थे। वे विशेष रूप से तमिल साहित्य में अपने ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थीं।
उनके लेखन में महिला शिक्षा एक महत्वपूर्ण विषय माना गया है। उनके इस प्रकार के विचार न केवल उस समय के लिए, बल्कि आज के समय में भी, महिलाओं के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर देते हैं। उनके काम में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों को महत्व देने के जो संकेत मिलते हैं उससे समझ आता है कि वो अपने समय से कितना आगे थीं। उन्होंने तब ऐसा जीवन जिया जब महिलाओं के लिए सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता सीमित थी। उनका जीवन और काम आज भी महिलाओं को प्रेरित करता है एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और आत्म-सम्मान से भरपूर जीवन जीने के लिए।
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