समाजख़बर खेलों में ड्रेसकोड के चलते महिला खिलाड़ियों पर थोपे जाते रहे हैं पुरुषों के बनाये नियम 

खेलों में ड्रेसकोड के चलते महिला खिलाड़ियों पर थोपे जाते रहे हैं पुरुषों के बनाये नियम 

ऐसे बहुत से कम खेल है जहां महिला और पुरुष एथलीटों के समान ड्रेसकोड है। कुश्ती, गोल्फ, बास्केटबॉल, क्रिकेट और कुछ फुटबॉल लीग में महिलाओं और पुरुषों के लगभग एक जैसे कपड़े होते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में खेलों में महिला और पुरुषों के लिए ड्रेसकोड में अंतर नज़र आता है।

 एक खेल, एक से नियम-पैमाने लेकिन ड्रेस कोड अलग-अलग। खेलों की दुनिया में अक्सर ऐसा देखा गया है कि महिलाओं और पुरुषों के समान खेल के लिए महिला एथलीट्स की पोशाक अलग रही है। लैंगिक भेदभाव के चलते समाज में हमेशा महिलाओं और उनके जीवन के पहलुओं पर नियंत्रण करने की कोशिश की गई है। इसी क्रम में खेल का क्षेत्र भी उनके लिए सुरक्षित नहीं रहा है। खेलों में महिलाओं के ड्रेस कोड उन पंरपराओं द्वारा तय होते हैं जो पुरानी और लिंग आधारित है।

खेलों के इतिहास से लेकर वर्तमान पर गौर करें तो यह साफ नज़र आता है कि खेल संघ ने अपने नियमों के ज़रिये स्त्रीत्व की धारणा को महिला खिलाड़ियों को सामजस्य बिठाने की कोशिश की है। इस तरह की प्रक्रिया ने महिलाओं को उनके खेल कौशल के लिए महत्व दिए जाने से अलग प्रशंसा की जाने वाली एक ऑबजेक्ट में बदल दिया है। खिलाड़ियों और उनके आस-पास की संस्कृतियां महिला खिलाड़ियों के शरीर की पुलिसिंग करती नज़र आती है जो कि उनकी सेक्सिट यूनिफॉर्म यानी ड्रेसकोड के माध्यम से दिखती है। ये ड्रेसकोड इस तरह के होते है कि महिलाओं को पुरुषों की नज़र में आकर्षित करते हैं। महिला एथलीटों को अधिक फेमिनी और आकर्षक दिखने वाले कपड़े पहनने पर हमेशा से जोर रहा है। 

जिम्नास्टिक्स न्यूजीलैंड ने खिलाड़ियों की पोशाकों से जुड़े नियमों में बदलाव किया है। नये नियमों के अनुसार अब महिला खिलाड़ियों को जिमनास्टिक के लिए पहने जाने वाली लियोटार्ड यानी बिकनी जैसी ड्रेस के ऊपर शॉटर्स या लेगिंग्स पहनने की इजाजत होगी।

न्यूजीलैंड ने महिला खिलाड़ियों की ड्रेस के नियम बदले

हाल ही में न्यूजीलैंड से इस दिशा में एक सकारात्मक ख़बर आई है। जिम्नास्टिक्स न्यूजीलैंड ने खिलाड़ियों की पोशाकों से जुड़े नियमों में बदलाव किया है। नये नियमों के अनुसार अब महिला खिलाड़ियों को जिमनास्टिक के लिए पहने जाने वाली लियोटार्ड यानी बिकनी जैसी ड्रेस के ऊपर शॉटर्स या लेगिंग्स पहनने की इजाजत होगी। पुरुषों के लिए यह नियम पहले ही लागू है। द गार्जियन में प्रकाशित ख़बर के अनुसार देश में प्रतियोगियाओं के दौरान अंडरवियर या ब्रा स्टैप दिखने पर एथलीटों को दंडित करना बंद कर दिया जाएगा। यह फैसला एक सर्वे के नतीजे के बाद लिया गया है जिसमें 200 से अधिक प्रतिक्रियाएं मिली और पाया गया कि एथलीट खेल के दौरान ‘सुरक्षित और आरामदायक’ महसूस करना चाहते थे। 

यह नियम केवल न्यूजीलैंड की प्रतियोगिताओं में ही लागू होते हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जिमनास्ट महासंघ के नियम ही मान्य है। इसके लिए महिला खिलाड़ियों को सही स्पोर्टिव नॉन ट्रांसपेरेंट लियोटार्ड या यूनिटार्ड पहनना होगा जो कि सुंदर डिजाइन का होना चाहिए। महिला एथलीटों के व्यक्तिगत (इंडीविजुएल) या टीम इवेंट में ड्रेस के उल्लंघन के लिए उनके अंतिम स्कोर से 0.30 से 1.00 अंक तक काटे जा सकते हैं। एथलीटों ने पहले भी जिमनास्टिक में पहने जानी पोशाक को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी की टीम ने खेल में महिलाओं के यौन शोषण के ख़िलाफ़ स्टैड लेते हुए फुल बॉडी सूट पहनने का विकल्प चुना था। 

असुविधाओं से भरा एक लंबा इतिहास

19वीं शताब्दी में, जब उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाओं को लॉन टेनिस खेलने की अनुमति दी गई तो उनकी ड्रेस स्त्रीत्व यानी फेमिनी थी, शालीन थी और जो उनके आकर्षण को बढ़ाने के लिए डिजाइन की गई थी। उस समय पहने जाने वाले कॉर्सेट और पूरी लंबाई वाली पोशाकों ने आज की महिला टेनिस खिलाड़ियों की तरह कोर्ट में उछलने और छलांग लगाने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करता हुआ प्रतीत होता है। 20वीं सदी के आखिर तक फिजिकल एजुकेशन के योगदान के बाद से शारीरिक गतिविधियों के लिए महिलाओं के पहनावे में सुधार होने लगा। जिमस्लिप और ट्यूनिक जैसे कपड़ों ने कॉर्सेट जैसे कपड़ों से महिलाओं को मुक्त कर दिया। हालांकि यह प्रगतिशील कदम लग सकता था लेकिन नई यूनिफॉर्म के बैरेल शेप से युवा महिलाओं के शरीर को सावधानीपूर्वक छुपाया गया। 

ऐसे बहुत से कम खेल है जहां महिला और पुरुष एथलीटों के समान ड्रेसकोड है। कुश्ती, गोल्फ, बास्केटबॉल, क्रिकेट और कुछ फुटबॉल लीग में महिलाओं और पुरुषों के लगभग एक जैसे कपड़े होते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में खेलों में महिला और पुरुषों के लिए ड्रेसकोड में अंतर नज़र आता है। ट्रैक एंड फील्ड में विशेषकर प्रोफेशनल लेवल पर महिलाएं स्पोर्ट्स ब्रॉ और छोटी शॉर्ट्स पहने नज़र आती है। वहीं पुरुष खिलाड़ी लंबे स्पैन्डेक्स शॉर्ट्स पहने नज़र आते हैं। जिमनास्टिक में महिलाएं  लियोटॉर्ड पहने और पुरुष लंबी पैंट (लॉग ट्रैकपेंट) और टैंक टॉप पहने नज़र आते हैं। 

तस्वीर साभारः DW

टेनिस में अक्सर महिला खिलाड़ियों का ड्रेस कोड छोटी स्कर्ट है जबकि पुरुष आरामदाय शार्ट्स पहनते दिखते हैं। बीच बॉलीबॉल खेल में पुरुष खिलाड़ी शॉर्टस और टैंक टॉप पहन सकते हैं लेकिन महिलाओं के लिए इसमें बिकनी पहनना उचित है। कुछ लोग कहते है कि खेल के दौरान कम कपड़े पहनना आरामदाय और गतिशीलता को बढ़ाता है लेकिन सवाल यह है कि तो कम कपड़े महिलाओं खिलाड़ियों के लिए ही क्यों है? इसका आसान जवाब होगा कि यह महिलाओं के शरीर को सेक्शुअल और आकर्षक दिखाने की चाल है। उदाहरण के लिए स्कर्ट स्त्रीत्व का प्रतीक है। खेल, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता हासिल करने का माध्यम है लेकिन ऐसे नियम यह दिखाते है खेलों में पहनने वाली ड्रेस के ज़रिये लैंगिक भूमिका को रखने का एक तरीका है। 

विरोध में जब-जब उठी आवाज़ 

तस्वीर साभारः People

महिला खिलाड़ी समय-समय पर अपनी ड्रेस से जुड़ी लैंगिक अपेक्षाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती दिखी हैं। लोगों ने जो उनसे अपेक्षा की उसे तोड़ते हुए उन्होंने वही पहना है जो उन्हें आरामदायक और स्टाइलिश लगा और इसके लिए उन्हें चेतावनी, बैन और जुर्माने का भी सामना करना पड़ा। टेनिस की दुनिया में सबसे सफल महिला खिलाड़ी सरेना विलियम्स ने साल 2018 में फ्रेंच ओपन के दौरान कस्टम मेड काला केटसूट पहना था जिसका फ्रेंच टेनिस फेडरेशन की तरफ से विरोध किया गया था। उनके द्वारा पहने ड्रेस को संघ की ओर से बैन कर दिया गया था। महिला खिलाड़ियों के ड्रेस कोड का वह खुले तौर पर विरोध करने लगी हैं। बुल्गारिया में यूरोपियन चैंपियनशिप के दौरान नॉर्वेजियन महिला बीच हैंडबॉल टीम पर जुर्माना लगाया गया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे तय छोटी बिकनी बॉटम्स से अलग शॉर्टस में खेल के मैदान में उतरी थी। यूरोपीय हैंडबॉल महासंघ ने जुर्माने या अयोग्यता की धमकी दिए जाने के बावजूद उन्होंने शॉर्टस पहनने का विकल्प चुना। टीम पर 1500 यूरो का जुर्माना लगाया गया था। 

हालांकि पुरुष टीम को हमेशा शॉर्टस पहनने की अनुमति है लेकिन जब महिला खिलाड़ियों ने ऐसा किया तो उन पर जुर्माना लगा। साल 2021 में स्विट्जरलैंड में यूरोपीय कलात्मक जिमनास्टिक चैंपियनशिप में महिला एथलीटों ने भी ड्रेसकोड का विरोध किया था। साल 2012 में लंदन ओलंपिक के समय महिला बैडमिंटन में महिलाओं की रूचि को बढ़ाने के लिए खेल संघ के अधिकारियों ने फैसला लिया था कि इसकी महिला एथलीटों को अधिक महिला (फेमिनन) दिखने की ज़रूरत है। बैंडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन ने कहा था कि महिलाओं को स्कर्ट और ड्रेस पहननी होगी ताकि महिला खिलाड़ी अधिक फेमिनन दिखे ताकि प्रयोजकों और दर्शकों का आकर्षण बना रहे। 

महिला खिलाड़ियों के ड्रेस कोड का वह खुले तौर पर विरोध करने लगी हैं। बुल्गारिया में यूरोपियन चैंपियनशिप के दौरान नॉर्वेजियन महिला बीच हैंडबॉल टीम पर जुर्माना लगाया गया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे तय छोटी बिकनी बॉटम्स से अलग शॉर्टस में खेल के मैदान में उतरी थी।

महिलाओं को खेल में लंबे समय से और कई तरीकों से नियंत्रित किया जा रहा है। वे कैसी दिखेंगी, वे कैसा व्यवहार करती है, वे क्या पहनेंगी, क्या उनके लिए उचित है ये सब पुरुषों से बने खेलों के संघों द्वारा तय किया जाता है। हालांकि हर महिला खिलाड़ी या टीम का ऐसा विरोध प्रदर्शन दिखाता है कि महिला खिलाड़ी इस मामले में फैसला ले रही है वे वह पहनेगी जो उनके लिए सहज है ना कि वो जो उनको नियंत्रित करता है या किसी तय भूमिका में बाधता है। महिलाओं के सहज महसूस करते हुए खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का पूरा अधिकार है। सेक्सिट ड्रेस कोड उनके खेल प्रदर्शन में बाधा बन सकते है। खेलों मे मानकों में मौजूद ऐसे नियमों को बदलने ज़रूरी है क्योंकि ऐसे नियम महिलाओं और लड़कियों की खेलों के प्रति रूचि को भी बाधित करते है जब वे खेल खेलना शुरू करती हैं या करना चाहती हैं। खेल, खेल के बारे में होना चाहिए ना कि खेलते समय आप कैसे दिखते हैं। 


सोर्सः

  1. The Conversation

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