समाजखेल खेलों में यौन हिंसा के मामले कैसे महिलाओं की भागीदारी को करते हैं प्रभावित

खेलों में यौन हिंसा के मामले कैसे महिलाओं की भागीदारी को करते हैं प्रभावित

खेलों में यौन उत्पीड़न के मामलों में इज़ाफे से महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा की जाती है। ऐसी महिलाएं जो हमारी आइडियल हैं उनके साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामलों को सुनना एक भयावह स्थिति है। इस प्रक्रिया में जो औरतें और लड़कियां जो खेल में आगे आना चाहती हैं, जब वे ऐसे मामलों को देख या सुनती हैं तो उनका मनोबल टूटता है।

जनवरी 2023 में कुश्ती के खिलाड़ियों विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, अंशु मलिक, बजरंग पुनिया जैसे बड़े खिलाड़ियों ने पूरे देश के सामने कुश्ती में हो रहे यौन उत्पीड़न पर देश का ध्यान आकर्षित किया। ओलंपिक विजेताओं, कॉमन वेल्थ गेम्स के विजेताओं ने जनवरी में कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष के बृजभूषण शरण सिंह पर शोषण के आरोप लगाए। जनवरी में धरने पर बैठे सभी खिलाड़ियों को सरकार द्वारा आश्वासन देकर यह धरना बंद करवा दिया गया।

लेकिन कोई कार्यवाही समय से न होने के कारण यह धरना अप्रैल 2023 में दिल्ली के जंतर-मंतर पर फिर शुरू किया गया। इसमें सभी खिलाड़ियों का कहना है कि साल 2012 से खिलाड़ियों का शोषण हो रहा है। इनमें से कुछ मामले बृजभूषण शरण के घर पर ही हुए। खिलाड़ियों ने यह भी कहा है कि शोषण टूर्नामेंट के दौरान भी हुए। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब खेल के क्षेत्र में यौन शोषण के मामले सामने आए हैं। इससे पहले भी कई खिलाड़ियों ने अपने साथ हुए शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है। कैसे यौन शौषण के ये मामले खेल के क्षेत्र में पहले से ही कम संख्या में मौजूद महिलाओं को और हताश करते हैं, इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे।

साइक्लिस्ट देबोराह हेरोल्ड का केस

स्टार साइक्लिस्ट देबोराह हेरोल्ड ने नेशनल चीफ़ कोच आर.के.शर्मा पर उत्पीड़न की 2022 में शिकायत दर्ज करवाई थी।भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) द्वारा 6 भारतीय साइक्लिस्ट को मई 2022 में स्लोवेनिया में हुए ट्रेनिंग कम कॉम्पिटीशन फॉरेन एक्सपोजर ट्रिप के लिए भेजा गया था। इस समूह में एक महिला साइक्लिस्ट भी थी। यह कैंप टीम को एशियन ट्रैक साइक्लिंग चैंपियन के लिए तैयार करने के लिए था। जब सभी खिलाड़ी स्लोवेनिया पहुंचे तब सभी खिलाड़ियों और स्पोर्ट स्टाफ को कहा गया कि उन्हें कमरे डबल शेयरिंग बेसिस पर दिए जाएंगे और महिला साइक्लिस्ट को कोच आर. के. शर्मा के साथ कमरा साझा करना पड़ेगा।

इस पर महिला साइक्लिस्ट ने रिटायर्ड सीनियर एथलीट के जरिए साई के सीनियर डेवलपमेंट ऑफिसर (एसडीओ) फॉर साइक्लिंग को सूचित किया। भारतीय परिसंघ के अध्यक्ष से बात कर एसडीओ ने यह साफ संकेत दिया कि टीम में अकेली महिला एथलीट को अलग कमरा मिलना चाहिए। इसके बाद महिला साइक्लिस्ट के लिए अलग कमरे का इंतज़ाम किया गया। द क्विंट की खबर के अनुसार 29 मई को कोच ज़बरदस्ती महिला साइक्लिस्ट के कमरे में घुस आया और उनके बिस्तर पर लेट गया। द क्वींट हिंदी को बताते हुए एथलीट ने कहा कि वह बिस्तर पर लेट गया और जब उन्होंने कोच को जाने को कहा तब उसने ज़बरदस्ती एथलीट को अपनी तरफ खींचा और उनका उत्पीड़न करने की कोशिश की।

कर्णनम मल्लेश्वरी का केस

इंडिया टुडे की साल 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार मल्लेश्वरी ने शिकायत की थी कि कोच रमेश मल्होत्रा जूनियर वेट लिफ्टर्स का यौन उत्पीड़न करते हैं। मल्लेश्वरी का कहना था कि द्रोणाचार्य पुरस्कार से पुरस्कृत कोच मल्होत्रा दस सालों से जूनियर वेटलिफ्टर्स का यौन उत्पीड़न कर रहा है। इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ने रमेश मल्होत्रा को सस्पेंड किया था जबकि मल्लेश्वरी को मांग थी कि कोच मल्होत्रा को उनके काम से बर्खास्त कर दिया जाए ताकि सर्वाइवर्स को इंसाफ मिले और इस क्षेत्र में आनेवाली खिलाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

महिलाओं की भागीदारी वाले खेलों को आसान या ज़्यादा इज़्ज़त वाला नहीं समझा जाता। यह संघर्ष महिलाओं के सामने सालों से चला आ रहा है। उसके बाद यौन उत्पीड़न मुद्दे बताते हैं कि लैंगिक असमानता का यह भी एक पहलू है। जहां अपनी प्रतिभा से पहुंचने के बाद भी महिलाओं की प्रतिभा और खेल की कोई इज़्ज़त नहीं।

छत्तीसगढ़ के खो-खो खिलाड़ियों का केस

बीबीसी की साल 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर खेल चुकी आदिवासी खो-खो खिलाड़ियों ने छत्तीसगढ़ के खो-खो संघ के सचिव, कोषाध्यक्ष और बालक वर्ग के कोच के ख़िलाफ़ यौन प्रताड़ना की शिकायत दर्ज करवाई थी। खिलाड़ियों का आरोप था कि उन्हें बुलाकर अश्लील फिल्में दिखाकर उन्हें भी वैसा करने को कहा जाता था। जिन महिलाओं ने इसका विरोध किया उन महिलाओं को आगे खेलने या खेल शिविरों से बाहर निकल दिया जाता था। खो-खो संघ के अध्यक्ष रामू की अश्लील हरकतें करते हुए, खिलाड़ियों ने उसकी क्लिपिंग बनाई और इसे ही बतौर सबूत सभी 11 खिलाड़ियों ने पेश किया था। 

महिलाओं की भागीदारी पर असर

खेलों को हमेशा से ही पुरुषों से जोड़ा जाता है। खेलों में पुरुषों का वर्चस्व हमेशा से ही रहा है। खेल की दुनिया में महिलाओं को शुरू से ही जगह नहीं दी। जब कई आंदोलनों और क्रांतियों के बाद खेलों में महिलाओं की भागीदारी शुरू हुई तब उनके सामने यौन प्रताड़ना, उत्पीड़न और शोषण जैसे संघर्ष सामने आए और अब भी ये संघर्ष जारी हैं। ऐसे में महिलाओं का अपने पितृसत्तात्मक परिवारों से निकलकर खेलों में शामिल होना मुश्किल होता जा रहा है। पहले ही पुरुष प्रधान समाज महिलाओं पर अपना वर्चस्व बनाए रखे हुए है; इससे पितृसत्ता को बढ़ावा मिलता है। अगर महिलाएं खेलों में शामिल नहीं होंगी और घर पर ही रहेंगी तो इससे पितृसत्ता पोषित होगी।

खेलों में लैंगिक असमानता को बढ़ावा

लैंगिक असमानता हमारे बीच इस तरह व्याप्त है जैसे हवा। इससे हमारे जीवन का कोई हिस्सा अछूता नहीं। खेलों में भी यह असमानता साफ़ तौर पर दिखती है। बीबीसी न्यूज के एक सर्वे के अनुसार 42 प्रतिशत लोगों ने यह माना कि महिलाओं के खेल पुरुषों के खेलों के मुताबिक मनोरंजक नहीं होते। कई तरह के संघर्षों के बाद महिलाओं की खेलों में भागीदारी अब जाकर बड़ी है उसमें भी महिलाओं को लैंगिक असमानता को झेलना पड़ता है।

महिलाओं की भागीदारी वाले खेलों को आसान या ज़्यादा इज़्ज़त वाला नहीं समझा जाता। यह संघर्ष महिलाओं के सामने सालों से चला आ रहा है। उसके बाद यौन उत्पीड़न मुद्दे बताते हैं कि लैंगिक असमानता का यह भी एक पहलू है। जहां अपनी प्रतिभा से पहुंचने के बाद भी महिलाओं की प्रतिभा और खेल की कोई इज़्ज़त नहीं। यहां भी उन्हें उनके शरीर तक सीमित किया जाता है। इससे खेलों में लैंगिक असमानता को न केवल बढ़ावा मिला बल्कि यह महिलाओं को सोचे-समझे ढंग से पीछे खींचने की एक पितृसत्तात्मक प्रक्रिया का हिस्सा है। 

महिलाओं द्वारा खेलों में शामिल होने पर समाज की अस्वीकृति को बढ़ावा

महिलाओं का घर से बाहर आने पर ही पितृसत्तात्मक समाज अस्वीकृति ज़ाहिर करता है। उसमें भी खेलों में महिलाओं के आने पर यह अस्वीकृति बढ़ जाती है। उस पर यौन शोषण जैसे मामलों का दिन प्रतिदिन बढ़ना पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को आगे बढ़ने में बाधक है। हमारे समाज में स्वीकृति देने की परंपरा पुरुष प्रधान समाज के वर्चस्व में होने के कारण ही है। जहां स्त्री को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए भी स्वीकृति चाहिए होती है। इस पर शोषण के मामले महिलाओं की स्थिति और खराब करने का काम कर रहे हैं। 

जब कई आंदोलनों और क्रांतियों के बाद खेलों में महिलाओं की भागीदारी शुरू हुई तब उनके सामने यौन प्रताड़ना, उत्पीड़न और शोषण जैसे संघर्ष सामने आए और अब भी ये संघर्ष जारी हैं। ऐसे में महिलाओं का अपने पितृसत्तात्मक परिवारों से निकलकर खेलों में शामिल होना मुश्किल होता जा रहा है।

असुरक्षा की भावना को बढ़ावा

खेलों में यौन उत्पीड़न के मामलों में इज़ाफे से महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा की जाती है। ऐसी महिलाएं जो हमारी आइडियल हैं उनके साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामलों को सुनना एक भयावह स्थिति है। इस प्रक्रिया में जो औरतें और लड़कियां जो खेल में आगे आना चाहती हैं, जब वे ऐसे मामलों को देख या सुनती हैं तो उनका मनोबल टूटता है।

भारतीय स्त्री को त्याग और बलिदान की मूर्ति के रूप में बचपन से ढाला जाता है। पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को अपनी प्रतिभा या अपनी ज़रूरतों को छिपाने और दबाने की प्रवृति हम में हमेशा से ही डाली जाती है। शोषण और उत्पीड़न जैसे मामलों से मनोबल टूटेगा और यह प्रवृति महिलाओं के बीच बढ़ती जायेगी। हम जानते हैं कि यौन उत्पीड़न एक गंभीर अपराध है लेकिन न्याय के लिए लड़ते खिलाड़ियों और दोषियों के खिलाफ़ कोई कार्रवाई न होता देखकर खेल के क्षेत्र में आने का सपना देख रही दूसरी लड़कियों और महिलाओं पर यह एक नकारात्मक प्रभाव डालता है।


Comments:

  1. Arun sah says:

    Heer , aap ne khel me ho rhe bhrashtachar or khel me khel ne vale khiladiyon ka manobal kese tut Raha h vo dikhaya hai!… Ase he aage bdh te rhna …. Proud of you 🪷🪷

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